NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी जी, क्या आपने मुस्लिम महिलाओं से इसी सुरक्षा का वादा किया था?
तीन तलाक के बारे में ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना, तब, जब मुस्लिम महिलाओं को उनकी पारंपरिक पोशाक के एक हिस्से को सार्वजनिक चकाचौंध में उतारने पर मजबूर किया जा रहा है, यह न केवल लिंग, बल्कि धार्मिक पहचान पर भी हमला है।
नीलांजन मुखोपाध्याय
17 Feb 2022
Translated by महेश कुमार
muslim

कुछ दिनों पहले तक मोदी जो किसी भी अभियान में नज़र नहीं आ रहे थे और उत्तर प्रदेश के बिजनौर में "खराब मौसम" का बहाना बना कर अपनी चुनावी रैली रद्द कर दी थी, जबकि दिन उजाले और धूप से सराबोर था, उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहारनपुर की एक सभा में चिल्ला-चिल्ला कर कहते पाए गए कि लोग भारत में "मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और विकास को अवरुद्ध करने के नए-नए तरीके खोज रहे हैं"। उनके इस बयान से यह स्पष्ट था कि उन्हें अपने अभियान को हवा देने के लिए अचानक से एक 'प्रेरणा' मिली थी जो इससे पहले तक उनके और उनकी पार्टी के लिए कठिन लग रहा था।

प्रधानमंत्री एक खास तबके को लुभाने के मामले में माहिर हैं। अचानक से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की वकालत, उनके शासन द्वारा अधिकारों पर कर्तव्यों को प्राथमिकता देने के हालिया रिकॉर्ड को देखते हुए विरोधाभासी लगता है। इसके अलावा, मुस्लिम महिलाओं के चुनिन्दा अधिकारों को झंडी दिखाकर और हिजाब मुद्दे पर घटी हाल की घटनाओं का जिक्र किए बिना उसे चुनावी चर्चा का केंद्र बना दिया है, जो घटना अब कर्नाटक में एक पूर्ण संघर्ष है में बदल चुकी है, उनका यह खास तरीका है। 

मोदी ने 14 फरवरी को कानपुर, कानपुर देहात और जालौन जिलों के 10 विधानसभा क्षेत्रों के लिए एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए सहारनपुर में अपनी टिप्पणी को दोहराया। उन्होंने अपने भाषण में दावा किया कि तीन तालक कानून ने हजारों मुस्लिम महिलाओं को बचाया और वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के तहत सुरक्षित महसूस करती हैं। मोदी ने कहा, "हमारी मुस्लिम बेटियों को सड़कों पर छेड़खानी के कारण पढ़ाई के लिए जाने में बहुत परेशानी होती थी। अब उनमें सुरक्षा की भावना है ..."।

उन युवा लड़कियों और महिलाओं के भीतर किस किस्म की सुरक्षा की भावना होगी यदि उन्हें सार्वजनिक रूप से अपने पारंपरिक पहनावे के एक हिस्से को उतारना पड़े? प्रधानमंत्री इस दावे की शरण नहीं ले सकते हैं कि वे केवल उसका जिक्र कर रहे थे जिस राज्य में चुनाव है, क्योंकि कर्नाटक भी भाजपा शासित राज्य है।

प्रधानमंत्री ने लगातार मुद्दों को उलझा देते हैं और खुद को और अपनी पार्टी को उस समुदाय के भीतर रूढ़िवादी पितृसत्तात्मक ताकतों से मुस्लिम महिलाओं के रक्षक खुदा के रूप में पेश करते हैं, जो मौलानाओं के कथित 'सांप्रदायिक' वर्गों और 'अलगाववादी' प्रवृत्तियों द्वारा संचालित राजनीतिक नेतृत्व में हैं। लेकिन, क्या मुस्लिम महिलाओं, या उस मामले में किसी भी सामाजिक समूह की महिलाओं को, पूरे समुदाय के शातिर हमलों और व्यवस्थित बदनामी, उनकी सुरक्षा, पहचान और सबसे महत्वपूर्ण, बहुलवादी लोकतंत्र में उनकी विशिष्टता के मद्देनजर संरक्षित या सुरक्षित किया जा सकता है?

