NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
जारी रक्षा "सुधार" भारतीय सेना के गोलाबारूद की कमी की समस्या का हल नहीं कर सकते हैं
रक्षा क्षेत्र को निजी क्षेत्र में सौंपने से सशस्त्र बलों की समस्याओं का समाधान नहीं होगा।

न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
09 Mar 2018
Defence

कुछ समय पहले ऐसी खबरें आईं थी कि भारतीय सेना के पास गोला-बारूद के पर्याप्त स्टॉक नहीं हैं। इसको लेकर चिंता जताई गई थी।

गोला-बारूद के भंडारों के स्तर के संबंध में दो मानक हैं जिसे माना जाता है कि देश को इसे क़ायम रखना चाहिए। एक मानक वार वेस्टेज रिजर्व (डब्ल्यूडब्ल्यूआर)स्केल है, जिसके अनुसार भारत को सघन युद्ध की स्थिति में गोला बारूद का भंडार 40 दिनों का होना चाहिए। दूसरे मानक गोला-बारूद का मिनिमम एक्सेप्टेबल रिस्क लेवल (एमएआरएल) है जिसके अनुसार सघन युद्ध की स्थिति में गोला बारूद का पर्याप्त भंडार 20 दिनों का होना चाहिए।

पूर्व नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) शशिकांत शर्मा की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सेना के 152 प्रकार के गोला-बारूद का 80 प्रतिशत डब्ल्यूडब्ल्यूआर के स्तरों को पूरा नहीं करता था, वहीं गोला बारूद के 55 प्रतिशत एमएआरएल के स्तरों को पूरा नहीं करते थें। सीएजी की यह रिपोर्ट जुलाई 2017 में संसद में पेश किया गया था।

उत्पादन लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम न होने के कारण देश में आयुध कारखानों के ख़िलाफ़ लगातार आलोचनाएं हुईं। लेकिन दुर्भाग्यवश आयुध कारखानों (ऑर्डिनेंस फैक्ट्री) की आवाज़ को मीडिया रिपोर्टों और विश्लेषण में कोई जगह नहीं मिली। न्यूज़क्लिक ने इस मुद्दे पर ऑल इंडिया डिफेंस एम्प्लाईज़ फेडरेशन (एआईडीईएफ)के महासचिव सी श्रीकुमार से बात की।

श्रीकुमार ने कहा कि "दुर्भाग्य से ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड एक सरकारी विभाग होने के चलते इसके ख़िलाफ़ किए गए आलोचनाओं को लेकर इसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। और जब हमने (यूनियन)प्रतिक्रिया दिया तो उसे कोई भी प्रकाशित नहीं करता है।"

उन्होंने कहा कि "विभिन्न प्रकार के हथियारों में इस्तेमाल किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के गोला बारूद होते हैं। हम स्वयं इनका निर्माण नहीं करते हैं। सेना हमें हर सालजानकारी देती है कि उसे इस-इस तरह के गोलाबारूद की आवश्यकता है। जब वे हमें जानकारी दे देते हैं तो हम उसके बाद कच्चे माल, सामग्रियों और अन्य चीजों की खरीद करते हैं। ऐतिहासिक रूप से गोला बारूद के विनिर्माण में विभिन्न प्रकार के कारखाने शामिल हैं। यह सब रणनीतिक कारणों के चलते है। आप सभी चीजों को एक ही टोकरी में नहीं रख सकते हैं।

इसलिए रणनीतिक रूप से मेटालर्जिकल फैक्ट्री गोले बनाते हैं। तब इन गोलों को इंजीनियरिंग फैक्ट्री में स्थानांतरित कर दिया जाएगा जहां मशीनी कार्यवाही होगी। फोर्जिंग (ये एक निर्माण प्रक्रिया है जिसमें धातु को आकार दिया जाता है) प्रक्रिया पूरा होने के बाद बम को इंजीनियरिंग फैक्ट्री में लाया जाएगा जहां इसे उचित आकार दिया जाएगा। तब यह फिलिंग फैक्ट्री में भेजा जाएगा।

