NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, रूस की जनता ने कहा- जनविरोधी शासकों का नाश हो
ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया में दो दिन तक चले पीपुल्स ब्रिक्स ने जन विरोधी, साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने का ऐलान किया।
भाषा सिंह
14 Nov 2019
brazil

ब्राजीलिया: ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया में दो दिन तक चले पीपुल्स ब्रिक्स ने जन विरोधी, साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने का ऐलान किया। पांच देशों के समूह-भारत, रूस, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और चीन में से सिर्फ चीन के प्रतिनिधियों की कमी खली, लेकिन नेपाल सहित बाकी देशों के नेतृत्व ने उपस्थिति दर्ज करके उसे पूरा कर दिया।

यह फैसला किया गया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साम्राज्यवादी विरोधी सप्ताह बनाया जाएगा, ताकि जनसंगठनों को एक साथ मिलकर जनविरोधी नीतियों और दोहन के खिलाफ आवाज बुलंद करने का प्लेटफार्म मिल सके। ब्राजील के बड़े वामपंथी नेता और पूर्व राष्ट्रपति लूला को 580 दिन जेल में रखने के बाद ब्राजील की अदालत ने पीपुल्स ब्रिक्स के ठीक पहले रिहा कर दिया और इससे भी सम्मेलन में नई जान आई। लूला के समर्थन में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए थे।
thumbnail.JPG
11 और 12 नवंबर को हुए इस पीपुल्स ब्रिक्स में 9 देशों के 60 संगठनों, यूनियनों और राजनीतिक पार्टियों ने शिरकत की। गौरतलब है कि पीपुल्स ब्रिक्स राष्ट्राध्यक्षों के मुख्य ब्रिक्स से एक दिन पहले समाप्त हुआ और इसमें जो मांगपत्र पारित हुआ उसे भेजा गया।

पीपुल्स ब्रिक्स में एक मत से लातिन अमेरिकी देश बोलिविया में अमेरिकी इशारे पर किये गये सत्ता तख्ता पलट का कड़ा विरोध किया गया। बोलिविया के राष्ट्रपति इवो मोरालिस को जिस तरह से सैन्य दबाव में हटाया गया उसने बोलिविया सहित तमाम लातिन अमेरिकी देशों में बैचेनी पैदा की है।
2_5.JPG
लातिन अमेरिका के कई देशों में वाम-प्रगतिशील सरकारें लंबे समय से अमेरिकी साम्राज्यवादी साजिशों के निशाने पर हैं। वेनेजुएला, क्यूबा और बोलिविया में लंबे समय से इसे लेकर रस्सा-कसी चल रही है। इसलिए अमेरिकी मंसूबों के खिलाफ लातिन अमेरिका में गहरा आक्रोश है, जिसकी प्रतिध्वनि पीपुल्स ब्रिक्स में साफ सुनाई दी।

दो दिनों तक चार सत्रों में चले पीपुल्स ब्रिक्स में साम्राज्यवाद की चुनौतियों पर बहस से लेकर विकल्प के रास्तों को तलाशने तक पर गहरी-जीवंत बहस हुई। पीपुल्स ब्रिक्स की तैयारी समिति ने बहुत सोच समझकर इस सम्मेलन का आयोजन ब्राजील की संसद के भीतर रखा, ताकि सत्ता के बिलकुल रूबरू खड़े होकर जनता की मांगों को रखा जाए।
3_2.JPG
दो दिन के इस सम्मेलन में बड़ी संख्या में ब्राजील के सांसदों ने शिरकत की, अपना समर्थन दिया। इनमें प्रमुख थे—पाउलो पेमिनाता, जो वर्कस पार्टी के नेता है, जैनद्रिया फेघाले, जो ब्राजील की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं, और सदन में विपक्ष के नेता भी है। ब्राजील के सबसे बड़े शहर—अमेज़न के पूर्व मेयर और सोशलिज्म फ्रीडम पार्टी के नेता एडमिलसन रोडरिक, एलेक्सेंद्रा पादिलहा, वर्कस पार्टी के नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री, मारिया ड रोसारियो—जो मानवाधिकार मंत्री रह चुकी है और सदन की सदस्य हैं— सहित अनेक नेताओं ने पीपुल्स ब्रिक्स को समर्थन दिया। कई देशों के राजदूत भी सम्मेलन को समर्थन देने पहुंचे, जिसमें क्यूबा, वेनेजुएला, ओनदूगा और निकारागुआ प्रमुख थे।  

