NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
प्रशांत भूषण व अन्य बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कर्मियों के पक्ष में खड़े हुए लेखक और सांस्कृतिक संगठन
“हम सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन एकजुट होकर भीमा-कोरेगाँव और दिल्ली दंगों के नाम पर गिरफ़्तार किये गए सभी लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों और मानवाधिकार-कर्मियों की रिहाई की माँग करते हैं। हम प्रशांत भूषण के बारे में आला अदालत के फ़ैसले को न्यायसंगत मानने से इनकार करते हैं।”
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
18 Aug 2020
प्रशांत भूषण

जन संस्कृति मंच, प्रगतिशील लेखक संघ, दलित लेखक संघ, प्रतिरोध का सिनेमा, इप्टा, संगवारी,  न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव और जनवादी लेखक संघ ने प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी क़रार दिए जाने तथा भीमा-कोरेगाँव और दिल्ली दंगों के मामलों में बुद्धिजीवियों-मानवाधिकारकर्मियों को फंसाये जाने के विरोध में यह साझा बयान जारी किया है।

बयान इस प्रकार है-

भारतीय लोकतंत्र का संकट लगातार गहराता जा रहा है। अभिव्यक्ति की आज़ादी और वाजिब माँगों के लिए चलने वाले संघर्ष का जैसा दमन मौजूदा निज़ाम में हो रहा है, उसकी मिसाल आज़ाद भारत के इतिहास में ढूँढे नहीं मिलेगी। सबसे ताज़ा उदाहरण स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया जाना है। यह विचारणीय है कि फ़ैसले में उन्हें भारतीय लोकतंत्र के जिस “महत्त्वपूर्ण स्तम्भ की बुनियाद को अस्थिर” करने के प्रयास का दोषी पाया गया है, उसकी अस्थिरता के मायने क्या हैं और उसके वास्तविक कारक कौन-से हैं/हो सकते हैं! पर यह जितना भी विचारणीय हो, सवाल है कि क्या आप विचार कर भी सकते हैं?

इस तरह के विचार-विमर्श की गुंजाइश/स्वतंत्रता/अधिकार को बहुत क्षीण किया जा चुका है और ऐसा जान पड़ता है कि जिनके ऊपर ‘रीज़नेबल रेस्ट्रिक्शन्स’ के दायरे में अभिव्यक्ति की आज़ादी को सुनिश्चित करने का दारोमदार है, वे खुद आगे बढ़कर उस आज़ादी का दमन कर रहे हैं। पिछले कुछ समय में दो घटनाओं को बहाना बनाकर सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार-कर्मियों और लेखकों-बुद्धिजीवियों की गिरफ़्तारी, या तफ़्तीश के नाम पर उत्पीड़न के सिलसिले ने जो गति पकड़ी है, वह बेहद चिंताजनक है। भीमा-कोरेगाँव मामले और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों के असली अपराधी बेख़ौफ़ घूम रहे हैं जबकि इन्हीं मामलों में फ़र्ज़ी तरीक़े से बड़ी संख्या में सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। केंद्र के मातहत काम करने वाली राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) और दिल्ली पुलिस इन मामलों में पूरी बेशर्मी से अपनी पक्षधर भूमिका निभा रही हैं। ऐसा लगता है कि नियंत्रण एवं संतुलन के सारे लोकतांत्रिक सरंजाम ध्वस्त हो चुके हैं।

इधर बीबीसी और कारवाँ पर छपी कई रपटों ने यह साबित कर दिया है कि भीमा-कोरेगाँव और दिल्ली दंगों की जांच न केवल पक्षपातपूर्ण तरीक़े से चल रही है, बल्कि असली अपराधियों को बचाने और सरकारी नीतियों के आलोचक कर्मकर्ताओं को फँसाने के लिए निहायत फ़र्ज़ी कहानियाँ भी बनाई जा रही हैं। जैसे, बकौल बीबीसी, दिल्ली पुलिस की बनाई एक कहानी यह कहती है कि दिल्ली दंगों के साज़िशकर्ता उमर ख़ालिद, ताहिर हुसैन और ख़ालिद सैफ़ी ने 8 जनवरी को ही तय कर लिया था कि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के भारत आगमन के समय दिल्ली में दंगे कराये जाएँगे, जबकि ट्रम्प की यात्रा की ख़बर ही सबसे पहले 14 जनवरी को सामने आई थी!

