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IPL 2021: भेदभाव ना करने वाले वायरस से संघर्ष के दौरान घुमावदार बातों का विशेषाधिकार
IPL में खिलाड़ियों के पॉजिटिव होने और टूर्नामेंट के बंद होने से बहुत पहले, बीसीसीआई उन सभी आवाज़ों को सुनने से इंकार कर रही थी, जो इस अभूतपूर्व वक़्त में टूर्नामेंट को न कराए जाने की मांग कर रही थीं। जब संक्रमण के मामले सामने आ गए, तो बीसीसीआई ने झूठ का पुलिंदा फेंका और दावा किया कि सबकुछ ठीक है। अब जब पूरा सच सामने आ चुका है, तो बोर्ड फिर से अपनी कारनामों को सही ठहराने और विमर्श को बदलने की कोशिश में पलटवार कर रहा है।
लेस्ली ज़ेवियर
07 May 2021
IPL 2021: भेदभाव ना करने वाले वायरस से संघर्ष के दौरान घुमावदार बातों का विशेषाधिकार
बीसीसीआई खुद को एक ऐसी जिम्मेदार खेल संस्था के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही है, जो खिलाड़ियों और IPL 2021 में शामिल दूसरे लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखती है। (पिक्चर: इंडियन एक्सप्रेस)

आज के दौर में हर गुजरते पल के साथ विशेषाधिकार और इसके मायने बदल रहे हैं। थोड़ी-बहुत मेडिकल ऑक्सीजन मिलना भी अब विशेषाधिकार हो गया है। जान बचाने वाली दवाइयां, यहां तक कि एक सामान्य सी पैरासोटोमॉल मिलना भी विशेषाधिकार हो चला है। हम जब बात कर रहे हैं, तब धीरे-धीरे वैक्सीन भी एक विशेषाधिकार बनता जा रहा है। दिल्ली में सत्ता के गलियारों में टहलने वालों को पिछले महीने ही साफ़ जता दिया गया था कि कोरोना संक्रमित शख़्स के लिए किसी हॉस्पिटल में बेड दिलवाने की सिफ़ारिशें काम नहीं आएंगी। विशेषाधिकारों के भीतर भी एक पिरामिडनुमा तंत्र है। यह तंत्र विशेषाधिकार को दोबारा परिभाषित कर रहा है। लेकिन यह कौना सा तंत्र है? दरअसल अब तो कोई तंत्र या व्यवस्था ही नहीं बची है....

आज जैसे भयावह हालातों से निकलने की यात्रा में हमें "अधिकारहीन" शब्द की ताकत का अंदाजा लग रहा है। इस शब्द का उपयोग संवेदनहीनता दर्शाने के लिए होता है। यह एक ऐसा शब्द है, जिसका मतलब हमें हमेशा परेशान करता रहेगा। इस देश में बड़ी संख्या में लोग अधिकारों से वंचित हैं। यह संख्या अनुमानित आंकड़ों से कहीं ज़्यादा है। फिर ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास विेशेषाधिकारों की व्यवस्था है।

अधिकारों की सीमा का बंटवारा करने वाली इस रेखा के दूसरी तरफ खड़े हम लोग, क्रिकेट के विशेषाधिकार और उसकी उद्दंडता की ओर आश्चर्य के साथ देख रहे हैं। बिल्कुल, इंडियन प्रीमियर लीग को रोककर अनिश्चित काल के लिए आगे बढ़ा दिया गया है। बीसीसीआई के दिग्गजों को आखिरकार देश में जारी महामारी का पता चल ही गया। लेकिन क्या वाकई में उन्हें इस महामारी का पता चल पाया है?

चीजों को नकारना मूर्खों की पहचान होता है। बीसीसीआई, संक्रमण के दौर में मूर्खता और उद्दंडता पर टिकी रही। जबकि वायरस इस बारे में सीख दे चुका था। लेकिन यह सीखें आम लोगों के लिए होती हैं, सड़कों पर रहने वालों के लिए होती हैं। इन्हीं के लिए तो हमने "अधिकारहीन" शब्द का उपयोग किया था। लेकिन दर्जन भर से ज़्यादा देशो में लोकप्रिय और खेले जाने वाले क्रिकेट की सबसे ताकतवर संस्था पर यह शब्द सही नहीं बैठता। 

बीसीसीआई अब तक चीजों को नकारने में लगी हुई थी। बोर्ड और उसकी दुधारू गाय IPL अब तक खुद में ही मगन थे। उन्हें लग रहा था कि दुख और मौतों के बीच मैचों का आयोजन कर लोगों के दर्द पर मरहम लगाया जा रहा है। बल्कि कुछ हद तक ऐसा हो भी रहा था। हमने देखा कि कैसे दिल्ली या दूसरे शहरों में अस्पताल के बाहर लोग धोनी के बाउंड्री मारने पर खुश हो रहे थे। जबकि इन लोगों के करीबी लोग अस्पतालों में जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इन लोगों को किसी अच्छी ख़बर का इंतज़ार है। चलो कम से कम कुछ अच्छी ख़बर तो मिली ही उन्हें। भगवान भारतीय क्रिकेट का भला करे। 

