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मज़दूरों का महापड़ाव : मोदी द्वारा राष्ट्रीय संपदा को बेचने के खिलाफ
सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण से बढ़ रही है बेरोज़गारी और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं आत्म निर्भरता को ख़तरा
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
06 Nov 2017
महापड़ाव

पुरानी सभी सरकारों के कारनामों को पीछे छोड़ते हुए “राष्ट्रवादी” मोदी सरकार ने अपने तीन वर्ष के शासन में देश की 1.25 लाख करोड़ की संपत्ति का बेच दिया है. मोदी सरकार रक्षा उत्पादन इकाईयों, रेल, बीमा कम्पनी और बैंकों को बेचने के लिए तेज़ी से कदम उठा रही है. ये राष्ट्र-द्रोही नीतियाँ देश के लोगों में आक्रोश पैदा कर रही हैं, खासकर इन इकाइयों में काम करने वाले मज़दूरों में यह गुस्सा और भी तेज़ हो रहा है. अन्य माँगों के अलावा सरकार की इन नीतियों के विरुद्ध देश का मजदूर 9-11 नवम्बर को दिल्ली में विरोध करने के लिए एकत्रित होगा. 

अपने एक दशक के शासन में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू.पी.ए. सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की 1.14 लाख करोड़ की संपत्ति बेच डाली. अटल बिहारी वाजपयी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार ने इस तरह की बिक्री से 21,000 करोड़ रूपये की आय अर्जित की इससे पहले 1991-2001 के बीच विभिन्न सरकारों ने करीब 20,000 करोड़ संपदा बेची. (तालिका देखें)

पिछले 26 वर्षों में विभिन्न भारतीय सरकारों ने देश की 2.8 लाख करोड़ की संपत्ति निजी उद्योगपतियों के हवाले कर दी. भाजपा की वाजपेयी और मोदी सरकारें जो राष्ट्रवाद के विचार और भारत माता की रक्षा के बारे में जुगाली करते नहीं थकते, अपने 7 वर्ष के कार्यकाल में दोनों ने देश की आधी यानी 52 प्रतिशत संपत्ति को निजी हाथों में बेच दिया. 

तालिका देखें :

तालिका

सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति की बिक्री की देश को भारी कीमत चुकानी पडी. सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में श्रमिकों ने अपनी गाढ़ी कमाई खो दी और इससे बेरोज़गारी में भी भारी इज़ाफा हुआ है. जब-जब निजीकरण होता है सबसे पहले दलित और आदिवासियों के आरक्षित रोज़गार ख़त्म

होते हैं, और नतीजतन ये तबका अपना रोज़गार तो खोता ही है, साथ ही उनकी आय भी कम हो जाती है. कारखानों, मशीनरी, कार्यालयों, भूमि और इमारतों तथा अन्य पूँजी परिसंपत्तियों के रूप में मौजूद देश की बहुमूल्य संपत्तियों को अक्सर अपने वास्तविक मूल्य से बहुत नीचे लाकर कुछ निजी उद्यमियों या अन्य कंपनियों को बेच दिया जाता है. इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर आमद है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि विभिन्न घोटालों में करोड़ों रुपये रिश्वत के आदान-प्रदान का आरोप है. इसके अलावा, निजी मालिक इन उद्यमों के नए स्वामी बनते हैं, एकदम से मुनाफा कमाने लगते हैं, और जो भी उत्पाद या सेवा हैं, उनकी कीमतें तुरंत बढ़ा देते हैं.

मोदी सरकार ने इन निगमों को बेचने में कुछ ज़्यादा ही तत्परता दिखाई है. उन्होंने बैंक और बीमा क्षेत्र के अलावा इस कड़ी में रक्षा, रेल और विमान सेवाओं को भी शामिल कर लिया है. सार्वजनिक क्षेत्र में रक्षा उत्पादन से जुड़े कारखानों द्वारा बनाए जाने वाले कुल 273 उत्पादों में से 182 उत्पादों को निजी क्षेत्र में दे दिया गया है. इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा कारखानों को जानबूझकर कम क्षमता और कम उपयोग होने से उन्हें अपरिहार्य रूप से बंद होने की तरफ  धकेल दिया जा रहा है, 41 रक्षा कारखानों में से 7 में कोई काम नहीं है और 14 अतिरिक्त कारखानों के पास उनकी क्षमता का 50 प्रतिशत भी काम नहीं है. कुल 1.10 लाख श्रमिकों में से 50,000 नौकरियों के ख़त्म होने की तलवार लटक रही है. उच्च मूल्य वाले उत्पाद जैसे लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, पनडुब्बियाँ और अन्य महत्वपूर्ण उपकरण, जो सभी पीएसयू के रक्षा क्षेत्र द्वारा उत्पादित होते थे, को अब नामांकन के आधार पर भाजपा सरकार निजी कॉरपोरेट क्षेत्र को दे रही है. जब इस क्षेत्र में अब निजी कंपनियाँ शामिल हैं  तो फिर देश की सुरक्षा की उम्मीद हम किससे लगाएं? भाजपा सरकार, जो लगातार सैनिकों को समर्थन की हुंकार भरती रहती है, ये सौदेबाज़ियाँ उन्हें धोखा देने की एक और योजना है.

