NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
गोगोई के कामों को न्यायपालिका की आज़ादी खोने के लिए याद किया जाएगा!
जस्टिस एपी शाह ने कहा कि इन पांच छह सालों में सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता पर जमकर बट्टा लगा है। जस्टिस कुरियन जोसफ के मुताबिक पूर्व सीजेआई द्वारा राज्यसभा मनोनयन को स्वीकार करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता में आम आदमी का विश्वास डिगा है। जस्टिस मदन बी लोकुर  ने सवाल किया कि क्या आखिरी पिलर भी ढह गया है?
अजय कुमार
17 Mar 2020
Ranjan Gogoi
Image courtesy : Economic Times

12 जनवरी को रंजन गोगोई सहित उच्चतम न्यायालय के चार कार्यरत जजों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार मीडिया को संबोधित करने के लिए चार कार्यरत जज एक साथ आए थे।  उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के तौर-तरीकों को लेकर सार्वजनिक तौर पर अपनी शिकायत का इज़हार किया था। उन्होंने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के पक्ष में दीपक मिश्रा के विवादास्पद फैसलों का जिक्र करते हुए आरोप लगाया था कि वह उन महत्वपूर्ण मामलों को, जिनमें सरकार शामिल है, उन जजों को सौंप रहे हैं जिनके बारे में लगता है कि वे सरकार का पक्ष लेंगे। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की व्यापक आलोचना हुई। जस्टिस दीपक मिश्रा के संभावित उत्तराधिकारी रंजन गोगोई के साहस की जमकर तारीफ हुई और लोगों ने अटकलें लगायीं कि ऐसा करके उन्होंने मुख्य न्यायाधीश बनने का अपना अवसर गंवा दिया।  

गोगोई हीरो बन गए और उन्होंने एक ऐसे प्रधान न्यायाधीश की उम्मीद पैदा कर दी जो संविधान के रक्षक के रूप में उच्चतम न्यायालय की साख को वापस स्थापित कर सकता है।  

गगोई ने प्रधान न्यायधीश का पद सँभालते हुए कुछ खास नहीं बल्कि ऐसे फैसले सुनाये जिसने न्याय के बुनायादी सिद्धांत को ही हिला दिया। इन्हीं पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा के लिए नामित किया है। अपने रिटायरमेंट के चार महीने बाद रंजन गोगोई यह पद  संभालने जा रहे हैं। 
 
इस पर दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एपी शाह ने कहा कि इन पांच छह सालों में सुप्रीम कोर्ट की स्वंत्रता पर जमकर बट्टा लगा है। और हाल में सुप्रीम कोर्ट पर सवाल खड़ा करने वालों में जवाब के तौर पर रंजन गोगोई एक जरूरी चेहरा उभर कर सामने आये हैं।  
 
उच्चतम न्यायालय के जस्टिस (सेवानिवृत्त) कुरियन जोसफ ने भी कहा कि पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता के ‘सिद्धांतों से समझौता’ किया है। उन्होंने कहा कि पूर्व सीजेआई द्वारा राज्यसभा मनोनयन को स्वीकार करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता में आम आदमी का विश्वास डिगा है। 

एक अन्य सेवानिवृत्त जज जस्टिस मदन बी लोकुर ने भी इस पर तीखी टिप्पणी की है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार लोकुर ने कहा, 'जो सम्मान जस्टिस गोगोई को अब मिला है उसके कयास पहले से ही लगाये जा रहे थे। ऐसे में उनका नामित किया जाना चौंकाने वाला नहीं है, लेकिन यह जरूर अचरज भरा है कि ये बहुत जल्दी हो गया। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता को फिर से परिभाषित करता है।'

इसी के साथ उन्होंने सवाल किया कि आखिरी पिलर भी ढह गया है?

