NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
समाज
भारत
राजनीति
ख़बरों के आगे-पीछे: अमृत महोत्सव, सांसदों को फटकार का नाटक और अन्य
एक तरफ प्रधानमंत्री सांसदों को सदन में उपस्थिति रहने को कहते हैं दूसरी ओर उनकी पार्टी चुनाव वाले राज्यों के अपने करीब सौ सांसदों को निर्देश देती है कि वह सारे काम छोड़ कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जाकर विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटें।
अनिल जैन
12 Dec 2021
PM modi
फोटो साभार: एनडीटीवी

केंद्र सरकार से वाई श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत ने पिछले दिनों राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि भारत को 15 अगस्त 1947को जो आजादी मिली थी वह भीख में मिली थी और असली आजादी मई, 2014 में मिली है। उस इंटरव्यू के बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर उन्होंने अपने इस बयान को दोहराते हुए महात्मा गांधी के बारे में भी अपमानजनक टिप्पणियां की थीं। उनके इन बयानों की व्यापक आलोचना हुई और भाजपा के अलावा सभी राजनीतिक दलों ने भी उस पर आपत्ति जताई। लेकिन न तो कंगना ने अपना कोई बयान वापस लिया था और न ही केंद्र सरकार, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिससे यह माना गया कि कंगना को ऐसा बयान देने की प्रेरणा 'कहीं’ से मिली है।

इन दिनों भारत सरकार आजादी का अमृत महोत्सव मना रही है और जिस ढंग से मना रही है उससे साफ हो रहा है कि कंगना रनौत को वह बयान देने की प्रेरणा कहां से मिली थी। अगले साल 15अगस्त को देश की आजादी के 75 साल पूरे होने हैं, जिसके मौके पर पूरे साल का कार्यक्रम चल रहा है। लेकिन इस कार्यक्रम में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पूरी तरह नदारद है। वैसे भी केंद्र सरकार की प्रचार सामग्री से उनको पहले ही हटा दिया गया था। इस साल तो उनकी जयंती पर संसद के केंद्रीय कक्ष में हुए कार्यक्रम में दोनों सदनों के मुखिया यानी राज्यसभा के सभापति और लोकसभा स्पीकर भी नहीं गए और न ही केंद्र सरकार के किसी वरिष्ठ मंत्री या भाजपा नेता ने उसमें शिरकत की। अमृत महोत्सव के मौके पर सरकार की ओर से तैयार कराई गई प्रचार सामग्री से भी नेहरू पूरी तरह से गायब है।

जानकार सूत्रों के मुताबिक हर विभाग को ऊपर से निर्देश दिया गया है कि नेहरू का कहीं जिक्र नहीं आना चाहिए और न ही उनकी तस्वीर कहीं लगनी चाहिए। अमृत महोत्सव पर पूरे साल सरकार का कार्यक्रम चलेगा लेकिन आजादी की लड़ाई में या आजादी के बाद देश के निर्माण में नेहरू की भूमिका के बारे में कुछ भी नहीं बताया जाएगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से एकाध जगह दिखा कर खानापूर्ति की जाएगी।

बाकी अमृत महोत्सव में या तो 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से पहले खासतौर से 1857 की लड़ाई के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताया जाएगा या फिर 2014 के बाद बनी सरकार की उपलब्धियों की जानकारी दी जाएगी। यानी कुल मिलाकर सरकार भी कंगना के बयान की तर्ज पर आजादी का अमृत महोत्सव यह मान कर मना रही है कि देश को वास्तविक आजादी 2014 में ही मिली।

सांसदों को प्रधानमंत्री की फटकार का नाटक

जब संसद का सत्र चलता है तो हर मंगलवार को भाजपा संसदीय दल की बैठक होती है और उसमें से दो खबरें अनिवार्य रूप से आती हैं। पहली खबर यह होती है कि पार्टी के सांसद किसी न किसी मसले पर प्रधानमंत्री को सम्मानित करते हैं और दूसरी खबर यह होती है कि प्रधानमंत्री संसद में उपस्थिति को लेकर अपने सांसदों को नसीहत देते हैं या फटकार लगाते हैं।

पिछले मंगलवार को जो बैठक हुई उसमें भी ये दोनों बातें हुईं। 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाने की घोषणा के लिए प्रधानमंत्री का सम्मान किया गया और उसके बाद प्रधानमंत्री ने सांसदों को फटकार लगाते हुए कहा कि वे अपने को बदलें नही तो उनको बदल दिया जाएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों सदनों में सांसद अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करें और कंपीटिशन करें कि कौन ज्यादा उपस्थित रहा।

