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भारत
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पश्चिम एशिया
ईरान से तेल आयात पर अमेरिकी छूट समाप्त होने से भारत को बड़ा नुकसान!
एक अपराधी को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए मोदी सरकार ने ईरान के साथ संबंधों को प्रतिबंधित करने के अमेरिकी फरमान के सामने घुटने टेकने के लिए भारत के लिए आधार बनाया है। इससे भारत की सामरिक स्वायत्तता और स्वतंत्र विदेश नीति को खतरा है।
गौतम नवलखा
27 Apr 2019
iran
image courtesy- daily express

वैश्विक राजनीति की बर्बर दुनिया जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका ने महारत हासिल कर ली है और वह इसे अपनी ताकतों. एकतरफा प्रतिबंधों और लाल रेखाओं को खींचकर कार्यान्वित करता है। ये अब मानक बनता जा रहा है। भारत सरकार को दिए गए एक सख्त संदेश में अमेरिकी प्रशासन ने यह बता दिया है कि अगर भारत मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने और पुलवामा हमले के बाद मदद चाहता है तो वह ईरान के तेल अर्थव्यवस्था को बाधित करने में यूएस नीति का समर्थन करे। दूसरे शब्दों में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए प्रचार का नकारात्मक पक्ष अब स्पष्ट दिखाई देता है। वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए यूएस का दांव लगाने से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय सुरक्षा की बातें स्पष्ट हो जाती है।

नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के बारे में जो बड़े बड़े वादे किए जा रहे हैं वह ये है कि इस सरकार ने भारत को मज़बूत और सम्मानित बनाया है। इस बीच अमेरिका ने कहा है कि वह भारत, चीन और अन्य देशों को ईरान के तेल पर निर्भर होने वाली छूट का नवीनीकरण करने नहीं जा रहा है।

जाहिर है कॉर्पोरेट स्वामित्व वाली मीडिया ने मोदी सरकार से ईरान से तेल आयात को समाप्त करने का आग्रह किया है क्योंकि ईरान के साथ संबंधों के विपरीत अमेरिका के साथ संबंध रणनीतिक महत्व के हैं। इस बीच बीजेपी सरकार और उसकी सहयोगी पार्टियां अपुष्ट कारण बताती है कि सरकार की वैकल्पिक योजनाओं के तैयार होने की वजह से भारत पर प्रतिकूल प्रभाव क्यों नहीं पड़ेगा। एक अन्य रास्ता बताया जा रहा है कि मोदी सरकार ईरान और अमेरिका के बीच "उचित संतुलन" तलाशने में लगी हुई है।

भारत ने 2018-19 (फरवरी तक) में 23.6 मिलियन टन (एमटी) ईरानी तेल का आयात किया जो भारत के कुल तेल आयात 207.3 मिलियन टन (एमटी) का 11% है (फरवरी तक)। भारत का तेल बिल 2015-16 में 64 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2016-17 में 70.1 बिलियन डॉलर, 2017-18 में 87.8 बिलियन डॉलर और 2018-19 (फरवरी तक) में102.9 बिलियन डॉलर रहा है। मार्च के अंत तक कुल बिल 120 बिलियन डॉलर के पार जाने की संभावना है।

ईरानी तेल के प्रति आकर्षण दो मायने में है। पहला, जैसा कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने बताया है कि अगर ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद हो जाता है तो भारत2,500 करोड़ रुपये गंवा सकता है। इसका कारण ईरान द्वारा दी गई लाभप्रद शर्तें हैं जिसमें तेल की क़ीमत में छूट, 60 दिनों की क्रेडिट और मुफ्त बीमा शामिल हैं। दूसरा,ईरानी तेल (वेनेजुएला सहित) में अधिक मात्रा में अशुद्ध गंधक (sour crude oil ) पाया जाता है इसलिए रिफाइन करने का लाभ सऊदी अरब या संयुक्त अरब अमीरात के तेल में कम मात्रा में अशुद्ध गंधक (sweet crude oil) के विपरीत काफी बेहतर है। ईरानी तेल के लिए बदलाव ढूंढना भी आवश्यक है अन्यथा रिफाइनरियों को परिष्कृत करने के लिए "सोर क्रूड ऑयल" से "स्वीट क्रूड आयल" में अपने प्लांट में बदलाव करने में काफी खर्च करना होगा।

हालांकि अमेरिका ने ईरान चाबहार बंदरगाह के विकास पर प्रतिबंधों का विस्तार नहीं करने की बात कही है जिसमें भारत ने भारी निवेश किया है, यह संभावना नहीं है कि ईरान चुपचाप बैठ जाएगा और अमेरिका को इस पर निशाना लगाने और खामोशी से चले जाने की अनुमति देगा। वास्तव में एक गिरती हुई महाशक्ति के रूप में अमेरिका ने विशाल सैन्य उपस्थिति बढ़ाई है जो 50 से अधिक देशों में 800 ठिकानों पर तैनात हैं ऐसे में कच्चे तेल लदे ईरानी जहाजों को जाने से रोकने का कोई भी प्रयास करना होर्मुज जलडमरुमध्य में संघर्ष शुरू कर सकता है। ये जलडमरुमध्य दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण तेल व्यापार मार्ग है।

इस बात पर बहुत कम चर्चा की गई है कि यूएस फरमानों के आगे झुककर भारत 21.7 ट्रिलियन क्यूबिक फीट के अनुमानित रिजर्व वाले ईरान के फरज़ंद बी गैस क्षेत्र में हिस्सेदारी को गंवा देगा। इसके अलावा अमेरिकी प्रतिबंध भारत को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण व्यापार गलियारे के लिए अपनी महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने से भी रोकेगा जिसका उद्देश्य हिंद तथा प्रशांत महासागर को यूरेशिया से जोड़ना है। हालांकि एक क्षेत्र मध्य एशियाई गणराज्यों तक फैला हुआ है, दूसरा बांदर अब्बास (ईरान) के जरीए अजरबैजान और फिर रूस में अस्त्राखान और फिर रूस के यूरोपीय भाग तक जाता है।

