NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
खेल
भारत
राजनीति
आईपीएल 2021: भ्रम के बुलबुले और दिमाग़ में भूंसे भरे हुए आदमज़ाद
इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के मौजूदा सीज़न को लेकर आख़िर ऐसा क्या है,जिससे ग़ुस्सा आता है ? इसके पीछे ख़ुद यह खेल ही तो नहीं है। यह संवेदना की कमी के साथ-साथ आंख-कान मुंद लेने वाला वह रवैया है,जिसके साथ ज़्यादातर क्रिकेटरों और इसके प्रशासकों ने इस खेल की तरफ़ रुख़ किया है- जैसा कि हम देख रहे हैं कि देश भर में कोविड-19 ने अपने पांव बेतरह पसार लिये हैं और ज़्यादतर लोग दुखी और परेशान हैं। जिस समय लाखों लोग पीड़ित हैं,उस समय पीड़ा की क़ीमत पर इस खेल का मनोरंजन चल रहा है ?
लेस्ली ज़ेवियर
27 Apr 2021
आईपीएल 2021: भ्रम के बुलबुले और दिमाग़ में भूंसे भरे हुए आदमज़ाद
आईपीएल 2021 के चल रहे एक मैच के दौरान किसी स्टेडियम में डिजिटल स्कोरकार्ड पर प्रदर्शित किया जा रहा एक ऐसा संदेश,जो उस बीसीसीआई और उन लीग आयोजकों की सोच के शायद सबसे क़रीबी संदेश है,जो अपने बायोसेक्योर बबल के बाहर के लोगों को ध्यान में रखकर दिखाते आये हैं।

अब अरुण जेटली स्टेडियम के रूप में जाने जाते प्रतिष्ठित क्रिकेट स्थल,दिल्ली के फ़िरोज़ शाह कोटला को पिछले साल मई में प्रवासी मज़दूरों के उन्हें अपने गृह राज्यों का रुख़ करने की अनुमति दिये जाने से पहले एक अस्थायी बसेरे में बदल दिया गया था। जो कुछ  संकट सामने आया था,वह दरअस्ल समय रहते दूरदरर्शिता की कमी का नतीजा था,सरकार के कुप्रबंधन और श्रमिक वर्ग के प्रति उदासीनता से पैदा हुआ एक संकट था। कोटला में हज़ारों लोग अस्थायी शिविर में रुके रहे,अपनी आर्थिक समस्याओं के चलते उस महामारी की आशंका से भयभीत रहे। कुछ ने दिनों और हफ़्तों बाद इसे घर मान लिया था,कई लोग ऐसा नहीं कर पाये थे। दोनों ही तरह के लोगों ने अपनी-अपनी तरह से नुकसान उठाये और ऐसे-ऐसे त्रासदी भोगे,जिनसे बचा जा सकता था। उनका संघर्ष अब भी जारी है।

आज हम जिस तबाही का सामना कर रहे हैं,वह देश के तक़रीबन हर हिस्से में फैली हुई है,वह सचमुच विनाशकारी है। कोविड-19 की इस दूसरी लहर ने हमारे देश पर एक ऐसी ताक़त से चोट की है,जिसके लिए कोई तैयारी नहीं थी और यह संकट बहुत सारे लोगों को लील जायेगा और लाखों लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ पर ऐसा निशान छोड़ देगा,जिसे भुला पाना आसान नहीं होगा। इस तरह के उफ़ान के पीछे के कारण दुखद रूप से एक ही तरह के होते हैं। और जैसे-जैसे मई का महीना नज़दीक आता जा रहा है,कोटला एक बार फिर से तैयार हो रहा है। हालांकि, इस बार इसके तैयार होने का महामारी से कोई लेना-देना नहीं है। यह स्टेडियम 28 अप्रैल से 8 मई तक 2021 के इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के दिल्ली लेग की मेजबानी करेगा,ऐसा लग रहा है,जैसे कि यहां किसी समानांतर ब्रह्मांड में कोई टूर्नामेंट खेला जायेगा। क्रिकेट बोर्ड अपनी इस दुनिया को आईपीएल बबल कहता है। हालात को देखते हुए यह मुनासिब नहीं दिखता है।इसकी शुरुआत उस मुंबई से हुई थी,जो महामारी से उतना ही तबाह है, और चार अन्य शहरों से गुज़रते हुए आईपीएल अहमदाबाद (मोटेरा) स्थित नवनिर्मित नरेंद्र मोदी स्टेडियम में समाप्त होगा।ऐसा होना उचित ही है।बेरुख़ी और पाखंड का अंत एक ऐसे स्टेडियम में होगा,जिसका नाम इस संकट के ज़िम्मेदारों के सरदार के नाम पर रखा गया है।

