NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
चुनाव 2022
विधानसभा चुनाव
भारत
राजनीति
यूपी चुनाव: पश्चिम से चली बदलाव की हवा के पूर्वांचल में आंधी में तब्दील होने के आसार
वैसे तो हर इलाके की और हर फेज के चुनाव की अपनी विशिष्ठतायें हैं, लेकिन सच यह है कि इस चुनाव में-किसानों की तबाही, बेरोजगारी, महंगाई, सामाजिक न्याय, बुलडोजर राज का आतंक- कुछ ऐसे कॉमन मुद्दे उभर गए हैं जो पूरे चुनाव पर हावी हैं और उसे एक uniform pattern दे रहे हैं।
लाल बहादुर सिंह
02 Mar 2022
akhilesh yogi

तीन मार्च को 6वें चरण का मतदान पूर्वांचल के बलरामपुर से लेकर बलिया तक जिन 57 सीटों पर होने जा रहा है, उनमें पहले के नुकसान की भरपाई तो दूर, फासला और बढ़ने ही वाला है। इसी चरण में योगी जी की गोरखपुर सीट भी शामिल है। 

इसके पूर्व 27 फरवरी को भाजपा के सम्भवतः सबसे मजबूत गढ़ में 5वें चरण का मतदान सम्पन्न हो गया। लेकिन तमाम इलाकों से आ रही रपटों ने पार्टी नेताओं की नींद उड़ा दी है। ऐसा लगता है कि इस चरण की सबसे प्रतिष्ठापूर्ण अयोध्या सीट तथा उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या की सिराथू समेत पूरे इलाके में झाड़ू लग गया है। वैसे तो अब तक सम्पन्न हुए सभी चरणों में पार्टी को क्षति हुई है, लेकिन लग रहा है जैसे competition हो गया है कि किस चरण में गिरावट सबसे ज्यादा होती है। अवध में इस disastrous performance के साथ ही भाजपा की सत्ता में वापसी की उम्मीदें करीब करीब खत्म हो गयी हैं। 

3 मार्च को होने जा रहे गोरखनाथ मठ के इर्दगिर्द का 10 जिलों का इलाका अपनी खास सामाजिक संरचना (यहां भाजपा के परम्परागत सामाजिक आधार सवर्ण समुदाय का concentration पूरे प्रदेश में अधिकतम है) और भाजपा के पक्ष में 2014 से चली आ रही सोशल इंजीनियरिंग के चलते चुनाव की शुरूआत तक भाजपा के बेहद मजबूत और सपा-गठबंधन के सम्भवतः सबसे कमजोर इलाकों में था। यहां अम्बेडकरनगर में बसपा सबसे बड़ी ताकत हुआ करती थी। लेकिन चुनाव जैसे जैसे आगे बढ़ा, परिस्थितियां अब drastically बदल चुकी हैं।

इस इलाके का हृदयस्थल गोरखपुर, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और BHU के बाद पूर्वांचल में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र है। UP के इस पूरे अंचल के साथ ही, पश्चिमी बिहार तक से आने वाले छात्र बड़ी तादाद में यहां रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। जाहिर है नौकरियों में भर्ती का सवाल यहां युवाओं के लिए बड़ा प्रश्न है। पिछले दिनों इसी इलाके का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें छात्र " ठोंक दो " फेम के योगी जी से  करीब करीब हूट करने के अंदाज़ में पूछ रहे थे, ' हे बाबा भरतिया कब आयी हो? "। कुछ ही दिनों पहले तक योगी से इस तरह सवाल की कल्पना भी नही की जा सकती थी। उससे ही यह संकेत मिल गया था कि रोजगार का सवाल इस चुनाव में बड़ा एजेंडा बनने जा रहा है। चुनाव-प्रचार के दौरान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह से लेकर तमाम भाजपा नेताओं को भर्ती, नौकरियों, आरक्षण आदि सवालों पर युवाओं के तीखे आक्रोश का सामना करना पड़ा है। 

