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उत्तराखंड: तेल की बढ़ती कीमतों से बढ़े किराये के कारण छात्र कॉलेज छोड़ने को मजबूर
उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में उच्च शिक्षा एक बड़ा मुद्दा रहा है, यहां उच्च शिक्षा के लिए बहुत ही सीमित विकल्प रहे हैं। दूर-दूर से छात्र कॉलेज में आते हैं, ऐसे में लगातार किराये में होने वाली वृद्धि छात्रों को प्रभावित करती है।
सत्यम कुमार
12 Apr 2022
school
अनुसुया प्रसाद बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर विद्यालय अगस्त्यमुनि रुद्रप्रयाग

“मैं बीएड करने के बाद टीचर बनना चाहता हूं, लेकिन अभी के हालत को देख कर ऐसा लगता है कि मेरा यह सपना कहीं सपना बनकर ही न रह जाये”, यह कहना है उत्तराखंड राज्य से रुद्रप्रयाग जिले में ग्राम सभा मैखंडा के रहने वाले नवदीप का। 

नवदीप आगे बताते हैं कि, “हाल ही में मैंने अपनी बीए की पढ़ाई अनुसुया प्रसाद बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर विद्यालय अगस्त्यमुनि से पूर्ण की है और अब मैं बीएड करना चाहता हूं, जिसके लिए मेरे पास अनुसुया प्रसाद बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर विद्यालय अगस्त्यमुनि ही एक मात्र विकल्प है, क्योंकि जिले के किसी दूसरे कॉलेज में बीएड सुविधा उपलब्ध नहीं है। लेकिन यहाँ समस्या यह है कि कॉलेज के हॉस्टल में बहुत ही कम सीट हैं, जिसके कारण हॉस्टल मिलने की उम्मीद बहुत ही कम होती है। दूसरा विकल्प मेरे पास है कि मैं अगस्त्यमुनि में किराये का कमरा लेकर रहूं, लेकिन आज मंहगाई के इस दौर में किराये के कमरे पर रहने का खर्च बहुत ज़्यादा है, और मेरे पिताजी एक दिहाड़ी मजदूर हैं, जो मुश्किल से ही एक दिन में 500 रुपये कमा पाते हैं और ऐसा भी जरुरी नहीं है कि हर रोज उनको काम मिल पाए, इतनी कम आय में घर के खर्चे सही से पूरे नहीं हो पाते हैं, ऐसे में मेरे लिए अलग से रूम का खर्च निकाल पाना तो नामुमकिन है।”

नवदीप आगे कहते हैं, “अब मेरे पास आखिरी विकल्प यही है कि मैं हर रोज अपने घर से ही कॉलेज जाऊँ जैसा कि पहले करता था, मेरी बीए की पढ़ाई के समय कोरोना काल के चलते कॉलेज अधिकांश समय बंद ही रहा है और आज जब कॉलेज फिर से खुला है तो मेरे गांव से कॉलेज तक का किराया 150 रुपये हो चुका है, मतलब अगर हम को कॉलेज जाना है तो आने जाने के लिए 300 रुपये प्रतिदिन देने होंगे जो हमारे लिए बहुत ही मुश्किल है। टैक्सी वाले को किराया कम करने के लिए कहते हैं तो वह कहते हैं कि हम लोग क्या कर सकते हैं, जब तेल ही इतना महंगा हो चूका है। हमारे गांव के आस-पास के गांवों में ऐसे सैकड़ों परिवार हैं, जिनकी आय का मुख्य स्रोत दिहाड़ी मजदूरी है और वह भी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। परंतु आज इस बढ़ती मंहगाई के कारण ऐसे परिवारों के सामने अपने बच्चों को पढ़ाने की समस्या खड़ी हो चुकी है। इसलिए हम सभी छात्रों की सरकार से विनती है कि कृपया हमारी इस समस्या की ओर ध्यान दें और छात्रों के कॉलेज आने-जाने के लिए फ्री बस की सुविधा उपलब्ध कराई जाए जिससे कि मेरे जैसे सैकड़ों अपने सपनों को पूरा कर पाएं।”  

पीजी की पढ़ाई के लिए सिमित विकल्प 

आस-पास के गांव से  पैदल अगस्त्यमुनि कॉलेज जाती छात्रा 

उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में कुल चार राजकीय डिग्री कॉलेज हैं, जिसमें राजकीय डिग्री कॉलेज रुद्रप्रयाग, जखोली और गुप्तकाशी स्नातक स्तर के कॉलेज हैं। इमैन से केवल अनुसुया प्रसाद बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर विद्यालय में ही स्नातकोत्तर की पढ़ाई उपलब्ध है। यदि रुद्रप्रयाग जिले में रहने वाले किसी छात्र को स्नातकोत्तर की पढ़ाई करनी है, तो उसके पास दो ही विकल्प होते हैं, वह अनुसुया प्रसाद बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर विद्यालय अगस्त्यमुनि में प्रवेश ले या फिर जिले के बहार किसी दूसरे विद्यालय में प्रवेश ले। 