उनकी इस बात का मीडिया में भी खूब प्रचार हुआ। यह बात वे इससे पहले लगभग हर बैठक में कह चुके हैं फिर भी दोनों सदनों में उनके अधिकांश सांसद नदारद ही रहते हैं। इससे ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री तो वाकई संसद की कार्यवाही को लेकर बहुत संजीदा हैं लेकिन उनके सांसद उनकी बात नहीं मानते हैं। लेकिन हकीकत यह नहीं है। एक तरफ प्रधानमंत्री सांसदों को सदन में उपस्थिति रहने को कहते हैं दूसरी ओर उनकी पार्टी चुनाव वाले राज्यों के अपने करीब सौ सांसदों को निर्देश देती है कि वह सारे काम छोड कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जाकर विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटें। जाहिर है कि प्रधानमंत्री की सांसदों को ऐसी फटकार सिर्फ मीडिया में प्रचार के लिए होती है। यानी यह 'हाथी के दांत खाने के अलग और दिखाने के अलग’ वाला मामला है।

यही वजह है कि इस बार तो ऐसी स्थिति हो गई कि लोकसभा में, जहां भाजपा के तीन सौ से ज्यादा सदस्य हैं, वहां कोरोना पर चर्चा की शुरुआत कराने के लिए कोरम ही पूरा नहीं हुआ, जिसकी वजह से चर्चा बाद में शुरू हुई।

एक महीने तक पूरे देश में काशी-काशी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 दिसंबर को काशी विश्वनाथ मंदिर के कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे। इस मौके पर एक महीने से ज्यादा समय तक चलने वाले उत्सव की शुरुआत नौ दिसंबर से हो गई है। अब अगले महीने 12 जनवरी तक उत्सव चलता रहेगा। 'दिव्य काशी-भव्य काशी’ नाम से हो रहे इस उत्सव में भाजपा के सारे नेता शामिल होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खुद कई कार्यक्रम हैं। नौ दिसंबर को प्रभात फेरी के साथ इसकी शुरुआत हुई है और 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती के मौके पर युवाओं के एक कार्यक्रम के साथ इसका समापन होगा। तब तक राज्य में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी होगी। 'दिव्य काशी-भव्य काशी’ उत्सव के क्रम में देश भर के भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और भाजपा के उप मुख्यमंत्री तीन दिन तक काशी प्रवास करेंगे। 13 दिसंबर को कॉरिडोर के उद्घाटन के मौके पर भाजपा के सभी मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री काशी में रहेंगे। अगले दिन उनका एक सम्मेलन होगा, जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल होंगे।

पूरे देश में 10 दिसंबर से मंदिरों, आश्रमों आदि में सफाई के कार्यक्रम शुरु हो गए हैं। उद्घाटन कार्यक्रम का प्रसारण करने के लिए पूरे देश में 51हजार जगहों पर एलईडी स्क्रीन लगाए जाएंगे। काशी के गौरव की वापसी का प्रचार पूरे देश में होगा। उद्घाटन के एक हफ्ते के अंदर शहरी विकास मंत्रालय द्वारा मेयर कांफ्रेंस का आयोजन काशी में होगा और उसके बाद कृषि पर भी एक कार्यक्रम प्रधानमंत्री करेंगे।

मान पर क्यों नहीं है केजरीवाल का ध्यान

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि वे पंजाब में बाकी पार्टियों से पहले मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करेंगे। लेकिन अब चुनाव की घोषणा में एक महीने से कम समय बचा है और बाकी सभी पार्टियों के उम्मीदवार लगभग घोषित हो गए हैं। कांग्रेस ने चुनाव से पहले दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया है तो जाहिर तौर पर वे कांग्रेस की ओर से सीएम पद के दावेदार हैं। अकाली दल-बसपा गठबंधन की ओर से सुखबीर बादल हैं और पंजाब लोक कांग्रेस व भाजपा गठबंधन की ओर से कैप्टन अमरिंदर सिंह दावेदार हैं। सो, अब दावेदार की घोषणा सिर्फ आम आदमी पार्टी की ही बची है। आमतौर पर माना जा रहा है कि पार्टी के सांसद भगवंत मान को दावेदार बनाया जाएगा। लेकिन केजरीवाल घोषणा टाल रहे हैं। इस बीच मान ने अपना महत्व बताने के लिए पिछले रविवार को कहा कि चार दिन पहले भाजपा के एक बड़े नेता ने उनको फोन किया और केंद्र में मंत्री पद व पैसे का प्रस्ताव देकर भाजपा में शामिल होने को कहा। एक तो कथित फोन आने के चार दिन बाद मान ने इसका खुलासा किया और दूसरे यह भी नहीं बताया कि किस नेता ने उनको प्रस्ताव दिया। इसीलिए उनके दावे की गंभीरता पर सवाल उठ रहे हैं और इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि आखिर केजरीवाल उनकी दावेदारी पर विचार क्यों नहीं कर रहे हैं और अगर विचार कर लिया है तो घोषणा क्यों नहीं कर रहे हैं।

