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घटना-दुर्घटना
भारत
दिल्ली हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को लगाई फटकार, हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर विचार से किया इंकार
दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वे पुलिस आयुक्त को भाजपा के तीन नेताओं द्वारा सीएए हिंसा के सिलसिले में कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने के संबंध में प्राथमिकी दर्ज करने की सलाह दें।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
26 Feb 2020
sc

दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंसा पर ‘पेशेवर’ तरीके से रोक लगाने में विफल रहने के लिये पुलिस को बुधवार को फटकार लगाई। हालांकि, न्यायालय ने नए संशोधित नागरिकता कानून के मुद्दे पर हुए दंगों से संबंधित याचिकाओं पर विचार करने से इंकार कर दिया। गौरतलब है कि इस हिंसा में अब तक 22 लोगों की मौत हो गई है और लगभग 200 लोग घायल हुए हैं।

शीर्ष अदालत ने ‘हिंसा को उकसाने वालों को’ बचकर निकल जाने की अनुमति देने के लिये कानून लागू करने वाली एजेंसियों को लताड़ लगाई और कहा कि उन्हें किसी की अनुमति मिलने का इंतजार किये बिना कानून के अनुसार कदम उठाना चाहिये।

न्यायालय ने कहा, ‘अगर कोई भड़काऊ बयान देता है तो पुलिस को कार्रवाई करनी है।’ कोर्ट ने यद्यपि हिंसा से संबंधित आवेदनों पर विचार नहीं किया, लेकिन कहा कि शाहीन बाग में प्रदर्शन से संबंधित मामलों पर सुनवाई के लिये ‘सौहार्दपूर्ण वातावरण’ की जरूरत है।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने कहा कि वह हिंसा से जुड़़ी याचिकाओं पर विचार करके शाहीन बाग प्रदर्शनों के संबंध में दायर की गई याचिकाओं का दायरा नहीं बढ़ाएगी। पीठ ने कहा, ‘हम अपने समक्ष प्रस्तुत याचिका के दायरे से बाहर नहीं जाएंगे। कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई हैं। हमारे सामने सवाल है कि क्या असंतुष्ट लोग शाहीन बाग नामक स्थान पर धरने पर बैठ सकते हैं। हम सिर्फ इसी मुद्दे पर सुनवाई करेंगे।’

पीठ ने कहा, ‘हम हिंसा के मुद्दे से संबंधित आवेदनों पर विचार नहीं करने जा रहे हैं। इस मामले पर उच्च न्यायालय को विचार करना है।’ पीठ ने कहा कि वह किसी को कानून के अनुसार उपचार हासिल करने से रोक नहीं कर रही है।

पीठ ने वार्ताकारों वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन से कहा कि शाहीन बाग के लोगों को समाधान के लिये आगे आना होगा। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई की है और मामले को आगे की सुनवाई के लिये दोपहर बाद सूचीबद्ध किया है।

गौरतलब है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली हुई सांप्रदायिक हिंसा में बुधवार तक मरने वालों की संख्या बढ़कर 22 तक पहुंच गई। आवेदनों का निस्तारण किये जाने के बाद पीठ और सॉलिसीटर जनरल के बीच उस वक्त तीखी बहस हुई जब न्यायमूर्ति जोसफ ने कहा कि वह हिंसा के मुद्दे पर कुछ बोलना चाहते हैं।

सॉलिसिटर जनरल ने न्यायालय से दिल्ली हिंसा के संबंध में प्रतिकूल टिप्पणियां नहीं करने का अनुरोध किया क्योंकि इससे पुलिस का मनोबल गिरेगा। इसपर न्यायमूर्ति जोसफ ने कहा, ‘मैं टिप्पणी करूंगा क्योंकि मेरी वफादारी संस्थान के प्रति है। अगर मैं इस मुद्दे पर अपनी बात नहीं रखता हूं तो एक न्यायाधीश के तौर पर संस्थान के प्रति अपने दायित्व निभाने में विफल रहूंगा।’

उन्होंने कहा, ‘पुलिस की तरफ से पेशेवराना अंदाज का अभाव था। जब तक आप पुलिस को काम करने की अनुमति नहीं देंगे। देखें ब्रिटेन और अमेरिका की पुलिस कैसे काम करती है। क्या कानून के अनुसार उन्हें किसी की अनुमति की जरूरत होती है। अगर कोई भड़काऊ बयान देता है तो पुलिस को कार्रवाई करनी है। प्रकाश सिंह मामले में सुनाए गए फैसले में दिये गए दिशा-निर्देशों का पालन करना है।’

उन्होंने कहा, ‘पुलिस प्रकाश सिंह मामले में दिये गए फैसले को लागू करने के प्रति अनिच्छुक रही है। वह भड़काने वालों के बच निकलने के लिये मंजूरी मिलने का इंतजार कर सकती है। अगर पुलिस ने पेशेवर तरीके से काम किया होता तो यह स्थिति पैदा नहीं होती। अगर पुलिस ने भड़काने वालों को बच निकलने की अनुमति नहीं दी होती तो इस तरह की चीजें नहीं होतीं।’

