NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
समाज
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
बजट 2019: बेरोज़गारों के लिए कोई आश्वासन है मोदी जी?
एक बजट विशाल बेरोजगारी संकट को हल नहीं कर सकता है। लेकिन निश्चित रूप से एक विचार पेश किया जा सकता है और शुरुआत की जा सकती है।
सुबोध वर्मा
03 Jul 2019
Berojgari

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो वर्षों में 47 लाख नौकरियां चली गई हैं जबकि बेरोज़गारों की संख्या 4.2 करोड़ तक पहुंच गई है। बेरोजगारों की इतनी बड़ी संख्या के अलावा 68% से ज़्यादा (यानी लगभग 2.84 करोड़) 20 से 29 साल की उम्र के बीच के युवा हैं। 2017 और 2019 (दोनों वर्षों में जनवरी से अप्रैल) के बीच इनकी संख्या में लगभग 1.1 करोड़ की वृद्धि हुई है।

इतनी बड़ी संख्या उन अभूतपूर्व नौकरियों के संकटों को लेकर है जो आज भारत झेल रहा है। जैसा कि न्यूज़क्लिक द्वारा पहले रिपोर्ट किया गया है कि अर्थव्यवस्था सुस्त है, विकास दर धीमी हो रही है, विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता आ रही है, संकटग्रस्त कृषि कम वर्षा के कारण शिथिल हो रही है और व्यापार घाटा बढ़ रहा है। इसका मतलब है कि नौकरी पैदा करने के मामले में किसी के द्वारा काम नहीं किया जा रहा है।

सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार नौकरी करने वालों की संख्या 2017 में 40.89 करोड़ से घटकर 2019 में 40.43 करोड़ हो गई है (दोनों वर्ष जनवरी-अप्रैल)। [नीचे दिए चार्ट को देखें] इस आंकड़े से जो स्पष्ट है वह ये कि नौकरी निर्माण के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है यहां तक कि मौजूदा नौकरियां भी समाप्त हो रही हैं। ऐसा स्थिर मांग के साथ हो रहा है, औद्योगिक और सेवा क्षेत्र अपने प्रोफिट मार्जिन को बचाने के लिए कर्मचारियों को निकाल रहे हैं। ऐसा लगता है कि कृषि अतिरिक्त श्रम को अपने क्षेत्र में समाहित करने की सामान्य भूमिका निभा रहा है, हालांकि उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं हुई है।

Berojgari 1.JPG

पिछले पांच वर्षों में मोदी और उनके मंत्रियों ने पूरा समय यह कहते हुए गंवा दिया कि नौकरियां परिवहन, पर्यटन आदि विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ रही हैं। लेकिन बार-बार सरकार के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे सहित विभिन्न सर्वेक्षणों ने इस कोरी कल्पना को खारिज कर दिया है। नीचे दिए गए चार्ट से पता चलता है कि बेरोजगारों की संख्या (जो काम के लिए उपलब्ध है) 2017 में 3.3 करोड़ से 2019 (दोनों वर्ष जनवरी-अप्रैल) में 4.2 करोड़ तक पहुंच गई है।

Berojgari 2.JPG
इन बेरोजगारों की संख्या में युवा दो तिहाई से अधिक हैं। ये युवा इस विशाल आबादी के मुकद्दर हैं। देश की आबादी में युवाओं के इस बड़ी संख्या से कुछ हासिल करने के बजाय मोदी ने अपनी उपयोगी ऊर्जा को बर्बाद किया है। पिछले दो वर्षों में बेरोजगारों की संख्या में 1.1 करोड़ से ज्यादा युवा शामिल हुए हैं। [नीचे दिया गय चार्ट देखें]।
Berojgari 3.JPG

बजट परिकल्पना

प्रधानमंत्री मोदी और उनकी नई वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्य स्पष्ट हैं। चीजों को घुमाने के बजाए सबसे महत्वपूर्ण बात पिछले पांच वर्षों से सीखने की जरुरत है। आखिर क्या गलत हुआ? मुख्य रूप से यह पूरी तरह से मिथ्या परिकल्पना था। उन्होंने सोचा कि वे अधिक विदेशी पूंजी प्राप्त करके रोजगार को बढ़ावा दे सकते हैं (याद कीजिए 'मेक इन इंडिया’!)। यह विफल हो गया क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंद हो रहा था और भारत में निवेश करने के लिए केवल वे लोग इच्छुक थें जिनके पास "हॉट मनी" थे जो आते और जाते थें और केवल शेयर बाजारों में निवेश करते थें। उत्पादक क्षमताओं में नहीं। मोदी एंड कंपनी ने सोचा कि सरकारी क्षेत्र का निवेश कम करके भारत के निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ाने से अधिक रोजगार पैदा हो सकता है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने सोचा कि अगर लोगों को स्किल दिया जाए (स्किल इंडिया को याद करें?) तो उन्हें बस इतना करना था कि वे मार्केट जाएं और अपने मुताबिक नौकरी का चयन करें। यह हास्यास्पद विचार जल्द ही विफल हो गया क्योंकि कोई नए अवसर नहीं थे। उन्होंने सोचा था कि अगर छोटे ऋण (मुद्रा को याद कीजिए?) को एक साथ बांट दिया जाए तो भारत में भारी संख्या में उद्यमी पैदा होंगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि ऋण बहुत ही मामूली किस्म का था और विशेष रूप से मोदी द्वारा नोटबंदी और वस्तु तथा सेवा कर के दोहरे हमलों के बाद किसी भी हाल में इसकी मांग कम थी। उन्होंने सोचा कि सस्ते श्रम तथा कर मुक्त निवेश के वादों के साथ आकर्षित करने वाला शिखर सम्मेलन निवेश को बढ़ावा देगा। वादे पर वादा कर दिया गया लेकिन केवल कुछ ही पूरा हो पाया।