सम्मेलन में बोलिविया में हुए सत्ता तख्त पलट के खिलाफ खड़े होने का फैसला लिया गया। इसके तहत 12 नवंबर को बोलिविया की एम्बेसी पहुंच कर वहां की जनता के साथ तमाम सदस्यों ने एकजुटता जताई। जिस अंतरराष्ट्रीय एकता की बात सत्रों में चल रही थी, उसे सम्मेलन के दौरान ही क्रियान्वित किया गया। बोलिविया के राजदूत ने भी पीपुल्स ब्रिक्स के फैसले का स्वागत किया और कहा कि देश की जनता को इस समर्थन की जरूरत है। वहां से वापस आकर फिर सम्मेलन की कार्रवाई शुरू की गई।
4_0.JPG
आखिरी सत्र में भविष्य के गठबंधनों की रूपरेखा बनाई गई और आंदोलनों का बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर से सहयोग करने का फैसला किया गया। संदेश साफ था कि पूंजीवाद अपने सबसे बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है। अर्थव्यवस्थाएं डूब रही हैं, नौकरियों का अभाव है, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा में कटौती हो रही है, पर्यावरण का क्षय है और पूंजी की लूट बेलगाम हो गई है। इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर गोलबंदी जरूरी है। आंदोलनों को साझा करना जरूरी है।

Brazil
Brasilia
South Africa
Russia
Imperialist
China
President Evo Moralis
Global economic Increasing inequality

Related Stories

रूस की नए बाज़ारों की तलाश, भारत और चीन को दे सकती  है सबसे अधिक लाभ

गुटनिरपेक्षता आर्थिक रूप से कम विकसित देशों की एक फ़ौरी ज़रूरत

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

पश्चिम बनाम रूस मसले पर भारत की दुविधा

जम्मू-कश्मीर : रणनीतिक ज़ोजिला टनल के 2024 तक रक्षा मंत्रालय के इस्तेमाल के लिए तैयार होने की संभावना

रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध का भारत के आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा?

यूक्रेन संकट : वतन वापसी की जद्दोजहद करते छात्र की आपबीती

यूक्रेन संकट, भारतीय छात्र और मानवीय सहायता

यूक्रेन में फंसे बच्चों के नाम पर PM कर रहे चुनावी प्रचार, वरुण गांधी बोले- हर आपदा में ‘अवसर’ नहीं खोजना चाहिए

काश! अब तक सारे भारतीय छात्र सुरक्षित लौट आते


बाकी खबरें

  • protest
    न्यूज़क्लिक टीम
    दक्षिणी गुजरात में सिंचाई परियोजना के लिए आदिवासियों का विस्थापन
    22 May 2022
    गुजरात के दक्षिणी हिस्से वलसाड, नवसारी, डांग जिलों में बहुत से लोग विस्थापन के भय में जी रहे हैं। विवादास्पद पार-तापी-नर्मदा नदी लिंक परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। लेकिन इसे पूरी तरह से…
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: 2047 की बात है
    22 May 2022
    अब सुनते हैं कि जीएसटी काउंसिल ने सरकार जी के बढ़ते हुए खर्चों को देखते हुए सांस लेने पर भी जीएसटी लगाने का सुझाव दिया है।
  • विजय विनीत
    बनारस में ये हैं इंसानियत की भाषा सिखाने वाले मज़हबी मरकज़
    22 May 2022
    बनारस का संकटमोचन मंदिर ऐसा धार्मिक स्थल है जो गंगा-जमुनी तहज़ीब को जिंदा रखने के लिए हमेशा नई गाथा लिखता रहा है। सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल पेश करने वाले इस मंदिर में हर साल गीत-संगीत की…
  • संजय रॉय
    महंगाई की मार मजदूरी कर पेट भरने वालों पर सबसे ज्यादा 
    22 May 2022
    पेट्रोलियम उत्पादों पर हर प्रकार के केंद्रीय उपकरों को हटा देने और सरकार के इस कथन को खारिज करने यही सबसे उचित समय है कि अमीरों की तुलना में गरीबों को उच्चतर कीमतों से कम नुकसान होता है।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 
    21 May 2022
    अठारह घंटे से बढ़ाकर अब से दिन में बीस-बीस घंटा लगाएंगेे, तब कहीं जाकर 2025 में मोदी जी नये इंडिया का उद्ïघाटन कर पाएंगे। तब तक महंगाई, बेकारी वगैरह का शोर मचाकर, जो इस साधना में बाधा डालते पाए…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License