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भारत
राजनीति
प.बंगाल में घृणा की राजनीति के प्रतिरोध में बना फ़ासिस्ट विरोधी फ़ोरम  
इस साल होने वाले  पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के पहले ध्रुवीकरण की प्रक्रिया तेज़ हो गई है, ऐसे में बुद्धिजीवियों, सांस्कृतिक और राजनीतिक कर्ताओं के समूह सूबे में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए एकजुट हो रहे हैं। 
संदीप चक्रवर्ती
08 Jan 2021
प.बंगाल में घृणा की राजनीति के प्रतिरोध में बना फ़ासिस्ट विरोधी फ़ोरम  
प्रतीकात्मक तस्वीर।  सौजन्य :  PTI

कोलकाता :  अगले कुछ महीनों में पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। इसके पहले, सूबे में जानबूझ कर सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ा जा रहा है। इन घटनाओं से चिंतित वामपंथी रुझान के बुद्धिजीवी उसका प्रतिरोध करने के लिए एक साथ जुटने लगे हैं। वे सब मिलकर ‘फासिस्ट’ विरोधी लेखकों और कलाकारों’ के संघ को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिनकी 1940 के तात्कालीन बंगाल राज्य में फासीवादी और संप्रदाय विरोधी ताकतों से लोहा लेने की एक शानदार विरासत रही है। 

कोलकाता में अगले 10 जनवरी को आयोजित एक सम्मेलन में इस फोरम का गठन किया जाएगा।  इसका मकसद विधानसभा चुनावों के पहले राज्य में फैलाई जा रही घृणा की राजनीति को रोकना है। 

नाटककार कौशिक सेन,  पबित्र सरकार,  लेखक मनोरंजन व्यापारी,  थिएटरकर्मी जयराज भट्टाचार्य, मिरातुन नाहर,  कवि मदाक्रांता सेन आदि इसके उद्घाटन कार्यक्रम में अपने विचार रखेंगे। प्रख्यात इतिहासकार और समाज विज्ञानी सोहनलाल दत्ता गुप्ता सम्मेलन में उद्घाटन भाषण देंगे। 

प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी (जापान के स्टेट ऑर्डर ऑफ मेरिट ‘राइजिंग ऑर्डर ऑफ द सन’ के विजेता) और रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर पबित्र सरकार ने इस फोरम के बारे में न्यूज़ क्लिक को बताया कि मुल्कराज आनंद जैसे ख्यातिलब्ध लेखकों ने प्रगतिशील लेखक संघ का शुभारंभ किया था और दूसरे विश्व युद्ध के पहले, जब हिटलर अपने शिखर पर था, भारत में फासीवाद विरोधी लेखकों और कलाकारों के एक संघ की बुनियाद रखी गई थी। 

संयोग से, फासीवाद विरोधी फोरम की तरफ से 1941 में सोमेन्द्रनाथ टैगोर के साथ ज्योति बसु (एक वामपंथी नेता, जो बाद में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री भी बने)  भी  विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर से आशीर्वाद लेने गए थे। इस संदर्भ में, 1946 में ढाका में भड़के दंगों को याद किया जा सकता है, जिसमें साहित्यिक बिरादरी से शहीद होने वाले सोमेन चंदा पहले रचनाधर्मी थे। उनकी हत्या उस समय कर दी गई थी, जब वे ढाका में फासीवाद विरोधी लेखकों और कलाकारों के फोरम की तरफ से सम्मेलन का आयोजन कर रहे थे। 

मौजूदा परिस्थितियों में अब जबकि फोरम पुन: सक्रिय हो रहा है तो सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, कलाकारों और लेखकों के बीच व्यापक एकता बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार ने कहा कि उन सभी व्यक्तियों में, “फासीवाद विरोधी प्रतिबद्धता और लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक सिद्धांतों में अडिग विश्वास”, इस फोरम की एकता की बुनियाद होगी। सरकार ने आगे कहा, “उस दिन (10 जनवरी को उद्घाटन के मौके पर) फासीवादी सत्ताधारी पार्टी ( मतलब भाजपा) और पश्चिम बंगाल में  दखल बनाने के उसके प्रयास पर विचार-विमर्श किया जाएगा।”

अभी हाल ही में, बराकपोर में नाटककार चंदन सेन की अध्यक्षता में एक अन्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इसमें  शामिल हुए अनेक सांस्कृतिक व्यक्तियों ने नई दिल्ली की सीमाओं पर कड़ाके की ठंड में प्रदर्शन कर रहे हजारों किसानों का खुलकर समर्थन किया था। इस कार्यक्रम को कौशिक सेन जैसे संस्कृतिकर्मी और सीपीआई (एम) के कुछ नेताओं ने भी संबोधित किया था। 

इस बीच, धुर वामपंथी कार्यकर्ताओं ने सोमवार को भारत सभा हाल में—नो वोट टू  बीजेपी—अभियान का शुभारंभ किया था, जो ‘बंगाल अगेंस्ट फासिस्ट आरएसएस-बीजेपी’ के बैनर तले एकजुट हुए।  इन लोगों ने बंगाल की जनता से आह्वान किया है कि वे अगले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को वोट न दें। 

फोरम की तरफ से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि “इसके अधिकतर कार्यकर्ता नक्सली और गैर नक्सली मूल के हैं, जिन्होंने लॉकडाउन के पहले नरेंद्र मोदी-अमित शाह की सत्ता की तरफ नागरिकता के मसले को साम्प्रदायिकता के रूप देने वाले -सीएए-एनआरसी-एनपीआर-के खिलाफ आयोजित नागरिकों के सम्मेलन में भाग लिय़ा था।  इसके पहले कि देर हो जाए, वे उस जनसंवेग को आगामी विधानसभा चुनाव में भी बनाए रखना चाहते हैं।”

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Steps on to Revive ‘Anti-Fascist’ Forum to Resist Hate Politics in West Bengal

Anti-Fascist Writers Artists
Bengal Intellectuals
West Bengal Assembly Election
Fascism
communal politics
BJP
Antifa

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