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ईरान को इमरान पर भरोसा, लेकिन की जाएगी वादे की जांच
ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी को 9 मार्च को देर शाम पाकिस्तान के पीएम इमरान खान का फोन आया, उनकी फोन पर यह बात 13 फरवरी को दक्षिण-पूर्व ईरानी शहर ज़ाहेदान के पास हुए फियादीन हमले के बाद पहली बार हो रही थी, जिस हमले के लिए तेहरान ने सीमा पार से आतंकवादी कार्रवाई किए जाने का आरोप लगाया था।
एम. के. भद्रकुमार
12 Mar 2019
Translated by महेश कुमार
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: PressTV

ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी को 9 मार्च को देर शाम पाकिस्तान के पीएम इमरान खान का फोन आया, उनकी फोन पर यह बात 13 फरवरी को दक्षिण-पूर्व ईरानी शहर ज़ाहेदान के पास हुए फियादीन हमले के बाद पहली बार हो रही थी, जिस हमले कई लिए तेहरान ने सीमा पार से आतंकवादी कार्रवाई किए जाने का आरोप लगाया था।

इस हमले में ईरान के कुलीन इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के 27 सैनिक मारे गए थे। आईआरजीसी के शीर्ष कमांडरों ने पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आई.एस.आई.) को सऊदी अरब द्वारा तैयार किए गए एक आतंकवादी समूह द्वारा हमले की योजना बनाने लिए जिम्मेदार ठहराया है।

इमरान खान के फोन कॉल में विशेष रूप से महत्वपूर्ण बात यह थी कि उन्होंने पिछले दिनों ही इस्लामाबाद में सऊदी अरब के विदेशी मामलों के राज्य मंत्री अदेल अल-जुबिर का स्वागत किया था। और जो बात इसे ओर  मसालेदार बनाती है, वह यह है कि 11 मार्च को दिल्ली आने वालों में अल-जुबेर भी शामिल थे और साथ ही, सऊदी अरब के शक्तिशाली तेल मंत्री खालिद अल-फलीह भी, जो 16 मार्च को मुंबई की यात्रा करने वाले थे, इसे उनकी दूसरी यात्रा भी कहा जा सकता है जो हाल ही में आने वाले शनिवार को भारतीय उद्योगपति मुकेश अंबानी के बेटे की शादी के एक भव्य समारोह में भाग लेने के लिए आए थे, इसे उनकी "अर्ध-आधिकारिक यात्रा" भी कहा जा सकता है क्योंकि वे अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज और सऊदी अरामको के बीच एक विशाल संयुक्त उद्यम को बढ़ावा देना चहते थे।

इमरान खान ने रूहानी को एक ऐसे मौके पर फोन किया, जब चारों देशों, सऊदी-पाकिस्तानी-ईरानी-भारतीय भू-राजनीतिक उलझाव ने तेल, रक्त, धर्म और राजनीति को जटिल बना दिया और यह जटिलता अभूतपूर्व स्तर तक पहुंच गयी है, जैसे कि इससे किसी का कोई लेना-देना नहीं है।

रूहानी जाहिर तौर पर इमरान खान के साथ सीधे मुद्दे पर आ गए थे कि अगर पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी समूह ईरान के खिलाफ काम करते हैं, तो यह दोनों देशों के बीच संबंधों को "कमजोर" करेगा और तेहरान इन आतंकवादी समूहों के प्रायोजकों की भी पहचान कर सकता है। ईरान को पाकिस्तानी धरती से अस्थिर करने के सऊदी अरब के छिपे एजेंडे के संदर्भ में, रूहानी ने कहा, "हमें इन कार्यों के साथ तीसरे पक्ष को ईरान और पाकिस्तान के बीच संबंधों को प्रभावित नहीं करने देना चाहिए।"

रूहानी ने हरी झंडी दिखाकर कहा कि तेहरान सऊदी-वित्त पोषित, पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों (और वास्तव में पाकिस्तान के साथ खुफिया जानकारी साझा कर चुका है) का स्थान जानता है। उन्होंने कहा, "हम इन आतंकवादियों के खिलाफ आपके द्वारा कड़ी कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं।"