गोरखपुर को छोड़ दिया जाय तो UP के पूर्वोत्तर छोर का यह पूरा इलाका मूलतः खेती-किसानी का इलाका है, जो एक दौर में पश्चिम व तराई के बाद गन्ना किसानों की प्रमुख बेल्ट था और अतीत में उनकी अनगिनत लड़ाइयों का साक्षी रहा है। लेकिन इस इलाके के किसानों की जो एकमात्र नगदी फसल (cash crop) थी वह भी सरकारों की किसान विरोधी नीतियों की भेंट चढ़ गई। इस इलाके की 28 में से 16 चीनी मिलें बंद हो गईं। गन्ना किसान कम कीमत और बकाया का संकट अलग से झेल रहे हैं। ऊपर से खेतों पर छुट्टा जानवरों का कब्जा हो गया है जिससे किसान हलकान हैं।

स्वाभाविक रूप से दिल्ली बॉर्डर पर चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन की सबसे मुखर अनुगूंज पूर्वांचल में इसी इलाके में रही। आंदोलन के दौरान बस्ती से लेकर बलिया तक किसान नेता राकेश टिकैत की रैलियाँ हुई थीं। और चुनाव के दौरान इस अंचल के सभी केंद्रों पर ताबड़तोड़ प्रेसवार्ता करके किसान नेता राकेश टिकैत, योगेन्द्र यादव, हन्नान मौला भाजपा को सबक सिखाने का अपना संदेश किसानों तक पहुंचा रहे हैं।

जाहिर है किसानों की तबाही और नौजवानों की बेरोजगारी का मुद्दा इस चरण में भी छाया रहेगा।

पिछले चुनावों में भाजपा के meteoric rise के पीछे एक प्रमुख कारक सोशल इंजीनियरिंग थी- जो मोदी से उम्मीदों, हिंदुत्व और सत्ता में भागेदारी के व्यामोह से गढ़ी गयी थी। लेकिन योगी ने जिस तरह प्रतिशोध व पक्षपात पूर्ण निरंकुश शासन चलाया उसने 2014 से 2017 और 19 तक के उस खास political conjuncture पर बेहद कामयाब रही सोशल इंजीनियरिंग की धज्जियां उड़ा दीं। उसने न सिर्फ गैर-यादव पिछड़ों, अतिपिछड़ों और गैर-जाटव दलितों की (यहां तक कि यादवों और जाटवों के कुछ हिस्सों की भी) भाजपा के पक्ष में गोलबंदी सम्भव बनाया था, बल्कि ब्राह्मण और राजपूत पॉवर-ग्रुप्स की गोरखपुर अंचल  की कई दशकों की खूनी लड़ाइयों की साक्षी रही बहुचर्चित सामाजिक-राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता (जिसका एक सिरा गोरखनाथ मठ से जुड़ा रहा है) भी तिरोहित हो गयी थी। 

विपक्ष को योगी जी का आभारी होना चाहिए कि उनके शासन के फलस्वरूप इस चुनाव में वे सारी फाल्ट-लाइन्स फिर उभर कर आ गयी हैं। न सिर्फ अधिकांश अति पिछड़े-दलित पॉवर ग्रुप्स भाजपा से अलग होकर सपा-गठबंधन से जुड़ गए हैं बल्कि ब्राह्मण पॉवर ग्रुप्स का ताकतवर हिस्सा भी योगी-भाजपा के खिलाफ खड़ा हो गया है। जाहिर है इसका उन्हें जबरदस्त खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

भाजपा के लिए स्थिति इतनी चुनौती पूर्ण और हताश करने वाली है कि मोदी जी गोधरा से लेकर अबतक की अपनी करिश्माई सफलता के सारे नुस्खों को एक एक कर आज़मा रहे है। लेकिन आज के नये हालात में, जिन्हें निर्मित करने में उनका खुद का योगदान ही अधिक है, वे पुराने नुस्खे बिल्कुल बेअसर साबित हो रहे हैं। वे साइकिल से जोड़कर आतंकवाद का हौवा खड़ा कर रहे हैं, बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक की याद दिला रहे हैं, " पंजाब से बच कर निकल आने "  के बाद विपक्षियों द्वारा उनकी ( मोदी जी की )कथित  " मृत्यु कामना " को लेकर mercy appeal कर रहे हैं।  और वे चाहते हैं कि सब लोग एक बार फिर इन्हें ही याद करके वोट दे दें।