सरकार के फायदे के लिए विपक्षी सांसदों का निलंबन

तमाम बातों और लॉबिंग के बाद भी राज्यसभा के निलंबित सांसदों का निलंबन खत्म होता नहीं दिख रहा है। राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू और सदन के नेता पीयूष गोयल ने साफ कर दिया है कि निलंबित सांसद अपने आचरण के लिए खेद जताने को तैयार नहीं हैं इसलिए निलंबन समाप्त नहीं होगा। दूसरी ओर निलंबित सांसदों और उनकी पार्टियों- कांग्रेस, शिव सेना, तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम और सीपीआई ने माफी मांगने या खेद जताने से साफ इनकार कर दिया है। सोचें, अगर12 विपक्षी सांसदों का निलंबन रद्द नहीं होता है तो सरकार को कितना फायदा होगा। ध्यान रहे अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद सत्तारूढ़ गठबंधन राज्यसभा में बहुमत हासिल नहीं कर पाया है। उसे जरूरी विधेयक पास कराने के लिए परोक्ष रूप से मदद करने वाली पार्टियों जैसे वाईएसआर कांग्रेस, बीजद, बसपा आदि का सहारा लेना पड़ता है। इनके सांसद सरकार के पक्ष में वोट करके या वोटिंग से गैरहाजिर रह कर सरकार की मदद करते हैं। लेकिन कई विधेयक ऐसे भी होते हैं, जिन पर इनके लिए भी दुविधा होती है। जैसे इस सत्र में सरकार को सीबीआई और ईडी के निदेशकों का कार्यकाल पांच साल करने का बिल पास कराना है। ज्यादातर विपक्षी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं। लेकिन अब सरकार को परवाह नहीं है। इन 12सांसदों की गैरहाजिरी में भाजपा और सरकार में शामिल पार्टियों को मिला कर ही बहुमत हासिल हो जाएगा। जाहिर है कि राज्यसभा के मौजूदा सत्र में सरकार का बहुमत बनाने के लिए विपक्षी दलों के 12 सांसदों को निलंबित कराया गया।

अब क्यों नहीं बढ रहे हैं पेट्रोल-डीजल के दाम?

भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें स्थिर हैं। पिछले करीब डेढ़ महीने से इनकी कीमतें नहीं बढ़ी हैं। सितंबर के आखिर में केंद्र सरकार की पेट्रोलियम कंपनियों ने कीमतों में बढ़ोतरी शुरू की थी और अक्टूबर के आखिर तक लगभग हर दिन कीमत में बढ़ोतरी की गई। सितंबर के आखिर में कंपनियों ने कीमत इसलिए बढ़ानी शुरू की क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 65 डॉलर प्रति बैरल से बढ़ने लगी थी। चूंकि कहने को कीमतों का निर्धारण बाजार के हिसाब से होना है इसलिए कहा जाता है कि इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती। इसलिए जब कच्चे तेल के दाम 65 डॉलर से बढ़ने लगे तो घरेलू कंपनियों ने भी दाम बढ़ाए। लेकिन अब जबकि कच्चे तेल की कीमत 78 डॉलर प्रति बैरल है तब भी कीमत स्थिर है। आखिरी बार तीन नवंबर को दाम बढ़ाए गए थे। उस समय भी कच्चे तेल की कीमत 85 डॉलर प्रति बैरल थी। लेकिन उसके बाद अचानक दोनों ईंधनों की कीमत में बढ़ोतरी का सिलसिला थम गया। उसके बाद केंद्र सरकार ने डीजल पर उत्पाद शुल्क में 10 रुपए और पेट्रोल पर पांच रुपए प्रति लीटर की कटौती की। सरकार का कटौती करना समझ में आता है क्योंकि उसने इस शुल्क में अनाप-शनाप बढ़ोतरी की थी तो चुनाव आने पर कटौती की। लेकिन पेट्रोलियम कंपनियों ने किस तर्क से बढ़ोतरी स्थिर रखी है?

