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दिल्ली से उत्तराखंड तक : पढ़ने की जगह आंदोलन क्यों कर रहे छात्र?
फीस बढ़ोतरी के खिलाफ राज्य के निजी आयुष कॉलेज के बच्चों के आंदोलन को 33 दिन पूरे हो चुके हैं। इस दौरान उन्होंने क्रमिक से लेकर आमरण अनशन तक किया। पुलिस की लाठियां भी खाईं। निजी आयुष कॉलेजों की फीस 80 हज़ार रुपये से बढ़ाकर ढाई लाख रुपये कर दी गई है।
वर्षा सिंह
13 Nov 2019
Students Protest

दिल्ली में जेएनयू के छात्र फीस वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन को लेकर पुलिस की लाठियां खा रहे हैं। उत्तराखंड में भी फीस में अनियमित तरीके से की जा रही बढ़ोतरी को लेकर स्टुडेंट्स लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।  अनशन कर रहे हैं। पुलिस अंधेरा होने पर छात्रों का आंदोलन तोड़ने पहुंचती है लेकिन अपने भविष्य को लेकर चिंतित बच्चे लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं, ताकि पैसों के चलते उनकी पढ़ाई न छूटे।
 
आयुष विद्यार्थियों का आमरण अनशन जारी

फीस बढ़ोतरी के खिलाफ राज्य के निजी आयुष कॉलेज के बच्चों के आंदोलन को 33 दिन पूरे हो चुके हैं। इस दौरान उन्होंने क्रमिक से लेकर आमरण अनशन तक किया। पुलिस की लाठियां भी खाईं। कॉलेज प्रशासन की गालियां खाईं और उनकी जान तक पर खतरे का अंदेशा है। निजी आयुष कॉलेजों की फीस 80 हज़ार रुपये से बढ़ाकर ढाई लाख रुपये कर दी गई है।
 
न्यूज़ क्लिक पहले भी आयुष बच्चों के प्रदर्शन की खबर दे चुका है। जब देहरादून के परेड ग्राउंड में आमरण अनशन पर बैठे छात्र को उठाने के लिए पुलिस अंधेरे में पहुंची। छात्राओं तक से मारपीट हुई। आयुष के विद्यार्थी परेड ग्राउंड में लगातार डटे हुए हैं। रविवार अनशन पर बैठे सौरभ सरकार नाम के छात्र की तबीयत बिगड़ी तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया। उनकी जगह दूसरे छात्रों ने अनशन शुरू कर दिया। आयुष छात्रों के अनशन का आज, 13 नवंबर को 33वां दिन है।

इसे पढ़ें : उत्तराखंड : छात्रों पर पुलिस बर्बरता के ख़िलाफ़ लोगों में गुस्सा

गढ़वाल विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कॉलेजों में परीक्षा फीस बढ़ाने पर प्रदर्शन

उधर, पिछले दो दिनों से गढ़वाल विश्वविद्यालय से सम्बद्ध अर्ध-सरकारी महाविद्यालयों के बच्चे भी सड़क पर उतर आए। भीख मांगी। मशाल जुलूस निकाला। अब वे एचएनबी केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर कूच करने की तैयारी कर रहे हैं।
 
देहरादून में एनएसयूआई के स्टेट प्रेसिडेंट मोहन भंडारी का कहना है कि गढ़वाल विश्वविद्यालय उनसे 850 रुपये परीक्षा फीस लेता था। इस साल से उसमें 1200 रुपये और बढ़ा दिए गए हैं। इसके पीछे की वजह ये है कि गढ़वाल विश्वविद्यालय सम्बद्ध अर्ध-सरकारी कॉलेजों की एफिलेशन फीस पहले राज्य सरकार देती थी, अब वो फीस स्टुडेंट्स से ली जा रही है। गढ़वाल विश्वविद्यालय से सम्बद्ध पांच अर्ध-सरकारी महाविद्यालयों में करीब 23 हज़ार स्टुडेंट्स पढ़ते हैं।
 
