NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सोनभद्र में चलता है जंगल का कानून
आदिवासियों के साथ होने वाला यह भेदभाव लोकतंत्र में जंगल के कानून की मौजूदगी दर्शाता रहता है।
अजय कुमार
05 Jul 2018
सोनभद्र
Image Courtesy : Sabrang

मज़बूत कमज़ोर को जैसे मर्ज़ी वैसे चराते हैं। यही जंगल का कानून है। दुखद बात यह है कि लोकतंत्र में भी दबे पाँव मज़बूत और कमज़ोर लोगों के बीच जंगल का कानून चलता है। पिछले महीने उत्तर प्रदेश में सोनभद्र के आदिवासी गाँवों से 18 आदिवासी महिलाओं को पुलिस ने जबरन गिरफ्तार कर लिया। इनकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस गाँवों में घुसी और कई आदिवासियों पर झूठे मामले गढ़कर आरोपी घोषित कर दिया। इन दोनों मामलों में पुलिस ने आदिवासियों को जंगल से पेड़ काटने का आरोपी बनाया गया। ज़रा सोचकर देखिये कि एक तरफ सदियों से जंगल के निवासी आदिवासियों का संघर्ष है, जिस संघर्ष के चलते साल 2006 में वनाधिकार कानून बनता है, कानून के तहत जंगल की ज़मीन पर मालिकाना हक लेने का अधिकार तो आदिवासियों को दिया जाता है लेकिन जंगल के पेड़ों पर नहीं। दूसरी तरफ वन संरक्षण का कानून है जिसके तहत आदिवासियों से तो जंगल का संरक्षण करने का प्रावधान है लेकिन राज्य की तथाकथित विकास उपक्रमों से नहीं। इस पूरी पृष्ठभूमि में दिल्ली की लोकप्रिय हलचल से दूर वनाधिकार  कानून और वन संरक्षण के बीच जूझ रहे सोनभद्र के आदिवासी संघर्ष को उजागर करना ज़रुरी हो जाता है। 

सोनभद्र उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा ज़िला है। यह देश का एकमात्र ऐसा ज़िला है जिसकी सीमा चार राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार से जुड़ती है। कैमूर की पहाड़ियों और जंगलों में बसे सोनभद्र इलाके में तकरीबन 70 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। यहाँ के आदिवासी भी वन अधिकार कानून के तहत ज़मीन का मालिकाना हक पाने के लिए सरकारी हुकूमरानों के साथ निवेदन से लेकर विरोध तक कि सारी लड़ाईयाँ लड़ रहे हैं। लेकिन सरकारी हुकूमरान अपने फायदे के लिए वनाधिकार कानून की बजाए जंगल के कानून की तरह बरताव करने लगते  हैं। यानि कि जंगल में जो ज़्यादा मज़बूत है उन्हीं का राज चलता रहता है। 

यह भी पढ़ें सोनभद्र का अछूतापन

सोनभद्र की वस्तुस्थिति यह है कि इस वन क्षेत्र का पूरा फैलाव 3,782 वर्ग किलोमीटर है,  जिसमें से घने वन का फैलाव मात्र  1,078 किलोमीटर है। इसका अर्थ यह हुआ कि तकरीबन 70 फीसदी वन क्षेत्र में ऐसी परिस्थितियाँ नहीं है जिससे वहाँ वनाधिकार कानून लागू हो। और अगर लागू भी होता है तो जंगल की कटाई के प्रावधान के अनुसार की गयी आदिवासी गिरफ्तारी पचने वाली बात नहीं लगती है। जबकि पिछले महीने की घटना में यही हुआ है। लिलासी गाँव सोनभद्र के खुले वन का इलाका है, जहाँ दूर-दूर तक वनों की मौजूदगी नहीं है। ऐसी ज़मीन पर 700 पेड़ काटने के ज़ुल्म में पुलिस द्वारा आदिवासी महिलाओं की गयी गिरफ्तारी गले नहीं उतरती। 

ऑल इंडिया यूनियन फॉर फारेस्ट वर्किंग कमेटी की डिप्टी सेक्रेटरी रोमा मलिक का कहना है कि यहाँ की ज़मीनों पर ऊँची जातियों ने अपने मज़बूत रसूख की वजह से अवैध कब्ज़ा कर रखा है। जिसमें उन्हें वन  विभाग और राजस्व विभाग के भ्रष्ट अधिकारयों का भरपूर सहयोग मिलता है। इस तरह का मालिकाना हक कानूनन बिल्कुल अवैध है क्योंकि वनाधिकार कानून के मुताबिक केवल अनुसूचित जाति और जनजाति को ही वन्य क्षेत्र की ज़मीन का मालिकाना हक मिलने का अधिकार है। लेकिन वन और राजस्व विभाग के अधिकारी ज़मीन की प्रकृति बदलकर ज़मीन की खतौनी ऊँची जातियों के नाम कर देते हैं। वनाधिकार कानून के तहत ज़मीन की प्रकृति बदलने का अधिकार कार्यकालिका को हासिल नहीं है। कार्यपालिका की इस कार्यवाही को न्यायपालिका आसानी से खारिज कर सकती है। लेकिन ज़मीन पर चल रहे ऐसे हलचल आमतौर पर सुनाई नहीं देते और आदिवासियों का शोषण चुपचाप होता रहता है।