आप जानते हैं कि किसी भी लोकतंत्र के चार स्तंभ बताए जाते हैं, जिनमें न्यायपालिका एक अहम स्तंभ है।

इस पूरे मसले पर पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा है कि वह उच्च सदन की सदस्यता के लिए शपथ ग्रहण करने के बाद राज्यसभा में मनोनयन स्वीकार करने के बारे में विस्तार से बोलेंगे।

आइए थोड़ा पीछा चलते हैं

अक्टूबर 2018 में गोगोई के मुख्य न्यायाधीश बनने के थोड़े समय बाद से ही कई ऐसे मौके आए जब पूरे देश की निगाहें उनकी तरफ़ थी। सबसे पहला आता है रफ़ाल मामला। यह मामला मोदी सरकार की बखियां उधेड़ सकता था। इस मामले में गोगोई की कार्रवाई समझ से परे रही। गोगोई और अपनी ओर से याचिका पर बहुमत की राय देते हुए एस के कौल ने कहा कि - “हम इस बात से संतुष्ट हैं कि समूची प्रक्रिया में वास्तविक तौर पर संदेह करने की कोई गुंजाइश नहीं है और अगर कहीं छोटी-मोटी चूक है तो इसकी वजह से अनुबंध को रद्द करने या अदालत द्वारा विस्तृत छानबीन की जरूरत नहीं है।” तीसरे जज के एम जोसेफ ने मोटे तौर पर बहुमत की राय से सहमति व्यक्त करते हुए अलग से लिखा - “हमें इस बात की कोई वजह नहीं दिखाई देती कि भारत सरकार द्वारा 36 रक्षा विमानों की खरीद जैसे संवेदनशील मुद्दे में अदालत किसी तरह की दखलअंदाजी करें।”

सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े कहते हैं कि पिछले वर्ष जब मैंने गोगोई के दोस्तों, उनके परिवारजनों और उनके सहकर्मियों से बात की तो किसी ने भी न्याय के विचार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की बात नहीं की। एक प्रतिष्ठित परिवार में पैदा गोगोई की कानूनी और राजनीतिक दुनिया में संपर्कों की कोई कमी नहीं थी। सुविधासंपन्नता और महत्वाकांक्षा के संयोग के साथ कार्यक्षमता और दक्षता के प्रति उनके झुकाव ने उन्हें एक के बाद एक उच्च न्यायिक पदों पर असाधारण गति से पहुंचाया।

मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल के दौरान गोगोई के पास ऐसे अनेक मामले आए जिन पर उनके रुख को देख कर लोग हैरान होते थे कि क्या यह वही जज है जो दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने वालों में से एक था। रफ़ाल मामले के अलावा जिन अनेक मामलों की उन्होंने सुनवाई की उनमें सब कुछ वैसा ही होता रहा जो सरकार के लिए काफी सुकून पहुंचाने वाला था।  इसमें अयोध्या मंदिर विवाद, जम्मू-कश्मीर मेँ अनुच्छेद 370 से संबद्ध मामला, सीबीआई के निदेशक पद से आलोक वर्मा के हटाए जाने का मामला और ऐसे कई मामले शामिल हैं। इस बीच गोगोई के प्रति रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ जैसे सरकार समर्थक टीवी चैनलों के रुख में तब्दीली नजर आई - जो चैनल प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के लिए चारों जजों की आलोचना कर रहे थे वे उस समय गोगोई के घोर समर्थक नजर आने लगे जब मुख्य न्यायाधीश रहते हुए उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला उजागर हुआ।

कानून के विद्वान गौतम भाटिया ने गगोई के कार्यकाल के बारे में कहा, “सुप्रीम कोर्ट की बेतरतीबी और बेतुकेपन पर ध्यान दें तो बहुत सारी बातें समझ से परे हैं- तब यही ख्याल आता है कि कुछ तो कहीं गड़बड़ है।”

भारतीय जनता पार्टी को गोगोई का सबसे बेशकीमती तोहफा नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) का अपडेट है। अक्टूबर 2013 से अक्टूबर 2019 तक गोगोई ने एनआरसी से संबंधित कई मामलों की सुनवाई की थी। उनके जरिए उन्होंने एक खाका तैयार किया जिससे राज्य में “विदेशी” समझे जाने वालों की शिनाख्त हो सके और उन्हें वापस भेजा जा सके।  इसके लिए उन्होंने जो तरीका सुझाया उसके मुताबिक बेरहम और जबरदस्त तकनीकी किस्म की मूल्यांकन प्रक्रिया से गुजरने के बाद, जिस में गड़बड़ी होना लाज़िमी था, लाखों लोगों की भारत की नागरिकता छीनना था। आप नागरिकता की जाँच से लेकर फॉरेन ट्रिब्यूनल तक को याद कीजिए। इस दंडात्मक प्रक्रिया की काफी गंभीर कीमत चुकानी पड़ सकती थी जिसे दुरुस्त करने की भी कोई गुंजाइश नहीं थी लेकिन ऐसा लगता था कि गोगोई ने उनके प्रति थोड़ी भी चिंता नहीं दिखाई जो इसकी चपेट मेँ आ रहे थे। उल्टे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच का नेतृत्व किया जिसने ऐसी परियोजना की निगरानी, निरीक्षण और प्रबंधन किया जो सरकार की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए थी।

सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने राज्य के डिटेंशन सेंटर्स (एक ऐसी जेल जहां विदेशी करार दिए गए लोगों को रखा गया है) की अमानवीय जीवन स्थितियों के खिलाफ एक याचिका दायर की और हर्ष मंदर ने महसूस किया कि गोगोई ने उनकी याचिका का इस्तेमाल और भी कई बंदी गृहों के खोले जाने और विदेशी घोषित कर दिए गए लोगों को उनके देश वापस भेजने के कार्य मेँ तेजी लाने के लिए इस्तेमाल किया।  हर्ष मंदर ने फिर एक और आवेदन किया कि गोगोई को इस मामले की सुनवाई से अलग किया जाए और इसकी वजह उन्होंने बतायी कि सुनवाई के दौरान उनके ‘अवचेतन मेँ बसे पूर्वाग्रह’ प्रकट हुए। ऐसा इसलिए क्योंकि गोगोई खुद अहोम जाति से आते हैं। एक ऐसा समुदाय है , जो असम में प्रवासियों से जुड़े आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता है। हर्ष मंदर की याचिका तिरस्कारपूर्वक खारिज कर दी गई।  

गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक वकील ने गोगोई पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपने बचपन के मित्र और सहकर्मी अमिताभ राय की नियुक्ति में विलंब किया ताकि यह सुनिश्चित हो जाए कि दोनों की पदोन्नतियां एक साथ न हो सकें. चौधरी ने बताया, “सन 2000 में दोनों के नामों की सिफारिश साथ-साथ हुई। गोगोई 2001 में जज बन गए और इसके 17 महीनों बाद 2002 में अमिताभ राय की नियुक्ति हुई।

 अगर फाइलों की प्रक्रिया साथ-साथ चली होती तो कुल मिला कर अमिताभ राय गोगोई से वरिष्ठ हो जाते और सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने का मौका उन्हें नहीं मिल पाता। ऐसी हालत में शायद अमिताभ राय भारत के मुख्य न्यायाधीश पद से और गोगोई गौहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद से रिटायर होते.” हाईकोर्ट के एक पूर्व जज ने भी इस बात की पुष्टि की कि गोगोई की पदोन्नति से संबंधित जिन परिस्थितियों का जिक्र किया जा रहा है वे सही हैं। उन्होंने इसमें एक और बात जोड़ी कि तत्कालीन कानून मंत्री अरुण जेटली और गोगोई “अच्छे मित्र” थे और जेटली ने गोगोई को आश्वासन दिया था कि अमिताभ राय कभी भी गोगोई से वरिष्ठ नहीं होंगे।  

मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी गोगोई की देखरेख में अनेक विवादास्पद नियुक्तियां हुईं।  हाल में ही सौमित्र सैकिया को गौहाटी हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया जो किसी जमाने में गोगोई के जूनियर थे। इसी तरह जज सूर्यकांत की नियुक्ति की गई जबकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी के आरोप थे। संजीव खन्ना की नियुक्ति की गई और यह नियुक्ति करते समय कोलेजियम के उस प्रस्ताव की अनदेखी की गई जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट में खन्ना के वरिष्ठ प्रदीप नंदराजोग को प्रोन्नति देने की बात कही गई थी। इसी प्रकार दिनेश माहेश्वरी को सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश मिल गया जबकि उन पर आरोप थे कि वह कार्यपालिका के प्रभाव में काम करते हैं।  

मुख्य न्यायाधीश के रूप में गोगोई का अनुचित व्यवहार उस समय सामने आया जब सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने 19 अप्रैल, 2019 को एक हलफनामे के जरिए गोगोई पर यौन उत्पीड़न और यातना का आरोप लगाया.उसने लिखा - “मैं कहती हूं कि मुख्य न्यायाधीश ने अपने पद और हैसियत का दुरुपयोग किया और अपनी ताकत का गलत ढंग से इस्तेमाल करते हुए पुलिस को प्रभावित किया। मुख्य न्यायाधीश के अवांछनीय यौन संकेतों और प्रस्तावों का विरोध करने और इनकार करने की वजह से मुझे और मेरे पूरे परिवार को शिकार बनाया गया।”

