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साहित्य-संस्कृति
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राजनीति
...बना है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता
"हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे

कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़े-बयाँ और"

उस्ताद शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की 222वीं जयंती पर विशेष
मिर्ज़ा ग़ालिब
27 Dec 2019
mirza ghalib
फोटो साभार : Hindustan Times

उस्ताद शायर मिर्ज़ा असद-उल्लाह ख़ां 'ग़ालिब' की आज 222वीं जयंती है। 27 दिसंबर 1797 को आगरा में उनका जन्म हुआ। आइए पढ़ते हैं उनकी एक मशहूर ग़ज़ल जो आज बेहद मौज़ूँ है :


हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है


रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है


चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन

हमारी जेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है


जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा

कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है


रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी

तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है


बना है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता

वगर्ना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है

mirza ghalib
Mirza Galib
222nd Birth Anniversary
hindi poetry
Urdu poetry
Delhi
agra

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