NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
श्रमिक अधिकार और इनके प्रति सरकारों का बर्ताव
सरकार हमेशा ही मज़दूरों को लेकर बड़ी ही लोक लुभावन वायदे करती है और कानून भी लाती है परन्तु उन्हें कभी लागू नहीं करती|
मुकुंद झा
24 Apr 2018
मज़दूर
Image Courtesy: newswing.com

मज़दूर और उसके अधिकार की बात हर सरकार करती है पर किसे ने अब तक इसे गंभीरता से मज़दूरों के अधिकारों को दिलाने या लागू करने की न ही कोशिश की और न ही उनकी कभी इनकी इच्छाशक्ति रही| सरकार हमेशा ही मज़दूरों को लेकर बड़ी ही लोक लुभावने वायदे करती है और कानून भी लती है परन्तु उन्हें कभी लागू नहीं करती है|

इसी क्रम में दिल्ली की आम आदमी पार्टी  की सरकार ने बीते कुछ दिनों पहले ही दिल्ली में मज़दूरों के महँगाई भत्ते में बढ़ोतरी की और उससे पूर्व उन्होंने न्यूनतम वेतन में भी 37% की बढ़ोतरी की है | अभी दिल्ली में सरकार के फैसले के बाद से न्यूनतम वेतन अकुशल मज़दूरों की 13,896 रू अर्द्ध कुशल मज़दूरों की 15,296 रु और कुशल मज़दूरों की 16,858 रु प्रतिमाह है | परन्तु कटुसत्य है कि इन फैसलों के इतने समय बाद भी दिल्ली के मज़दूर आज भी इससे बहुत कम में प्रति माह में काम करने को मज़बूर हैं जो की सरकार के दावों की पोल खोलता है |

दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील और सामाजिक कार्यकर्त्ता  अशोक अग्रवाल की एक जनहित याचिका दायर की है जिसमें उन्होंने सरकार के दावों के विपरीत मज़दूरों की वास्तविक स्थित को दर्शाया है|

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने बताया कि “न्यूनतम वेतन की स्थिति लगतार बद से बदतर हो गयी हैI 1980-90  से स्थिति और भी ख़राब हुई है, इससे पहले कम-से-कम न्यूनतम वेतन लागू होता था परन्तु इसके बाद न्यूनतम वेतन में कागज़ों पर बढ़ोतरी हुई पर वास्तविकता में कभी लागू नहीं हुआ|”

आज भी दिल्ली जैसे शहर में पुरुष 6,000 रु और महिला 5,000 रु प्रति माह में कार्य करते है | क्योंकि उनके पास इसके आलावा कोई चारा नहीं है | दिल्ली के 95% मज़दूर इस न्यूनतम वेतन के लाभ से वंचित है |

सरकार ने जब न्यूनतम वेतन में 37% की बढ़ोतरी की तो ज़ाहिर बात थी की उद्योगपति वर्ग इससे नाराज़ हुआ और कोर्ट चला गया और तब से ही ये मामला कोर्ट में लटका हुआ है | तब से सरकार अपने बचाव के रूप में इसी का सहारा ले रही है कि मामला अभी कोर्ट में लम्बित है  |

उन्होंने आगे कहा की सरकार कह रही है उनके हाथ कोर्ट ने बांध रखे हैं परन्तु सत्य ये है कि सरकार पहले से निर्धारित न्यूनतम वेतन को भी लागू नहीं कर पा रही है- उसे वह लागू करने से तो किसने नहीं रोका है | ये सब बहाने हैं सरकारों की मज़दूरों को उनके हक़ देने की इच्छा ही नहीं|

ये न्यूनतम वेतन तब लागू होगा न जब इसका तंत्र के पास इसे लागू कर पाने के लिए पर्याप्त मानव शक्ति होगी | श्रम विभाग के पास कर्मचारियों की भरी कमी हैं | श्री अग्रवाल ने कहा की “1975 की तुलना में आज केवल इस विभाग में 25% ही कर्मचारी है जो की सरकारों की मज़दूरों के अधिकारों के प्रति कितनी गंभीर है- और जो है भी वो भी भ्रष्टाचार में लिप्त है” |

अनुराग सक्सेना दिल्ली सीटू के सचिव और साथ ही दिल्ली सरकार के न्यूनतम वेतन अधिनियम के तहत गठित कमेटी के सदस्य हैं, उन्होंने कहा कि दिल्ली में अभी केवल 11 ही श्रम दारोगा (लेबर इंस्पेक्टर) हैं जो बहुत ही कम हैं| जबकि इनकी संख्या इससे बहुत अधिक होनी चाहिए|

अनुराग ने पूछा की “11लेबर इंस्पेक्टर  कैसे दिल्ली शहर में 20 लाख से ज़्यादा फैक्ट्रीयों में न्यूनतम मज़दूरी को लागू करा पाएगी” |