बीते तीन हफ़्तों में ही दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हैनी बाबू की गिरफ़्तारी और प्रो. अपूर्वानंद (हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय), प्रो. पी के विजयन (अंग्रेजी विभाग, हिन्दू कॉलेज) और प्रो. राकेश रंजन (अर्थशास्त्र, श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स) से हुई पूछताछ, जिसमें उन्हें संजीदा मामलों में फँसाने के बहुत मज़बूत इशारे और इरादे पढ़े जा सकते हैं, एनआईए और दिल्ली पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये के ताज़ातरीन उदाहरण हैं।

अल्पसंख्यकों और दलितों का अनवरत जारी दमन-उत्पीड़न, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का असंवैधानिक और जबरिया ख़ात्मा, सीएए और देशव्यापी एनआरसी लाने की कोशिश, पूरे देश पर एकरूपता थोपने की हिन्दुत्ववादी मुहिम, किसानों-मज़दूरों और पूरी मेहनतकश जनता के लिए लगातार बदतर हालत पैदा करने वाली नीतियाँ, और इन सबके ख़िलाफ़ आलोचनात्मक सोच व्यक्त करने वाले चिंतकों-कलाकारों-कार्यकर्त्ताओं का चौतरफ़ा दमन--यह हमारे दौर की पहचान बन गयी है। हम मौजूदा निज़ाम द्वारा पैदा किये गए इन हालात की निंदा करते हैं और यह कहना चाहते हैं कि इस चौहत्तरवें स्वाधीनता दिवस पर हम अपने देश की आज़ादी का यह हश्र होता देख, जश्न के तमाम सरकारी शोर-शराबों के बीच, अज़हद नाख़ुश हैं।

हम सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन एकजुट होकर भीमा-कोरेगाँव और दिल्ली दंगों के नाम पर गिरफ़्तार किये गए सभी लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों और मानवाधिकार-कर्मियों की रिहाई की माँग करते हैं। हम प्रो. अपूर्वानंद, प्रो. पी के विजयन और प्रो. राकेश रंजन को इन मामलों में फँसाने की कोशिशों की निंदा करते हैं। हम प्रशांत भूषण के बारे में आला अदालत के फ़ैसले को न्यायसंगत मानने से इनकार करते हैं और इस सम्बन्ध में आये अनेक क़ानून-विशेषज्ञों की इस राय से अपना इत्तेफाक़ ज़ाहिर करते हैं कि यह फ़ैसला सबसे मूल्यवान मौलिक अधिकार--अभिव्यक्ति के अधिकार--की पूरी तरह से अनदेखी करता है।

prashant bhushan
democracy
Supreme Court
bheema koregaon
Hany Babu
Article 370

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है


बाकी खबरें

  • कैथरीन स्काएर, तारक गुईज़ानी, सौम्या मारजाउक
    अब ट्यूनीशिया के लोकतंत्र को कौन बचाएगा?
    30 Apr 2022
    ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति धीरे-धीरे एक तख़्तापलट को अंजाम दे रहे हैं। कड़े संघर्ष के बाद हासिल किए गए लोकतांत्रिक अधिकारों को वे धीरे-धीरे ध्वस्त कर रहे हैं। अब जब ट्यूनीशिया की अर्थव्यवस्था खस्ता…
  • international news
    न्यूज़क्लिक टीम
    रूस-यूक्रैन संघर्षः जंग ही चाहते हैं जंगखोर और श्रीलंका में विरोध हुआ धारदार
    29 Apr 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार ने पड़ोसी देश श्रीलंका को डुबोने वाली ताकतों-नीतियों के साथ-साथ दोषी सत्ता के खिलाफ छिड़े आंदोलन पर न्यूज़ क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ से चर्चा की।…
  • NEP
    न्यूज़क्लिक टीम
    नई शिक्षा नीति बनाने वालों को शिक्षा की समझ नहीं - अनिता रामपाल
    29 Apr 2022
    नई शिक्षा नीति के अंतर्गत उच्च शिक्षा में कार्यक्रमों का स्वरूप अब स्पष्ट हो चला है. ये साफ़ पता चल रहा है कि शिक्षा में ये बदलाव गरीब छात्रों के लिए हानिकारक है चाहे वो एक समान प्रवेश परीक्षा हो या…
  • abhisar sharma
    न्यूज़क्लिक टीम
    अगर सरकार की नीयत हो तो दंगे रोके जा सकते हैं !
    29 Apr 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस अंक में अभिसार बात कर रहे हैं कि अगर सरकार चाहे तो सांप्रदायिक तनाव को दूर कर एक बेहतर देश का निर्माण किया जा सकता है।
  • दीपक प्रकाश
    कॉमन एंट्रेंस टेस्ट से जितने लाभ नहीं, उतनी उसमें ख़ामियाँ हैं  
    29 Apr 2022
    यूजीसी कॉमन एंट्रेंस टेस्ट पर लगातार जोर दे रहा है, हालाँकि किसी भी हितधारक ने इसकी मांग नहीं की है। इस परीक्षा का मुख्य ज़ोर एनईपी 2020 की महत्ता को कमजोर करता है, रटंत-विद्या को बढ़ावा देता है और…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License