NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
मूंग किसान मुश्किल में: एमपी में 12 लाख मीट्रिक टन उत्पादन के मुकाबले नाममात्र की ख़रीद
मध्य प्रदेश में 12 लाख मीट्रिक टन ग्रीष्मकालीन मूंग का उत्पादन हुआ है, लेकिन सरकार ख़रीद रही एक लाख, 34 हज़ार मीट्रिक टन, बाक़ी मूंग लेकर किसान कहां जाएं! ऊपर से बरसात शुरू होने से संकट हो गया है।
रूबी सरकार
02 Aug 2021
मूंग किसान मुश्किल में: एमपी में 12 लाख मीट्रिक टन उत्पादन के मुकाबले नाममात्र की ख़रीद

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनुसार इस बार ग्रीष्मकालीन  मूंग का 12 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है। लेकिन केंद्र सरकार से प्रदेश को सिर्फ एक लाख, 34 हजार मीट्रिक टन खरीदी की ही अनुमति मिली है। मुख्यमंत्री ने स्वयं केंद्र से मूंग का कोटा बढ़ाने के लिए तीसरी बार मांग की है। लेकिन केंद्र सरकार है, कि विदेशों से दाल आयात करने का समझौता करती है, लेकिन अपने देश के किसानों से दाल खरीदने में उसे दिक्कत हो रही है।

अब सवाल यह है, कि एक लाख, 34 हजार मीट्रिक टन मूंग के अलावा शेष बची मूंग किसान कहां बेचने जाए, इसकी जवाबदारी आखिर किस सरकार की है।

इधर बरसात शुरू होने से किसानों की हालत यह हो गई है, कि वे पानी और नमी से बचाने के लिए मूंग को तो घर के भीतर रखे हुए हैं और पूरा परिवार खुले में सोने को मजबूर है। हरदा और होशंगाबाद के गांवों में लगभग हर परिवार की यही कहानी है। उनके घर मूंग से अटा पड़ा है।

मूंग एक ऐसी फसल है, जिसमें सबसे ज्यादा लागत लगती है। 6 हजार रुपये तो केवल प्रति एकड़ कटाई लग जाती है। इसके बाद पानी,  मजदूर, दवाई, रखाई , जुताई की लागत जोड़ दिया जाये, तो सरकार की ओर से तय न्यूनतम समर्थन मूल्य 7, 200 रुपये केवल लागत ही है। किसानों का कहना है, कि प्रति एकड़ करीब 15 से 20 हजार की लागत आती है। किसान को तो उसके  मेहनत का दाम भी नहीं मिलता।

वैसे भी केंद्र सरकार से मूंग खरीद की अनुमति देर से मिली। इसके बाद राज्य सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मूंग खरीद के लिए 15 जून से किसानों का पंजीयन शुरू किया। प्रक्रिया इतनी  धीमी गति से चली, कि किसानों को पंजीयन कराने में ही कई दिन लग गये।

हरदा-होशंगाबाद में करीब 81 हजार किसानों ने पंजीयन कराया।

होशंगाबाद के किसान लीलाधर बताते हैं, कि हरदा-होशंगाबाद में करीब 3 लाख, 33 हजार किसान हैं। इनमें से मूंग के लिए करीब 81 हजार किसानों ने अपना पंजीयन करवाया। अब तक मात्र 35 फीसदी किसानों की ही मूंग न्यूनतम समर्थन मूल्य पर तुलाई हुई है। एक तो सरकार ने मूंग खरीदी का निर्णय ही देर से लिया। ऊपर से पंजीयन इतनी  धीमी गति  से चली, कि बरसात का मौसम आ गया। अब किसानों को पानी और नमी से मूंग को बचाना मुश्किल हो रहा है। इस बीच पोर्टल भी बंद कर दिया गया। किसानों से कहा गया, कि केंद्र द्वारा तय किया गया कोटा पूरा हो गया है। अब बाकी किसान कहां जाएंगे मूंग बेचने। दूसरी तरफ  जितने किसानों ने अपना पंजीयन करवाया था, अभी उनकी भी खरीदी नहीं हुई है। जिनके पास एसएमएस आ चुका है। उनकी भी तुलाई नहीं हो रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए सरकार ने जो मानक बनाया है, उसके नाम पर  किसानों को परेशान अलग किया जाता है। कुल मिलाकर किसानों के प्रति  सरकारों की ऐसी बेरुखी  समझ से परे है।

मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री पर भरोसा किया

हरदा जिले का किसान बिंदेश गौर ने 10 एकड़ में मूंग बोई थी। यह भूमि उसके पूरे परिवार का है, इसके कई हिस्सेदार हैं। 10 एकड़ में इस साल कुल 65 क्विंटल उत्पादन हुआ । बिंदेश ने पंजीयन  कराया था। उसके पास एसएमएस भी आया, लेकिन सरकार ने रत्ती भर  भी मूंग नहीं खरीदी। बिंदेश ने कहा, कि फिलहाल सारा मूंग घर पर रखा है। आंखों में आंसू और रुंधे गले से वह कहते हैं, कि इस मूंग का हम क्या करें। उन्होंने कहा, कृषि मंत्री कमल पटेल इसी जिले से हैं। उन्होंने चीख-चीख कर आश्वासन दिया था, कि किसान परेशान न हो। ग्रीष्मकालीन सारा मूंग सरकार खरीदेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी भरोसा दिया था, कि अन्नदाता का हित ही मेरे लिए सर्वोपरि है। किसान चिंतित न हों। उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए हम संकल्पित हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था, कि प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में भारत सरकार के सहयोग से ग्रीष्मकालीन मूंग की खरीदी समर्थन मूल्य पर की जायेगी। हमने तो उनकी बात पर भरोसा किया। परंतु अब वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं।

आज हालत यह हो गई, कि हमें मूंग को बरसात के पानी से बचाने के लिए बाहर सोना पड़ रहा है। मेहनत की फसल है, उसे बचाने के लिए हर दिन उसे उलटते-पलटते रहते है, जिससे उसमें घुन न लग जाये। मण्डी में बेचने जाये, तो व्यापारी  लागत मूल्य भी नहीं दे रहे हैं। 7,200 के बजाय वे 4 हजार, 5 हजार या कभी-कभी  5, 500 रुपये प्रति क्विंटल देने को बमुश्किल तैयार होते हैं। इससे ऊपर व्यापारी  देने को तैयार नहीं है। इससे तो हमारी लागत भी नहीं निकलेगी। हमारी तकलीफ यह है, कि हमने मुख्यमंत्री और मंत्री पर भरोसा कर अपनी क्षमता से मूंग का उत्पादन बढ़ाया। अब हम इसे बेच नहीं पा रहे हैं। अब बरसात शुरू हो चुकी है। खरीफ की फसल बोने के लिए हमारे पास पैसा नहीं है। अब अगली फसल के लिए वह फिर से कर्जा लें और ब्याज चुकाते रहे । इसी में किसान मर जाये। किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। 

जिन किसानों ने मूंग बोया ही नहीं, उनका पंजीयन कैसे हुआ?

सीहोर जिले के किसान सुनील गौर का कहना है, कि मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र होने के बावजूद यहां गड़बड़ी बहुत ज्यादा हुई। जिन किसानों ने मूंग बोया ही नहीं, फिर भी सर्वेयर से मिलकर अपना पंजीयन करवा लिया और इन्ही तथाकथित बड़े किसानों ने छोटे किसानों को प्रलोभन देकर, उन्हें भ्रमित कर उनकी मूंग औने-पौने खरीद कर, सरकार को बेच दी। इस तरह असली किसानों से पहले ही इन लोगों ने अपनी मूंग बेच दी। इनमें अधिकतर सत्ताधारी दल से जुड़े हुए किसान हैं। क्या सरकार भी सोई हुई थी! सरकार के पास साधन है, सेटेलाइट से निगरानी कर  सकती थी। सरकार ने यह भी ध्यान नहीं दिया, कि पंजीयन किन किसानों का हो रहा है। इसलिए छोटे किसान अपना मूंग बेचने से रह गये। 

