NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
जम्मू-कश्मीर में बदलाव की दो मुख्य वजह : ज़मीन पर कब्ज़ा और स्थानीय राजनीति को कमज़ोर करना
यह सब ’विकास’ की लफ़्फ़ाज़ी  में लपेट कर दमनकारी रास्ते के माध्यम से पेश किया जा रहा है।
सुबोध वर्मा
12 Aug 2019
Translated by महेश कुमार
jammu and kashmir
प्रतियात्मक तस्वीर Image Courtesy: JammuViraasat

जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने वाले नए कानून के भीतर ऐसे प्रावधान हैं, जो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के वास्तविक इरादे को उजागर करते हैं। ये परिवर्तन, एक तरफ तो राजनीतिक शक्ति को प्रभावित कर रहे हैं, और दूसरी ओर भूमि अधिकारों को, इसे जम्मू-कश्मीर के सभी इलाके के लोगों के लिए एक बड़ा झटका और जानबूझकर अपमानित करने वाला कार्य माना जा रहा है। यह ऐसा प्रावधान है जो इस क्षेत्र के लोगों में गुस्सा पैदा कर रहा है, यह शुरुआती झटके के असर के दूर होने के बाद बड़े विरोध में फुटेगा। ये बदलाव आखिर हैं क्या?

भूमि संबंधी संशोधन

नए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 95 कहती है कि राज्य कानूनों और केंद्रीय कानूनों के लागू होने के मामले में क्या होगा। अधिनियम की पांचवीं अनुसूची में इसका विवरण है: 106 केंद्रीय कानूनों को दो नए केंद्र शासित प्रदेशों तक विस्तारित किया जाएगा। कुल 330 राज्य कानूनों और राज्यपालों के अधिनियमों में से 164 का संचालन जारी रहेगा, 166 को निरस्त कर दिया जाएगा और सात में संशोधन किया जाएगा।

इन सात में से, एक का संबंध आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के आरक्षण से है और छह का संबंध भूमि की मालिकाना उपाधियों और हस्तांतरण से है। नीचे तालिका में दिए गए भूमि संबंधी कानूनों पर एक नजर डालें जिन्हे संशोधित किया गया हैं। उन सभी का एक स्पष्ट उद्देश्य है स्थायी निवासियों (जेएंडके संविधान द्वारा परिभाषित) का विशेष स्वामित्व अधिकार अब नहीं रहेगा, जिन्हें पहले जम्मू और कश्मीर में भारत के साथ विलय होने से पहले (1927 से) ‘राज्य विषय’ के रूप में जाना जाता था। इन कानूनों को संशोधित करने की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ/बीजेपी की एक प्रमुख चिंता थी जिसके प्रावधानों को राष्ट्र-विरोधी के रूप में चित्रित किया गया और एक छद्म राष्ट्रवादी रंग दिया गया।

राज्य कानून हटाए प्रावधान हटाए प्रावधान क्या हैं
संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1977 (1920) धारा 139 और धारा 140

मौजूदा विनियमन, हिदायत, प्रस्ताव, एलान, नियम या मान्य रिवाज को नहीं बदला जा सकता है।

वित्तीय कम्पनी, पीएसयू, वैष्णो देवी, के हस्तानांतरण के मामले में छूट थी कि अगर कोई गैर-स्थायी निवासी इनके मालिकाना हक के लिए याचिका दायर करता है तो इसे हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है।

जम्मू और कश्मीर अलगाव भूमि अधिनियम, 1995 धारा 4 और धारा 4-A

भूमि को गैर-राज्य विषय यानि गैर कश्मीरी को स्थानांतरित नहीं की जा सकती है

‘राज्य विषय’ न्यायिक विभाग अधिसूचना संख्या 1-एल / 84, दिनांक 20 अप्रैल, 1927 के अनुसार तय है।

जम्मू और कश्मीर बड़ी भुमि संपत्ति उन्मूलन अधिनियम,2007 (1950) ए. धारा 4 की उप-धारा 1 में प्रावधान
ब. धारा 4 की उप-धारा 2 में खण्ड(i)

भूमि को गैर-राज्य विषय यानि गैर कश्मीरी को स्थानांतरित नहीं की जा सकती है

‘राज्य विषय’ न्यायिक विभाग अधिसूचना संख्या 1-एल / 84, दिनांक 20 अप्रैल, 1927 के अनुसार तय है।