जाहिर है यह सिर्फ भ्रम है कि कीमतें बाजार के हिसाब से तय होती है। असल में कीमत राजनीति के हिसाब से तय होती है। पांच राज्यों में चुनाव हैं तो सरकार के कहने पर कीमत स्थिर रखी गई है। ऐसे ही मार्च से मई के पहले हफ्ते तक भी पांच राज्यों के चुनाव के कारण कीमतें नहीं बढ़ी थीं। उस समय पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे।

बेमतलब हो गया है दलबदल निरोधक कानून

गोवा में अगले तीन महीने में विधानसभा चुनाव के चुनाव हो जाएंगे लेकिन अभी तक 2019 में हुई दलबदल के मसले पर कोई फैसला नहीं हुआ है। जुलाई 2019 में कांग्रेस पार्टी के 10 विधायकों ने पार्टी छोड़ी थी और भाजपा में शामिल हो गए थे। उस समय कांग्रेस ने दलबदल कानून के तहत स्पीकर से इसकी शिकायत की थी लेकिन स्पीकर इस मामले को पिछले ढाई साल से दबा कर बैठे हैं। अब इस पर सुनवाई होने वाली है लेकिन अब किसी भी फैसले का क्या मतलब रह जाएगा, जब राज्य में चुनाव शुरू हो जाएंगे।

इसी तरह झारखंड में बाबूलाल मरांडी की पार्टी टूटने के बाद खुद मरांडी के भाजपा में और दो विधायकों के कांग्रेस में जाने का मामला डेढ़ साल से ज्यादा समय से अटका है। पश्चिम बंगाल में तो कई सांसदों और कई विधायकों का मामला लंबित है।

अब मेघालय में कांग्रेस पार्टी टूटी है। कांग्रेस के 17 में से 12 विधायक पार्टी बदल कर भाजपा में चले गए। कांग्रेस ने दलबदल कानून के तहत इसकी शिकायत की है पर तय मानें कि इस शिकायत पर कोई अमल नहीं होगा। बरसों तक मामला लंबित रहेगा और उसके बाद चुनाव हो जाएगा। सो, ऐसा लग रहा है कि पार्टियों और नेताओं ने दलबदल कानून को बेमतलब बना दिया है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार निजी हैं)

ये भी देखें: मोदी सरकार कोरोना को लेकर लापरवाह तो नहीं ?

PM MODI
Amrit mahaotsav
Modi government (3362
Parliament of India
Parliament

Related Stories

सिख इतिहास की जटिलताओं को नज़रअंदाज़ करता प्रधानमंत्री का भाषण 

17वीं लोकसभा की दो सालों की उपलब्धियां: एक भ्रामक दस्तावेज़

यूपी की सियासत: मतदान से ठीक पहले पोस्टरों से गायब हुए योगी!, अकेले मुस्कुरा रहे हैं मोदी!!

मुद्दा: महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व का सवाल और वबाल

विपक्षी एकता में ही है देश की एकता

कार्टून क्लिक: चुनाव- हां जी हां..., संसद सत्र- ना बाबा ना!

जटिल है जनसंख्या नियंत्रण का प्रश्न

आम चुनावों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के बारे में विचार की जरूरत


बाकी खबरें

  • एम. के. भद्रकुमार
    पुतिन की अमेरिका को यूक्रेन से पीछे हटने की चेतावनी
    29 Apr 2022
    बाइडेन प्रशासन का भू-राजनीतिक एजेंडा सैन्य संघर्ष को लम्बा खींचना, रूस को सैन्य और कूटनीतिक लिहाज़ से कमज़ोर करना और यूरोप को अमेरिकी नेतृत्व पर बहुत ज़्यादा निर्भर बना देना है।
  • अजय गुदावर्ती
    भारत में धर्म और नवउदारवादी व्यक्तिवाद का संयुक्त प्रभाव
    28 Apr 2022
    नवउदारवादी हिंदुत्व धर्म और बाजार के प्रति उन्मुख है, जो व्यक्तिवादी आत्मानुभूति पर जोर दे रहा है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन
    28 Apr 2022
    वाम दलों ने धरने में सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ व जनता की एकता, जीवन और जीविका की रक्षा में संघर्ष को तेज़ करने के संकल्प को भी दोहराया।
  • protest
    न्यूज़क्लिक टीम
    दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन
    28 Apr 2022
    वाम दलों ने आरएसएस-भाजपा पर लगातार विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति का आरोप लगाया है और इसके खिलाफ़ आज(गुरुवार) जंतर मंतर पर संयुक्त रूप से धरना- प्रदर्शन किया। जिसमे मे दिल्ली भर से सैकड़ों…
  • ज़ाकिर अली त्यागी
    मेरठ : जागरण की अनुमति ना मिलने पर BJP नेताओं ने इंस्पेक्टर को दी चुनौती, कहा बिना अनुमति करेंगे जागरण
    28 Apr 2022
    1987 में नरसंहार का दंश झेल चुके हाशिमपुरा का  माहौल ख़राब करने की कोशिश कर रहे बीजेपी नेताओं-कार्यकर्ताओं के सामने प्रशासन सख़्त नज़र आया।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License