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नज़रिया
भारत
राजनीति
हँसी और प्यार ख़तरे में है...भारत की अवधारणा ख़तरे में है
इस चुनाव में भारत का भविष्य दांव पर लगा है। यह चुनाव तय करेगा कि आइडिया के स्तर पर, अवधारणा के स्तर पर भारत के बारे में हमारा जो सपना और आदर्श है- जिसके लिए लंबे समय से वैचारिक और ज़मीनी लड़ाई लड़ी जाती रही है- वह बचेगा या नहीं।
अजय सिंह
08 Apr 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy : ndtv

17वीं लोकसभा के लिए मतदान 11 अप्रैल 2019 से शुरू होगा। यह दौर 19 मई तक चलेगा और नतीजे 23 मई को आयेंगे। इस चुनाव में भारत का भविष्य दांव पर लगा है। यह चुनाव तय करेगा कि आइडिया के स्तर पर, अवधारणा के स्तर पर भारत के बारे में हमारा जो सपना और आदर्श है- जिसके लिए लंबे समय से वैचारिक और ज़मीनी लड़ाई लड़ी जाती रही है- वह बचेगा या नहीं। संक्षेप में भारत ब्राह्मणवादी पितृसत्ता, फ़ासीवाद व विनाश के रास्ते पर और आगे बढ़ेगा, या अपनी आत्मा को बचा पाने में कामयाब होगा?

इस लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र क़रीब 1000 बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों, रंगकर्मियों, फ़िल्मकारों व अन्य संस्कृतिकर्मियों ने जिस बड़े पैमाने पर और संगठित होकर जनता के नाम बयान व अपीलें जारी की हैं, उनसे पता चलता है कि भारत के भविष्य के लिए ख़तरा कितना गंभीर है। इन अपीलों में जनता से कहा गया है कि वह नफ़रत व हिंसा की राजनीति के ख़िलाफ़ और समानता व विविधता वाले भारत के लिए वोट डालें। इनमें कहा गया है कि वोट डालना इसलिए ज़रूरी है कि देश के सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी मिले। हालांकि इन सभी अधिकारों की गारंटी देश के संविधान में की गयी है, इसके बावजूद दिनदहाड़े इनका उल्लंघन आम बात हो गयी है।

बुद्धिजीवियों, लेखकों व संस्कृतिकर्मियों ने कहा है कि तर्कवादियों, लेखकों व कलाकारों को सताया जा रहा है या मार दिया जा रहा है। औरतों, मुसलमानों व अन्य अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और वंचित व ग़रीब लोगों पर मौखिक या शारीरिक हिंसा करने वालों के ख़िलाफ़ कोई कारगर कार्रवाई नहीं की जा रही है। भीड़ की हिंसा और भीड़ द्वारा की गयी हत्या को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। ‘हम चाहते हैं कि यह हालात बदलें।’

कुछ अपीलों में सीधे तौर पर कहा गया है कि इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हराया जाना चाहिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोबारा सत्ता में आने से रोकना चाहिए। इनमें कहा गया है कि भाजपा के संचालक व नियंत्रक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विभाजनकारी हिंदुत्ववादी विचारधारा को- जो पूरी तरह फ़ासीवादी विचारधारा है- शिकस्त देना ज़रूरी है, क्योंकि यह देश को बांटने और बर्बाद कर देने की मुहिम चला रही है।

फ़िल्मकारों, रंगकर्मियों व कलाकारों के एक समूह का कहना है कि आज हमारी हंसी व प्यार ख़तरे में है- हम हंसना व प्यार करना भूल गए हैं। हम दिन-रात ख़ौफ़ व नफ़रत के साये में रहने के लिए अभिशप्त कर दिये गये हैं। ‘हर रोज़, चारों तरफ़, हिंसा-हिंसा-हिंसा का बोलबाला है। इस लोकसभा चुनाव में ख़ौफ़, नफ़रत व हिंसा की ताक़तों को बाहर का रास्ता दिखा देना है।’

इस बार ख़ास बात यह है कि बुद्धिजीवियों, लेखकों व संस्कृतिकर्मियों के अलावा समाज के अन्य जागरूक तबकों और समूहों ने भी अपना-अपना घोषणापत्र या अपील जारी की है। इन घोषणापत्रों और अपीलों में नफ़रत, हिंसा व भेदभाव की हिन्दुत्ववादी राजनीति के ख़िलाफ़ वोट देने की अपील जनता से की गयी है। बेख़ौफ़ मुस्लिम महिलाओं का समूह, सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन, ‘औरतें उट्ठी नहीं तो ज़ुल्म बढ़ता जायेगा’ के नारे के तहत जुटे महिला संगठन, ट्रेड यूनियन संगठन ऐक्टू (AICCTU), जन सरोकार आदि संगठनों व समूहों ने भी इसी संदर्भ में घोषणापत्र या अपीलें जारी की हैं।   

(लेखक वरिष्ठ कवि और संस्कृतिकर्मी हैं।)

2019 आम चुनाव
General elections2019
2019 Lok Sabha Polls
Narendra modi
BJP-RSS
Idea Of India
filmmaker
people's poet
progressive writer
600 theatre artists
Save Democracy
save constitution

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