NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
दिल्ली :राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ नर्सिंग के कर्मचारियों की जीत; तीन महीने के संघर्ष के बाद काम पर वापस बुलाए गए सभी कर्मचारी
1 फरवरी 2021 को बिना किसी नोटिस के लगभग 40 ठेका कर्मचारियों को काम से निकाल दिया गया था। इसके बाद से ही कर्मचारी लगातार संघर्षरत थे। इन सभी कर्मचारियों को जुलाई के प्रथम सप्ताह में काम पर वापस ले लिया गया
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
10 Jul 2021
 दिल्ली :'राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ नर्सिंग के कर्मचारियों की जीत; तीन महीने के संघर्ष के बाद काम पर वापस बुलाए गए सभी कर्मचारी
ऐक्टू से सम्बद्ध रैकौन कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी यूनियन ने अपनी मीटिंग से लिया मज़दूरों के संघर्ष को तेज करने का संकल्प

दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली के मूलचंद स्थित राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ नर्सिंग के बाहर, ऐक्टू से सम्बद्ध 'रैकौन कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी यूनियन' के बैनर तले 1 फरवरी 2021 को बिना किसी नोटिस के लगभग 40 ठेका कर्मचारियों को काम से निकाल दिया गया था। इसके बाद से ही कर्मचारी लगातार संघर्षरत थे। इन सभी कर्मचारियों को जुलाई के प्रथम सप्ताह में काम पर वापस ले लिया गया। जिसपर कर्मचारियों की यूनियन ने इसे संघर्ष की जीत कहते हुए एक बयान जारी किया ,जिसमे कहा कोविड महामारी, केंद्र सरकार की आपराधिक लापरवाही और संसद से लगातार पास हो रहे जनविरोधी कानूनों के बीच, रैकौन के कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों की हाल ही में हुई जीत एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।



तीन महीने तक लगातार चलता रहा मज़दूरों का धरना: हाईकोर्ट के आदेश के बाद काम पर वापस नही रखा गया

निकाले जाने के बाद से तीन महीने तक मज़दूरों ने कॉलेज गेट पर लगातार धरना जारी रखा। इस बीच कर्मचारियों का आरोप था कि प्रबंधन और स्थानीय पुलिस द्वारा कर्मचारियों को धमकाया भी जाता रहा, परन्तु लॉक-डाउन लगने तक कर्मचारियों ने अपना धरना जारी रखा।
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 9 फरवरी को ही कर्मचारियों को वापस काम पर रखने का आदेश दे दिया गया था, परन्तु इसके बावजूद भी कॉलेज प्रबंधन और ठेकेदार ने निकाले गए कर्मचारियों को काम पर नही रखा।
ठेका कर्मचारियों के अनवरत चले संघर्ष और उच्च न्यायालय द्वारा दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी के बाद ही जुलाई माह में सभी कर्मचारियों को काम पर वापस रखा गया।

ऐक्टू से सम्बद्ध रैकौन कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी यूनियन का कहना है कि कोरोना के दौर में जब ज़्यादातर संस्थानों से छटनी की खबरे आ रही हैं,  इन कर्मचारियों को मिली ये जीत काफी महत्वपूर्ण है। इससे पता चलता है कि तमाम मुश्किलों के बावजूद भी अगर मज़दूर अपनी एकता कायम रखते हैं तो सफलता ज़रूर मिलती है।

किसान आंदोलन से लेकर अन्य ठेका कर्मचारियों के संघर्षों में भी साथ दिया

शनिवार को इन सभी कर्मचारियों ने एक बैठक की जिसे कई मज़दूर नेताओं ने संबोधित किया। मीटिंग में ऐक्टू के दिल्ली राज्य अध्यक्ष, कामरेड संतोष रॉय, स्वास्थ्य कर्मचारियों की अखिल भारतीय कॉन्फ़ेडरेशन के महासचिव, कामरेड रामकिशन, वरिष्ठ साथी कामरेड कीरत राम जी व भाकपा(माले) के राज्य सचिव रवि राय बतौर अथिति मौजूद रहे।