अचानक फीस में कई गई बढ़ोतरी से छात्र संगठन नाराज़ हैं। उनके मुताबिक गरीब और मध्यम तबके के बच्चों के लिए इतनी फीस भरना आसान नहीं। इसे लेकर संयुक्त छात्र संघर्ष समिति के बैनर तले देहरादून में पिछले दो हफ्तों से चल रहा विरोध प्रदर्शन अब उग्र हो गया है। फीस जमा करने के लिए छात्रों ने सोमवार को सांकेतिक तौर पर भीख मांगी और राज्य के उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत को जमा किए पैसे भिजवाए। छात्रों के प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस भी तत्पर नज़र आई। देहरादून के साथ मसूरी में भी एमपीजी कॉलेज के बच्चों ने उच्च शिक्षा राज्यमंत्री का पुतला फूंका।

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“उच्च शिक्षा बुरे दौर से गुजर रही है”

मंगलवार शाम देहरादून में एनएसयूआई ने आयुष कॉलेज और एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में शुल्क वृद्धि के विरोध में सरकार के खिलाफ मशाल जूलूस निकाला। यह जूलूस कांग्रेस भवन से शुरू होकर घंटाघर तक निकाला गया। एमएचआरडी मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, राज्य सरकार और कुलपति के विरोध में छात्रों ने जमकर नारेबाजी की। एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष मोहन भंडारी ने कहा कि सरकार ने छात्र-छात्राओं को कॉलेजों में पढ़ने की जगह सड़कों पर आंदोलन के लिए मजबूर कर दिया है। उच्च शिक्षा बुरे दौर से गुजर रही है।
 
डीएवी कॉलेज के छात्र सौरभ ममगाईं ने कहा कि अगर जल्द ही दोनों विश्वविद्यालयों में बढ़ाई गई फीस वापस नहीं की जाती तो सरकार के सभी मंत्रियों का सार्वजनिक कार्यक्रमों में विरोध किया जाएगा।

प्रॉसपेक्ट्स पर कम फीस, छात्रों से ली जा रही अधिक

गढ़वाल विश्वविद्यालय छात्र संघ में आइसा के प्रतिनिधि अंकित उछोली बताते हैं कि विश्वविद्यालय अपने प्रॉसपेक्टस पर कुछ और परीक्षा फीस लिखता है, जबकि छात्रों से अधिक परीक्षा फीस ली जा रही है। वे बताते हैं कि पिछले तीन साल से प्रॉसपेक्ट्स में परीक्षा फीस 850 रुपये लिखी जा रही है जबकि स्टुडेंट से 1500 रुपये लिए जा रहे हैं। इस पर सवाल करने पर विश्वविद्यालय प्रशासन तकनीकी चूक की बात करता है। वह कहते हैं कि एडमिशन कमेटी फीस पर फैसला लेती है। वर्ष 2017 से छात्र-छात्राओं से बढ़ी हुई फीस (1500 रुपये) ली जा रही है तो प्रॉसपेक्टस में ये क्यों नहीं छप रहा। तीन साल तक लगातार एक गलती कैसे की जा सकती है।
 
“पूरे साल हमारी पढ़ाई का नुकसान हुआ”

आयुष छात्रा प्रगति जोशी कहती हैं कि पूरे साल हमारी पढ़ाई का नुकसान हो गया है। फिर भी हम अपना प्रदर्शन नहीं खत्म करने वाले। हमारा आमरण अनशन जारी रहेगा। वह कहती हैं कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद आयुष कॉलेज ढाई लाख रुपये फीस पर अड़े हुए हैं। वह कहती हैं कि कॉलेज प्रशासन गुंडागर्दी तक पर उतर आए हैं। छात्रों को धमकाया जा रहा है। एक वायरल वीडियो में आयुष कॉलेज के अधिकारी खुद अपने कमरे के कांच तोड़ते नज़र आ रहे हैं और इसका आरोप छात्रों के ऊपर मढ़ दिया गया। एक अन्य वीडियो में मोबाइल से रिकॉर्डिंग करने पर कॉलेज के लोग भड़क गए और छात्रों को मोबाइल बंद करने को कहा।

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राज्य में संवैधानिक संकट!

