NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
इस चुनाव में रोज़ी-रोटी और संविधान दांव पर हैं : दीपंकर
“भाजपा की आस्था लोकतंत्र में नहीं है। जन मुद्दों से भाजपा का कोई लेना-देना नहीं है। वे कोशिश कर रहे हैं कि देश को सांप्रदायिक तनाव में डाल दिया जाए।” भाकपा माले महासचिव से ख़ास बातचीत।
राजु कुमार
12 Apr 2019
दीपंकर भट्टाचार्य

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के राष्ट्रीय महासचिव कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य इस लोकसभा चुनाव में वामपंथी दलों की भूमिका को महत्वपूर्ण बता रहे हैं। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को लेकर बिहार के आरा में उनसे ख़ास बातचीत की गई। पेश हैं संपादित अंश।

वर्तमान लोकसभा चुनाव में वामपंथी दलों की स्थिति का आंकलन किस तरह से कर रहे हैं?

इस बार का लोकसभा चुनाव बहुत ही खास है। भाजपा खुले तौर पर सांप्रदायिक बातें कर रही है। छद्म राष्ट्रवाद का सहारा ले रही है। उसके राष्ट्रवाद में दलित, आदिवासी, महिला और अल्पसंख्यक गायब हैं। किसानों के मुद्दे, युवाओं के मुद्दे और महिलाओं के मुद्दे पर भाजपा कोई बात नहीं करना चाहती। पिछले सालों में रोजगार, किसानी और महिला हिंसा जैसे मुद्दे पर वामपंथी दलों ने लगातार संघर्ष किया है व भाजपा की सांप्रदायिक और जन विरोधी नीतियों का लगातार विरोध किया है। ऐसे में जनता और देश के वास्तविक मुद्दों को चुनाव में वामपंथी दलों ने उठाया है, जिसकी वजह से इस बार के चुनाव में वामपंथी दल जहां-जहां चुनाव लड़ रहे हैं, वहां वे मजबूत स्थिति में हैं। इसके अलावा अन्य सीटों पर भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों को हराने के लिए धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को समर्थन दिया गया है।

बिहार में वामपंथी दल महगठबंधन का हिस्सा बनना चाहते थे, लेकिन यहां उन्हें महत्व नहीं दिया गया। इसे किस तरह से देखते हैं?

बिहार में वामपंथ के महत्व को नहीं नकारा जा सकता है। भाकपा माले ने बिहार में लगातार जन मुद्दों पर संघर्ष किया है। इसका अपना जनाधार है। गठबंधन बनाने की प्रक्रिया से वामपंथ को बाहर रखने के निर्णय को सही नहीं कहा जा सकता। लेकिन राष्ट्रीय जनता दल ने आरा संसदीय सीट को अपने कोटे से सद्भावना के तहत भाकपा माले के लिए छोड़ दिया है। हमने भी इसके बदले पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार नहीं उतारा है। वहां हमने राजद की मीसा भारती को समर्थन दिया है। आरा में महागठबंधन के दूसरे दलों ने भी भाकपा माले को समर्थन दिया है। आरा में 1989 जैसा माहौल है, जब यहां की जनता ने कॉ. रामेश्वर प्रसाद को लोकसभा में भेजा था। इस बार भी जिस तरह से जनता का समर्थन कॉ. राजू यादव के पक्ष में दिख रहा है, उससे स्पष्ट है कि आरा से वामपंथ की जीत होगी। लेकिन हमारा साफ मानना है कि पूरे बिहार में महागठबंधन में वामपंथी दलों को शामिल नहीं करना, सही निर्णय नहीं है। भाकपा माले बिहार में आरा, सिवान, काराकाट और जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही है। इसके साथ ही उसने उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और बेगूसराय में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन दिया है। भाकपा माले पूरे देश में 22 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

बेगूसराय में भाकपा के कन्हैया कुमार एक सशक्त उम्मीदवार हैं। आपको राजद ने आरा में समर्थन दिया है, लेकिन वहां राजद ने उम्मीदवार उतारा है। बेगूसराय में आपकी पार्टी की क्या भूमिका होगी?

हमने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वहां भाकपा को समर्थन दे रहे हैं। वैसे भी कन्हैया सशक्त उम्मीदवार हैं और उन्हें वहां की जनता का भरपूर समर्थन हासिल है। बेगूसराय में भाजपा की करारी शिकस्त होगी। एक बार फिर वहां वामपंथ का परचम लहराएगा।

चुनाव में स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा जोर है, या फिर राष्ट्रीय मुद्दों पर?

