NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
जर्मनी के चुनावों में सेंटर-लेफ़्ट को मिली बढ़त
संक्षेप में, जर्मनी में हुए चुनावों से जो उभर कर सामने आ रहा है वह यह है कि देश में तीन-तरफ़ा गठबंधन की सरकार होगी, लेकिन यह सरकार कई महीने बाद ही बनेगी।
एम. के. भद्रकुमार
29 Sep 2021
जर्मनी के चुनावों में सेंटर-लेफ़्ट को मिली बढ़त
जर्मन वित्त मंत्री, वाइस चांसलर और सोशल डेमोक्रेटिक एसपीडी पार्टी के चांसलर पद के उम्मीदवार ओलाफ स्कोल्ज़ बर्लिन में पार्टी के मुख्यालय में फूलों का गुलदस्ता पेश करते हुए, 27 सितंबर, 2021

एंजेला मर्केल युग के बाद जर्मनी में हुए पहले चुनाव का सबसे बड़ा फायदा यह है कि कोई भी दल स्पष्ट बहुमत से नहीं 'जीता' है और प्रत्येक दल के पास अपने प्रदर्शन से दुखी दिखने और निराश होने के कारण मौजूद हैं। एक नया राजनीतिक परिदृश्य पैदा होने के लिए बेजोड़ संघर्ष कर रहा है।

सत्तारूढ़ क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स [सीडीयू] का, युद्ध के बाद के इतिहास में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है, 2017 में पिछले चुनाव की तुलना में इसने देश के हर हिस्से में काफी खराब प्रदर्शन किया है। पार्टी ने जर्मनी के 16 राज्यों में से केवल दो में बढ़त बनाई है, दक्षिण के बवेरिया और बाडेन-वुर्टेमबर्ग, 2017 के मुक़ाबले 13 राज्यों में खराब प्रदर्शन रहा है; कई राज्यों में तो वे तीसरे स्थान पर आए हैं। 

ग्रीन पार्टी की एनालेना बारबॉक को उम्मीदवार बनाने के बाद भी वे अपनी बड़ी भारी लोकप्रियता को भुनाने में नाकामयाब रही हैं और उन्हे इसमें विफल रहने के लिए दोषी ठहराया जा रहा है।

उदारवादी एफडीपी या फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी को उनके वोट में केवल छोटी सी बढ़त मिली है। दो विपरीत विचारधाराओं वाली दक्षिणपंथी एएफडी और वामपंथी डाई लिंके दोनों को भारी नुकसान हुआ है।

अनुमान के अनुसार 'विजेता' मध्यमार्गी-वाम सोशल डेमोक्रेट्स को होना चाहिए जिन्होंने 2002 के बाद से पहली जीत हासिल की है। वास्तव में, इन्हे मतों का बड़ा हिस्सा (25.7 प्रतिशत) मिला है,  जो 2017 के प्रदर्शन (20.5 प्रतिशत) के मुक़ाबले बड़ी छलांग है। लेकिन यह सीडीयू से केवल दो प्रतिशत अंक ही आगे है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका मतलब यह नहीं है कि वह अगली गठबंधन सरकार बनाएगी।

इस अर्थ में, ग्रीन्स और एफडीपी को किंगमेकर कहा जा सकता है। एक महत्वपूर्ण राजनीतिक कदम लेते हुए, उन्होंने फैसला किया है कि वे पहले खुद एक साथ बातचीत करेंगे। संभावना है कि वे एसपीडी के साथ गठबंधन का विकल्प चुन सकते हैं, लेकिन कोई भी यह सुनिश्चित नहीं कर सकता है कि आखरी खेल को आकार देने में बाहरी कारक कब सामने आएंगे। 

कुल मिलाकर, जो स्थिति सामने उभर कर आ रही है वह यह है कि जर्मनी में तीन-तरफा गठबंधन सरकार होगी, लेकिन यह कई महीनों की मशक्कत के बाद ही बनेगी। ऐसी भी संभावना है कि निवर्तमान चांसलर मर्केल अभी भी अपने 17वें वार्षिक नववर्ष का टेलीविजन पर संबोधन देने के लिए मौजूद हों।

जर्मन वोट का तरीका समाज में मौजूद अंतर्विरोधों को दर्शाता है। जर्मनों ने निश्चित रूप से 'परिवर्तन' का विकल्प चुना है, जैसा कि सत्तारूढ़ पार्टी सीडीयू का अपमानजनक प्रदर्शन बताता है। पार्टी के वोट शेयर में 2017 में मिले 32.9 प्रतिशत से रविवार के चुनाव में 24.1 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है। निस्संदेह, यह असंतोष का प्रतीक है।