वे अतीत के सारे प्रेतों का आह्वान कर रहे हैं, लेकिन अफसोस, अब उनमें से कोई उनकी मदद नहीं कर पा रहा, क्योंकि वक्त बदल चुका है, हालात बदल चुके हैं।  हेराक्लाइटस कि ढायी हजार साल पुरानी वह अमर उक्ति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, "आप एक ही नदी में दो बार नहीं कूद सकते।" 

दरअसल, आज कुछ और ही सवाल जनता के दिल-दिमाग को मथ रहे हैं, जिनका मोदी के पास कोई जवाब नहीं है, यह लोग समझ चुके हैं।

पहले जो मुट्ठी बंद थी वह खुल चुकी है और रायता पूरी तरह फैल चुका है। अधिकांश लोगों को मोदी से अब कोई उम्मीद नहीं बची है।

हर मोर्चे पर सरकार की विफलताएं इतनी विराट हैं कि वे याद कुछ और दिलाना चाह रहे हैं और लोगों को याद कुछ और आ रहा है। वे "मुफ्त टीके"  से लोगों की  " जान बचाने के लिए " वाहवाही और वोट चाह रहे हैं, पर लोगों को सरकार की बदइंतजामी से मरे अपने प्रियजनों की, गंगा में बहती लाशों की, लॉक डाउन में पैदल घिसटते घरों को लौटते, रेल की पटरियों पर कटते मजदूरों की याद आ जा रही है। 

वे लोगों को यूक्रेन पर रूसी हमले के बहाने पाकिस्तान में घुस कर मारने की अपनी वीरता की याद दिलाते हुए मजबूत नेता की अहमियत समझाना चाह रहे हैं, पर लोग यूक्रेन में फंसे असहाय भारतीय छात्र-छात्राओं के दिल दहला देने वाले विजुअल्स को देखकर हैरान और व्यथित हैं कि जब तकरीब सभी देश समय रहते अपने बच्चों को सुरक्षित वापस ले जा चुके हैं, तब हमारे देश के 20 हजार छात्र छात्राएं वहां बम के धमाकों के बीच बंकरों में रहने, जान जोख़िम में डालकर असुरक्षित पड़ोसी बॉर्डरों की ओर भागने को क्यों मजबूर हैं, जहाँ बच्चियों के अगवा होने तक की खबरें हैं ! 

महाबली मोदी सरकार की चरम संवेदनहीनता, अक्षमता, कूटनीतिक विफलता देख कर लोग दंग हैं! ऊपर से मोदी जी कुछ सौ छात्रों को वापस ले आने के लिए अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे हैं और चाह रहे हैं कि लोग इसके लिए उन्हें वोट दे दें। जबकि लोग वहां असहाय फंसे बच्चों की बेबसी देखकर मोदी सरकार के खिलाफ गुस्से से भरे हुए हैं। क्रूरता और गैर-जिम्मेदारी की पराकाष्ठा यह है कि जब  बच्चों की जान बचाने के लिए पूरी ताकत लगानी चाहिए, तब मोदी चुनाव प्रचार कर रहे हैं और उन्हें उपदेश दे रहे हैं कि छोटे देशों में पढ़ने न जाँय !

वैसे तो हर इलाके की और हर फेज के चुनाव की अपनी विशिष्ठतायें हैं, लेकिन सच यह है कि इस चुनाव में-किसानों की तबाही, बेरोजगारी, महंगाई, सामाजिक न्याय, बुलडोजर राज का आतंक- कुछ ऐसे कॉमन मुद्दे उभर गए हैं जो पूरे चुनाव पर हावी हैं और उसे एक uniform pattern दे रहे हैं। जाहिर है इसी की अभिव्यक्ति चुनाव नतीजों में भी होनी है। 

पहले चरण से बदलाव की जो पछुआ बयार चली, उसने पूरे प्रदेश को अपने आगोश में ले लिया है, वह निरंतर तेज होती जा रही है और 6वें, 7वें चरण तक आजमगढ़ और मोदी जी के बनारस मंडल तक पहुंचते पहुंचते उसके आँधी में बदल जाने के पूरे आसार हैं जो मोदी-योगी की डबल इंजन सरकार को उखाड़ कर ले जाएगी। 

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

UttarPradesh
UP Assembly Elections 2022
UP Polls 2022
Purvanchal
ukraine
Russia-Ukraine crisis
Narendra modi
Indian students stuck in ukraine

Related Stories

ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रीय पार्टी के दर्ज़े के पास पहुँची आप पार्टी से लेकर मोदी की ‘भगवा टोपी’ तक

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस से लेकर पंजाब के नए राजनीतिक युग तक

BJP से हार के बाद बढ़ी Akhilesh और Priyanka की चुनौती !