लोकसभा के चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर ही लड़े जाते हैं, लेकिन हम स्थानीय सांसद के परफॉर्मेंस पर भी सवाल उठा रहे हैं। इस बार का चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस चुनाव में रोज़ी-रोटी और संविधान दांव पर हैं। भाजपा एक तरफ लोकतंत्र की बात करती है, तो दूसरी तरफ वह कई तरह से संविधान पर हमला करती है। उनकी आस्था लोकतंत्र में नहीं है। जन मुद्दों से भाजपा का कोई लेना-देना नहीं है। वे कोशिश कर रहे हैं कि देश को सांप्रदायिक तनाव में डाल दिया जाए। सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरोध करने वालों को दबाया जा रहा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म किया जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद मुद्दे अपनी जगह पर हैं और लोग उनसे जूझ रहे हैं। इस बीच किसानों की एकता बढ़ी है। रोहित वेमुला के सवाल पर दलितों और प्रगतिशील तबकों में एकता बढ़ी है। महिला हिंसा के खिलाफ लोग इकट्ठा हुए हैं। ऐसे में इस सरकार के खिलाफ जनता की गोलबंदी साफ दिख रही है।

लेकिन 5 साल पहले विकास की बात करने वाली भाजपा अब मुद्दों के बजाय मजबूत सरकार और राष्ट्रवाद की बात करने लगी है और चुनाव को इस दिशा में ले जा रही है, इसे आप मुद्दों की ओर किस तरह से मोड़ेंगे?

आम लोग भाजपा की इस चाल को समझ रहे हैं। लोग उनसे सवाल कर रहे हैं कि यदि यह मजबूत सरकार है, तो पुलवामा की घटना क्यों हुई? बालाकोट में हमारा ही नुकसान क्यों हुआ? राष्ट्रवाद में दलित स्वाभिमान की बात क्यों गायब है? दलित स्वाभिमान की बात करने वाले चंद्रशेखर आजाद पर रासुका क्यों लगाया गया? राष्ट्रवाद की परिभाषा से मुस्लिम क्यों गायब हैं? आदिवासियों के सवाल इस राष्ट्रवाद में कहां हैं? लोग समझ रहे हैं कि भाजपा एक संकीर्ण राष्ट्रवाद की बात कर रही है और विदेश नीति, आर्थिक नीति, रक्षा नीति सहित जनता के मुद्दे पर अब तक की यह सबसे कमजोर सरकार है। इस सरकार ने इलेक्ट्रॉल बॉण्ड को मनी बिल के रूप में संसद से पारित कराकर भ्रष्टाचार को कानूनी रूप दे दिया। भाजपा की अगुवाई वाली इस सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने का कोई काम नहीं किया। हर बड़े काम अडानी और अंबानी की जेब में डाल दिए गए हैं। लगता है कि देश में उनसे काबिल न तो सरकारी कंपनियां हैं और न ही अन्य निजी कंपनियां। जनता के साथ किए जा रहे इस मजाक को राष्ट्रवाद कैसे कहा जा सकता है? भारतीय राष्ट्र में महिला, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक सभी के लिए समान अधिकार हैं। प्रगतिशील ताकतों को इन बातों को ज्यादा प्रभावी तरीके से सुदूर इलाकों में रहने वाले लोगों तक ले जाने की जरूरत है।

लेकिन कई फेक न्यूज़ के साथ जनता के मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए प्रोपगेंडा चलाया जा रहा है। ऐसे में क्या प्रगतिशील ताकतें पीछे नहीं रह जाती?

ऐसा नहीं है। अब 2014 वाली स्थिति नहीं है, जब भाजपा ने सोशल मीडिया का एकतरफा उपयोग करके लोगों को भ्रमित कर दिया था। फेक न्यूज़ के आते ही अब उसका खुलासा वाले पोस्ट भी उतनी ही तेजी से वायरल हो रहे हैं। पहले सोशल मीडिया एकतरफा था। अब सोशल मीडिया पर जबर्दस्त लड़ाई चल रही है। फर्जी लोगों का और फर्जी पोस्ट का खुलासा होने लगा है। फेक न्यूज़ के माध्यम से प्रोपगेंडा चलाना आसान नहीं रह गया है।

आपको इस चुनाव से क्या उम्मीद दिखती है?

जुमलेबाजों के जाल में इस बार जनता नहीं फंसेगी। जनता का दमन करने वाली सरकार को उखाड़ फेंकना है। प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी ताकतों की एकता से हमें पूरी उम्मीद है कि केन्द्र में सत्ता परिवर्तन होगा।

2019 आम चुनाव
General elections2019
2019 Lok Sabha Polls
CPI(ML)
dipankar bhattacharya
Left politics
Left unity

Related Stories

झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान

बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका

जेएनयू: अर्जित वेतन के लिए कर्मचारियों की हड़ताल जारी, आंदोलन का साथ देने पर छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष की एंट्री बैन!

उत्तराखंड चुनाव: मज़बूत विपक्ष के उद्देश्य से चुनावी रण में डटे हैं वामदल

उत्तराखंड: असिस्टेंट प्रोफेसर पदों पर भर्ती की शर्तों का विरोध, इंटरव्यू के 100 नंबर पर न हो जाए खेल!

पश्चिम बंगाल: वामपंथी पार्टियों ने मनाया नवंबर क्रांति दिवस

बिहार पंचायत चुनाव : सत्ता विरोधी प्रत्याशियों पर चल रहा पुलिस प्रशासन का डंडा!

बिहार : पंचयती चुनाव टले लेकिन पंचायतों की ज़िम्मेदारी अधिकारियों को सौंप जाने को लेकर विपक्ष का विरोध

बंगाल चुनावः तृणमूल नेताओं को भगवा पहनाकर चुनावी बिसात बैठा रही भाजपा!

बतकही: विपक्ष के पास कोई चेहरा भी तो नहीं है!


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License