जब हमने कई मज़दूरों से बात की तो कई ऐसी जानकारी सामने आई जो की चोकाने वाली थी मज़दूरों किस स्थिति में कार्य करते है वो काफी भयावह है | एक मज़दूर ने बतया की “उसके फैक्ट्री मालिक उनसे 11 से 12 घन्टे कार्य कराते है और वो उन्हें इसका उन्हें बोनस भी नहीं देते है | साथ ही अगर वो किसी दिन लेट पहुचते है तो मालिक उनकी तनख्वाह काट लेते है” |

एक दुसरे मज़दूर ने बताया की “उन्हें न्यूनतम वेतन जैसी कोई लाभ नही मिलता है | उनके यंहा लगभग सभी मज़दूरों को 5000 से 6000 ही मिलाता है” |

सबसे गंभीर है की जहाँ वो काम करते उसकी स्थिति बहुत खरब है ,कुछ फैक्ट्री मालिक मज़दूरों को फैक्ट्री में अंदर बंद करके काम कराते है | अधिकतर फैक्ट्रीयों में मज़दूरों की सुरक्षा के साथ खिलावाड़ कर रही किसी में न तो आगा से सुरक्षा के साधन है और ना ही आप्त स्थिति से निपटने की कोई सुविधा है | जिसका नतीजा है पिछले 1 से 1.5 माह में हमने करीब 25 मज़दूरों की फैक्ट्री में आग के करण मौत की खबरे आई है |

सबसे चिंताजंक बात है की 90% से अधिक मज़दूरों को न्यूनतम वेतन के बारे में जानकारी ही नहीं और न ही वो अन्य श्रम कानूनों के बारे में नही जानते है |इन कानूनों का लाभ तभी है जब मज़दूरों के बिच में नये न्यूनतम वेतन के बारे में मज़दूरों के मध्य जागरूकता अभियान चलाया जाए तभी ये सारे नियम और एक्ट प्रभावी हों सकते है | वरना ये सब केबल कागज़ी बाते बनकर रह जाएगी |

दिल्ली में अन्य श्रम कानून

श्री अग्रवाल ने बतया कि “दिल्ली में लगभग अन्य 25 श्रम कानून है परन्तु उन सब की भी यही स्थिति है | कोई भी कानून धरातल में कार्य नही कार रहा है सारे कानून केबल हवा में है जमीन पर कुछ भी नहीं है” |

उन्होंने आगे कहा की अगर सरकारे इन कानूनों को 50% भी लागू करवा पाए तो भी मज़दूर वर्ग की बहुत समस्यों का हल हो सकता है परन्तु सरकारे कभी ऐसा करना नही चाहती है | क्योकिं मज़दूर कभी भी सरकारों की प्रथमिकता में रहे ही नहीं है | इसलिए आज मज़दूर का जीवन दयनीय है |

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान एक टिप्पणी की थी की सरकार ने जो न्यूनतम वेतन की घोषणा की उसमे भी दिल्ली जैसे शहर में जीवनयापन संभव नही है |

श्री अग्रवाल ने अपनी  याचिका में भी इसे बढ़ाकर 16000 रु करने की बात कही है |  इससे कम मज़दूरों का इस बढ़ते महँगाई में जीवन ज़ीने के मौलिक साधनो को ले पाना संभव नहीं है | सरकारों को मज़दूरों के जीवन ज़ीने के अधिकार की रक्षा करनी चाहिए | ये उनका अधिकार है जिसे फैक्ट्री मालिक सत्ता के साथ मिलकर छीन रहे है |

न्यूनतम वेतन
दिल्ली सरकार
मज़दूर
दिल्ली हाईकोर्ट
श्रम कानून

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

दिल्ली के मज़दूरों की एक दिवसीय हड़ताल

दिल्ली: 20 जुलाई को 20 लाख मज़दूर हड़ताल पर जायेंगे

दिल्ली सरकारी स्कूल: छात्र अपने मनचाहे विषय में दाखिला ले सकेंगे!

दिल्ली सरकारी स्कूल: सैकड़ों छात्र लचर व्यवस्था के कारण दाखिला नहीं ले पा रहे

हिमाचल प्रदेश: एंबुलेंस सेवा पूरी तरह से ठप

दिल्ली में पानी संकट चरम पर, सरकार को समय पर कदम उठाने चाहिए

दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य की माँग पर जनता की राय

दिल्ली में कक्षा 12वीं तक ईडब्ल्यूएस छात्र शिक्षा ले सकतें है?

कैग रिपोर्ट: दिल्ली सरकार ने लक्षित लोगो की मदद की जगह फिजूलखर्ची की


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License