इस समाचार के छपने के कुछ घंटों बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक शनिवार को विशेष बैठक बुलाने का ऐलान किया और जिस विषय पर चर्चा की बात कही गई थी उसका बेहद नाटकीय शीर्षक दिया - “न्यायपालिका की स्वतंत्रता से जुड़ा अत्यंत सार्वजनिक महत्व का विषय।” इस पर विचार के लिए गोगोई ने एक बेंच का गठन किया जिसमें वह खुद तो थे ही, उनके साथ अरुण मिश्रा और संजीव खन्ना थे। यह न्याय के उस बुनियादी सिद्धांत का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन था जिसके अनुसार कोई जज अपने खुद के मामले में निर्णय नहीं कर सकता।  

6 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर एक नोटिस डाला जिसमें कहा गया था कि समिति को “आरोपों में कोई तथ्य नहीं नजर आया।” शिकायतकर्ता को समिति की रिपोर्ट की प्रतिलिपि देने से इनकार कर दिया गया।  

गोगोई ने एक ऐसे मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की जो आगे चलकर बीजेपी और संघ के लिए जश्न मनाने का एक और अवसर बन गया। यह मामला था : बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि विवाद। एक सुनवाई के समय गोगोई ने कश्मीर से संबंधित याचिकाओं को किसी दूसरे बेंच को सौंपते हुए कहा था कि वह बाबरी मस्जिद वाले मामले में बहुत ज्यादा व्यस्त हैं।

एक रहस्यमय फैसले में, जिसके रचयिता का नाम उद्घाटित नहीं किया गया, कोर्ट ने बताया कि राम की मूर्तियों को अवैध ढंग से विवादित स्थल में रखा गया और बाबरी मस्जिद का ध्वस्त किया जाना भी अवैध था और इसके बाद भी वहां मंदिर बनाने का फैसला देकर सबको हैरानी में डाल दिया। मुस्लिम समुदाय के खिलाफ किए गए इन अवैध कृत्यों को स्वीकार किए जाने के बावजूद कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इसके हरजाने के तौर पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या में किसी अन्य स्थान पर पांच एकड़ जमीन दी जाए। इसके बाद दि हिंदू में प्रकाशित एक लेख में अधिवक्ता सुहरित पार्थसारथी और गौतम भाटिया ने सवाल किया, “यह अंतिम राहत क्या है- मुस्लिम पक्ष को किसी अन्य स्थान पर थोड़ी जमीन देना ताकि वह मस्जिद के विध्वंस से हुए नुकसान को पूरा कर सके या उनको घुमा-फिराकर यह कहना कि ‘तुम बराबर हो लेकिन हम से अलग रहो?’”

इस तरह से सुप्रीम कोर्ट में गोगोई के समूचे कार्यकाल में- पहले एक जज के रूप में और फिर मुख्य न्यायाधीश के रूप में - जनवरी 2018 की प्रेस कॉन्फ्रेंस एक विचलन है जिसमें ऐसा महसूस होता है कि उन्होंने अपने कैरियर को दांव पर लगाते हुए कोई नैतिक रुख अख्तियार किया था। बाकी रंजन गोगोई के पूरे कार्यकाल में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे याद किया जा सके।

(इस रिपोर्ट के कुछ हिस्से कारवां मैगजीन से साभार लिए गए हैं।)

Justice Ranjan Gogoi
Supreme Court
Indian judiciary
Corruption in Judiciary
Narendra modi
modi sarkar
Justice AP Shah
Delhi High court
BJP
Congress

Related Stories

दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है


बाकी खबरें

  • sedition
    भाषा
    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश
    11 May 2022
    पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी। उसने आगे कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती…
  • बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    एम.ओबैद
    बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    11 May 2022
    "ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता…
  • मार्को फ़र्नांडीज़
    लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
    11 May 2022
    दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन
  • assad
    एम. के. भद्रकुमार
    असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की
    11 May 2022
    राष्ट्रपति बशर अल-असद का यह तेहरान दौरा इस बात का संकेत है कि ईरान, सीरिया की भविष्य की रणनीति का मुख्य आधार बना हुआ है।
  • रवि शंकर दुबे
    इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
    11 May 2022
    इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License