NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
चुनाव 2022
भारत
राजनीति
यूपी चुनाव: कांस्य युग में फंसा एक द्वीपनुमा गांव
उत्तरप्रदेश में चुनाव प्रचार चल रहा है, लेकिन ग्रामीणों को अभी तक उनके क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के बारे में पता तक नहीं चल पाया है। इसके पीछे की वजह है-बुनियादी सुविधाओं का अभाव। 21वीं सदी में भी ये ग्रामीण ख़ुद को कांस्य युग में ही फंसा हुआ पाते हैं और इनकी इस बदहाली का श्रेय सरकारी उदासीनता को जाता है।
सौरभ शर्मा
05 Feb 2022
up chunav

परसावल (बाराबंकी) : गायत्री निषाद को 30 जनवरी की रात को प्रसव पीड़ा के लक्षण महसूस होने लगे, लेकिन उन्हें इस डर से पूरी रात घर पर ही गुज़ारनी पड़ी कि कहीं वह अपने बच्चे को घर पर ही जन्म न दे दें। उन्हें सुबह जाकर ही एंबुलेंस नहीं, बल्कि मोटरसाइकिल से अस्पताल ले जाया गया।

तक़रीबन 20 साल की यह गृहिणी उस परसावल गांव में रहती है, जो लखनऊ से लगभग 84 किमी दूर है और ज़ोरदार घाघरा नदी के दो पाटों के बीच बसा यह एक द्वीपनुमा गांव है। इस गांव में लगभग 60 परिवार रहते हैं, जिनमें से ज़्यादातर निषाद समुदाय के हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र इस परसावल गांव से क़रीब 7 किमी दूर है, लेकिन वहां पहुंचने के लिए ग्रामीणों को घाघरा नदी के दो पाटों को ज़्यादा पानी होने पर या तो नाव के सहारे या पानी कम होने पर पैदल चलकर पार करना होता है।

गायत्री को बताया गया कि प्रसव होने में अभी समय है और उन्हें मल्टीविटामिन, फ़ॉलिक एसिड और दूसरी दवायें लेने के लिए कहा गया। वह अपने पति और एक चचिया ससुर के साथ उसी मोटरसाइकिल पर घर वापस लौट आयीं।

एक साल की बेटी की मां गायत्री कहती हैं, "पूरी रात मैं यही सोचती रही कि मेरे बच्चे की डिलीवरी घर के भीतर ही होगी। मैं पूरी रात बहुत डरी हुई थी और भगवान से प्रार्थना करती रही कि किसी तरह दर्द बंद हो जाये और अस्पताल ले जाने के लिए सुबह तक का इंतज़ार करती रही। लेकिन,पूरी रात दर्द कम नहीं हुआ, और मैंने वह रात करवट बदल-बदलकर रोते और चिल्लाते हुए बितायी।"

वह आगे बताती हैं कि वह इतनी डरी हुई थीं कि उनके मन में मौत के ख़्याल तक आने लगे थे और एक समय तो दर्द इतना बढ़ गया था कि वह बेहोश होकर गिर गयी थीं और फिर क़रीब आधे घंटे तक अचेत सोई रहीं। जो दवायें उन्हें पहले लेने के लिए कहा गया था,वे परिवार के पास घर पर ही थीं, लेकिन उन दवाओं से भी दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था।

प्रसव का इंतज़ार कर रही उस गर्भवती महिला ने कहा, "मुझे याद है कि अस्पताल ले जाने के लिए मैं अपने पति पर दो बार से ज़्यादा चिल्लायी थी, लेकिन रात में घने कोहरे के चलते वह कुछ नहीं कर सके।"

यूरो स्त्री रोग विशेषज्ञ और सुरक्षित प्रसव को लेकर अभियान चलाने वाली डॉ अपर्णा हेगड़े का कहना है कि प्रसव से पहले की देखभाल अहम होती है, और सरकारी दिशानिर्देशों के मुताबिक़ गर्भवती महिला को गर्भावस्था के नौवें महीने में तीन बार अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए। गायत्री ने महज़ एक अल्ट्रासाउंड करवाया था, और डॉक्टरों का कहना है कि वह एक या दो हफ़्ते में कभी भी अपने बच्चे को जन्म दे सकती है।

