NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
तो क्या सिर्फ़ चुनावों तक ही थी ‘फ्री राशन’ की योजना? 
वर्तमान खाद्यान्न का स्टॉक वैधानिक सीमा से दोगुना है, जिस तरह का उत्पादन हुआ है, खरीद अब तक के सबसे उच्चतम स्तर पर की गई है फिर भी मोदी सरकार मुफ्त राशन योजना का विस्तार करने के मामले पर चुप है।
सुबोध वर्मा
21 Mar 2022
Translated by महेश कुमार
yogi
उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ लोगों को राशन बांटते हुए

5 किलो प्रति व्यक्ति मुफ्त खाद्यान्न योजना इस महीने के अंत में समाप्त होने जा रही है। 2020 में शुरू की गई इस प्रमुख योजना के तहत 2021-22 में लगभग 366 लाख टन गेहूं और चावल मुफ्त दिए गए हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत जो भी अनाज वितरित किया जाना था यह उसके अलावा प्रति व्यक्ति लगभग 5 किलोग्राम अनाज़ था, जिसके तहत अनुमानित 80 करोड़ लोगों को अत्यधिक सब्सिडी वाला अनाज बेचा गया है। यह योजना नवंबर 2021 में समाप्त होनी थी, लेकिन फिर इसे मार्च के अंत तक बढ़ा दिया गया था, ये एक ऐसा कदम था जो संभवत: फरवरी-मार्च 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र उठाया गया था। अब, मार्च समाप्त हो रहा है, चुनाव समाप्त हो गए हैं और लोग सांस रोककर सरकार के निर्णय का इंतज़ार कर रहे हैं। 

इसमें कोई संदेह नहीं है कि अतिरिक्त खाद्यान्न उन लाखों परिवारों को एक बड़ी मदद के रूप में पहुंचा है जो कोविड के विनाशकारी प्रभाव और उसके कारण लगे लॉकडाउन, प्रतिबंधों और सामान्य आर्थिक गतिविधियों के रुकने से जूझ रहे थे। लेकिन क्या इस योजना को रोकने की कोई जरूरत है?

प्रचुर मात्रा में खाद्यान्न उपलब्ध है

खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (DFPD) द्वारा मार्च के पहले सप्ताह में जारी किए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सरकार के पास 533 लाख टन का खाद्यान्न भंडार था। [नीचे चार्ट देखें। एस्टेरिक्स मार्च 2022 के लिए उपलब्ध आंशिक डेटा को भी इंगित करता है

मार्च के अंत तक गेहूं की खरीद जारी रहेगी और इस महीने के अंत में स्टॉक का अंतिम आंकड़ा संभवत: पिछले साल की तुलना में अधिक होगा। यहां तक कि 533 लाख टन का मौजूदा स्टॉक भी कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही (1 जनवरी 1-मार्च 31) के लिए केंद्र सरकार के मानक से 150 प्रतिशत अधिक है जो मानक 214 लाख टन का है।

यह सुखद स्थिति प्रचुर मात्रा में खाद्यान्न उत्पादन के साथ-साथ रिकॉर्ड खरीद के कारण भी पैदा हुई है। कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, 2021-22 में अनाज उत्पादन 2,891 लाख टन होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष (2020-21) में 2,853 लाख टन था। वास्तव में, दालों के उत्पादन के साथ, वह भी रिकॉर्ड स्तर के उत्पादन के कारण 2020-21 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 3,107 लाख टन से बढ़कर 3,160 लाख टन तक पहुंचना तय है। जाहिर है, खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है।

समाचार लिखे जाने तक उपलब्ध आंकड़ों से संकेत मिलता है कि इस साल अनाज की खरीद भी रिकॉर्ड स्तर की रहेगी। 28 फरवरी, 2022 तक, 2021-22 के दौरान चावल की खरीद 475 लाख टन है, जबकि पिछले विपणन सत्र (2020-21) में इसकी खरीद 446 लाख टन थी। पिछले बाजार सत्र (2020-21) में 390 लाख टन की तुलना में 2021-22 के दौरान गेहूं की खरीद 434 लाख टन रही है। 

इसलिए, सरकार खाद्यान्न के विशाल भंडार पर बैठी है और आपूर्ति को प्रभावित करने वाली किसी भी कमी या संकट की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए। वास्तव में, प्रति व्यक्ति आवंटन बढ़ाने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली से बाहर के लोगों को राशन प्रणाली के दायरे में लाने और वर्तमान में दी जा रही खाद्य वस्तुओं की टोकरी में दाल और खाना पकाने के तेल जैसे अन्य उत्पादों को भी शामिल करना जरूरी है।

निर्यात के लिए अनाज़ है लेकिन भारतीयों के लिए नहीं?