जाहिर है मोदी और उनके थिंक टैंक को आखिरी कार्यकाल में किए गए अज्ञानता को भुला कर नए सिरे से शुरुआत करने की जरूरत है। और सबसे बड़ी बात उन्हें नवउदारवाद के वैचारिक चश्मे से तेजी से छुटकारा पाने की आवश्यकता है जो सार्वजनिक खर्च में रुकावट पैदा करता है।

मोदी जी और सीतारमण जी को सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार विशेषकर विनिर्माण, कृषि और बुनियादी ढाँचे के विस्तार में सार्वजनिक खर्च बढ़ाने की आवश्यकता है। इससे अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर फंड करके अर्थव्यवस्था शुरु करने का प्रभाव पड़ेगा और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने व्यापारी दोस्तों के बजाय आम लोगों के हाथों में पैसा दिया जाए। नई सरकार को अपनी सार्वजनिक उत्पादन प्रणाली के माध्यम से किसानों को उनकी उपज के लिए पारिश्रमिक मूल्य देने और खरीदे गए वस्तुओं को वितरित करने की आवश्यकता है। सरकार को कृषि तथा औद्योगिक श्रमिकों के लिए मजदूरी में वृद्धि करने की भी आवश्यकता है। मांग को बढ़ावा देने के लिए इससे बेहतर कोई तरीका नहीं है जो बदले में उत्पादक क्षमताओं के विस्तार को बढ़ावा देगा और इस तरह रोजगार में वृद्धि होगी। इस दृष्टिकोण के कई दूसरे आयाम हैं जो इस रणनीति के पूरक होंगे।

क्या मोदीजी और उनके सहयोगियों ने देश के लोगों का ध्यान रखते हुए अपनी आर्थिक रणनीति पर पुनर्विचार किया है जैसा कि उन्होंने स्वयं के राष्ट्रवाद के बारे में काफी बात की है? या फिर वे ऐसी नीतियां बनाने जा रहे हैं जो बड़े कॉर्पोरेट्स के लिए रास्ता आसान कर दे? इस बजट में पता चलेगा कि वे कौन से विकल्प का चयन करेंगे।

unemployment
UNEMPLOYMENT IN INDIA
RURAL Unemployment
Educated Unemployed
Unemployment under Modi govt in India
Jobless growth
jobloss
JOB CRISIS
Job-Seekers

Related Stories

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता

हम भारत के लोगों की असली चुनौती आज़ादी के आंदोलन के सपने को बचाने की है

हम भारत के लोग : इंडिया@75 और देश का बदलता माहौल

हम भारत के लोग : हम कहां-से-कहां पहुंच गये हैं

संविधान पर संकट: भारतीयकरण या ब्राह्मणीकरण

हम भारत के लोग:  एक नई विचार श्रृंखला

कैसे भाजपा की डबल इंजन सरकार में बार-बार छले गए नौजवान!

बेरोज़गारी से जूझ रहे भारत को गांधी के रोज़गार से जुड़े विचार पढ़ने चाहिए!

महंगाई और बेरोज़गारी के बीच अर्थव्यवस्था में उछाल का दावा सरकार का एक और पाखंड है

कभी रोज़गार और कमाई के बिंदु से भी आज़ादी के बारे में सोचिए?


बाकी खबरें

  • BJP
    अनिल जैन
    खबरों के आगे-पीछे: अंदरुनी कलह तो भाजपा में भी कम नहीं
    01 May 2022
    राजस्थान में वसुंधरा खेमा उनके चेहरे पर अगला चुनाव लड़ने का दबाव बना रहा है, तो प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया से लेकर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत इसके खिलाफ है। ऐसी ही खींचतान महाराष्ट्र में भी…
  • ipta
    रवि शंकर दुबे
    समाज में सौहार्द की नई अलख जगा रही है इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा
    01 May 2022
    देश में फैली नफ़रत और धार्मिक उन्माद के ख़िलाफ़ भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) मोहब्बत बांटने निकला है। देशभर के गावों और शहरों में घूम कर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन किए जा रहे हैं।
  • प्रेम कुमार
    प्रधानमंत्री जी! पहले 4 करोड़ अंडरट्रायल कैदियों को न्याय जरूरी है! 
    01 May 2022
    4 करोड़ मामले ट्रायल कोर्ट में लंबित हैं तो न्याय व्यवस्था की पोल खुल जाती है। हाईकोर्ट में 40 लाख दीवानी मामले और 16 लाख आपराधिक मामले जुड़कर 56 लाख हो जाते हैं जो लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट की…
  • आज का कार्टून
    दिन-तारीख़ कई, लेकिन सबसे ख़ास एक मई
    01 May 2022
    कार्टूनिस्ट इरफ़ान की नज़र में एक मई का मतलब।
  • राज वाल्मीकि
    ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना
    01 May 2022
    “मालिक हम से दस से बारह घंटे काम लेता है। मशीन पर खड़े होकर काम करना पड़ता है। मेरे घुटनों में दर्द रहने लगा है। आठ घंटे की मजदूरी के आठ-नौ हजार रुपये तनखा देता है। चार घंटे ओवर टाइम करनी पड़ती है तब…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License