NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
अराजनीतिक बुद्धिजीवियों से कुछ सवाल
"एक दिन देश के अराजनीतिक बुद्धिजीवियों से/ हमारी भोली-भाली जनता करेगी कुछ सवाल/ पूछेगी वह उनसे, क्या किया था उन्होंने/ जब मर रहा था उनका देश सांस दर सांस...”
न्यूज़क्लिक डेस्क
04 Oct 2019
non-political views

अराजनैतिक बुद्धिजीवी

 

एक दिन

देश के अराजनीतिक बुद्धिजीवियों से

हमारी भोली-भाली जनता

करेगी कुछ सवाल।

 

पूछेगी वह उनसे

क्या किया था उन्होंने,

जब मर रहा था उनका देश

सांस दर सांस –

एक मीठी, निपट अकेली,

मद्धम आँच की तरह।

 

नहीं पूछेगा

कोई उनसे

कि क्या पहनते थे वह।

 

या कि कैसे

एक शाहाना लंच के बाद

लेते थे चैन की लम्बी नींद

अपनी आरामगाहों में।

 

न जानना चाहेगा कोई

कि शून्यता की परिकल्पना को लेकर

क्या थे उनके

बेमानी तर्क वितर्क।

 

न किसी को होगी

यह जानने में दिलचस्पी

कि कितनी गहरी है

उनकी अर्थव्यवस्था की समझ।

 

न होगा कोई सवाल उनसे

ग्रीक मिथकों के गूढ़ रहस्यों पर।

 

उस आत्मग्लानि पर भी नहीं

जो उपजती होगी

इस अहसास के साथ

कि उनके अंदर

तिल-तिल करके

मर रहा है कोई

एक कायर की मौत।

 

न होगी कोई जिरह

उनकी लचर दलीलों पर

जन्मती हैं जो

एक मुक़म्मल ज़िन्दगी से अनजान

अँधेरे सायों में।

 

उस रोज़

आएंगे तुम्हारे पास

वह सीधे-साधे लोग।

 

वही,

जिनके लिए

नहीं थी कोई जगह

अराजनीतिक बुद्धिजीवियों की

किताबों और नज़्मों में,

मगर जो अलसुबह

उनके बंगलों पर

लेकर आते थे

पावरोटी, दूध और अंडे।

 

या उनकी गाड़ियाँ चलाते थे,

उनके कुत्ते टहलाते थे,

उनके दिलकश बग़ीचों को

संवारते थे, सजाते थे,

और उनकी ख़िदमत में

दस्तबस्ता खड़े रहते थे।

 

फिर वो पूछेंगे,

"क्या किया था तुमने

जब ग़ुरबतज़दा ये लोग

लाचार थे,

हलकान थे,

और उनकी मासूमियत,

उनकी मुस्कानें

फ़ना हो रहीं थीं

धुआं होकर?"

 

उस रोज़

मेरे प्यारे हमवतन,

अराजनीतिक बुद्धिजीवियो,

देते न बनेगा

तुमसे कोई जवाब !

तुम्हारी बेज़ुबानी ही

एक मनहूस गिद्ध बनकर

नोंच लेगी तुम्हारी अंतड़ियाँ।

 

एक बेपनाह मायूसी

तुम्हारी रूह को कचोटेगी,

घेर लेगी तुम्हें ताउम्र

एक ख़ामोशी,

शर्मसार ख़ामोशी!

…

यह कविता ओतो रेने कास्तियो द्वारा स्पेनिश में लिखी गयी थी, जिसका अनुवाद कमल कान्त जैसवाल ने हिंदी में किया है। इस कविता का अंग्रेज़ी भाषांतर यहाँ पढ़ा जा सकता है।

(इंडियन कल्चर फोरम से साभार)

Non-political intellectuals
hindi poetry
hindi poet
indian economy
communal violence
Lynching
BJP
Poetry

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ... भेद तुम्हारे खोल रहा हूँ

उर्दू पत्रकारिता : 200 सालों का सफ़र और चुनौतियां

देवी शंकर अवस्थी सम्मान समारोह: ‘लेखक, पाठक और प्रकाशक आज तीनों उपभोक्ता हो गए हैं’

इतवार की कविता : आग़ा हश्र कश्मीरी की दो ग़ज़लें

गणेश शंकर विद्यार्थी : वह क़लम अब खो गया है… छिन गया, गिरवी पड़ा है

तिरछी नज़र: ‘ज़िंदा लौट आए’ मतलब लौट के...

राय-शुमारी: आरएसएस के निशाने पर भारत की समूची गैर-वैदिक विरासत!, बौद्ध और सिख समुदाय पर भी हमला

कटाक्ष: इंडिया वालो शर्म करो, मोदी जी का सम्मान करो!


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License