न्यायमूर्ति जोसफ ने कहा, ‘मुझे गलत नहीं समझें। मैंने ये टिप्पणी व्यापक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर की है।’ पीठ ने कहा कि उसके मन में दिल्ली पुलिस के खिलाफ कुछ नहीं है लेकिन इन टिप्पणियों का दीर्घकालिक प्रभाव है।  पीठ ने यह भी कहा कि कानून लागू करने वाले प्रशासन को सौहार्दपूर्ण माहौल सुनिश्चित करना है। पीठ ने मामले पर अगली सुनवाई के लिए 23 मार्च की तारीख तय करते हुए कहा कि शाहीन बाग मुद्दे पर सुनवाई से पहले उदारता और स्थिति के शांत होने की जरूरत है।

भाजपा के तीन नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की सलाह

वहीं दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वे पुलिस आयुक्त को भाजपा के तीन नेताओं द्वारा सीएए हिंसा के सिलसिले में कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने के संबंध में प्राथमिकी दर्ज करने की सलाह दें।

न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की पीठ संशोधित नागरिकता कानून को लेकर उत्तरपूर्वी दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में शामिल लोगों पर प्राथमिकी दर्ज करने और उन्हें गिरफ्तार करने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि बाहर के हालात बहुत ही खराब हैं। उच्च न्यायालय ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता, पुलिस उपायुक्त (अपराध शाखा) राजेश देव से पूछा कि क्या उन्होंने भाजपा नेता कपिल मिश्रा के कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषण का वीडियो क्लिप देखा है।

मेहता ने दोहराया कि वह टेलीविजन नहीं देखते हैं और वे क्लिप उन्होंने नहीं देखीं हैं। देव ने कहा कि उन्होंने भाजपा नेता अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के वीडियो देखे हैं लेकिन मिश्रा का वीडियो नहीं देखा है। पुलिस अधिकारी के बयान पर न्यायमूर्ति मुरलीधर ने टिप्पणी की, ‘दिल्ली पुलिस की दशा पर मुझे वाकई में हैरानी है।’ उन्होंने अदालत के कर्मचारियों से अदालत कक्ष में मिश्रा का वीडियो क्लिप चलाने को कहा।

ठसाठस भरे अदालत कक्ष में जब वहां जमा लोग शोर मचाने लगे तो पीठ ने कहा कि शिष्टता से पेश आएं अन्यथा कार्यवाही बंद कक्ष में की जाएगी। सुनवाई की शुरुआत में पुलिस आयुक्त का प्रतिनिधित्व करने के मुद्दे पर सॉलिसीटर जनरल मेहता और दिल्ली सरकार के अधिवक्ता राहुल मेहरा के बीच तीखी बहस हुई। मेहरा ने पुलिस आयुक्त की ओर से विधिक अधिकारी के पेश होने पर आपत्ति जताई।

मेहरा ने कहा कि केंद्र तथा दिल्ली सरकार की शक्तियों के मुद्दे का निपटारा उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ कर चुकी है और हर किसी को देश के कानून का पालन करना चाहिए। मेहता ने कहा कि मामले में भारत संघ भी एक पक्षकार है और उन्हें पेश होने का निर्देश उपराज्यपाल ने दिया है।

मेहता ने कहा, ‘यहां अशोभनीय माहौल मत बनाईये। मैं किसी रैली को संबोधित नहीं कर रहा। मैं मुवक्किल की ओर से पेश हुआ हूं।’ इसके बाद उन्हें मामले में दलीलें रखने की अनुमति दी गई। सॉलिसीटर जनरल ने प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करने वाली याचिका में केन्द्र को भी पक्षकार बनाने का अनुरोध किया और कहा कि यह मुद्दा कानून-व्यवस्था से जुड़ा है।
 
मेहता ने उच्च न्यायालय से मामले पर सुनवाई बृहस्पतिवार को करने का अनुरोध करते हुए कहा कि याचिका में जो आग्रह किया गया है उस पर कल सुनवाई की जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा नेता वर्मा और ठाकुर ने कई दिन पहले बयान दिए थे और इन पर तत्काल सुनवाई की आवश्यकता नहीं है।

इस पर अदालत ने कहा, ‘तो क्या यह बात इसे और अत्यावश्यक नहीं बनाती है। जब पुलिस आयुक्त ऐसे बयानों से वाकिफ थे तो क्या यह जरूरी था कोई उनसे कार्रवाई करने को कहे। एक विधिक अधिकारी के तौर पर आप जवाब दीजिए कि क्या यह अनुरोध (तीन भाजपा नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग) आवश्यक है या नहीं।’

मेहता ने कहा, ‘मैं यह नहीं कह रहा कि यह आवश्यक नहीं है लेकिन कल तक का इंतजार किया जा सकता है।’ वकील फजल अब्दाली और नबीला हसन के जरिए दाखिल याचिका में कहा गया है कि 22 फरवरी को करीब 500 लोग जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पहुंचे, जहां पर महिलाएं सीएए के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही थीं।