इन फिलिंग फैक्ट्री के लिए तीन रासायनिक कारखाने हैं जो विस्फोटक और रसायनों का निर्माण कर रहे हैं। एक अरुवंकाडु में है, दूसरा इटारसी में है, तीसरा भंडारा में है, और दूसरा जो हाई एक्सप्लोसिव फैक्ट्री है वह पुणे में है।

इसलिए यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस प्रकार के गोला भरने जा रहे हैं। और तब फिलिंग फैक्ट्री गोला बारूद को अंतिम रूप देंगे।

फिर इसे पैक किया जाएगा और विभिन्न गोला बारूद डिपो में भेज दिया जाएगा। इस तरह यह एक सिस्टम है।

गोला बारूद निर्माण करने के लिए, आदर्श रूप से उन्हें हमें पांच साल का भार देना चाहिए - जिसे वे "रॉल-ऑन इंडेंट" कहते हैं। तभी हम सामग्री खरीद सकते हैं,रसायनों की खरीद कर सकते हैं और इन सभी चीजों का निर्माण कर सकते हैं। ये चीजें बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं होती हैं। और कोई भी उत्पादन नहीं करता है और न इसे कोई शो-रूम में रखता है। इसलिए, हमें उन निजी कंपनियों को भी बताना होगा जो पहले से इसमें शामिल हैं क्योंकि आयुध कारखानों के अलावा इन उत्पादों का कोई ग्राहक ही नहीं होता है।

जब तक आप उसके लिए कोई ऑर्डर नहीं देते हैं, वे इन रसायनों का उत्पादन नहीं करेंगे क्योंकि ये सभी प्रतिबंधित वस्तु हैं। कई लोग जो मेरी आलोचना करते हैं वे इन व्यावहारिक समस्याओं को नहीं समझते हैं।"

"अब मैं आपको एक सरल उदाहरण दूंगा। गोला बारूद बॉक्स का मामला लें, जिसके उत्पादन को अब आउटसोर्स किया गया है इस दावे के साथ कि यह एक "नॉन-कोर" आइटम है। अब देखिए कि क्या होता है। आयुध कारखाने इन निजी कंपनियों को गोला बारूद बॉक्स के लिए ऑर्डर देता है। लेकिन वे इस बॉक्स की आपूर्ति नहीं करते हैं। वे जो कारण बताते हैं वो कुछ इस तरह है 'जब हमने ऑर्डर लिया तो स्टील की क़ीमत कुछ इस तरह थी, लेकिन जब हमने काम करना शुरू किया तो स्टील की कीमतें बढ़ गई हैं। इसलिए हम मूल दर पर आपूर्ति नहीं कर सकते हैं।

इसलिए अंततः आयुध कारखानों ने गोला बारूद बॉक्स का उत्पादन बंद कर दिया है, और निजी कंपनी भी आपूर्ति नहीं कर रहे हैं। उत्पादित गोला बारूद कारखाने में ही है; आप इसे भेज नहीं सकते हैं।

इस तरह की समस्याएं हैं जिसके बारे में न ही कोई बोलता है और न ही कोई लिखता है।

गोला बारूद स्टॉक को लंबे समय तक रखा भी नहीं जा सकता है। ट्रायल में और प्रशिक्षण के दौरान सेना द्वारा नियमित रूप से गोला-बारूद का इस्तेमाल किया जाना है क्योंकि ये सभी रसायन होते हैं। उनके रखने की सीमा होती है। इन्हें अलग-अलग तापमान पर अलग-अलग गोला बारूद डिपो में संग्रहीत किया जा रहा है। आप इन्हें अधिकतम 45 दिनों तक ही रख सकते हैं। यदि आप इन्हें डिपो में इस सीमा से ज्यादा दिनों तक रखते हैं और यदि रिसाव होता है तो पूरा डिपो उड़ जाएगा। आपके डिपो में एक साल का गोला बारूद स्टॉक नहीं हो सकता है।

