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‘यथार्थ स्वप्नलोकों की परिकल्पना’ देकर चले गए एरिक ऑलिन राइट
“मैं और कुछ नहीं, सितारों की वह स्वप्निल धूल था, जो यों ही आकाशगंगा के इस कोने में आ गिरा था।”
आशुतोष कुमार
28 Jan 2019
एरिक ऑलिन राइट (फाइल फोटो)
एरिक ऑलिन राइट। फाइल फोटो : साभार

अलविदा, कॉमरेड एरिक ऑलिन राइट!

यथार्थ यूटोपिया के स्वप्नद्रष्टा एरिक ऑलिन राइट ने कैंसर से जूझते हुए 23 जनवरी को दुनिया से विदा ली। 
यह कहते हुए -
“ मैं और कुछ नहीं, सितारों की वह स्वप्निल धूल था, जो यों ही आकाशगंगा के इस कोने में आ गिरा था।“

राइट बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के सबसे प्रेरक मार्क्सवादी चिंतकों में थे। ' इक्कीसवीं सदी में पूँजी विरोधी कैसे बनें' वह किताब थी, जो उन्होंने अपने आख़िरी लम्हों में पूरी की। वामपक्ष के सबसे उदास वर्षों में विश्व-पूंजीवाद के गढ़ अमरीका में बैठे उन्होंने मार्क्सवाद का झंडा बुलंद रखा।

दुनिया भर में चलाए गए विस्तृत शोध परियोजनाओं के जरिए 'वर्ग' की क्लासिकी मार्क्सी संकल्पना को गहन विश्लेषणात्मक औजार की तरह विकसित कर राइट ने मार्क्सवाद से मुंह मोड़ चुके विद्वानों को दुबारा इधर देखने के लिए मजबूर किया। उन्होंने स्थापित किया कि वर्ग का सम्बंध आय के आयतन से नहीं, आय के शोषणमूलक स्रोतों से है।

मार्क्सवादियों के लिए मध्यवर्ग की व्याख्या एक चुनौती रही है। एक श्रेणी के रूप में मध्यवर्ग का विश्लेषण करते हुए उन्होंने उसे एक ऐसे वर्ग के रूप में परिभाषित किया, जिसे शोषण के तंत्र से उपजी आमदनी का हिस्सा मिलता है, लेकिन जो स्वयं शोषण से महफ़ूज नहीं है। इस अचूक विश्लेषण से बहुतेरे मध्यवर्गीय मुगालतों को मुक्ति मिली।

' इन्विज़निंग रीयल यूटोपियाज़'- यथार्थ स्वप्नलोकों की परिकल्पना- राइट की सबसे चर्चित महत्वाकांक्षी परियोजना थी। सोवियत प्रयोग के पतन के बाद दुनिया भर के बौद्धिक हलकों में यह अफ़वाह जमा दी गई थी कि मार्क्सवाद महज एक यूटोपिया है। राइट ने अपनी लंबी चौड़ी टीम के साथ ठोस शोधकार्यों पर आधारित ऐसी ढेरों परिकल्पनाएं विकसित कीं जो यूटोपियाई लगते हुए भी यथार्थपरक थीं।

दुनिया को बदलने के लिए सम्भव करने लायक असम्भव सपनों की जरूरत होती है। शोषण पर टिकी हुई विश्व व्यवस्था टिकाऊ नहीं हो सकती, इसी मार्क्सवादी यक़ीन ने राइट को दक्षिण पंथी अमानिशा से जूझने की वैचारिक मशाल मुहैय्या की। ताक़त, मुनाफ़ा और लालच की ताक़तें मनुष्यता को परास्त नहीं कर पाएंगी। लोग न सपने देखना छोड़ेंगे, न उन्हें सच करने की जद्दोजहद।

(लेखक शिक्षक और हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक हैं।)

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American analytical Marxist sociologist
Marxist Class Analysis
मार्क्सवाद
मार्क्सवादी चिंतक

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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License