“इस दौरान हम आतंकवादियों द्वारा किए गए कई हमलों को देख चुके हैं, जिनकी जड़ दुर्भाग्य से पाकिस्तानी धरती पर मौजूद हैं, और इन आतंकवादियों से निपटने के लिए, जिनका वजूद हमारे, आपके और क्षेत्र के पक्ष में नहीं है, हम पाकिस्तानी सेना और सरकार के साथ सहयोग करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। पाकिस्तानी धरती से इन आतंकवादियों की गतिविधियों को जारी रखने से दोनों देशों के बीच संबंध कमजोर हो सकते हैं। बहरहाल, उन्होंने जोर देकर कहा, "हम पाकिस्तान के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों को जारी रखने के इच्छुक हैं।"

इसमें कोई शक नहीं, और जो स्पष्ट भी है - और ठीक भी। रूहानी की टिप्पणी को इस क्षेत्र में उस बढ़ती धारणा के संदर्भ में देखा जा सकता है जो सऊदी ने हाल ही में पाकिस्तान को ईरान-विरोधी "अरब नाटो" में शामिल करने में सफलता हासिल की है, इसे इस्लामाबाद के लिए बड़ी वित्तीय मदद के लिए अमेरिका द्वारा सलाह पर किया गया है। तेहरान को विशेष रूप से चिंता इस बात की है कि सऊदी अरब पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में अपनी एक दीर्घकालिक उपस्थिति दर्ज़ कर रहा है जो ग्वादर और उसके आसपास उनकी आकर्षक निवेश योजनाओं के माध्यम से ईरान की सीमा में है।

इमरान खान ने स्पष्ट रूप से सहमति व्यक्त की, और यह आश्वासन दिया कि "बहुत जल्द" उनके पास तेहरान के लिए अच्छी खबर होगी, जिसमें उन्होंने संभवतः यह संकेत दिया था कि ईरान विरोधी आतंकवादी समूहों पर किसी तरह की पाकिस्तानी कार्रवाई की उम्मीद की जा सकती है। दिलचस्प बात यह है कि, इमरान खान ने रूहानी से ईरान का दौरा करने के लिए एक लंबित निमंत्रण को जिंदा कर लिया है। "मुझे उम्मीद है कि मैं जल्द ही ईरान का दौरा कर सकता हूं" उन्होंने कहा। रूहानी ने विनम्रता से जवाब दिया कि तेहरान इस तरह की यात्रा का स्वागत करेगा।

इमरान खान को इन हालात में बदलाव लाने के लिए किस बात ने प्रेरित किया? संभवतया, इस्लामाबाद ने इस तथ्य को स्वीकार किया होगा कि ईरान पाकिस्तान के सहयोग से या बिना पाकिस्तानी सहयोग के कुछ बिंदुओं पर कार्रवाई कर सकता है। पाकिस्तान के भीतर ईरान की खुफिया उपस्थिति है। और यदि ईरान भी पाकिस्तानी क्षेत्र पर कुछ "खुफिया-अगुवाई वाली गैर-सैन्य पूर्वव्यापी कार्रवाई" करता है, जैसा कि भारत ने हाल ही में किया है, तो यह एक खराब हालात पैदा कर सकता है। पाकिस्तानी समाज के भीतर तनाव को देखते हुए यह यहां के संप्रदायों के बीच उलटफेर भी कर सकता है। पाकिस्तान अतीत में सऊदी-ईरानी प्रतिद्वंद्विता का मैदान रहा है और इस महान खेल को हाल के वर्षों में कुछ हद तक समाप्त कर दिया गया था, लेकिन यह पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को फिर से नुकसान पहुंचा सकता है।

दूसरा, आईएसआई ने आईआरजीसी को घायल कर दिया है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस्लामाबाद ने चौकसी फोर्स के दिग्गज कमांडर जनरल कासेम सोलेमानी द्वारा कड़ी चेतावनी पर ध्यान दिया, जो विदेशों में ईरान के गुप्त सैन्य अभियानों की अगुवाई करता है और सीरिया, इराक और लेबनान में अपने लिए एक दुर्जेय प्रतिष्ठा अर्जित कर चुका है। वास्तव में, जब अगर पाकिस्तान अफगान में आतंक विरोधी अभियान को समाप्त करने  को नापसंद कर रहा है, तो वह अफगानिस्तान में इस्लामाबाद की सबसे अच्छी योजनाओं पर पानी फेर कर सकता है।