हालांकि,यहां कोई समानान्तर ब्रह्मांड तो है नहीं। आईपीएल इस देश की उतनी ही बड़ी सचाई है,जितनी कि सत्ता में रह रहे लोगों की चुनावी रैलियां और धार्मिक सभायें हैं। ये सब लॉकडाउन के बीच भी होते रहे। अस्पतालों और आम लोगों के कल्याण के मुक़ाबले मूर्तियों और संसद भवनों के उद्घाटन को प्राथमिकतायें दी जाती रही हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि आईपीएल आयोजकों और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को यह बात पता है कि जिस स्टेडियम में छक्के, चौके और विकेट चटकाये जाने की ख़ुशियां मनायी जायेंगी,उसके बिल्कुल ही पास में अंतिम संस्कार के साथ चितायें जलायी जा रही हैं,कुछ चितायें फुटपाथों पर भी होंगी,क्योंकि श्मशान घाट में मृतकों के शव के लिए जगह बची ही नहीं है।

इस साल यह लीग,और इसके चैंपियन बेशुमार मृतकों के शव पर ट्रॉफी लहराते हुए खड़े होंगे। क्या संवेदनहीन और बड़बोले बीसीसीआई के शीर्ष नेतृत्व को पता है कि इससे इस खेल की छवि हमेशा के लिए किस क़दर धूमिल होगी ? आने वाले दिनों में यह सवाल पूछा जायेगा कि क्रिकेट के साथ-साथ इस खेल पर नियंत्रण रखने वाला वह अमीर और ताक़तवर भारतीय बोर्ड उस समय कहां था,जिनकी अगर पूरी कर्तव्यनिष्ठा या जवाबदेही नहीं थी,तो कम से कम भारत के प्रति इन्हें थोड़े संवेदनशील होने की ज़रूर तो थी ?  ये आसानी से अपनी तिज़ोरी और स्टेडियमों के दरवाज़े एक-एक सांस के लिए संघर्ष कर रहे उन लोगों के लिए खोल सकते थे,जिनका इलाज यहां हो पाता और जो बिना इलाज के फुटपाथ पर मरने के लिए इसलिए अभिशप्त हैं,क्योंकि अस्पताल में बेड नहीं हैं।

लेकिन,इसके बजाय वे फ्रैंचाइज़ी क्रिकेट खेल रहे हैं,उनके बारीक़ी से रचा गया भ्रम का पाखंड सिर्फ एक उदाहरण से स्पष्ट होता है। आईपीएल बायो सिक्योर बबल में हर व्यक्ति हर दो दिन में एक बार आरटी-पीसीआर परीक्षण से गुज़रता है। जिस मुश्किल समय में देश भर के कोविड-19 रोगियों को अपनी जांच करवाने और नतीजे हासिल करने के लिए तीन से सात दिन या उससे भी ज़्यादा ज़्यादा वक़्त तक इंतज़ार करना पड़ता है,वैसे समय में इस तरह की विलासिता सही मायने में किसी गुनाह से कम नहीं है। हम उन रोगियों के बारे में बात कर रहे हैं,जिन्हें दवाओं और परीक्षण की ज़रूरत है या फिर किसी अस्पताल में भर्ती कराने की ज़रूरत है। यह ज़िंदगी और मौत का मामला है।