परसवाल गांव मांजा परसवाल और प्रताप पुर गांवों का हिस्सा है। परसावल नदी से घिरा हुआ है और इसमें विकास का कोई निशान तक नहीं दिखता है। गांव में सड़क, बिजली, शौचालय, पक्के मकान, स्वास्थ्य सेवा, स्कूल और दूसरी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। अभी तक किसी भी दल के प्रत्याशी ने गांव का दौरा नहीं किया है और गांव की कई महिलाओं को अपने राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के बारे में पता तक नहीं है।

पचास साल के धनलाल निषाद इसी गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने ग्राम प्रधान के पद के लिए पिछला पंचायत चुनाव लड़ा था, और उनके गांव का विकास ही उनका चुनावी मुद्दा था। चुनाव हार जाने के बावजूद उन्हें प्यार से 'नेता जी' के नाम से जाना जाता है। धनलाल तंज करते हुए कहते हैं कि इस गांव में तो कोई समस्या ही नहीं है। यह इसलिए शांतिप्रिय गांव है, क्योंकि इस गांव के किसी भी घर में टेलीविज़न या मनोरंजन का कोई दूसरा साधन नहीं है, क्योंकि बिजली नहीं है। वह कहते हैं, "मैं सात बच्चों, यानी तीन बेटों और चार बेटियों का पिता हूं। मेरे बच्चे खेती और घर के कामों में मदद करते हैं।"

सात बच्चों के पिता धनलाल आगे कहते हैं कि परसावल गांव में रह रहे लोगों का मुख्य पेशा या आजीविका का स्रोत खेतीबाड़ी है और कोई दूसरा पेशा इसलिए नहीं है, क्योंकि शिक्षा की कोई सुविधा ही नहीं है। धनलाल आगे बताते हैं,"निकटतम स्कूल यहां से तक़रीबन 5 किमी दूर है, और कोई कनेक्टिविटी नहीं है। स्थानीय प्रशासन गर्मियों के दौरान नदी पर पोंटून पुल (पिपा पुल) बनवा देता है। लेकिन, नदी में बाढ़ जब आती है, तो यह पुल ख़राब हो जाता है, और तब हमारे पास आने-जाने के साधन के रूप में नाव का इस्तेमाल करने का विकल्प ही बचता है। मैं अपने बच्चों को ऐसी स्थिति में दूसरे गांवों में शिक्षा के लिए नहीं भेजूंगा। हर पांच साल में चुनाव आते हैं और अगर नेता हमें सुविधायें देने के बारे में थोड़ा भी चिंतित होते, तो हमारे पास कम से कम पुल तो होता। हम अपने मोबाइल फ़ोन चार्ज करने और शाम को एक बल्ब जलाने के लिए सरकार की तरफ़ से उपलब्ध कराये गये सोलर पैनलों पर निर्भर होते हैं, लेकिन बाढ़ और भारी बारिश के दौरान यह भी काम करना बंद कर देता है।"

न्यूज़क्लिक ने ज़िला प्रशासन से संपर्क किया,लेकिन वह टिप्पणियों के लिए उपलब्ध नहीं था।

'जो नसीब में होगा, उसे कौन बदल सकता है'

गायत्री के 24 साल के पति अर्जुन इसी गांव में तक़रीबन 8-10 बीघा ज़मीन का स्वामित्व वाले एक छोटे किसान है। अर्जुन ने बताया कि रात में अपनी पत्नी को अस्पताल नहीं ले जाने की इकलौती वजह घना कोहरा थी और यह भी कि टोल-फ़्री एम्बुलेंस सेवा ने उन्हें नदी पार करने के बाद गांव के अलग छोर पर आने के लिए कहा था, लेकिन अंधेरे और घने कोहरे के चलते रात में मोटरसाइकिल से ऐसा कर पाना मुमकिन ही नहीं था।

