NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार चुनावों में संघ परिवार का घातक गठजोड़
क्या संघ धार्मिक विचारधारा की धर्मान्धता और अल्पसंख्यकों पर हमला करके राजनीतिक समीकरणों को फिर से पुनर्भाषित करना चाहता है।
सुबोध वर्मा
09 Apr 2018
Translated by महेश कुमार
BIHAR

न्यूज़क्लिक द्वारा प्रकाशित बिहार की कई श्रृंखलाओं में स्पष्ट रूप से दिखाया है कि राज्य के नौ जिलों में हाल ही में हुयी सांप्रदायिक हिंसा में राम नवमी को को एक खुनी त्यौहार में बदलने के लिए उसे संवेदनशील इलाकों से भारी मात्रा में हथियार, प्रचार सामग्री, वाहनों और जनशक्ति के साथ निकाला गया था। राज्य मशीनरी अपने हाथों पर हाथ धरे बैठी रही, जबकि सशस्त्र जुलूस साम्प्रदायिक नारे लगाते हुए अल्पसंख्यक इलाकों से अपना रास्ता बनाते हुए निकलते रहे। इससे विवाद पैदा हुआ और फिर बड़े पैमाने पर हिंसा, आगजनी, लूटपाट और हताहतों की संख्या बढ़ी। त्यौहार के लिए बनाई गए और नामित स्थानीय संगठनों ने  इस आग को बढाने में और घी में आग का काम किया।

यह सब अब सार्वजनिक ज्ञान में है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह सांप्रदायिक जहर फैलाने और हिंदू समाज का सैन्यकरण करने के लिए संघ परिवार का सामान्य अभियान है या फिर कोई और तत्काल उद्देश्य है? दोनों ही इसका जवाब है शायद।

भाजपा के लिए एक तात्कालिक उद्देश्य राज्य में राजनीतिक समीकरणों को फिर से पुनर्भाषित करना है। नौ जिलों में जहां सांप्रदायिक हिंसा का सबसे हालिया दौर गुजरा है, वे सात जिले ऐसे थे, जहां अल्पसंख्यक जनसंख्या जिले की कुल आबादी का 7 प्रतिशत और 12 प्रतिशत  के बीच थी। ये जिले हैं: गया, नवादा, औरंगाबाद, कैमूर, समस्तीपुर, मुंगेर और नालंदा।

भाजपा इन सात जिलों को लक्षित करके चल रही है क्योंकि अल्पसंख्यक आबादी को लक्षित करना और बिना किसी विरोध के वहां आतंक फैलाना आसान है। और इसका लाभ - भाजपा की उम्मीद के मुताबिक़ वह बहुमत मतों के एकीकरण को अपने पीछे ले आ पाएगी। यह कैंब्रिज एनालिटिका-ट्रम्प प्रकार की शैतानी रणनीति है लेकिन समाज के लिए गंभीर परिणामों की संभावना भी है।

इन सात जिलों में एक और समानता है नालंदा को छोड़कर, दूसरे छः जिलों में 2014 के चुनावों में बीजेपी या उसके सहयोगी एलजेपी (राम विलास पासवान) ने यहाँ शानदार जीत हासिल की थी। नालंदा को भी वे जीत जाते लेकिन एलजेपी को  जेडी (यू) के 34.9 प्रतिशत मत की तुलना में 33.9 प्रतिशत मत ही मिले। शेष दो जिलों में भागलपुर और सिवान, जहां अल्पसंख्यक जनसंख्या लगभग 18 प्रतिशत है, भाजपा सिवान में जीती लेकिन भागलपुर में हार गई। भागलपुर का नुकसान भाजपा को विशेष रूप सता रहा था क्योंकि इसकी हार का अंतर केवल 9000 मत था जो कुल मतों का लगभग 1 प्रतिशत था।

लेकिन यहां एक बाधा है: 2015 के चुनावों में, लालू यादव की आरजेडी, नीतीश कुमार की जेडी (यू) और कांग्रेस गठबंधन ने, इन जिलों में भाजपा और उसके सहयोगियों का सफाया कर दिया था। इन 9 जिलों के 49 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा ने सिर्फ 12 सीटों पर जीत हासिल की और गठबंधन की 46 सीटों पर जीत हासिल हुई और एक सीट सीपीआई (एमएल) की झोली में गयी, वह भी भाजपा के खिलाफ लड़ रही थी। चुनावी समीकरणों के पूर्ण अंकगणित के कारण यह निश्चित रूप से आंशिक था: कि राजद के साथ जेडी (यू) एक मजबूत बल था। लेकिन यह 2014 में भाजपा की जीत की कमजोरियों को भी दर्शाती है।