यूपी चुनाव : पूर्वांचल में हर दांव रहा नाकाम, न गठबंधन-न गोलबंदी आया काम !

कार्टून क्लिक: महंगाई-बेरोज़गारी पर हावी रहा लाभार्थी कार्ड

यूपी चुनाव: नतीजे जो भी आयें, चुनाव के दौरान उभरे मुद्दे अपने समाधान के लिए दस्तक देते रहेंगे

5 राज्यों की जंग: ज़मीनी हक़ीक़त, रिपोर्टर्स का EXIT POLL

उत्तर प्रदेश का चुनाव कौन जीत रहा है? एक अहम पड़ताल!

यूपी चुनावः सत्ता की आखिरी जंग में बीजेपी पर भारी पड़ी समाजवादी पार्टी

यूपी का रण: आख़िरी चरण में भी नहीं दिखा उत्साह, मोदी का बनारस और अखिलेश का आज़मगढ़ रहे काफ़ी सुस्त


बाकी खबरें

  • Delhi High Court
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: तुगलकाबाद के सांसी कैंप की बेदखली के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने दी राहत
    29 Jan 2022
    दिल्ली हाईकोर्ट ने 1 फरवरी तक सांसी कैंप को प्रोटेक्शन देकर राहत प्रदान की। रेलवे प्रशासन ने दिल्ली हाईकोर्ट में सांसी कैंप के हरियाणा में स्थित होने का मुद्दा उठाया किंतु कल हुई बहस में रेलवे ने…
  • Villagers in Odisha
    पीपल्स डिस्पैच
    ओडिशा में जिंदल इस्पात संयंत्र के ख़िलाफ़ संघर्ष में उतरे लोग
    29 Jan 2022
    पिछले दो महीनों से, ओडिशा के ढिंकिया गांव के लोग 4000 एकड़ जमीन जिंदल स्टील वर्क्स की एक स्टील परियोजना को दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। उनका दावा है कि यह परियोजना यहां के 40,000 ग्रामवासियों की…
  • Labour
    दित्सा भट्टाचार्य
    जलवायु परिवर्तन के कारण भारत ने गंवाए 259 अरब श्रम घंटे- स्टडी
    29 Jan 2022
    खुले में कामकाज करने वाली कामकाजी उम्र की आबादी के हिस्से में श्रम हानि का प्रतिशत सबसे अधिक दक्षिण, पूर्व एवं दक्षिण पूर्व एशिया में है, जहाँ बड़ी संख्या में कामकाजी उम्र के लोग कृषि क्षेत्र में…
  • Uttarakhand
    सत्यम कुमार
    उत्तराखंड : नदियों का दोहन और बढ़ता अवैध ख़नन, चुनावों में बना बड़ा मुद्दा
    29 Jan 2022
    नदियों में होने वाला अवैज्ञानिक और अवैध खनन प्रकृति के साथ-साथ राज्य के खजाने को भी दो तरफ़ा नुकसान पहुंचा रहा है, पहला अवैध खनन के चलते खनन का सही मूल्य पूर्ण रूप से राज्य सरकार के ख़ज़ाने तक नहीं…
  • sbi
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट/भाषा
    DCW का SBI को नोटिस, गर्भवती महिलाओं से संबंधित रोजगार दिशा-निर्देश वापस लेने की मांग
    29 Jan 2022
    एसबीआई ने नयी भर्तियों या पदोन्नत लोगों के लिए अपने नवीनतम मेडिकल फिटनेस दिशानिर्देशों में कहा कि तीन महीने से अधिक अवधि की गर्भवती महिला उम्मीदवारों को ‘‘अस्थायी रूप से अयोग्य’’ माना जाएगा।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License