आपको बता दें कि डिपार्टमेंट ऑफ़ हायर एजुकेशन उत्तराखंड के अनुसार ऐपीबी गवर्नमेंट पीजी कॉलेज अगस्त्यमुनि में छात्रों की कुल संख्या 2498 है, जबकि कॉलेज में उपलब्ध हॉस्टल की सुविधा को देखें तो लड़कों के लिए 60 और लड़कियों के लिए मात्र 30 बेड ही उपलब्ध हैं। यदि 90 छात्रों को हॉस्टल मिल भी जाता है, तब भी 2408 छात्रों को कॉलेज के बाहर रहकर ही अपनी पढाई को पूर्ण करना पड़ता है और ऐपीबी गवर्नमेंट पीजी कॉलेज के पास अपनी कोई बस की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। रुद्रप्रयाग जिले में कोई दूसरा पीजी कॉलेज नहीं होने के कारण अगस्त्यमुनि पीजी कॉलेज के ऊपर छात्रों की निर्भरता भी काफी बढ़ जाती है, जिसके कारण काफ़ी दूर से भी छात्र अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई को पूर्ण करने के लिए अगस्त्यमुनि पीजी कॉलेज आते हैं।

आस पास के गांव से  पैदल चलकर अगस्त्यमुनि कॉलेज जाती छात्रा 

क्या चाहते हैं छात्र 

ऐपीबी राजकीय स्नातकोत्तर विद्यालय अगस्त्यमुनि में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा रचना बताती हैं कि हमको कॉलेज आने-जाने में तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 

वे आगे कहती हैं, “उत्तराखंड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन की कुछ बसे सोनप्रयाग से हमारे कॉलेज की ओर जाती है, लेकिन इन बसों का समय हमारे कॉलेज के समय से मेल नहीं खाता है। इसके अतरिक्त टिहरी गढ़वाल मोटर ऑनर कारपोरेशन की भी इक्की-दुक्की बसें हैं, जो गुप्तकांशी तक तो आसानी से मिल जाती हैं, लेकिन उसके आगे समस्या होती है। टीजीएमओ और यूटीसी की बसों में किराया थोड़ा कम है, लेकिन यदि हम टीजीएमओ और यूटीसी की बसों से कॉलेज जाते हैं, तो कॉलेज के लिये लेट हो जाते हैं या फिर कॉलेज से वापिस आते वक़्त घर पहुंचने में भी देर हो जाती है। 

तेल के बढ़ते दाम और महंगाई से परेशान होकर रचना आगे कहती हैं, “टैक्सी थोड़े -थोड़े समय पर आती-जाती रहती हैं, लेकिन आज टैक्सी का किराया बहुत बढ़ गया है, जिसके कारण हम सभी छात्रों को कॉलेज आने-जाने में बहुत समस्या आ रही है। अगर समस्या इसी प्रकार बढ़ती रही, तो हो सकता है कि हमारे गांव की कुछ लड़कियों को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़े, क्योंकि बढ़ती महंगाई और कम आमदनी के कारण हमारे परिवार वालों को अगर अपने लड़के और लड़की में से किसी एक की पढ़ाई के साथ समझौता करना पड़ा, तो सबसे पहले लड़कियों का ही नंबर आता है। इसलिए हमारी राज्य सरकार को हमारी समस्या की ओर ध्यान देते हुए जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान करना चाहिए।” 

मैखंडा गांव की ही रहने वाली और रचना की सहपाठी दिव्या बताती हैं कि, “बढ़े किराये के साथ-साथ हम लोगों को यात्रा सीजन में कॉलेज आने-जाने में और भी ज्यादा समस्या होती है, क्योंकि यात्रियों की भीड़ ज़्यादा होने के कारण हम लोगों को सवारी वाले जल्दी से बैठाते भी नहीं हैं, जिसके कारण कॉलेज से घर आने में हमेशा देर हो जाती है। लेकिन अगर हमारे लिए अलग से बस की सुविधा मिल जाये तो हमारी ये समस्यएं दूर हो जायेंगी और हमारे गांव की प्रत्येक लड़की अपनी उच्चशिक्षा को पूरा कर पायेगी।”

शिक्षा का मुद्दा उत्तराखंड राज्य आंदोलन की मुख्य मांगों में से एक रहा है। लेकिन राज्य गठन के 22 साल बाद भी दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों के गांव में रहने वाले छात्रों के लिए शिक्षा ग्रहण करना आज भी एक मुश्किल कार्य है। आज भी संसाधनों के आभाव के कारण छात्रों को पढ़ाई के लिए प्रतिदिन तमाम समस्याओं का सामना करना पडता है। अपनी इस आपबीती को साझा करते हुए ऐपीबी राजकीय स्नातकोत्तर विद्यालय अगस्त्यमुनि से अपनी पढ़ाई पूर्ण कर चुके भरत मैखंडी बताते हैं कि ऐपीबी राजकीय स्नातकोत्तर विद्यालय अगस्त्यमुनि में हमेशा ही छात्रों को आने-जाने में समस्या का सामना करना पड़ा है। 

