NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
समाज
भारत
राजनीति
झारखंड: कुछ इस तरह किया जा रहा है आदिवासियों का भगवाकरण!
झारखंड राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), सरना आदिवासियों और चर्च के बीच एक मूक लेकिन धार्मिक युद्ध का साक्षी बन रहा है।
तारिक अनवर
31 May 2019
tarik

रांची: "क्या आदिवासी हिंदू हैं?" रिपोर्टर ने गोड्डा जिले के पोरैयाहाट ब्लॉक के माली गांव के निवासी सूर्य नारायण हेम्ब्रम से ये सवाल पूछा। सूर्य नारायण हेम्ब्रम नए निर्माण किए गए शिव मंदिर में पूजा करने के बाद बाहर निकले ही थे। 

इस सवाल पर किसी प्रकार कोई संदेह दिखाए बिना उन्होंने जवाब दिया, "हमारा संबंध संथाल जनजाति से है और संथाल (संत + स्थल) शब्द का अर्थ संतों का स्थान है जो पूजा करने में विश्वास करते हैं और मांसाहारी भोजन करने से बचते हैं।"

अन्य धर्म की तुलना में सरना के हिंदू धर्म से ज़्यादा निकट होने के बारे में बताते हुए वे कहते हैं सनातन और सरना एक ही शब्द हैं। उनका कहना है कि सरना पूजा स्थल में शिव लिंग के आकार का एक छोटा पत्थर है जिसकी पूजा मंदिरों में भी की जाती है। 

उन्होंने कहा, "हम दोनों की पूजा करते हैं।" आगे कहा कि दुर्गा पूजा जैसे कुछ हिंदू त्योहारों को ग्रामीणों द्वारा किसी भी हिंदू के समान उत्साह की तरह मनाया जाता है। उन्होंने कहा, "आदिवासी ईसाई नहीं हैं बल्कि हिंदू या सनातन हैं।"

झारखंड राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), सरना आदिवासियों और चर्च के बीच एक मूक लेकिन धार्मिक युद्ध का साक्षी बन रहा है। राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून द झारखंड फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट 2017 द्वारा इस लड़ाई को तेज किया गया है जो आदिवासी बहुल राज्य को व्यक्त करता है और ये धर्मांतरण पर अंकुश लगाने वाला देश का छठा राज्य है।

कोई भी व्यक्ति जो बल या लालच के माध्यम से धर्मांतरण का दोषी पाया गया वह सजा का हकदार होगा जिसमें तीन साल की जेल और 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।

दुमका के शिकारीपारा में एक जागरूकता शिविर में आरएसएस के एक पदाधिकारी ने ग्रामीणों के एक समूह से स्थानीय संथाली भाषा में पूछा, "क्या आप अपनी मां को छोड़ सकते हैं जिसने नौ महीने का कष्ट झेलने के बाद आपको जन्म दिया है?" यहां मौजूद लोगों ने एक सुर में कहा "नहीं, कभी नहीं"। पदाधिकारी ने गु्स्साते हुए पूछा कि 'तो फिर आप अपनी हिंदू मां को छोड़कर ईसाई धर्म में क्यों जाते हैं? हम हिंदू हैं, आइए हम इस पहचान को बरकरार रखें।'

सूर्य नारायण हेम्ब्रम और आरएसएस के लोगों के अपने समुदाय के सदस्यों के धार्मिक नियमों में आस्था के बावजूद उनके स्वयं की जनजाति के दूसरे लोगों ने कहा कि वे "हिंदू नहीं" हैं।

गोड्डा जिले के ठाकुरगंगटी ब्लॉक के फुलवरिया गांव के रहने वाले सुबल मुर्मू ने कहा कि आदिवासी कभी भी हिंदू नहीं रहे। वे प्रकृति जैसे पहाड़, जंगल और पानी के उपासक हैं। उन्होंने कहा, "आरएसएस हमें हिंदू बनाने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि हम परशुराम (हिंदू धर्म में विष्णु के छठे अवतार) के वंशज हैं।"

उन्होंने कहा कि उनका समुदाय ज़्यादा धार्मिक नहीं है और इसलिए वे हर दिन भगवान की पूजा नहीं करते हैं। उन्होंने आगे कहा, “और यही एक कारण है कि हमारे समुदाय के लोगों ने नए धर्म में विश्वास करना शुरू कर दिया है जो कि हिंदू धर्म है। जब लोगों की मुसीबतों का कोई अंत नहीं होता है और वे जीवन में उम्मीद खोने लगते हैं तो हम इस विश्वास के साथ ईश्वर की खोज में एक स्थान पर जाते हैं कि वहां सभी कठिनाइयां प्रार्थना से समाप्त हो जाएगी। आदिवासी समुदाय के पास ऐसी कोई जगह नहीं है जहां लोग बड़े संकट या दुख की घड़ी में मन को शांत करने के लिए जा सकें। इसलिए वे प्रार्थना करने के लिए हिंदू मंदिरों में जाते हैं। अगर उन्हें मन की शांति मिलती है और उनकी कठिनाइयां कम हो जाती हैं तो वे आश्वस्त हो जाते हैं कि वे नए धर्म में सब कुछ पा लिए जो उनके ईश्वर कई वर्षों तक उन्हें नहीं दे सके हैं।”