2019 के आम चुनावों के आने के साथ, भाजपा फिर से इस पर काम कर इस समीकरण को उलटने की कोशिश कर रही है। इसमें उसने जेडी (यू) को अपने पक्ष में कर एक जीत तो पहले ही हासिल कर ली है। लेकिन यह अपर्याप्त है क्योंकि जेडी (यू) ने भाजपा-विरोधी जनादेश का विश्वासघात किया इसलिए जनता को यह गठबंधन अस्वीकार्य होगा। यह एक कमजोर शक्ति  है भाजपा इसे अपने दम पर चलाने का प्रयास कर रही है। और, ऐसा करने का एकमात्र तरीका उसके पास है और जिस पर उसे पूरी उम्मीद है वह है उसका अकेला हथियार - सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर हिंदू मतों को अपने पीछे लाना - अगले साल उनके लिए यही काम करेगा।

हर तरह की धार्मिकता, सभी तरह का धार्मिक उत्साह, हिंदू पहचान और भगवान राम की पूजा की सभी बात कुछ भी नहीं बल्कि राजनीतिक शक्ति को बनाए रखने का एक घातक रास्ता है। यह सब इसलिए अधिक जरूरी है क्योंकि मोदी का शासन झूठे वादे, अर्थव्यवस्था में असफलता, बढ़ती बेरोज़गारी, अनियंत्रित भ्रष्टाचार आदि देश के लिए एक बड़ी आपदा है। वर्ना देश वासी  सत्ताधारी बीजेपी को सत्ता से बाहर खदेड़ने के लिए तैयार हैं।

तो, अब सवाल यह उठता है: बिहार के लोग इस चुनौती का सामना कैसे करेंगे? क्या वे संघ परिवार द्वारा स्थापित जाल में फसेंगे? या वे इसे पूरी तरह से खारिज कर देंगे। हम इसका जवाब आने वाले हफ्ते में देंगे।

बिहार
बिहार दंगे
बिहार चुनाव
संघ परिवार
बीजेपी
BJP-RSS

Related Stories

लखनऊ विश्वविद्यालय: दलित प्रोफ़ेसर के ख़िलाफ़ मुक़दमा, हमलावरों पर कोई कार्रवाई नहीं!

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

भारत में सामाजिक सुधार और महिलाओं का बौद्धिक विद्रोह

2023 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र तेज़ हुए सांप्रदायिक हमले, लाउडस्पीकर विवाद पर दिल्ली सरकार ने किए हाथ खड़े

कोलकाता : वामपंथी दलों ने जहांगीरपुरी में बुलडोज़र चलने और बढ़ती सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ निकाला मार्च

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी में अतिक्रमण रोधी अभियान पर रोक लगाई, कोर्ट के आदेश के साथ बृंदा करात ने बुल्डोज़र रोके

अब राज ठाकरे के जरिये ‘लाउडस्पीकर’ की राजनीति

जलियांवाला बाग: क्यों बदली जा रही है ‘शहीद-स्थल’ की पहचान

सियासत: दानिश अंसारी के बहाने...


बाकी खबरें

  • सरोजिनी बिष्ट
    विधानसभा घेरने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की आशाएं, जानिये क्या हैं इनके मुद्दे? 
    17 May 2022
    ये आशायें लखनऊ में "उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन- (AICCTU, ऐक्टू) के बैनर तले एकत्रित हुईं थीं।
  • जितेन्द्र कुमार
    बिहार में विकास की जाति क्या है? क्या ख़ास जातियों वाले ज़िलों में ही किया जा रहा विकास? 
    17 May 2022
    बिहार में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है, इसे लगभग हर बार चुनाव के समय दुहराया जाता है: ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का और दरभंगा ठोप का’ (मतलब रोम में पोप का वर्चस्व है, मधेपुरा में यादवों का वर्चस्व है और…
  • असद रिज़वी
    लखनऊः नफ़रत के ख़िलाफ़ प्रेम और सद्भावना का महिलाएं दे रहीं संदेश
    17 May 2022
    एडवा से जुड़ी महिलाएं घर-घर जाकर सांप्रदायिकता और नफ़रत से दूर रहने की लोगों से अपील कर रही हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 43 फ़ीसदी से ज़्यादा नए मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए 
    17 May 2022
    देश में क़रीब एक महीने बाद कोरोना के 2 हज़ार से कम यानी 1,569 नए मामले सामने आए हैं | इसमें से 43 फीसदी से ज्यादा यानी 663 मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए हैं। 
  • एम. के. भद्रकुमार
    श्रीलंका की मौजूदा स्थिति ख़तरे से भरी
    17 May 2022
    यहां ख़तरा इस बात को लेकर है कि जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य सामने आ रहे हैं, उनसे आर्थिक बहाली की संभावनाएं कमज़ोर होंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License