लेकिन, विडंबना यह है कि जर्मनों ने भी पूर्वानुमेयता का विकल्प चुना है। वर्तमान गठबंधन बनाने वाले एसपीडी और सीडीयू ने मिलकर 50 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं! और यह कोई रहस्य नहीं है कि एसपीडी के नेता ओलाफ स्कोल्ज़, निवर्तमान सीडीयू-एसपीडी गठबंधन सरकार में वित्त मंत्री हैं, जो संकट में स्थिति को संभालने की प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति है और कई मामलों में मार्केल के एक अन्तरंग मित्र भी है। इसलिए, एक मायने में देखा जाए तो, क्या यह  "मर्केलिज़्म" के लिए जनादेश नहीं है? यकीनन, जनादेश संयम, स्थिरता और निरंतरता को  प्राथमिकता देता लगता होता है। वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि स्कोल्ज़ का उपनाम, वैसे,"स्कोल्ज़ोमैट" है - उनके "सूखी, उबाऊ, राजनीतिक शैली पर काम करने" वाला व्यक्ति है।

मार्केल युग के दौरान जर्मन लोगों ने अद्वितीय स्तर की समृद्धि देखी है। फिर भी ज़ाहिर तौर पर लोग उनसे संतुष्ट नहीं हैं। उनकी शिकायत यह है कि जर्मनी को 'आधुनिकीकरण' करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है। ब्रॉडबैंड की गति अल्बानिया की तुलना में धीमी है और यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है।

इसके अलावा, गर्मियों में देश के पश्चिमी हिस्से में हिला देने वाली विनाशकारी बाढ़ ने उजागर कर दिया है कि देश का बुनियादी ढांचा पूरी तरह से अस्त-व्यस्त है। ज़ाहिर है, जर्मनी जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए तैयार नहीं है। प्रकृति के साथ काम करने और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों से निपटने के लिए देश को एक बुनियादी ढांचे की तत्काल आवश्यकता है।

हक़ीक़त यह है कि जर्मन भी 'परिवर्तन' को स्थानिक अशांति की घबराहट के साथ देखते हैं। मुद्दा यह है कि जर्मन तर्क-वितर्क करने से कतराते हैं। लेकिन बिना तर्क के राजनीति प्रगतिशील तरीके से कैसे विकसित हो सकती है?

निश्चित रूप से, मर्केल की सेवानिवृत्ति जर्मन राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन जाती है। समान रूप से, यूरोप ने चाकू की धार वाले चुनाव परिणामों पर सांस रोक रखी है, क्योंकि मर्केल ने भी यूरोप को मूर्त रूप दिया है। फ्रांस के ले फिगारो ने लिखा है कि, "जर्मनी में राजनीतिक अस्थिरता का खतरा है।" अखबार कहता है, "जर्मनी में राजनीतिक विखंडन बढ़ने के साथ शासन करना कठिन होता जा रहा है"।

फिर भी, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में, मर्केल एक पहेली बनी हुई है। आम आलोचना यह है कि उसने "कुछ नहीं किया", कि वह अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत इतिहास पर अपनी कोई छाप नहीं छोड़ पाई हैं – उदहारण के लिए, कोनराड एडेनॉयर (जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के भीतर जर्मनी के युद्ध के बाद के एकीकरण का नेतृत्व किया था और यूरोपीयन यूनियन की नींव रखी थी), विली ब्रांट ('ओस्टपोलिटिक' यानि पश्चिम जर्मनी की राजनीतिक और कूटनीतिक नीति के प्रस्तावक थे जिन्होने पूर्व सोवियत संघ के साथ शांति बनाए रखने का नेतृत्व किया था), हेल्मुट कोहल (जिन्होंने ब्रांट की मूलभूत विरासत का निर्माण किया और शानदार ढंग से जर्मनी का पुन: एकीकरण किया था।)

यहाँ सच्चाई का एक पुट है। मैरियन वैन रेंटरघेम, फ्रांसीसी पत्रकार, जिन्होंने मर्केल पर एक किताब लिखी थी, ने गार्जियन अखबार में लिखा था कि: "वह [मैर्केल] बर्लिन की दीवार गिरने के तुरंत बाद राजनीति में आ गईं थी। जोकि एक साधारण रसायनज्ञ थीं, भाषण कला में माहिर थीं,  करिश्मा था, और उनमें कोई राजनीतिक छल या यहां तक कि उनका कोई विशेष एजेंडा भी नहीं था। और केवल 35 साल की उम्र में, उसने खुद को, इतिहास की एक विचित्र स्थिति में सही समय पर सही जगह पर पाया था। वह जानती थी कि इसका क्या मतलब है ...