इससे पहले पिछले वर्ष राज्य में मेडिकल कॉलेजों की फीस में बेतहाशा वृद्धि कर दी गई थी। मेडिकल और आयुष स्टुडेंट का समर्थन कर रहे भाजपा नेता रविंद्र जुगरान कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने फीस बढ़ाने के लिए एक पूरी व्यवस्था दे रखी है। इसके बावजूद निजी कॉलेज मनमानी कर रहे हैं। वह कहते हैं कि हाई कोर्ट का आदेश छात्र-छात्राओं के पक्ष में होने के बावजूद उन्हें आंदोलन को मजबूर होना पड़ रहा है।
जुगरान कहते हैं कि इस तरह तो राज्य में संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो गई है। नैनीताल हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों के आलोक में दिया गया है। हमारे विद्यार्थी कह रहे हैं कि हाईकोर्ट के आदेश को लागू कराना है। यानी राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश को नहीं मान रही है, यानी राज्य में कानून का राज ही नहीं है। तो फिर ये संवैधानिक संकट हुआ।
 
एचआरडी मंत्री और आयुष मंत्री के भी हैं आयुष कॉलेज

आयुष विद्यार्थियों के मामले में हाईकोर्ट के आदेश लागू क्यों नहीं हो पा रहे हैं, इस मामले में गौर करने वाली बात ये भी है कि एचआरडी मंत्री डॉ निशंक का खुद का निजी आयुष कॉलेज है...हिमालयन आयुर्वेदिक कॉलेज। राज्य के आयुष मंत्री हरक सिंह रावत का भी देहरादून के शंकरपुर में अपना निजी आयुष कॉलेज है। हरिद्वार में बाबा रामदेव का भी पतंजलि आयुर्वेदिक कॉलेज है। रविंद्र जुगरान कहते हैं कि यानी एक केंद्रीय मंत्री, एक राज्य के मंत्री और योग गुरू रामदेव के कॉलेज ही हाईकोर्ट के आदेश नहीं मान रहे।
 
वह इस पूरे मामले में राज्यपाल की चुप्पी पर भी सवाल उठाते हैं। जो सभी विश्वविद्यालय की कुलाधिपति हैं और संविधान की रक्षक हैं। क्या राज्यपाल को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
 
ऐसे में सवाल ये है कि राज्य में हाईकोर्ट के आदेश को कौन लागू करवाएगा। इस मामले में निजी आयुष कॉलेज एसोसिशन ने हाईकोर्ट में याचिका डाली है। छात्र-छात्राओं ने भी पीआईएल दाखिल की है।

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इससे पहले गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति अन्नपूर्णा नौटियाल कह चुकी हैं कि हमारे पास बहुत फंड क्राइसेस है। अलग-अलग तरह की फीस से ही विश्वविद्यालय के बहुत से खर्च चलते हैं। राज्य के 52 कॉलेज गढ़वाल विश्वविद्यालय से असम्बद्ध हो गए। जिससे उनकी आमदनी घट गई। फीस बढ़ोतरी पर छात्र हंगामा करते हैं। इसलिए उनके पास आंतरिक आमदनी बढ़ाने का कोई ज़रिया नहीं रह गया है।
 
सिर्फ अमीरों के बच्चों को ही मिलेगी उच्च शिक्षा !

एक तरफ सरकार शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए नई शिक्षा नीति ला रही है। वहीं, दिनों दिन महंगी होती शिक्षा सिर्फ गरीब वर्ग ही नहीं मध्यम वर्ग को भी शिक्षा से वंचित कर देगी। डॉक्टर, इंजीनियर बनना योग्यता पर नहीं पैसे पर निर्भर करेगा। इसीलिए आज छात्र-छात्रा अपनी कक्षाओं में नहीं बल्कि सड़कों पर नज़र आ रहे हैं। ऐसी स्थिति रही तो उच्च शिक्षा सिर्फ अमीरों के बच्चों तक ही सीमित हो जाएगी और योग्यता दरकिनार हो जाएगी।

इसे पढ़ें : जेएनयू के छात्र क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन?

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