अर्जुन कहते हैं, "मेरी पहली बेटी बहराइच ज़िले में स्थित मेरे ससुराल में थी, और उस रात जब मेरी पत्नी को दर्द हुआ था, तो मुझे किसी ऐसी जगह पर नहीं होने का अफ़सोस हुआ,जहां ये बुनियादी सुविधायें होतीं, लेकिन क्या करूं यहीं मेरा घर है, और यहीं मेरे खेत हैं, यहीं मां , पिता, और सब लोग हैं। मैं यहीं पैदा हुआ। मुझे तो यहीं मरना है, चाहे हमें कभी भी सरकार से कोई सुविधा मिले या नहीं मिले।”

उन्होंने आगे कहा, "गर्भावस्था के आख़िरी महीने में अपनी पत्नी को यहां रखना जोखिम भरा है, लेकिन हमारे पास कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है, और मैं बुरी से बुरी स्थिति के लिए तैयार रहता हूं। जो मेरे नसीब में होगा, उसको कौन बदल सकता है।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

UP Elections: A Riverine Village Stuck in the Bronze Age

UP elections
UP Assembly Elections 2022
Nishad community
Lack of Basic Infrastructure
Riverine Island
Prenatal Health

Related Stories

पक्ष-प्रतिपक्ष: चुनाव नतीजे निराशाजनक ज़रूर हैं, पर निराशावाद का कोई कारण नहीं है

BJP से हार के बाद बढ़ी Akhilesh और Priyanka की चुनौती !

यूपी चुनाव : पूर्वांचल में हर दांव रहा नाकाम, न गठबंधन-न गोलबंदी आया काम !

कार्टून क्लिक: महंगाई-बेरोज़गारी पर हावी रहा लाभार्थी कार्ड

यूपी चुनाव: नतीजे जो भी आयें, चुनाव के दौरान उभरे मुद्दे अपने समाधान के लिए दस्तक देते रहेंगे

5 राज्यों की जंग: ज़मीनी हक़ीक़त, रिपोर्टर्स का EXIT POLL

उत्तर प्रदेश का चुनाव कौन जीत रहा है? एक अहम पड़ताल!

यूपी का रण: आख़िरी चरण में भी नहीं दिखा उत्साह, मोदी का बनारस और अखिलेश का आज़मगढ़ रहे काफ़ी सुस्त

यूपी चुनाव : काशी का माँझी समाज योगी-मोदी के खिलाफ

यूपी चुनाव: सोनभद्र और चंदौली जिलों में कोविड-19 की अनसुनी कहानियां हुईं उजागर 


बाकी खबरें

  • एम. के. भद्रकुमार
    हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव
    30 May 2022
    जापान हाल में रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने वाले अग्रणी देशों में शामिल था। इस तरह जापान अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहा है।
  • उपेंद्र स्वामी
    दुनिया भर की: कोलंबिया में पहली बार वामपंथी राष्ट्रपति बनने की संभावना
    30 May 2022
    पूर्व में बाग़ी रहे नेता गुस्तावो पेट्रो पहले दौर में अच्छी बढ़त के साथ सबसे आगे रहे हैं। अब सबसे ज़्यादा वोट पाने वाले शीर्ष दो उम्मीदवारों में 19 जून को निर्णायक भिड़ंत होगी।
  • विजय विनीत
    ज्ञानवापी केसः वाराणसी ज़िला अदालत में शोर-शराबे के बीच हुई बहस, सुनवाई 4 जुलाई तक टली
    30 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद के वरिष्ठ अधिवक्ता अभयनाथ यादव ने कोर्ट में यह भी दलील पेश की है कि हमारे फव्वारे को ये लोग शिवलिंग क्यों कह रहे हैं। अगर वह असली शिवलिंग है तो फिर बताएं कि 250 सालों से जिस जगह पूजा…
  • सोनिया यादव
    आर्यन खान मामले में मीडिया ट्रायल का ज़िम्मेदार कौन?
    30 May 2022
    बहुत सारे लोगों का मानना था कि राजनीति और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के चलते आर्यन को निशाना बनाया गया, ताकि असल मुद्दों से लोगों का ध्यान हटा रहे।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिमाचल : मनरेगा के श्रमिकों को छह महीने से नहीं मिला वेतन
    30 May 2022
    हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में मनरेगा मज़दूरों को पिछले छह महीने से वेतन नहीं मिल पाया है। पूरे  ज़िले में यही स्थिति है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License