"महत्वाकांक्षी सुधार निश्चित रूप से उनके डीएनए में नहीं है, और सौभाग्य से यह वह प्राथमिकता नहीं थी जिसकी मांग समय ने उससे की थी। मर्केल ने दिखाया कि वह एक दूरदर्शी की तुलना में प्रबंधक अधिक थीं।”

"फिर भी, अपने रास्ते में आने वाले हर संकट का प्रबंधन करने के साथ, उसने जर्मन समृद्धि को बहाल किया ... मर्केल की निगरानी में, जर्मनी ने भी अपनी छवि को नरम किया है: कठोर और अनाकर्षक से पसंद करने योग्य। मैर्केल ने 16 साल तक जर्मनी को खुश रखा है। सत्ता में उनकी लंबी उम्र का पहला रहस्य यह है कि वह पूरी तरह से अपने देश और अपने समय के अनुरूप थीं। वह सही समय पर सही जगह पर होती थी।"

लेकिन अंतिम विश्लेषण में, मर्केल की महान विरासत में जो बात सबसे अलग है, वह है नैतिक दिशा-निर्देश जो उन्होंने अपनी राजनीति का मार्गदर्शन करने और उसे नेविगेट करने के लिए इस्तेमाल किए। दुनिया में कितने ऐसे नेता ऐसे होंगे जो एक लाख शरणार्थियों को अपने देश में लेने के लिए कहेंगे, उसने वे उन तीन शब्द कहे "हम उन्हे लेंगे" और ऐसा कहकर उन्होने नैतिक साहस दिखाया? ईमानदारी से, ऐसा कोई नहीं कर सकता है।

मर्केल के जाने से कई बातें हवा में चल रही हैं। विदेश नीति में, रूस और चीन के साथ उनकी "राजनयिक व्यापारिकता" की नीति के भविष्य पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। रूस के व्यापार दैनिक वेदोमोस्ती का कहना है कि चुनाव जर्मनी में राजनीतिक परिदृश्य को बदल देगा और "राजनीतिक यू-टर्न" को बढ़ाएगा। वह आगे कहता है,

"गठबंधन सरकार बनने के बाद रूस के साथ संबंधों में कोई सफलता नहीं मिलेगी - मौजूदा कठिनाइयों के बावजूद आर्थिक व्यावहारिकता को बनाए रखा जाएगा, जबकि वैचारिक रूप से प्रेरित आलोचना कुछ हद तक कम हो जाएगी यदि एसडीपी सत्ता में हावी रहती है ..."

सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने बताया कि चुनाव परिणाम "एक अधिक खंडित संसद का संकेत देते हैं।" इसने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि एसपीडी नेता ओलाफ स्कोल्ज़ का पूर्वानुमान है कि वह ग्रीन पार्टी और एफडीपी के साथ एक तथाकथित "ट्रैफिक-लाइट" यानि तिहरा गठबंधन बनाना चाहते हैं, जिसे "सबसे अधिक संभावना के रूप में देखा जा रहा है"।

बड़ा सवाल यह है कि बर्लिन में ऐसा "ट्रैफिक-लाइट गठबंधन" यानि तिहरा गठबंधन, यूरोपीयन यूनियन को कैसे आगे बढ़ाएगा। यह बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा है क्योंकि यूरोपीयन यूनियन खुद अपने कंपास को कैलिब्रेट कर रहा है, यहां तक ​​कि यूरो-अटलांटिकवाद भी कम हो रहा है और संयुक्त राज्य अमेरिका के ट्रान्साटलांटिक नेतृत्व में यूरोप का विश्वास काफी कम हो गया है। एसपीडी के नेतृत्व वाला गठबंधन वाशिंगटन के लिए बुरी खबर है - और सबसे अप्रत्याशित भी है। राष्ट्रपति बाइडेन की तत्काल प्रतिक्रिया इस तथ्य को साबित करती है।

 

angela merkel
germany
Germany Elections

Related Stories

यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल

यूक्रेन युद्ध की राजनीतिक अर्थव्यवस्था

मॉस्को कर रहा है 'गुड कॉप, बैड कॉप' का सामना

नॉर्ड स्ट्रीम 2: गैस पाइपलाइन को लेकर दूसरा शक्ति संघर्ष

दुनिया भर की: जर्मनी में ‘ट्रैफिक लाइट गठबंधन’ के हाथों में शासन की कमान

दुनियाभर की: संसदीय चुनावों में वामपंथी धड़े की जीत की संभावना से जर्मनी के धनकुबेर परेशान

आने वाले जर्मन चुनाव का भारत पर क्या होगा असर?

यूएस-जर्मन नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन सौदे में तीसरा भागीदार भी है

अमेरिका-चीन सबंध में नर्मी

अमेरिका ने डेनमार्क की गुप्त एजेंसी की मदद से जर्मनी, फ़्रांस सहित यूरोप में अपने क़रीबी सहयोगियों की जासूसी की


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License