उन्होंने कहा, इसके अलावा जब मौसम खुला था, तब ज्यादा किसानों की मूंग की खरीदी हो सकती थी। उस समय बहुत कम किसानों के पास एसएमएस  भेजे गये। बाद में कोटा पूरा होने के नाम पर पोर्टल बंद कर दिया गया। इन्हीं बातों को लेकर किसानों के आक्रोश है। सर्वेयरों ने भी किसानों से बहुत मनमानी की। पैसे लेकर खराब मूंग को भी अच्छा कहकर खरीद लिया और अच्छी मूंग को खराब कह दिया। यहां तक कि  जिन किसानों के पास एसएमएस नहीं आया, उनकी भी खरीदी हो गई । जिन किसानों के पास एसएमएस आया, उनकी मूंग की तुलाई नहीं हुई। तुलाई हो गई, बिल नहीं बना। अभी तक भुगतान नहीं हुआ। प्रदेश में गजब का भ्रष्टाचार पनप रहा है।

बेटी की स्कूल की फीस नहीं दे पाये, तो ऑनलाइन क्लास बंद हो गया

बाबई तहसील के किसान केशव साहू बताते हैं, कि किस तरह कृषि में उपयोग होने वाली सामग्री जैसे- डीजल, खाद, पानी आदि के दाम आसमान छू रहा है। ऐसे में अगर समय पर हमारी उपज नहीं खरीदेगी, तो हमारे सामने कितनी बड़ी कठिनाई खड़ी होगी। मेरे पिता को कैंसर है। हम उनका इलाज नहीं करवा पा रहे हैं। बेटी की पढ़ाई की फीस जमा नहीं कर पाये तो ऑनलाइन क्लास बंद हो गया। घर की अन्य जरूरतें हैं। ऊपर से अगली फसल की तैयारी करनी है। यह सब कैसे होगा, जब मेरी मूंग की फसल मेरे घर में रखी हुई है। सरकार का लचर रवैया तो किसानों की जान लेने पर उतारू है। आज माता और पत्नी की सोने जेवर को गिरवी रखकर धान की फसल को लगाना पड़ रहा है।

दरअसल केंद्र सरकार ने 2021-22 के लिए मूंग के विदेशों से आयात का सालाना कोटा अधिसूचित कर यहां के किसानों की छाती पर मूंग दलने जैसा काम किया है। सरकार की इस प्रकार की नीति से जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मूंग के दाम बढ़ जाते हैं, वहीं अपने देश में दाम गिरने लगते हैं। इससे किसानों का बहुत नुकसान होता है। पिछले साल भी सरकार की इस नीति से यहां के किसानों को बहुत घाटा हुआ था। इस बार भी वाणिज्य विभाग ने मूंग के आयात को अधिसूचित किया है।

किसान नेता शिवकुमार शर्मा कक्काजी ने कहा, केंद्र सरकार विदेशों से दाल आयात करने का अनुबंध करती है, परंतु अपने ही किसानों से दाल खरीदने से मुकरती है। यह संवेदनहीन सरकार है। किसान तो न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात कर रहे हैं। अधिकतम तो वे मांग भी नहीं रहे हैं, लेकिन सरकार वह भी देने को तैयार नहीं है। सरकार चाहती है, कि किसान खेती करना बंद कर दे, ताकि वह सारी जमीन कॉरपोरेट के हाथों में चली जाए।

(भोपाल स्थित रूबी सरकार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Madhya Pradesh
Shivraj Singh Chauhan
Moong Dal
Moong farmer
Narendra modi
Modi Govt
Narendra Singh Tomar
farmers crises
Mung bean

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

MSP पर लड़ने के सिवा किसानों के पास रास्ता ही क्या है?

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

देशभर में घटते खेत के आकार, बढ़ता खाद्य संकट!

पीएम के 'मन की बात' में शामिल जैविक ग्राम में खाद की कमी से गेहूं की बुआई न के बराबर

मोदी सरकार ने मध्यप्रदेश के आदिवासी कोष में की 22% की कटौती, पीएम किसान सम्मान निधि योजना में कर दिया डाइवर्ट


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License