जम्मू और कश्मीर भूमि अनुदान अधिनियम, 1960 ए. धारा 4 की उप-धारा 1 में प्रावधान
ब. धारा 4 की उप-धारा 2 में खण्ड(i)
भवन निर्माण के लिए सरकार दो कनाल भूमि को पट्टे पर दे सकती है, लेकिन गैर-राज्य निवासी को नहीं और इस तरह के मामले रद्द कर दिए जाएंगे अगर राज्य के निवासी को एक प्रवर्तक या ऐसे समाज के सदस्य के रूप में पेश किया जाता है।
जम्मू और कश्मीर कृषि सुधार अधिनियम, 1976 धारा 17 कोई जमीन,आवास गृह या ढांचा किसी भी कानून या प्राधिकरण के तहत राज्य के गैर स्थाई निवासी को स्थानांतरित नहीं किया जाएगा
जम्मू और कश्मीर सहकारी समिति अधिनियम, 1989 उप-धारा (ii) का खंड (a) धारा 17 की उपधारा (1 सहकारी समिति के सदस्य के रुप में स्थायी निवासी को छोड़कर किसी भी अन्य व्यक्ति को भर्ती नहीं किया जाएगा जिसे जम्मू और कश्मीर के संविधान की धारा 6 में परिभाषित किया गया ह

ध्यान दें कि एक गैर-राज्य विषय को भूमि के हस्तांतरण के लिए (जैसा कि बड़े भूमि संपदा उन्मूलन अधिनियम की धारा 20 ए में दिया गया है) या राज्य सरकार द्वारा पट्टे पर देना (भूमि अनुदान अधिनियम के अनुसार) अब तक ऐसी भूमि के क्षेत्र में सीमाएं लागू थीं।

नरेंद्र मोदी सरकार को इन कानूनों में संशोधन करने की जरूरत क्यों पड़ी ? जबकि अनुच्छेद 370 के खत्म होने से वह अनुच्छेद 35 ए भी खत्म हो जाता है जो जो राज्य की विधानमंडल को स्थायी नागरिक को परिभाषित करने की शक्ति प्रदान करते है ताकि उन्हें भूमि के मालिकाना हक, सरकारी नौकरियों आदि का आश्वासन दिया जा सके। इसका जवाब सीधा है कि अगर यह राज्य कानून बने रहते तो वहाँ की जमीन जम्मू कश्मीर के निवासियों से खरीदी नहीं जा सकती थी।

भूमि सुधार पर ख़तरा

यह याद रखना चाहिए कि स्टेट सब्जेक्ट्स और उनके विशेष अधिकारों से संबंधित कानून डोगरा राजशाही के शासन के दौरान बनाए गए थे और ऐसा उस समय पंजाबियों और अन्य बाहरी निवासियों द्वारा किए जा रहे अधिग्रहण को रोकने के लिए किया गया था। हालांकि, 1947 के बाद से शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर राज्य में व्यापक भूमि सुधारों को लाया गया, जो इन कानूनों में निहित थे , जिन्हें अब संशोधित किया जा चूका है । इन सुधारों ने बड़े जमींदारों द्वारा किए गए क्रूर सामंती शोषण की कमर तोड़ दी थी, जिनमें से अधिकांश कश्मीरी पंडित और डोगरा थे।

1950 के बिग लैंड्ड एस्टेट एबोलिशन एक्ट में यह शर्त रखी गई थी कि कोई भी 22.75 एकड़ से अधिक भूमि का मालिक नहीं हो सकता है। भूमि की इस सीमा में बाग और चारे के लिए भूमि भी शामिल की गयी थी। 1950 के दशक के अंत तक, सभी 9,000 ज़मींदारों को उनकी अतिरिक्त भूमि से हटा दिया गया था, जो तकरीबन 450,000 एकड़ भूमि थी, जिसमें से लगभग 230,000 एकड़ भूमि का मालिकाना हक जोतदार को हस्तांतरित कर दिया गया था। भारत के अन्य जगहों पर हुए जमींदारी उन्मूलन कानूनों से बड़ा अंतर यहां पर यह था कि यहां जमींदारों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया था। जबकि देश के अन्य हिस्सों में जमींदारी उन्मूलन के मामले में मुकदमेबाज़ी हुई, लेकिन जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्ज़े के कारण इस कानून को चुनौती नहीं दी जा सकती थी।

वास्तव में, स्थायी (राज्य) निवासी अधिकारों ने इस बड़े भूमि सुधार के साथ सामंजस्य स्थापित किया। क्योंकि स्थायी निवासी अधिकार की स्थिति ने बाहर के लोगों को जमीन हथियाने से हमेशा के लिए हतोत्साहित कर दिया था। कई प्रावधान, जिनका पहले उल्लेख किया गया है, में गैर-कृषि वर्गों से संबंधित व्यक्तियों को भूमि के हस्तांतरण पर प्रतिबंध था। अनुपस्थित जमींदार- जिनकी जम्मू-कश्मीर में काफी तादाद थी –को भी इन कानूनों ने धराशायी कर दिया था।