मीटिंग को संबोधित करते हुए यूनियन अध्यक्ष कामरेड सूर्यप्रकाश ने कहा कि रैकौन के कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों ने सिंघु बॉर्डर पर ऐक्टू द्वारा चलाए जा रहे प्राथमिक चिकित्सा डेस्क में भी काफी सहयोग दिया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चल रहे सफाई कर्मचारियों के आंदोलन में भी इन्होंने भागीदारी की। रैकौन के कर्मचारियों ने अपनी लड़ाई लड़ते हुए, अन्य जगहों पर चल रहे संघर्षों में यथासंभव सहयोग करने की कोशिश की है - यही सही मायनों में हमारी जीत है।

उन्होंने सभी मौजूद कर्मचारियों से आगे आनेवाली चुनौतियों के लिए तैयार रहने का आह्वान करते हुए, दिल्ली स्तर पर कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों के संघर्ष को तेज़ करने की गुजारिश की।

 

Rajkumari Amrit Kaur College of Nursing
Contract Workers
workers protest
AICCTU
Delhi

Related Stories

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग

सीवर कर्मचारियों के जीवन में सुधार के लिए ज़रूरी है ठेकेदारी प्रथा का ख़ात्मा

विधानसभा घेरने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की आशाएं, जानिये क्या हैं इनके मुद्दे? 

दिल्ली: बर्ख़ास्त किए गए आंगनवाड़ी कर्मियों की बहाली के लिए सीटू की यूनियन ने किया प्रदर्शन

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल का दूसरा दिन, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन

पूर्वांचल में ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के बीच सड़कों पर उतरे मज़दूर


बाकी खबरें

  • Sudan
    पवन कुलकर्णी
    कड़ी कार्रवाई के बावजूद सूडान में सैन्य तख़्तापलट का विरोध जारी
    18 Jan 2022
    सुरक्षा बलों की ओर से बढ़ती हिंसा के बावजूद अमेरिका और उसके क्षेत्रीय और पश्चिमी सहयोगियों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र भी बातचीत का आह्वान करते रहे हैं। हालांकि, सड़कों पर "कोई बातचीत नहीं, कोई समझौता…
  • CSTO
    एम. के. भद्रकुमार
    कज़ाख़िस्तान में पूरा हुआ CSTO का मिशन 
    18 Jan 2022
    रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बुधवार को क्रेमलिन में रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु के साथ कज़ाख़िस्तान मिशन के बारे में कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीट ऑर्गनाइजेशन की “वर्किंग मीटिंग” के बाद दी गई चेतावनी…
  • election rally
    रवि शंकर दुबे
    क्या सिर्फ़ विपक्षियों के लिए हैं कोरोना गाइडलाइन? बीजेपी के जुलूस चुनाव आयोग की नज़रो से दूर क्यों?
    18 Jan 2022
    कोरोना गाइडलाइंस के परवाह न करते हुए हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी तरह से प्रचार में जुटे हैं, ऐसे में विपक्षी पार्टियों पर कई मामले दर्ज किए जा चुके हैं लेकिन बीजेपी के चुनावी जुलूसों पर अब भी कोई बड़ी…
  • Rohit vemula
    फ़र्रह शकेब
    स्मृति शेष: रोहित वेमूला की “संस्थागत हत्या” के 6 वर्ष बाद क्या कुछ बदला है
    18 Jan 2022
    दलित उत्पीड़न की घटनायें हमारे सामान्य जीवन में इतनी सामान्य हो गयी हैं कि हम और हमारी सामूहिक चेतना इसकी आदी हो चुकी है। लेकिन इन्हीं के दरमियान बीच-बीच में बज़ाहिर कुछ सामान्य सी घटनाओं के प्रतिरोध…
  • bank
    प्रभात पटनायक
    पूंजीवाद के अंतर्गत वित्तीय बाज़ारों के लिए बैंक का निजीकरण हितकर नहीं
    18 Jan 2022
    बैंकों का सरकारी स्वामित्व न केवल संस्थागत ऋण की व्यापक पहुंच प्रदान करता है बल्कि पूंजीवाद की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License