मुर्मू ने कथित तौर पर कहा कि आरएसएस चाहता है कि आदिवासी अपनी संस्कृति और परंपरा को छोड़ दें ताकि उनके संसाधनों को नियंत्रित किया जा सके। उन्होंने कहा कि ये भगवा संगठन आदिवासी इलाकों में अलग-अलग नामों से और अलग-अलग व्यक्तियों से संचालित हो रही हैं। 

उन्होंने कहा, “आप हर आदिवासी गांव में एक राम बाबा पाएंगे। जब कई समस्याओं से पीड़ित लोग उसके पास जाते हैं तो वे उनसे हिंदू देवताओं की पूजा करने के लिए कहते हैं। उन्होंने लोगों पर अच्छा प्रभाव डाला है। वह एक आरएसएस एजेंट है। उन्हें भगवा संगठन का समर्थन है।”

उन्होंने यह भी कहा कि भारी संख्या में आदिवासियों ने अपनी बेटियों और बेटों का विवाह हिंदू संस्कृति और परंपरा के अनुसार करना शुरू कर दिया है। मुर्मू ने कहा, 'आदिवासियों को धार्मिक समझ बहुत कम है ... हम पूर्णतः प्रकृति की पूजा करते हैं और वो भी अपनी व्यवस्था के हिसाब से।'

मारंग बुरु (बड़ा पहाड़), जाहेर आयो (भूमि देवता), गोसाई आयो (एक शक्ति जिसके बारे में आस्था है कि ये आदिवासियों को नकारात्मक ऊर्जा और बुरी आत्माओं से बचाता है) उन चंद भगवानों में से हैं जिनकी आदिवासी पूजा करते हैं।

प्रत्येक आदिवासी गांव में मांझी थान हैं। मांझी थान पत्थर की एक संरचना है जो एक निर्दिष्ट स्थान है जहां सामुदायिक पूजा मांझी (ग्राम प्रधान) और उनके चार सहायक मांझीसंद ओझाओं के अधीन शुरू होती हैं और संपन्न होती है। गांवों के बाहरी हिस्से में जहेर थान होते हैं जिनमें पेड़, वनस्पतियां और जीव हैं। यह हरियाली का एक छोटा सा हिस्सा है जो एक ऐसी जगह है जहां पारंपरिक दवाएं और आपातकालीन बीज (सूखे के लिए) पाए जाते हैं। यह पवित्र है और कोई भी इस समुदाय की सहमति के बिना कुछ भी नहीं तोड़ सकता है या नहीं ले सकता है।

आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच झारखंड से जुड़े आदिवासी कार्यकर्ता दयामणि बारला ने कहा कि आदिवासी क्षेत्र में धार्मिक विभाजन पैदा करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि धर्मांतरण विरोधी बिल पेश करना और आरक्षण को धर्मांतरण से जोड़ना इस तरह के विभाजन के प्रयास थे और लोगों पर हिंदू वर्चस्व को थोपना था।

उन्होंने कहा, “आदिवासी गांवों का नाम इसे वैश्वीकरण करने के उद्देश्य से बदला जा रहा है। जिस समय आप किसी आदिवासी गांव का नाम बदलकर नगर जैसा रख देते हैं तो वह अपनी पहचान और संस्कृति खो देता है।"

आदिवासी अधिकारों के कार्यकर्ता जेवियर डायस का कहना है कि यह लंबे समय से चल रहा है। उन्होंने कहा, इससे पहले आदिवासियों का संस्कृतिकरण हुआ लेकिन अब यह वोट बैंक के लिए उनका भगवाकरण हो रहा है।

उन्होंने कहा, “बड़े व्यापारियों और नेताओं द्वारा दिए गए पैसों से आदिवासी गांवों में मंदिरों का निर्माण किया जा रहा है। इस बात को लेकर प्रतिस्पर्धा है कि कौन बड़े मंदिरों का निर्माण करेगा। निरंतर ब्रेनवाश के कारण बड़ी संख्या में आदिवासियों ने हिंदू धर्म स्वीकार किया है। लेकिन संथाल जो मजबूती के साथ अपने मूल सिद्धांत और संस्कृति को पकड़े हुए हैं उन्होंने अब तक हिंदू धर्म स्वीकार नहीं किया है।”

चुनाव परिणामों के संदर्भ में जहां आदिवासियों के एक बड़े वर्ग ने बीजेपी को मतदान किया है उन्होंने कहा कि भगवा पार्टी को बड़ी नकदी की अर्थव्यवस्था होने का एक फायदा है। 