ऐसी बड़बड़ाहट है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक गेहूं की आपूर्ति में बाधा आ सकती है जो अनाज़ की कमी और ऊंची कीमतों को जन्म दे सकती है। लंबे समय से गेहूं के मामले में आत्मनिर्भर भारत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। वास्तव में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यापारियों से गेहूं का निर्यात करने और मौजूदा अस्थिर मूल्य की स्थिति से जल्दी से मुनाफा कमाने का आग्रह कर रहे हैं।

वित्त मंत्रालय द्वारा आयोजित एक वेबिनार में उन्होंने कथित तौर पर कहा, "मान लीजिए कि अब भारतीय गेहूं के निर्यात का अवसर आ गया है, हमें इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए और सर्वोत्तम सेवा के साथ सर्वोत्तम गुणवत्ता वाला उत्पाद प्रदान करना चाहिए, और धीरे-धीरे ऐसी व्यवस्था स्थायी हो जाएगी।"

किसान शायद ही सीधे निर्यात करने की स्थिति में हैं। वे उन व्यापारियों को गेहूं बेचेंगे जो निर्यात कर सकते हैं। पीएम मोदी व्यापारियों को संबोधित करते हुए जब कहते हैं कि उन्हें सर्वोत्तम उपज का निर्यात करके वैश्विक बाजार में अपने लिए एक स्थायी स्थान बनाना चाहिए। यह एक आकर्षक तर्क है, लेकिन इसका स्पष्ट मतलब यह है कि भूखे भारतीय खुद अपने बचाव के लिए तैयार रहें– जैसा वे सदियों से करते आ रहे हैं- लेकिन गतिशील व्यापारी विक्रेता के बाजार में बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं।

लेकिन भूख अभी भी भारतीयों की पीछा नहीं छोड़ रही है

जैसा कि न्यूज़क्लिक ने पहले भी बताया था कि दिसंबर 2021 और जनवरी 2022 में 14 राज्यों में खाद्य अधिकार अभियान द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में गरीबों के बीच घटती आय और गंभीर खाद्य असुरक्षा की चौंकाने वाली और विकट स्थिति का पता चला है। इसमें पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से 80 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में खाद्य असुरक्षा से पीड़ित थे, जबकि 25 प्रतिशत ने भोजन त्यागने, सामान्य से कम खाने, भोजन न होने, पूरे दिन खाने में सक्षम नहीं होने के मामले में गंभीर खाद्य असुरक्षा की तरफ इशारा किया है और पैसे या अन्य संसाधनों की कमी के कारण भूखा सो जाना जैसे भयभीत कर देने वाले तथ्य सामने आए हैं।

सर्वेक्षण के अनुसार, 41 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके आहार की पोषण गुणवत्ता महामारी से पहले की अवधि की तुलना में अधिक खराब हो गई है। ऐसा इसलिए हो रहा था क्योंकि 66 प्रतिशत लोगों ने बताया कि महामारी से पहले की अवधि की तुलना में उनकी आय में कमी आई और 45 प्रतिशत परिवारों पर कर्ज बकाया था।

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी या भाजपा ने हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में जोरदार प्रचार किया था, और घोषणा की कि मुफ्त खाद्यान्न योजना महामारी के दौरान और उसके बाद लाखों लोगों के लिए एक जीवन रेखा थी। वास्तव में, चुनाव के बाद के विश्लेषणों ने इस बात की पुष्टि की है कि इस योजना के कारण भाजपा को निश्चित रूप से लाभ हुआ है- या कम से कम वह इस योजना के कारण उच्च बेरोजगारी और मूल्य वृद्धि पर असंतोष को नियंत्रित करने में सक्षम रही थी। तो, इसकी आवश्यकता अच्छी तरह से स्थापित होती है। लेकिन अब जब चुनाव खत्म हो गए हैं तो इसे तिलांजली देना और खाली पेट पर मुनाफे का महिमामंडन करना, एकतरफा और बेरुखी की निशानी होगी।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:- 

Food for Votes? Is Hunger Relevant Only Till Elections?

Free Ration Scheme
Modi government
Assembly elections
PDS
Food grain production
Free Food grains
India hunger

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License