इसमें आरोप लगाया गया कि 23 फरवरी को भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने मौजपुर मेट्रो स्टेशन के पास सीएए के समर्थन में रैली निकाली और भड़काऊ, आपत्तिजनक बयान दिए और इस संबंध में सोशल मीडिया पर एक ट्वीट भी पोस्ट किया। याचिका में मिश्रा, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा तथा अन्य के खिलाफ अधिकारियों को प्राथमिकी दर्ज करने के लिए निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।

संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर उत्तर पूर्वी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में हुई हिंसा में 20 लोगों की मौत हो गयी और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं।

हाई कोर्ट ने घायलों की तुरंत मदद के लिए पुलिस की सराहना की

दिल्ली हाई कोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा के दौरान घायल लोगों की तुरंत मदद करने के लिए दिल्ली पुलिस की बुधवार को सराहना की। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति अनूप जे भम्भानी ने हिंसा में गुप्तचर ब्यूरो के अधिकारी के मारे जाने की घटना को ‘अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया।

पीठ ने दिन में सुनवाई के दौरान कहा, ‘मध्य रात्रि जब आदेश दिया जा रहा था तो पुलिस इसे तत्काल वहां क्रियान्वित कर रही थी और घायल लोगों को बचा रही थी।’ इसने कहा कि जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त, शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को प्रभावित लोगों तक पहुंचना चाहिए और उन्हें आश्वस्त करना चाहिए कि कानून काम कर रहा है।

उच्च न्यायालय ने अधिवक्ता जुबैदा बेगम को पीड़ितों और विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय के लिए न्याय मित्र नियुक्त किया। उच्च न्यायालय ने इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर ऐंड अलाइड साइंसेज (इहबास) के निदेशक को निर्देश दिया कि दंगों के बाद तनाव की स्थिति से गुजर रहे लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताएं पूरी करने के लिए वह पर्याप्त योग्य पेशेवर उपलब्ध कराएं।

अदालत ने अधिकारियों को चेतावनी दी कि वे सतर्क रहें ताकि 1984 में सिख विरोधी दंगों के दौरान जो नरसंहार हुआ था, उसका दोहराव न हो। पीठ ने कहा, ‘नहीं, हम एक और 1984 की इजाजत नहीं दे सकते...खासकर अदालत और आपकी (दिल्ली पुलिस) की निगरानी में...हमें बहुत, बहुत अधिक सतर्क रहना होगा।’ अदालत मामले पर आगे की सुनवाई 28 फरवरी को करेगी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आधी रात को सुनवाई कर पुलिस को, संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में घायल हुए लोगों को सुरक्षित निकाल कर सरकारी अस्पतालों में ले जाने और उनका तत्काल उपचार सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर के आवास पर मंगलवार देर रात साढ़े 12 बजे यह विशेष सुनवाई शुरू हुई।

अदालत ने आधी रात को तब सुनवाई की जब एक वकील ने कहा कि स्थिति गंभीर है और पीड़ितों को एक छोटे से अस्पताल से जीटीबी अस्पताल भेजना मुश्किल है। इस पर अदालत ने आदेश दिया कि पुलिस सरकारी अस्पतालों तक सुरक्षित रास्ता और घायलों के लिए आपातकालीन उपचार सुनिश्चित करे।

न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति अनूप जे. भंभानी की पीठ ने पुलिस को इस व्यवस्था के लिए सभी संसाधनों का इस्तेमाल करने का आदेश दिया। साथ ही पीठ ने यह भी व्यवस्था दी कि अगर उसके आदेश के बावजूद घायलों का दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में तत्काल इलाज ना हो सके तो उन्हें लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल या मौलाना आजाद अस्पताल या किसी अन्य अस्पताल ले जाया जाए।

पीठ ने घायल पीड़ितों और उन्हें उपलब्ध कराए गए उपचार के बारे में जानकारी सहित अनुपालन की स्थिति रिपोर्ट भी मांगी थी। व्यवस्था देते हुए पीठ ने कहा कि जीटीबी और एलएनजेपी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षकों को भी इस आदेश की जानकारी दी जाए।

अधिवक्ता सुरूर मंदर ने न्यायाधीश को फोन कर घायलों को लेकर जा रही एंबुलेंसों को सुरक्षित रास्ता देने का आदेश तत्काल देने का अनुरोध किया था। दिल्ली पुलिस और सरकार का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त स्थायी अधिवक्ता संजय घोष ने किया।

सुनवाई के दौरान पीठ ने न्यू मुस्तफाबाद स्थित अल-हिंद अस्पताल के डॉक्टर अनवर से फोन पर बात की, जिन्होंने अदालत को बताया कि दो शव और 22 घायल वहां हैं और वह मंगलवार शाम चार बजे से पुलिस की मदद पाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सफलता नहीं मिल पाई है।अदालत ने फिर वरिष्ठ अधिकारियों से तुरन्त अस्पताल जाने और घायलों को तत्काल प्रभाव से नजदीकी अस्पतालों में पहुंचाने का काम शुरू करने का आदेश दिया। पीठ ने इस आदेश की जानकारी दिल्ली पुलिस आयुक्त को भी देने का निर्देश दिया।

समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ

 

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