भरत बताते हैं, “जब मैं कॉलेज में था, तब हमारे द्वारा कई बार कॉलेज प्रशासन से एक बस की मांग की गयी थी। लेकिन कॉलेज की ओर से किसी भी प्रकार की बस सेवा छात्रों को नहीं मिली। लेकिन फिर भी तब टैक्सियों में किराया इतना मंहगा नहीं था, तो छात्र अपना-अपना किराया लगाकर कॉलेज आते थे। लेकिन अगर आज की बात करें तो हमारे गांव से 150 रुपये एक ओर का किराया है और जो छात्र हमारे गांव से भी और आगे से आते हैं, उन छात्रों का किराया तो और भी ज़्यादा है। आज जहां एक ओर मंहगाई आसमान छू रही है, वहीं हमारे गांव मैखंडा में रहने वाले लोगों की आय के साधन सीमित हैं, ये लोग आय के लिए चारधाम यात्रा के सीजन पर ही निर्भर रहते हैं। चारधाम यात्रा के सीज़न में जो कमाई होती है उससे ही सालभर अपने परिवार का पेट पालते हैं। हाँ कभी कभी ऐसा भी होता है कि गांव में या सड़क पर किसी का मकान या दुकान का निर्माण कार्य चल रहा हो तो उसमें मजदूरी मिल जाती है। मंहगाई तो बढ़ी है, लेकिन यहाँ के लोगों की आय नहीं, ऐसे में अपने बच्चों को कॉलेज भेजने की समस्या हमारे गांव के परिवारों के सामने हैं, जिसके बारे में सरकार को जरूर सोचना चाहिए।” 

अगस्त्यमुनि कॉलेज का छात्रावास 

यूटीसी की बसों में उत्तराखंड सरकार के द्वारा छात्राओं के लिए किराए में 50 प्रतिशत की छूट और किसी भी व्यक्ति के द्वारा पास बनवाने पर भी किराये में 50 प्रतिशत की छूट तो दी गयी है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में यूटीसी की बसों की संख्या बहुत ही कम है। 

स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया, उत्तराखंड राज्य के सचिव, हिमांशु चौहान बताते हैं कि सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में बसों की संख्या और भी कम हो जाती है, जिसके कारण पहाड़ी क्षेत्रों में यूटीसी के द्वारा छात्र-छात्राओं को मिलने वाली छूट का लाभ यहाँ के विद्यार्थी नहीं उठा पाते हैं। सरकारी बसों की संख्या के कम होने के कारण पहाड़ में रहने वाले छात्रों के लिए टैक्सी और प्राइवेट बसे ही यातायात के आसान विकल्प हैं। लेकिन तेल की बढ़ती क़ीमतों ने इस विकल्प को भी छात्रों के लिए मुश्किल बना दिया है। 

हिमांशु चौहान आगे कहते हैं कि, “राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि राज्य के प्रत्येक युवा की पहुंच शिक्षा तक होनी चाहिए, चाहे वह गरीब हो या अमीर, शिक्षा पर सबका समान अधिकार है। इसलिए सरकार को जल्द से जल्द इस ओर ध्यान देना चाहिए और अगस्त्यमुनि कॉलेज के छात्रों के लिए अलग से बस सुविधा उपलब्ध कराई जाए या फिर इस रूट पर यूटीसी की बसों की संख्या बढ़ाकर छात्राओं के लिए किराया फ्री किया जाए।”

उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में उच्च शिक्षा एक बड़ा मुद्दा रहा है, यहां उच्च शिक्षा के लिए बहुत ही सीमित विकल्प रहे हैं। दूर-दूर से छात्र कॉलेज में आते हैं, ऐसे में लगातार किराये में होने वाली वृद्धि छात्रों को प्रभावित करती हैं। इस समस्या के समाधान के लिए कॉलेज द्वारा बस सुविधा का होना बहुत ही अच्छा विकल्प है। सरकार और कॉलेज प्रशासन को इस ओर जरूर ध्यान देना चाहिए। 

इस विषय पर जब हमने ऐपीबी राजकीय स्नातकोत्तर विद्यालय अगस्त्यमुनि की राय जानने के लिए कॉलेज प्रशासन से संपर्क किया। लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाने के कारण एक मेल कॉलेज को भेज दिया गया है, कोई भी जानकारी मिलने पर आप सभी को अवगत करा दिया जायेगा।

लेखक देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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