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में न केवल मुस्लिम समाज, बल्कि लगभग हर धार्मिक समुदाय को सामाजिक सुधार की एक नई लहर की जरूरत है। यदि तीन तलाक की प्रथा, फिर चाहे इस प्रथा को मानने वाले कितने भी कम रहे हों, वह थी तो अक्षम्य, तो हिंदुओं सहित अन्य धार्मिक समुदायों में कई अन्य परंपराएं हैं जिनमें सुधार की जरूरत है।

लेकिन महिलाओं के अधिकारों और समानता को सुनिश्चित करने के नाम पर समुदाय, विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय पर एक सीधा हमला और कुछ नहीं बल्कि परोक्ष बहुसंख्यकवादी हमला है। अभी, मोदी को यूपी चुनाव अभियान में ह-शब्द को उछलाना बाकी है। जो वे कर रहे हैं यह संभवत: केवल समय की बात है, यदि वर्तमान कहानी किसी तरह धार्मिक ध्रुवीकरण को भड़काने और भाजपा के पीछे बड़ी संख्या में हिंदुओं को एकजुट करने में में विफल हो जाती है  ताकि उसके खिलाफ उठ रही सत्ता-विरोधी के प्रकोप से बचने का रास्ता दे सकती थी।   

हालांकि, हिजाब मुद्दे से उत्पन्न विवाद विधानसभा चुनावों के बाद भी नहीं मिटेगा और कर्नाटक सरकार के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका जिसमें शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाया गया है, न्यायिक फैसले के बाद भी दूर नहीं होगा। जिस तरह से अन्य भाजपा राज्य सरकारें बसवराज बोम्मई प्रशासन के नक्शेकदम पर चल रही हैं, भाजपा इस मुद्दे को पूरी तरह से राष्ट्रीय मुदा बनाने पर आमादा है।

हाल के हफ्तों में जिस तरह से यह कहानी विकसित हुई है, हिजाब हिंदू सांप्रदायिक ताकतों और मुसलमानों के बीच विवाद का नया केंद्रीय बिंदु बन गया है, जिसे हिंदुओं के उस बड़े वर्ग का समर्थन मिल रहा है जो हिन्दू, संघ परिवार की विचारधारा से मुखातिब हैं और जिनकी समझ नहीं है कि इस मुद्दे को लिंग के नजरिए से देखना जरूरी है न कि धर्म की नज़र से। 

मोदी एक अनजान राजनीतिक नेता नहीं हैं और जानते हैं कि हिजाब ऐतिहासिक रूप से पूरे भारत में मुस्लिम महिलाओं की पोशाक का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं रहा है। यहां तक कि किसी एक क्षेत्र के मुसलमानों में भी इसे कहां और किस अवसर पर पहना जाता है, इसको लेकर मतभेद हैं। लेकिन, पोशाक के हिस्से के तौर पर इसे पहनने की परंपरा पर एक सीधा हमला शुरू करके, मोदी ने सुनिश्चित कर दिया है कि यह अब कपड़ों का एक वैकल्पिक हिस्सा नहीं है जो इस्लाम में एक आवश्यक प्रथा नहीं है, बल्कि सुरक्षा, पहचान और मुसलमानों की विशिष्टता का प्रतीक बन गया है। विडंबना यह है कि मोदी ने यह कहना शुरू कर दिया है कि उनकी सरकारों ने देश में इन पहली नागरिक अनिवार्यताओं को आगे बढ़ाया है।

लगभग तीन दशक पहले, बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, वरिष्ठ पत्रकार जफर आगा, जो तब इंडिया टुडे के साथ थे, ने लिखा था कि कैसे वे जीवन की शुरूवात में हमेशा से एक आशावान भारतीय थे, जो "अपने दोस्तों और परिवार के साथ राम लीला देखते हुए बड़े हुए थे" और जिन्होंने बाबरी मस्जिद के मुद्दे को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह “एक पुरानी, त्याग की गई मस्जिद का झमेला है"। लेकिन 6 दिसंबर 1992 की शाम को, जब उन्होंने "मेरे टेलीविजन पर त्याग की गई बाबरी मस्जिद को मलबे में बदलते देखा, तो मेरे गालों से आंसू बहने लगे। और मुझे एहसास हुआ कि लाखों मुसलमानों के लिए अयोध्या में एक जर्जर मस्जिद कैसे पहचान का प्रतीक बन गई थी।"