अन्य चीजें भी हैं। यहां तक कि विदेशों से आयातित गोला बारूद जो ख़राब है उसे भी आयुध कारखानों के दोष के रूप में चित्रित किया जा रहा है। धातुओं और सामग्रियों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ टीम भेजना है...। इन परिणामों को (जो अक्सर आयुध कारखानों के पक्ष में होता है) समाचार पत्रों द्वारा प्रकाशित नहीं किया जाता हैं।"

श्रीकुमार ने आगे कहा कि "आयुध कारखानों के ख़िलाफ़ इस तरह के प्रचार के पीछे का एक संपूर्ण उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र को नष्ट करना है। इस तरह के विचार से जनता के दिमाग़ में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति गलत छवि बनाई जाती है। यह छिपा हुआ एजेंडा है।"

रक्षा सुधारों का मौजूदा समय उन्हें "नॉन-कोर" के रूप में वर्गीकृत करके 250 वस्तुओं के उत्पादन के आउटसोर्सिंग करना है। ये उपाय भारत के सशस्त्र बलों की समस्याओं को हल नहीं कर पाएंगे जिसका सामना सेना कर रही है। इसमें गोला-बारूद की कमी भी शामिल है।

Defence
भारतीय सेना
CAG
WWR

Related Stories

मुद्दा: नई राष्ट्रीय पेंशन योजना के ख़िलाफ़ नई मोर्चाबंदी

एनपीएस की जगह, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की मांग क्यों कर रहे हैं सरकारी कर्मचारी? 

सरकार ने CEL को बेचने की कोशिशों पर लगाया ब्रेक, लेकिन कर्मचारियों का संघर्ष जारी

नीतीश सरकार ने एससी-एसटी छात्रवृत्ति फंड का दुरूपयोग कियाः अरूण मिश्रा

एक तरफ़ PM ने किया गांधी का आह्वान, दूसरी तरफ़ वन अधिनियम को कमजोर करने का प्रस्ताव

कुंभ मेले की सीएजी रिपोर्ट को लेकर योगी सरकार पर उठे सवाल

हड़तालों के सिलसिले में आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक आईएलओ नीति का उल्लंघन

कैग रिपोर्ट : एफसीआई के कुप्रबंधन से हुआ 55 करोड़ से अधिक का वित्तीय नुकसान

कार्टून क्लिक: ...दो गज़ की दूरी, कैग के लिए भी ज़रूरी!

रिलायंस को जिओ स्पेक्ट्रम के लिए भारी बकाये का भुगतान करना होगा: सांसद


बाकी खबरें

  • Modi
    अनिल जैन
    PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?
    01 Jun 2022
    प्रधानमंत्री ने तमाम विपक्षी दलों को अपने, अपनी पार्टी और देश के दुश्मन के तौर पर प्रचारित किया और उन्हें खत्म करने का खुला ऐलान किया है। वे हर जगह डबल इंजन की सरकार का ऐसा प्रचार करते हैं, जैसे…
  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    महाराष्ट्र में एक बार फिर कोरोना के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है। महाराष्ट्र में आज तीन महीने बाद कोरोना के 700 से ज्यादा 711 नए मामले दर्ज़ किए गए हैं।
  • संदीपन तालुकदार
    चीन अपने स्पेस स्टेशन में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की योजना बना रहा है
    01 Jun 2022
    अप्रैल 2021 में पहला मिशन भेजे जाने के बाद, यह तीसरा मिशन होगा।
  • अब्दुल अलीम जाफ़री
    यूपी : मेरठ के 186 स्वास्थ्य कर्मचारियों की बिना नोटिस के छंटनी, दी व्यापक विरोध की चेतावनी
    01 Jun 2022
    प्रदर्शन कर रहे स्वास्थ्य कर्मचारियों ने बिना नोटिस के उन्हें निकाले जाने पर सरकार की निंदा की है।
  • EU
    पीपल्स डिस्पैच
    रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ
    01 Jun 2022
    ये प्रतिबंध जल्द ही उस दो-तिहाई रूसी कच्चे तेल के आयात को प्रभावित करेंगे, जो समुद्र के रास्ते ले जाये जाते हैं। हंगरी के विरोध के बाद, जो बाक़ी बचे एक तिहाई भाग ड्रुज़बा पाइपलाइन से आपूर्ति की जाती…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License