NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
हम भारत के लोग
भारत
राजनीति
ज्ञानवापी प्रकरण: एक भारतीय नागरिक के सवाल
भारतीय नागरिक के तौर पर मेरे कुछ सवाल हैं जो मैं अपने ही देश के अन्य नागरिकों के साथ साझा करना चाहता हूं। इन सवालों को हमें अपने हुक्मरानों से भी पूछना चाहिए।
मुकुल सरल
17 May 2022
gyanvapi

बनारस में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर शुरू हुए नए विवाद के संदर्भ में संविधान में विश्वास रखने वाले एक भारतीय नागरिक के तौर पर मेरे कुछ सवाल हैं जो मैं अपने ही देश के अन्य नागरिकों के साथ साझा करना चाहता हूं। इन सवालों को हमें अपने हुक्मरानों से भी पूछना चाहिए, हालांकि हम जानते हैं कि इनका जवाब नहीं मिलेगा। या मिलेगा तो एक नए विवाद की शक्ल में।

अहम सवाल

1. वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए क़रीब 150 छोटे-बड़े मंदिर तोड़ दिए गए तो एक शिवलिंग के लिए इतना हल्ला क्यों?

2. जो लोग बिना व्हाट्सऐप इंटरनेट के ज़माने में पूरे देश में गणेश जी की मूर्ति को दूध पिलवा सकते हैं, वे कुछ भी कर सकते हैं। फव्वारे को शिवलिंग भी साबित कर सकते हैं।

3. जब वादी पक्ष के वकील के कहने मात्र से वज़ूखाने में मिले एक पत्थर को शिवलिंग मानकर पूरे वज़ूखाने को सील करा देना था। बुद्ध पूर्णिमा की सरकारी छुट्टी के दिन इतनी त्वरित कार्यवाही करनी थी। तो कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति और उनकी रिपोर्ट का क्या मतलब रह जाता है?

4. जब हिंदू वादी पक्ष के अनुसार मस्जिद में 500 साल से भी ज़्यादा समय से शिवलिंग था। यानी उसे वहां उतने साल उसे सुरक्षित रखा गया। तो उसे एक दिन और रहने देने में क्या दिक्कत थी। क्यों नहीं कोर्ट ने अपने ही कमिश्नर की रिपोर्ट का इंतज़ार किया। और यही नहीं जब मामला सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है तो कोई भी आदेश पारित करने में इतनी जल्दी क्यों थी?

5. इस सबको देखते हुए क्यों न ये माना जाए कि ये पूरा वाद-विवाद ही प्लांटेड है। एक नाटक। 2024 चुनाव की तैयारी। 2025 में आरएसएस के 100 साल पूरे होने पर हिंदू-राष्ट्र घोषित करने की तैयारी!

और एक अंतिम सवाल

अगर ज्ञानवापी मस्जिद में कोई शिवलिंग होता और वो भी उस हौज़ में जिसमें हर रोज़ पानी भरा जाता, यानी जो नज़र के सामने था तो बुत परस्ती को हराम मानने वाले लोग उसे आज तक सुरक्षित रखते? उसे आज तक क्यों नहीं तोड़ा गया? क्या इसलिए कि एक दिन कुछ लोग कोर्ट का ऑर्डर लेकर आएंगे और उसे देखकर साबित कर देंगे कि ये मस्जिद नहीं मंदिर है!

...

दोस्तो, सच यही है कि पहले अपनी सत्ता के लिए राम मंदिर के नाम पर हमारी जवानी बर्बाद कर दी गई। वहां भी एक रात (वर्ष1949में) ऐसे ही मूर्ति प्रकट होने का शोर मचा था। और देखते-देखते विवाद ऐसा बढ़ा कि पूरे देश का विकास रुक गया। 90 के दशक की शुरुआत में पूरे उत्तर भारत में एक तूफ़ान था। मंडल की काट के लिए कमंडल का ऐसा वितंडा खड़ा किया गया कि अंततः वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई। राम मंदिर के पक्ष में फ़ैसला देने के बावजूद मस्जिद गिराने की कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट ने भी आपराधिक कृत्य माना। हालांकि इसके लिए सज़ा किसी को नहीं मिली। सारे आरोपी हाईकोर्ट से बरी हो गए।

अब ज्ञानवापी के नाम पर हमारे बच्चों को बर्बाद कर दिया जाएगा। इसके बाद या इसके साथ मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद भी है और अब तो ताजमहल और कुतब मीनार का विवाद भी है। कहने का अर्थ ये कि ऐसे विवाद कभी ख़त्म नहीं होने वाले हैं अगर इन पर आज ही फुल स्टॉप नहीं लगाया गया।