भारतीय क्रिकेट भ्रम के बुलबुले के इतने मोटे आवरण में लिपटा हुआ है कि उसे शायद आपातकालीन वाहनों के चीख़ते हुए सायरन और बाहर के लोगों के रोने की आवाज़ तक सुनायी नहीं दे रही। क्रिकेट से मुनाफ़ा बनाने वाले लोग इस क़दर अपने आप में खोये हुए हैं कि उन्हें देश को लेकर महसूस किये जाने वाली अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी के प्रति अपनी बेरुख़ी के निहितार्थ भी समझ में नहीं आता है। भारत के एकमात्र व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता,अभिनव बिंद्रा ने इस खेल और इसके खिलाड़ियों की इस बेरुख़ी पर सवाल उठाया है कि आख़िर उन्हें यह भी समझ में नहीं आता कि इस वक़्त की ज़रूरत क्या है।

बिंद्रा ने द इंडियन एक्सप्रेस में छपे अपने कॉलम में लिखा है,"क्रिकेटर्स और अधिकारी सिर्फ अपने बनाये घेरे में नहीं रह सकते हैं, और जो कुछ भी बाहर हो रहा है,उसे लेकर पूरी तरह से बहरे या अंधे भी बने नहीं रह सकते। मैं तो बस यह कल्पना ही कर सकता हूं कि जिस समय आप ये आईपीएल खेल कर रहे हैं,उस समय आपके स्टेडियम के बाहर अस्पताल आती-जाती एम्बुलेंस हैं। मुझे नहीं पता है कि टीवी पर इसका(आईपीएल) कवरेज कैसा है,लेकिन अगर इसे लेकर थोड़ी सी भी कम बातें की जा रही हैं,तो मैं इसकी सराहना करूंगा। मुझे लगता है कि इसे लेकर मनाया जाने वाला उत्सव और आसपास की हर चीज़ कम से कम होनी चाहिए,क्योंकि आपको समाज के प्रति थोड़ा सम्मान तो दिखाना होगा।" यहां असली फ़र्क़ यही है कि बहरे और अंधे लोग यानी संवेदनहीन लोग विकल्प से बाहर उन नुकसानों के साथ नहीं रह पाते।

"अगर हम कुछ करुणा दिखाते हैं,तो यह भाव हमें व्यक्ति और एक राष्ट्र के रूप में ख़ुद को दुरुस्त करने में मदद करेगा। यह प्रक्रिया आसान नहीं है। हम जानते हैं कि महामारी कल ख़त्म नहीं होने जा रही है, लेकिन हम यह नहीं जानते कि इसका अंत भी क्या होगा। इतने सारे लोग अपनी जान गंवा रहे हैं,कई परिवार प्रभावित होने वाले हैं...बहुत मुश्किल होने जा रहा है।"

दरियादिली। यही वह विशिष्ट गुण है,जो इस दूसरी लहर की ख़ुशनसीबी रही है,हालांकि,ज़िंदगियां अकेले इस दरियादिली से ही नहीं बची हैं। लेकिन,इसमें कोई शक नहीं कि इसने इंसानियत में हमारे विश्वास को ज़रूर बचाया है, जबकि बाक़ी सब कुछ तो हिल चुका है या बिखर चुका है। लोग किसी भी तरह से एक दूसरे की मदद करने के लिहाज़ से अपने सभी दुख-दर्द,मुश्किलों और मतभेदों से ऊपर उठ चुके हैं। बहरहाल, यही लोग हैं,जो आपके काम आते हैं, यही लोग हैं, जो हमेशा संकट में अपने लचीलेपन को बनाये रखते हैं और इस बात के बावजूद किसी तरह जी लेने में कामयाब रहते हैं कि जब-जब इनकी सहायता की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है,तब-तब सरकारें उनकी मदद करने के लिहाज़ से नाकाम होती रही हैं।