रेल जो कि भारत की एक अन्य सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्पदा है और देश की जनता के लिए एक सस्ती परिवहन व्यवस्था है, जिसे देश के करोड़ों लोग इस्तेमाल करते हैं, सरकार यात्री और माल ढोने वाले दोनों परिवहन खण्डों को निजी रेल ऑपरेटर को बेचने की योजना है. ये कंपनिया किराए और माल भाड़े रेल के चलने की लागत के आधार पर तय करेंगे. इसका सीधा मतलब है कि किराए और माल भाडे में भारी बढ़ोतरी. करीब 23 रेल स्टेशनों के निजीकरण के लिए जिसमें हावड़ा, चेन्नई, मुंबई, बंगलौर आदि शामिल हैं के लिए पहले से ही टेंडर/निविदाएँ जारी कर दी गयी हैं.

सरकार ने ओएनजीसी, गेल, ऑयल इंडिया लिमिटेड, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, कोल इंडिया लिमिटेड, भेल, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड आदि सहित 10 सीपीएसयू जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की  रीढ़ है , को बेचने के लिए रिलायंस को कंसल्टेंसी प्रदान करने के लिए कहा और रिलायंस म्युचुअल फंड मैनेजर को नियुक्त भी कर दिया.

बड़ी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वित्त कंपनियों के लाभ के लिए सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों के निजीकरण के लिए पूरी तैयारी कर रही है. यह भी निर्णय लिया गया है कि सभी पाँच सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी सामान्य बीमा कंपनियों के 25 प्रतिशत शेयर निजी भारतीय कंपनियों और विदेशी कंपनियों को बेच दिए जाएँ.

स्वतंत्रता के बाद देश को आत्मनिर्भर विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण किया गया. सरकार द्वारा रक्षा, रेलवे, बिजली उत्पादन, सड़कों, इस्पात, खनन आदि जैसी प्रमुख क्षेत्रों सहित अधिकांश में भारी उद्योग स्थापित करने लिए विशाल राशी आवंटित की. चूंकि उन दिनों निजी उद्योगपति उन चीजों पर इतना खर्च नहीं करना चाहते थे, जो उनके लिए लाभकारी सौदे नहीं थे, इसलिए सरकार को भारी उद्योगों की आधारशिला रखनी पडी. बाद के वर्षों में इन सार्वजनिक क्षेत्र के उत्पाद और सेवाओं के ज़रिए, बड़े उद्योगपतियों द्वारा मुनाफा कमा कर अरबपति बन गए. सार्वजनिक क्षेत्र ने भारत को एक स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखने के लिए भी सक्षम बनाया है और विदेशी कंपनियों को मुनाफा कमाने की इजाजत नहीं दी जैसा कि नए स्वतंत्र देशों की अर्थव्यवस्था के साथ हुआ. सार्वजनिक क्षेत्र ने बड़ी तादाद में रोज़गार उपलब्ध कराये, इससे आरक्षण के जरिए दलित एवं आदिवासी तबकों को भी काफी रोज़गार मिले. अगर कम कहा जाए तो सार्वजनिक उद्योगों ने इन वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था की तरक्की में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी.

नब्बे के दशक के शुरुआती दिनों में वैश्विक एकीकरण की मांग और अर्थव्यवस्थाओं को नियंत्रित करने वाली नीतियों की शुरुआत के बाद से, पूरा नज़रिया ही बदल गया. सार्वजनिक क्षेत्र को अब मूल्यवान संपत्ति के रूप में देखा जाने लगा जिसे निजी पार्टियों को बेचकर सरकारें अपने लिए आय अर्जित करने के साधन मानती हैं. इससे किसे लाभ होगा; निजी खरीदार इस तरह के सुपर उद्योगों से अपना मुनाफ, प्रचुर मुनाफा बढ़ाएंगे और खुश होंगे जबकि सरकार इस बिक्री से अपनी तुरंत आये अर्जित करने के लिए.

 

महापड़ाव
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