बीसीसीआई खुद को एक जिम्मेदार खेल संस्था के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही है, जिसने IPL के खिलाड़ियों और इसमें शामिल लोगों की परवाह करते हुए लीग रद्द कर कर दी। बीसीसीआई ऐसे दिखा रही है जैसे उन्हें अपने नुकसान की चिंता ही नहीं है, ना ही उन्हें इसकी परवाह है कि टूर्नामेंट के बचे हुए मैचों को करवाने के लिए आगे कब वक़्त मिलेगा। बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष अरुण धूमल ने कहा कि फिलहाल संस्था की चिंता सिर्फ़ सुरक्षा है।

अगर वाकई इन्हें खिलाड़ियों और दूसरे लोगों के स्वास्थ्य की चिंता होती, तो बोर्ड को महामारी के भयावह दौर में मैच जारी नहीं रखने थे। बोर्ड ने लीग तभी रद्द की, जब आगे मैच करवाया जाना नामुमकिन और महामारी का माखौल बनाया जाना मुश्किल हो गया। 

ऐसा इसलिए नहीं हुआ कि जब कोटला या वानखेड़े में मैच खेले जा रहे ते, तब सड़कों पर दौड़ती एंबुलेंस की आवाज़ बोर्ड के कानों तक पहुंच गई हो। बल्कि जब IPL में 'सेफ्टी बबल' नाकाम हो गए और खिलाड़ी कोरोना संक्रमित होने लगे, तब बोर्ड ने लीग को रद्द किया। जीवन और मौत के इस भयावह दौर में दिखाई गई अपनी संवेदनहीनता के बारे में अब भी बोर्ड ने कुछ नहीं माना है। इस IPL के बारे में विडंबना यह है कि जब हमारे चारों ओर मौत वास्तविकता बन चुकी है, तब टूर्नामेंट में खेल का जश्न मनाया जा रहा था। 

अब जब लीग में कटौती कर दी गई है, तब बोर्ड, स्टाफ की सुरक्षा संबंधी चिंताओं की तरफ़ इशारा कर रहा है। इस स्टाफ में मैदान पर काम करने वाले लोग, सुरक्षाकर्मी और निम्न स्तर पर काम करने वाले दूसरे कर्मचारी शामिल हैं, जिन्होंने सेफ़्टी बबल का निर्माण कर IPL को संभव बनाया। इन लोगों ने स्टेडियम के बाहर महामारी की वास्तविकताओं के बीच खुद का जीवन दांव पर लगाया। उनके पास रविचंद्रन अश्विन की तरह यह खेल छोड़कर घर जाने का विशेषाधिकार नहीं था। उन्हें अपनी रोजी-रोटी कमानी है। इसलिए कर्मचारी रुके रहे, जबकि वह जानते थे कि शाह-गांगुली के नेतृत्व वाले बोर्ड को उनकी चिंता नहीं है। आखिरकार कर्मचारी, IPL की कीमती संपत्ति, मतलब खिलाड़ियों के साथ संपर्क में तो आए नहीं थे। 

मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और अहमदाबाद की ऊंची-ऊंची इमारतों में बैठे बीसीसीआई के बॉस शायद यह नहीं समझ पाए कि वायरस हर इंसान को बराबरी की नज़र से देखता है। वायरस भेदभाव नहीं करता। यह आप तक पहुंचता है और आपको हिला देता है। फिर एक मौका आया, जब वायरस बीसीसीआई को भी हिलाने में कामयाब हो गया। लेकिन जैसा होता है, तब भी बीसीसीआई वायरस को नज़रंदाज़ करती रही। 

इस हफ़्ते की शुरुआत में खिलाड़ियों के संक्रमित होने की पहली ख़बर आई। उस दौरान बीसीसीआई ने अपनी प्रतिक्रिया में वायरस को नज़रंदाज किया और नकारने की कोशिश की। सूत्रों और टीम के अधिकारियों के हवाले से गलत जानकारी का धुंआ उठाया गया। यह आदर्श PR एक्सरसाइज़ थी। बीसीसीआई ने बखूबी ढंग से यह तरकीबें सत्ता में मौजूद बड़ी ताकतों से सीखी हैं। 
जैसे ही खिलाड़ियों के संक्रमित होने की ख़बर आई, तो तुरंत कहा गया कि चेन्नई सुपरकिंग्स में आए संक्रमण के मामले RT-PCR टेस्ट में आए "फाल्स पॉजिटिव" की वज़ह से हैं। उसी दिन CSK ने कोरोना संक्रमित माइक हसी और लक्ष्मीपति बालाजी को हवाई मार्ग से चेन्नई बुला लिया। अब हम जानते हैं कि वहां "फाल्स पॉजिटिव" की कोई बात नहीं थी, बल्कि गलत ढंग से बयानबाजी की गई थी। आखिरकार भारतीय घुमावदार गेंदबाजी में माहिर होते ही हैं।