इस समय हमारे पास देश का नेतृत्व करने वाला संभवत: सबसे ख़राब नेता हैं और जैसे कि बिंद्रा को लगता है कि इसका अंत दिखायी नहीं देता। आईपीएल प्रसारण में डिजिटल रूप से पेश की जा रही भीड़ के शोर के बावजूद इसका अंत,और इसकी पीड़ा,गगनभेदी आर्तनाद,पहले से ही सुनायी दे रहे हैं। ऐसे में आम लोगों के लिए इस खेल के पागलपन या फिर इसके औचित्य का कोई मतलब रह नहीं जाता है।

आख़िर इन खेलों को देखता कौन है,आपने कभी इस पर विचार किया है ? देखिये,यह तर्क अपने आप में एक क्रूर मज़ाक है कि परेशानियों में रह रहे लोगों के लिए ये खेल मनोरंजन या अस्थायी राहत देते हैं। जब आप एक-एक सांस के लिए जूझ रहे अपने परिजनों के लिए शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक ऑक्सीजन सिलेंडर ख़रीदने की ख़ातिर दौड़ रहे होते हैं,तो उस दौरान क्या आपको किसी मनोरंजन की आवश्यकता होती है। यह बात मुनासिब नहीं लगती,क्योंकि इस दरम्यान आपके लिए जानना ज़रूरी नहीं होगा कि किस अमीर फ्रैंचाइज़ी ने जीत हासिल की। आपको यह भी जानना ज़रूरी नहीं होगा कि विराट कोहली ने शतक लगाया या नहीं।

देश को अब मनोरंजन की ज़रूरत नहीं है। यह काम पिछले सात सालों में बहुत होता रहा है। यह मनोरंजन और असल मुद्दों से ध्यान भटकाने वाली वे बयानबाज़ियां ही तो हैं,जो चीजों को वहां तक ले आये हैं,जहां इस समय हम खड़े कर दिये गये हैं।  यह कैसी बात है कि जिस समय भारत जल रहा है,उस दौरान पिछले सप्ताह हर दिन औसतन 2000 से ज़्यादा मौतों का गवाह रही देश की राजधानी के बीचोबीच स्थित कोई स्टेडियम अहंकार से चूर किसी शो के पागलपन में जगमगाती रौशनी से नहा रहा होगा।

बेशक इस खेल के पक्ष में बेशुमार ओछे तर्क दिये जा रहे हैं। उनका  यह तर्क भी होता है कि आईपीएल का आयोजन देश में चल रही खेल अर्थव्यवस्था को बनाये रखने के लिए किया जा रहा है। बहरहाल,कोई शक नहीं कि यह क्रिकेट की तो नहीं,बिकने वाले अंतर्राष्ट्रीय ललचियों की लीग की सेवा ज़रूर कर रहा है। लेकिन,भारतीय खेल की अर्थव्यवस्था में क्रिकेट के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा चीज़ें  है ! मगर,बाक़ी खेल तो झेलते रहेंगे और गुमनामी में भी बचे रहेंगे,जबकि आईपीएल फूलता-फलता रहेगा। अपनी शुरुआत से ही क्रिकेट की अर्थव्यवस्था कभी नुकसान में नहीं रही है। इस आईपीएल का अंत मानव जीवन के मूल्य की एक घिनौनी अनदेखी करने वाले धूर्त आत्मरत प्रतिष्ठान के लिए और ज़्यादा संपत्ति अर्जित करने के साथ होगा। आपको सत्तारूढ़ पार्टी के साथ इसकी समानताओं का संयोग मिलता हुआ नहीं दिखाई देता है !