President Rouhani receives India’s new ambassador G. Dharmendra.jpg

(राष्ट्रपति रूहानी से भारत के नए राजदूत जी. धर्मेंद्र, तेहरान में, 9 मार्च, 2019 को मिले।)

तीसरा, हाल ही में सऊदी-पाकिस्तान-भारत का बना त्रिकोण "गतिज (kinetic)" बन गया है। भारत और ईरान दोनों के ही पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंध होने की वजह से असमान विकास हो रहा है, जबकि दिल्ली ने तेहरान को विश्वास में लेकर भारत-सऊदी संबंधों को बेहतर बनाने के लिए अच्छा काम किया है। यह पाकिस्तान के लिए नुकसान का काम करेगा। विशेष रूप से, रूहानी ने नए भारतीय राजदूत गद्दाम धर्मेंद्र का स्वागत करने के तुरंत बाद इमरान खान से फोन पर बात की।

पाकिस्तान को सऊदी अरब द्वारा दी जा रही वित्तीय मदद की वजह से और जो उसकी जीवन रेखा भी है, उसके आत्मीय कर्ज़ में डूबा हुआ है। लेकिन अब, सऊदी अरब भारतीय हिंदू राष्ट्रवादी कुलीन वर्ग शासक होने के बावजूद और पाकिस्तान विरोधी, मुस्लिम विरोधी विचारधारा के बावजूद भारत के साथ संबंध मज़बूत करने के लिए आगे बढ़ गए हैं। उन्होंने कड़ाई से आकलन किया कि जर्मन किंवदंती में हेमलिन के चितकबरे पाइपर की तरह रिलायंस भारतीय राजनीतिक अभिजात वर्ग को लुभाने में सक्षम है।

इसके अलावा, भारत में सऊदी के पास निवेश के लिए एक गंभीर प्रस्ताव है, जो उसके व्यापार को अनुकूल वातावरण देता है और उच्च प्रतिफल भी देता है। कोई गलती न हो इसलिए, अल-फलीह मुंबई में अंबानी शादी के समारोहों में सऊदी शाही परिवार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यह कहते हुए कि, यदि रिलायंस भारत के बाजार में अत्यधिक आकर्षक खुदरा क्षेत्र को खोलने के लिए मोदी को राजी कर सकता है, तो यह अरेबियन  नाइट्स  से बाहर निकलने वाला बेहतर रोमांस हो सकता है।

पाकिस्तान सऊदी इरादों के बारे में सोच रहा होगा। यह मानते हुए कि भारत उसका अस्तित्वगत दुश्मन है, पाकिस्तान को ज़ाहेदान के पास 13 फरवरी के फियादीन हमले के घावों को ठीक करने के लिए संतुलन बनाने की आवश्यकता महसूस हो रही है। लेकिन ईरान को जो आश्वस्त करती है वह दूसरी बात है कि पाकिस्तान की विश्वसनीयता बहुत कम है। पाकिस्तान के साथ अपने पिछले अनुभव को देखते हुए और उनके सेना प्रमुख द्वारा खाली वादे के चलते, रूहानी की टिप्पणी यह स्पष्ट संकेत देती है कि तेहरान पूरी तरह से तैनात है।

कुछ भी हो, ईरान का संदेह हाल में ओर भी गहरा हो गया है। आखिरकार, एक पूर्व पाकिस्तानी सेना प्रमुख सऊदी को तथाकथित अरब नाटो बनाने में मदद कर रहा है। जब इमरान खान ने सऊदी राजकुमार की लिमोजिन का पीछा किया, तो इसने एक शक्तिशाली संदेश दिया।

रूहानी को इमरान खान द्वारा किए गए फोन से पता चलता है कि संभवतः, चीन इससे खुश नहीं है, वह भी, पाकिस्तान के साथ ईरान के संबंधों में हालिया आयी ढलान के साथ। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ईरानी मजलिस अली लारीजानी के विजिटिंग स्पीकर के बीच हाल ही में हुई बैठक में चीनी विदेश मंत्रालय ने जोरदार तरीके से कहा कि ईरान बीजिंग की फारस की खाड़ी में समग्र चीनी क्षेत्रीय रणनीतियों में एक महत्वपूर्ण स्थिति में है। बीजिंग में बैठक ज़ाहेदान पर फियादीन हमले के एक हफ्ते बाद हुई थी।

सौजन्य: इंडियन पंचलाइन

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