मोदी सरकार के लिए स्थिति यह है कि अगर यह यूएस की दबाव में झुक जाती है तो यह खुद को एक कमज़ोर के रूप में पेश करेगी। और अगर यह अमेरिका का विरोध करती है तो इसे यूएस की नाराज़गी का सामना करना पड़ेगा। यह ऐसे समय में जब पहले से ही रुस से एस400 एसएएम (सतह से हवा) सिस्टम खरीदने को लेकर सीएएटीएसए (काउंटरिंग अमेरिकाज एडवरसरीज थ्रू सैंक्शन्स एक्ट) की तलवार भारत पर लटकी हुई है।

दूसरी तरफ इस सरकार की विदेश नीति में बुनियादी चूक यह है कि इसका कोई क्षेत्रीय दृष्टिकोण नहीं है जो प्रतिकूल संबंधों के लिए दीर्घकालिक संतुलन बनाने के रूप में दक्षिण एशिया के भीतर व्यापार तथा यात्रा के लिए प्रोत्साहित करता है। यह सामान्य ज्ञान है कि पाकिस्तान के साथ संबंधों में धैर्य और चातुर्य की आवश्यकता है न कि चमत्कार की जहां दो दक्षिणपंथी ताकतें मेलजोल बढ़ाने के लिए काम करती हैं। हालांकि पाकिस्तान के साथ मौजूदा भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का जुनून पड़ोसियों के बीच शत्रुता होने पर भी अन्य मोर्चों पर काम करने के लिए उन्हें अंधा बना देता है।

समुद्र से जाने वाले कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए मध्य एशिया में चीन ने ओवरलैंड पाइपलाइन में निवेश किया है। इसके विपरीत भारत अपने तेल आयात के लिए पूरी तरह से समुद्री मार्ग पर निर्भर है। मुख्य रूप से क्योंकि निरंतर भारत की सरकारों ने तर्कसंगत स्वहित को छोड़ दिया और भारत, पाकिस्तान तथा ईरान को जोड़ने वाली एक पाइपलाइन का काम जारी रखने के बजाय पाकिस्तान के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों ने देश को गुमराह कर दिया।

एक तर्क यह दिया जाता है कि कारोबारी संबंधों के दौरान भारत को ईरान के तेल के मामले में अमेरिकी फरमान को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाएगा। भले ही इस पर इसकी मरजी न हो। हालांकि पड़ोसियों और बढ़े हुए पड़ोस के साथ संबंधों का बहुत महत्व है और हितों से जुड़ा हुआ है। यह विश्वास करना कि चीन को घेरने के लिए अमेरिका को भारत की आवश्यकता है और भारत को इसके रणनीतिक योजना के लिए कुछ भी करेगा यह एक घिसी पिटी बात है। मोदी सरकार की प्रोत्साहन की शक्ति डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन से भारत को छूट दिलाने में विफल रही है। भारत में प्रचार के विपरीत, अमेरिका की तुलना में भारत की सौदेबाजी क्षमता कम है। और यह वास्तव में कारोबारी संबंधों को ध्यान में रखते हुए है कि अमेरिका ने मसूद अजहर को 'वैश्विक आतंकवादी' के रूप में सूचीबद्ध करने के अपने प्रयासों में समर्थन की मांग की है।

दूसरे शब्दों में एक अपराधी को सूचीबद्ध करने के क्रम में मोदी सरकार ने ईरान के साथ संबंधों को कम करने/प्रतिबंधित करने के लिए यूएस के फरमान के सामने घुटने टेकने के लिए भारत के लिए आधार तैयार किया है क्योंकि भारत कच्चे तेल का आयात करना बंद कर देगा और संभवत: फरजंद बी परियोजना से हाथ खींच लेगा जो ओएनजीसी की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी वहां निवेश करने के लिए तैयार थी। यह नहीं भूलना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे को पीछे की तरफ धकेल दिया गया है जिससे भारत को यूरेशिया के लिए दीर्घकालिक मार्ग में सुधार करने से रोका जा सकता है।

इसलिए यदि मोदी सरकार मानती है कि भारत के पास बहुत सारे विकल्प हैं और इसके उन्मादपूर्ण राजनयिक कदमों ने भारत के फ्रोफाइल को बेहतर किया है और अधिक अवसर प्रदान किए हैं तो इस पर वह फिर से सोचे। आम चुनावों के दौर में मोदी सरकार भारत की मजबूत “राष्ट्रीय सुरक्षा” को भुना रही है जिसे यूएस के प्रति इसकी बंदगी को बताने की आवश्यकता है तथा अजहर को वैश्विक आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध करने के बदले में अमेरिका को उसके मनमानी और आपराधिक मांगों को पूरा करने की शर्तों को बताना आवश्यक है।

दूसरे शब्दों में यह अमेरिकी सरकार के सामने केवल झुकना नहीं है जो मोदी सरकार को संकट में डालता है। पुलवामा और बालाकोट के नाम पर वोट बटोरने के लिए इसके संकीर्ण स्वार्थ ने चतुराई के साथ प्रबंधन करने के जगह को तंग कर दिया है। इसलिए इस आम चुनावों के दौरान भारतीय लोग जो सामना कर रहे हैं वह है मोदी सरकार भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और स्वतंत्र विदेश नीति को जोखिम में डाल रही है।

 

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