यहाँ हिंडाल्कों जैसी रसूखदार कंपनियों को खनन के लिए आसानी से ज़मीन मिलती रहती है। वन संरक्षण कानून के तहत इनपर कसे जाने वाले लगामों की खुले रुप से धज्जियाँ उड़ायी जाती हैं। प्रदूषित हो रही कैमूर की ज़िंदगी केवल किताबी बातें बनकर रह गयी है। वन संरक्षण कानून के तहत विकास उपक्रमों की वन क्षेत्र में मौजूदगी बनाने के लिए कैम्पा अथॉरिटी की स्थापना की गयी। कैम्पा ऑथरिटी विकास उपक्रमों के लिए बेचे जाने वाली वन ज़मीन का विक्रय मूल्य निर्धारित करने के लिए अधिकृत की गयी है। बिक्री से मिली राशि का उपयोग वनों में फिर से पेड़ लगाने और आदिवासियों को बिक्री की वजह से हुए नुकसान से उबारने के लिए मदद करने में किये जाने का प्रावधान है। इस अथॉरिटी की वजह से सरकार को पूरे देश में वन ज़मीनों की बिक्री से करीब 42 हजार करोड़ रूपये मिले हैं। इसमें से कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश को भी मिला होगा ताकि सोनभद्र जैसी इलाके वनों से हुए नुकसान से खुद को संभाल सकें। लेकिन सोनभद्र की ज़मीनी हकीकत में कैम्पा से मिले सहयोग का नामोनिशान तक नहीं दिखता है। वनाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले स्थानीय संगठनों का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सोनभद्र ज़िला प्रशासन को वर्ल्ड बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं से करोड़ों मिलते हैं। लेकिन इनका खर्च किस ढंग से और कहाँ पर किया जाता है, इसके बारें में कोई जानकारी नहीं है।

ऐसी तमाम सरकारी खामियाँ होने के बावजूद भी सरकारी मज़बूत हुकूमरानों द्वारा केवल आदिवासी प्रताड़ना के हकदार बनते हैं। आदिवासियों के साथ होने वाला यह भेदभाव लोकतंत्र में जंगल के कानून की मौजूदगी दर्शाता रहता है।

सोनभद्र
उत्तर प्रदेश
आदिवासियों के ज़मीन अधिकार
ज़मीन का अधिकार
आदिवासियों पर दमन

Related Stories

उप्र बंधक संकट: सभी बच्चों को सुरक्षित बचाया गया, आरोपी और उसकी पत्नी की मौत

नागरिकता कानून: यूपी के मऊ अब तक 19 लोग गिरफ्तार, आरएएफ और पीएसी तैनात

यूपी-बिहार: 2019 की तैयारी, भाजपा और विपक्ष

यूपीः मेरठ के मुस्लिमों ने योगी की पुलिस पर भेदभाव का लगाया आरोप, पलायन की धमकी दी

चीनी क्षेत्र के लिए केंद्र सरकार का पैकेज, केवल निजी मिलों को एक मीठा तोहफ़ा

चंद्रशेखर आज़ाद 'रावण’ जेल में बंद, भीम आर्मी द्वार लोगों को संगठित करने का प्रयास जारी

डॉक्टर कफील ने कहा ऑक्सीज़न की कमी ने बच्चों की मौतों में किया था इज़ाफा

भीम आर्मी नेता के भाई की हत्या के बाद सहारनपुर में तनाव

यूनियन हॉल में जिन्ना के तस्वीर के कारण एएमयू के छात्र पीटे गये

उत्तर प्रदेश में बलत्कार की घटनाओं में वृद्धि लगतार ज़ारी


बाकी खबरें

  • अनिल सिन्हा
    उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!
    12 Mar 2022
    हालात के समग्र विश्लेषण की जगह सरलीकरण का सहारा लेकर हम उत्तर प्रदेश में 2024 के पूर्वाभ्यास को नहीं समझ सकते हैं।
  • uttarakhand
    एम.ओबैद
    उत्तराखंडः 5 सीटें ऐसी जिन पर 1 हज़ार से कम वोटों से हुई हार-जीत
    12 Mar 2022
    प्रदेश की पांच ऐसी सीटें हैं जहां एक हज़ार से कम वोटों के अंतर से प्रत्याशियों की जीत-हार का फ़ैसला हुआ। आइए जानते हैं कि कौन सी हैं ये सीटें—
  • ITI
    सौरव कुमार
    बेंगलुरु: बर्ख़ास्तगी के विरोध में ITI कर्मचारियों का धरना जारी, 100 दिन पार 
    12 Mar 2022
    एक फैक्ट-फाइंडिंग पैनल के मुतबिक, पहली कोविड-19 लहर के बाद ही आईटीआई ने ठेके पर कार्यरत श्रमिकों को ‘कुशल’ से ‘अकुशल’ की श्रेणी में पदावनत कर दिया था।
  • Caste in UP elections
    अजय कुमार
    CSDS पोस्ट पोल सर्वे: भाजपा का जातिगत गठबंधन समाजवादी पार्टी से ज़्यादा कामयाब
    12 Mar 2022
    सीएसडीएस के उत्तर प्रदेश के सर्वे के मुताबिक भाजपा और भाजपा के सहयोगी दलों ने यादव और मुस्लिमों को छोड़कर प्रदेश की तकरीबन हर जाति से अच्छा खासा वोट हासिल किया है।
  • app based wokers
    संदीप चक्रवर्ती
    पश्चिम बंगाल: डिलीवरी बॉयज का शोषण करती ऐप कंपनियां, सरकारी हस्तक्षेप की ज़रूरत 
    12 Mar 2022
    "हम चाहते हैं कि हमारे वास्तविक नियोक्ता, फ्लिपकार्ट या ई-कार्ट हमें नियुक्ति पत्र दें और हर महीने के लिए हमारा एक निश्चित भुगतान तय किया जाए। सरकार ने जैसा ओला और उबर के मामले में हस्तक्षेप किया,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License