पूरे देश से वादा किया गया था कि राम मंदिर के बाद अब कोई विवाद नहीं उठाया जाएगा। सन 1991 में क़ानून बना (उपासना स्थल अधिनियम-1991) कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के अलावा देश के सभी धार्मिक स्थलों कि वही स्थिति बरक़रार रहेगी, जो 15 अगस्त,1947 को आज़ादी के समय थी। लेकिन नहीं। कोर्ट में सुरक्षा का शपथ पत्र देने के बावजूद बाबरी मस्जिद गिरा दी गई और पूरे देश को दंगों की आग में झोंक दिया गया। अब उसी कोर्ट के आदेश पर मंदिर बन रहा है तो अब विवाद के नए-नए बहाने ढूंढे जा रहे हैं।

आज आप देश का हाल देख ही रहे हैं। महंगाई अपने चरम पर है। एक बड़ी आबादी के लिए रसोई गैस और आटा तक खरीदना मुश्किल हो गया है। बेरोज़गारी का वो आलम है कि पढ़े-लिखे नौजवान बेकार घूम रहे हैं। तेल तक इतना महंगा हो गया है कि 'पकौड़े तलने' तक मुश्किल हो गया है। कोविड से हम अभी निपटे नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) कह रहा है कि हमारे सरकारी आंकड़ों से 10 गुना ज़्यादा मौतें हुईं हैं। लेकिन आज इस सब को छोड़कर फिर मंदिर-शिवलिंग की बातें हो रहीं हैं। सारा काम छोड़कर लोग मस्जिदों के आगे हनुमान चालीसा पढ़ने भेजे जा रहे हैं। महिलाओं से ज़्यादा बच्चे पैदा करने और युवाओं से क़लम छोड़कर हथियार उठाने का आह्वान किया जा रहा है। नरसंहार की बातें हो रहीं हैं। बताइए क्या अब भी कुछ बताने के लिए बाक़ी है।

क्या देखने को अब बाक़ी है

क्या देखना है! क्या देखेंगे?

गर अब भी ना सूरत बदली

तो अपने बच्चे भुगतेंगे।

Gyanvapi mosque
Gyanvapi Update
Gyanvapi controversy
Gyanvapi controversy
Kashi Vishwanath Temple
Gyanvapi mosque complex
kashi vishwnath corridor

Related Stories


बाकी खबरें

  • सबरंग इंडिया
    भीमा कोरेगांव: HC ने वरवर राव, वर्नोन गोंजाल्विस, अरुण फरेरा को जमानत देने से इनकार किया
    05 May 2022
    कोर्ट ने आरोपी की डिफॉल्ट बेल को खारिज करने के आदेश में जमानत और तथ्यात्मक सुधार की मांग करने वाली एक समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया
  • अजय कुमार
    उनके बारे में सोचिये जो इस झुलसा देने वाली गर्मी में चारदीवारी के बाहर काम करने के लिए अभिशप्त हैं
    05 May 2022
    यह आंकड़ें बताते हैं कि अथाह गर्मी से बचने के लिए एयर कंडीशनर और कूलर की बाढ़ भले है लेकिन बहुत बड़ी आबादी की मजबूरी ऐसी है कि बिना झुलसा देने वाली गर्मी को सहन किये उनकी ज़िंदगी का कामकाज नहीं चल सकता।…
  • रौनक छाबड़ा, निखिल करिअप्पा
    आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल
    05 May 2022
    देश भर में एलआईसी के क्लास 3 और 4 से संबंधित 90 प्रतिशत से अधिक कर्मचारियों ने अपना विरोध दर्ज करने के लिए दो घंटे तक काम रोके रखा।
  • प्रभात पटनायक
    समाजवाद और पूंजीवाद के बीच का अंतर
    05 May 2022
    पुनर्प्रकाशन: समाजवाद और पूंजीवाद के बीच का अंतर इस तथ्य में निहित है कि समाजवाद किसी भी अमानवीय आर्थिक प्रवृत्तियों से प्रेरित नहीं है, ताकि कामकाजी लोग चेतनाशील ढंग से सामूहिक राजनीतिक हस्तक्षेप के…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    महाशय, आपके पास क्या मेरे लिए कोई काम है?
    05 May 2022
    वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता, साम्यवाद के सिद्धांतकार कार्ल मार्क्स की आज जयंती है। उन्होंने हमें सिर्फ़ कम्युनिस्ट घोषणापत्र और दास कैपिटल जैसी किताब ही नहीं दी बल्कि कुछ ऐसी कविताएं भी दी हैं, जो…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License