उन्होंने कहा, 'आदिवासियों में नैतिक संवेदनशीलता है कि अगर उन्होंने पैसे लिए हैं तो वे बीजेपी के लिए काम करेंगे। आदिवासियों का ईसाई बनाने का काम सफल हुआ क्योंकि इससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मिली हैं। यदि आदिवासियों को उनकी जमीन लेने के लिए भगवाकरण करने का प्रयास किया जाता है तो सफलता नहीं मिलेगी। यह प्रयास अगर विकास लाने में विफल रहता है तो यह बेकार हो जाएगा।'

आदिवासी विचारों को व्यक्त करने का एक मंच आदिवाणी की संस्थापक रूबी हेमब्रोम ने कहा कि भगवा ब्रिगेड सफलतापूर्वक ब्रेनवाश करने की कोशिश कर रही है और उनके पास इसके लिए एक अच्छी रणनीति है। उन्होंने कहा, “बाउड्री वॉल, होर्डिंग्स और सरकारी इमारतों को भगवा रंग से रंग दिया गया है ताकि राज्य की जनता के सामने भगवामय होने की झलक दिखाई दे।"
 

bhagwakaran
Saffronisation
saffron terror
Jharkhand government
Jharkhand
jharkhand tribals
Adivasi
Adivasis in India
BJP-RSS
RSS
VHP
BJP
modi sarkar

Related Stories

कर्नाटक पाठ्यपुस्तक संशोधन और कुवेम्पु के अपमान के विरोध में लेखकों का इस्तीफ़ा

मनोज मुंतशिर ने फिर उगला मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर, ट्विटर पर पोस्ट किया 'भाषण'

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

महंत ने भगवानपुर में किया हनुमान चालीसा का पाठ, कहा ‘उत्तराखंड बन रहा कश्मीर’

रुड़की से ग्राउंड रिपोर्ट : डाडा जलालपुर में अभी भी तनाव, कई मुस्लिम परिवारों ने किया पलायन

जहांगीरपुरी हिंसा में अभी तक एकतरफ़ा कार्रवाई: 14 लोग गिरफ़्तार

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

जलियांवाला बाग: क्यों बदली जा रही है ‘शहीद-स्थल’ की पहचान

उर्दू पत्रकारिता : 200 सालों का सफ़र और चुनौतियां


बाकी खबरें

  • bulldozer
    न्यूज़क्लिक टीम
    दिल्ली: बुलडोज़र राजनीति के ख़िलाफ़ वामदलों का जनता मार्च
    11 May 2022
    देश के मुसलमानों, गरीबों, दलितों पर चल रहे सरकारी बुल्डोज़र और सरकार की तानाशाही के खिलाफ राजधानी दिल्ली में तमाम वाम दलों के साथ-साथ युवाओं, महिलाओं और संघर्षशील संगठनों ने उपराज्यपाल अनिल बैजल के…
  • qutub minar
    न्यूज़क्लिक टीम
    अब क़ुतुब मीनार, ताज महल से हासिल होंगे वोट? मुग़ल दिलाएंगे रोज़गार?
    11 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में आज वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा सवाल पूछ रहे हैं कि देश में कभी क़ुतुब मीनार के नाम पर कभी ताज महल के नाम पर विवाद खड़ा करके, सरकार देश को किस दिशा में धकेल रही…
  • sedition
    विकास भदौरिया
    राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट: घोर अंधकार में रौशनी की किरण
    11 May 2022
    सुप्रीम कोर्ट का आज का आदेश और न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ का हाल का बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि नागरिकों के असंतोष या उत्पीड़न को दबाने के लिए आपराधिक क़ानून का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए, एक आशा…
  • RAVIKANT CASE
    असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय: दलित प्रोफ़ेसर के ख़िलाफ़ मुक़दमा, हमलावरों पर कोई कार्रवाई नहीं!
    11 May 2022
    प्रोफ़ेसर रविकांत चंदन हमले की FIR लिखाने के लिए पुलिस के आला-अफ़सरों के पास दौड़ रहे हैं, लेकिन आरोपी छात्रों के विरुद्ध अभी तक न तो पुलिस की ओर से क़ानूनी कार्रवाई हुई है और न ही विवि प्रशासन की ओर…
  • jaysurya
    विवेक शर्मा
    श्रीलंका संकट : आम जनता के साथ खड़े हुए खिलाड़ी, सरकार और उसके समर्थकों की मुखर आलोचना
    11 May 2022
    श्रीलंका में ख़राब हालात के बीच अब वहां के खिलाड़ियों ने भी सरकार और सरकार के समर्थकों की कड़ी निंदा की है और जवाब मांगा है। क्रिकेट जगत के कई दिग्गज अपनी-अपनी तरह से आम जनता के साथ एकजुटता और सरकार…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License