सुबह की उस घटना के बाद, और शायद जाने ऐसी कितनी घटना होंगी, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को जबरन और सार्वजनिक रूप से आंशिक रूप से निर्दयतापूर्वक न्यायिक निर्देश के तहत, अपना हिजाब उतारना पड़ा क्योंकि ऐसा कहा गया कि शिक्षा के संस्थान में या तो अध्ययन या पढ़ाने के लिए दाखिला लिया जाता है, मैंने उस वक़्त महसूस किया कि कई जिन मुसलमानों को मैं जानता हूं, और जिन्हें मैं नहीं भी जानता हूं, जब उन्होंने अपने हैंडसेट और कंप्यूटर मॉनीटर पर इन कई त्रासदियों के वीडियो देखे  होंगे तो उन्हें भी वैसा ही महसूस हुआ होगा जैसा कि दिसंबर 1992 में उस वयोवृद्ध लेखक को महसूस हुआ था। फर्क सिर्फ इतना है कि इस सूची में एक और प्रतीक जुड़ गया है जो सूची तब से बढ़ती जा रही है।

Even teachers & other staff being asked to remove #Hijab before entering campus at a school in Mandya. Instructions have been given to most schools in the district to follow this norm. pic.twitter.com/B6FC84quBn

— Deepak Bopanna (@dpkBopanna) February 14, 2022

धीरे-धीरे, ऐसे प्रतीकों को भी लक्षित किया जा रहा है जो धार्मिक नहीं हैं, बल्कि केवल सांस्कृतिक प्रकृति के हैं जो इस राष्ट्र के अल्पसंख्यकों को उनकी पहचान और विशिष्टता की भावना देते हैं। इस तरह के हर प्रतीक को सार्वजनिक चकाचौंध से मिटा दिए जाने से, समुदाय समाज के पायदान से और अदृश्य होता जा रहा है और यह उनकी लगातार असुरक्षा और अलगाव को तेजी से बढ़ा रहा है।

लेखक एनसीआर स्थित लेखक और पत्रकार हैं। उनकी नवीनतम पुस्तक द डिमोलिशन एंड द वर्डिक्ट: अयोध्या एंड द प्रोजेक्ट टू रीकॉन्फिगर इंडिया है। उनकी अन्य पुस्तकों में द आरएसएस: आइकॉन्स ऑफ द इंडियन राइट और नरेंद्र मोदी: द मैन, द टाइम्स शामिल हैं। उन्हें @NilanjanUdwin . पर ट्वीट किया जा सकता है 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

Is This the Security You Promised Muslim Women, Mr Modi?

Hijab Row
triple talaq
Modi Govt
Muslim Identity
Muslim women
karnataka govt
BJP
Religious Symbols

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत
    14 May 2022
    देश में आज चौथे दिन भी कोरोना के 2,800 से ज़्यादा मामले सामने आए हैं। आईआईटी कानपूर के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. मणींद्र अग्रवाल कहा है कि फिलहाल देश में कोरोना की चौथी लहर आने की संभावना नहीं है।
  • afghanistan
    पीपल्स डिस्पैच
    भोजन की भारी क़िल्लत का सामना कर रहे दो करोड़ अफ़ग़ानी : आईपीसी
    14 May 2022
    आईपीसी की पड़ताल में कहा गया है, "लक्ष्य है कि मानवीय खाद्य सहायता 38% आबादी तक पहुंचाई जाये, लेकिन अब भी तक़रीबन दो करोड़ लोग उच्च स्तर की ज़बरदस्त खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। यह संख्या देश…
  • mundka
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड : 27 लोगों की मौत, लेकिन सवाल यही इसका ज़िम्मेदार कौन?
    14 May 2022
    मुंडका स्थित इमारत में लगी आग तो बुझ गई है। लेकिन सवाल बरकरार है कि इन बढ़ती घटनाओं की ज़िम्मेदारी कब तय होगी? दिल्ली में बीते दिनों कई फैक्ट्रियों और कार्यस्थलों में आग लग रही है, जिसमें कई मज़दूरों ने…
  • राज कुमार
    ऑनलाइन सेवाओं में धोखाधड़ी से कैसे बचें?
    14 May 2022
    कंपनियां आपको लालच देती हैं और फंसाने की कोशिश करती हैं। उदाहरण के तौर पर कहेंगी कि आपके लिए ऑफर है, आपको कैशबैक मिलेगा, रेट बहुत कम बताए जाएंगे और आपको बार-बार फोन करके प्रेरित किया जाएगा और दबाव…
  • India ki Baat
    बुलडोज़र की राजनीति, ज्ञानवापी प्रकरण और राजद्रोह कानून
    13 May 2022
    न्यूज़क्लिक के नए प्रोग्राम इंडिया की बात के पहले एपिसोड में अभिसार शर्मा, भाषा सिंह और उर्मिलेश चर्चा कर रहे हैं बुलडोज़र की राजनीति, ज्ञानवापी प्रकरण और राजद्रोह कानून की। आखिर क्यों सरकार अड़ी हुई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License