यह देश 1947 में अपने अस्तित्व में आने के बाद जिस आपातकाल का गवाह रहा,उससे बिल्कुल यह एक अलग तरह की स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति है। जैसा कि हम देख रहे हैं यह आपदा लगातार बढ़ती ही जा रही है। ऐसा लगता है कि कुछ सूझ नहीं रहा और जो कुछ करने को बचा है,वह इतना ही है कि हम किसी तरह इस तूफ़ान में बचे रहें और जो कुछ भी चीज़ हमारे हाथ में है,उन्हें मज़बूती से थामें रखें,चाहे वह चीज़ प्यार-मुहब्बत हो,स्वजनों और परिजनों की ज़िंदगी हो या फिर अमन-चैन को बनाये रखना हो।

ये आंकड़े नुकसान पहुंचाने वाले हैं।आंकड़ों के खेल इस क्रिकेट के लिए अब भी बहुत देर नहीं हुई है। इस बात की सिर्फ़ उम्मीद ही की जा सकती है कि सत्ता के दलाल समय रहते जागे और इस बात को समझे कि जब इन आंकड़ों को इतिहास की किताबों में दर्ज किया जायेगा,तो 2021 के आईपीएल में हिट रहे शतकों और छक्कों पर घिन आयेगी। तब तक जो संख्यायें मायने रखेंगी,वह खो चुकी ज़िंदगी की संख्या होगी और उन लोगों की याद करती हुए बची खुची वे ज़िंदगियां होंगी,जिन्होंने वक़्त से बहुत पहले इस दुनिया को छोड़ दिया होगा। फिर,उस समय यह आईपीएल कहां होगा। बहरहाल,अप्रासंगिक बना दिया जाना भी एक मुनासिब सज़ा होगी...लोगों का यह एक ऐसा बदला होगा,जो क्रिकेट के साथ-साथ उन नेताओं से भी लिया जायेगा,जो हमें उस जगह तक ले आये हैं,जहां इस समय हम खड़ा कर दिये गये हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

IPL 2021: Of Bubbles & Men Whose Heads are Stuffed in Them

IPL 2021
IPL 2021 live
IPL 2021 delhi matches
Feroz Shah Kotla IPL
IPL
Arun Jaitley stadium
Abhinav Bindra IPL
Abhinav Bindra
IPL in pandemic
Covid-19 IPL
India Covid-19
Covid-19 India numbers
Covid-19 India disaster
Narendra modi
Delhi Covid-19
Covid-19 India deaths
Covid-19 India status
Covid-19 India second wave
Coronavirus Pandemic
Covid-19 sport
Covid-19 cricket
Indian Premier League
2021 Indian Premier League
virat kohli

Related Stories

कोरोना के दौरान सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं ले पा रहें है जरूरतमंद परिवार - सर्वे

यूपी चुनाव : क्या पूर्वांचल की धरती मोदी-योगी के लिए वाटरलू साबित होगी

कोविड पर नियंत्रण के हालिया कदम कितने वैज्ञानिक हैं?

भारत की कोविड-19 मौतें आधिकारिक आंकड़ों से 6-7 गुना अधिक हैं: विश्लेषण

पंजाब सरकार के ख़िलाफ़ SC में सुनवाई, 24 घंटे में 90 हज़ार से ज़्यादा कोरोना केस और अन्य ख़बरें

रोजगार, स्वास्थ्य, जीवन स्तर, राष्ट्रीय आय और आर्थिक विकास का सह-संबंध

दो टूक: ओमिक्रॉन का ख़तरा लेकिन प्रधानमंत्री रैलियों में व्यस्त

कोहली बनाम गांगुली: दक्षिण अफ्रीका के जोख़िम भरे दौरे के पहले बीसीसीआई के लिए अनुकूल भटकाव

क्या सरकार की पीएम मोदी के जन्मदिन पर ढाई करोड़ लोगों के टीकाकरण की बात 'झूठ' थी?

मोदी जी, शहरों में नौकरियों का क्या?


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License