इस घटना से पता चलता है कि जब टीमों में केस आ रहे थे, तब भी बीसीसीआई लीग को बंद करना नहीं चाहती थी। कम से कम उस दिन तो कतई नहीं। बल्कि इसके ठीक उलट, बीसीसीआई की मशीनरी नुकसान को कम करने में लगी थी। बोर्ड कोशिश कर रहा था कि महामारी कम से कम फैले, साथ ही संक्रमण की सटीक जानकारी और ख़बरें पहुंचें (जिनमें चालाकी भरे घुमावदार तथ्य शामिल थे)।
ईमानदारी की बात करें, तो बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष ने कम से कम इस बात को ईमानदारी से माना कि यहां पैसा दांव पर लगा हुआ था और अगर कोरोना के मामलों में इतने उछाल का अंदाजा होता, तो पहले ही टूर्नामेंट को दुबई में करवाया जाता। यह बात चीजों को संवेदनहीनता और हमदर्दी के परे ले जाती है। 

अब तक बोर्ड का घमंड अपने पैसे और संसाधनों के ईर्द-गिर्द घूमता रहा है, बोर्ड को विश्वास था कि इनके ज़रिए खिलाड़ियों को एयर-एंबुलेंस और घर आने-जाने के लिए चार्टर विमान उपलब्ध करवाया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों को मालदीव में रुककर अपना क्वारंटीन खत्म करना पड़ रहा है, इसके बाद ही वे लोग घर वापस जा सकते हैं। जैसा कोषाध्यक्ष धूमल ने बताया, दक्षिण अफ्रीका और कैरेबियाई खिलाड़ियों की व्यवस्था पर्याप्त सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए घरेलू खिलाड़ियों के साथ ही की गई है। लेकिन इतना काफ़ी नहीं है।

यहां बोर्ड को अपनी असफलातओं से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। कई रिपोर्ट हैं, जिनमें 2020 के IPL की तुलना में, ताजा टूर्नामेंट में सुरक्षा के लिए कमज़ोर प्रोटोकॉल और ढांचे से संबंधित बातें लिखी गई थीं। कम से कम खुद के लिए बोर्ड को एक जांच करनी चाहिए कि कहां क्या गलती हो गई। अगर बोर्ड ऐसा करता है, तो वह बीसीसीआई के खिलाड़ियों और दूसरे लोगों की परवाह करने वाले दावे के साथ न्यायसंगत होगा।

बाकी हम जानते ही हैं कि जब तक राजस्व और क्रिकेट प्रशंसक अनुमति देते हैं, बीसीसीआई और IPL के पास खुद को थामने की सहूलियत मौजूद है। बोर्ड के पास पैसा है। भले ही IPL बीच में रुक गया हो, लेकिन आगे भी पैसा आता रहेगा। पर क्या सिर्फ़ पैसा ही भारतीय क्रिकेट और बीसीसीआई को एक वृहद सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक ताने-बाने में प्रासंगिकता के साथ पिरोने में कामयाब हो जाता है। जबकि संक्रमण काल में आज इस ताने-बाने के छिन्न-भिन्न होने पर सबसे ज़्यादा ख़तरा महसूस हो रहा है?

कोई भी जिम्मेदार बोर्ड, संक्रमण के बीच में लीग को जारी रखने के पहले इन चीजों पर विचार करता। भले ही इस दौरान लाखों लोग टीवी या लाइव स्ट्रीमिंग पर IPL देख रहे हों। इस तरह की संवेदनहीनता सिर्फ़ एकतरफा नहीं है। बीसीसीआई एक औसत भारतीय का प्रतिबिंब ही दिखा रही है। लेकिन फिर आंकड़े बता ही रहे हैं कि कोई भी औसत भारतीय इस संक्रमण के नतीज़ों से अछूता नहीं रह सकता। 

अब उससे यह विशेषाधिकार छीन लिया गया है। अब सिर्फ़ उसके पास अपना फ़ैसला लेने का विकल्प बचता है। बीसीसीआई के उलट, आम भारतीय को मौजूदा घटनाक्रम से कोई सीख हासिल करना चाहिए और अगली बार बुद्धिमत्ता के साथ अपने नेता का चुनाव करना चाहिए। 2021 की इस तेज और दर्द भरी गर्मी में IPL ने जो किया और जिन चीजों में असफल हुआ, उसके बाद IPL को उसी के हाल पर छोड़ देना चाहिए।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

IPL 2021: The Privilege of Spin When Playing a Virus That Doesn’t Discriminate

IPL 2021
Indian Premier League
bcci
IPL pandemic
IPL 2021 covid-19 cases
Chennai Super Kings
Sourav Ganguly
Jay Shah
Arun Dhumal
Mike Hussey
L Balaji
Ravichandran Ashwin
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Cricket and pandemic
IPL bubble breach

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