तो, अब जो किया गया है, वह यह कि जम्मू-कश्मीर में पुनर्वितरित भूमि के किले में एक सेंध लगाई गई है। कॉर्पोरेट खिलाड़ी - सैद्धांतिक रूप से - अब किसानों से, या सरकार से जमीन खरीद सकते हैं जिनके नियंत्रण में भूमि संसाधन हैं। यह न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था की नींव को हिला देगा, बल्कि जम्मू-कश्मीर (जम्मू और कश्मीर दोनों में) आम जम्मू-कश्मीर के लोगों (दोनों हिंदू और मुस्लिमों) के बीच बहुत ही जरूरी गुस्से को जन्म देगा क्योंकि उनकी आजीविका का एक स्रोत अब कब्ज़े के अधीन कर दिया गया है।

राजनीतिक शक्तिहीनता

भूमि कानूनों में इस महत्वपूर्ण बदलाव के साथ, दूसरा पहलू - राजनीतिक अधिकार की वंचना का है, जो राज्य को एक पूर्ण राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में बनाने से पैदा होता है। यद्यपि यह अधिनियम वादा करता है कि जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में एक विधान सभा होगी, लेकिन इसकी शक्तियां काफी सीमित होंगी। विधानसभा के पास दो विषयों का नियंत्रण नहीं होगा जो संविधान की सार्वजनिक सूची में हैं - लोक व्यवस्था और पुलिस। तो, सुरक्षा सीधे केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित की जाएगी। केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक सुप्रीमो, उपराज्यपाल के रूप में होगा और है। उसके पास विधान सभा को धता बताने की अपार शक्ति होंगी। इसके अलावा, विधानसभा सीटों के ताजा परिसीमन अधिनियम को भी इसमें रखा गया है और इस बात की आशंका है कि बीजेपी (विशेषकर हाल के वर्षों में) सांप्रदायिक विभाजन को सुनिश्चित करने के लिए जनसांख्यिकी जालसाज़ी करेगी।

यह सब एक साथ परोसा गया है, इसका मतलब है कि जब भी चुनाव होंगे और एक नया बंटवारा होगा, कश्मीर के निवासियों की राजनीतिक शक्ति बहुत कम हो जाएगी। जहां तक लद्दाख का सवाल है, उसके लोगों को पूरी तरह से निर्वस्त्र कर दिया गया है क्योंकि वे अब उनके पास कोई चुना हुआ प्रतिनिधि भी नहीं हैं।

मौजूदा अव्यवस्था के जारी रहने की संभावना है और आने वाले हफ्तों में इन परिवर्तनों के खिलाफ विरोध तेज़ होगा, चुनाव की संभावना कम है। और वैसे भी परिसीमन खुद कुछ महीने तो लेगा ही,तब तक, भूमि पर कब्ज़ा तो किया ही जा सकता है।

jammu kashmir
Abrogation of Article 370
Land grab in J&K
Political disempowerment
Land Reforms

Related Stories

जम्मू कश्मीर की Delimitation की रिपोर्ट क्या कहती है?

सभी के लिए घर : एक बुनियादी जरूरत, लेकिन ग्रामीण भारत में ज़्यादातर लोगों के लिए दूर की कौड़ी

कुछ सरकारी नीतियों ने कश्मीर में पंडित-मुस्लिम संबंधों को तोड़ दिया है : संजय टिक्कू

जम्मू: सार्वजनिक कुएं से पानी निकालने पर ऊंची जातियों के लोगों पर दलित परिवार की पिटाई करने का आरोप

सुप्रीम कोर्ट का रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने का फ़ैसला कितना मानवीय?

हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्ज़ा हासिल हुए 50 वर्ष: उपलब्धियों एवं चुनौतियों पर एक नज़र 

जम्मू-कश्मीर डीडीसी चुनाव : दूसरे चरण की वोटिंग से पहले ज़मीनी मुद्दों पर एक नज़र

अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए जम्मू कश्मीर की सियासी दलों ने बनाया पीपुल्स अलायन्स फॉर गुपकर डिक्लेरेशन

बिहार की ज़मीन पर मालिकाना हक का ज़मीनी इतिहास

गुप्कर घोषणा की बहाली : जम्मू-कश्मीर में आशा और आशंका की लहर


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    यूपी : आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की साख़ बचेगी या बीजेपी सेंध मारेगी?
    31 May 2022
    बीते विधानसभा चुनाव में इन दोनों जगहों से सपा को जीत मिली थी, लेकिन लोकसभा उपचुनाव में ये आसान नहीं होगा, क्योंकि यहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है तो वहीं मुख्य…
  • Himachal
    टिकेंदर सिंह पंवार
    हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 
    31 May 2022
    केंद्र को यह समझना चाहिए कि हाती कोई सजातीय समूह नहीं है। इसमें कई जातिगत उपसमूह भी शामिल हैं। जनजातीय दर्जा, काग़जों पर इनके अंतर को खत्म करता नज़र आएगा, लेकिन वास्तविकता में यह जातिगत पदानुक्रम को…
  • रबीन्द्र नाथ सिन्हा
    त्रिपुरा: सीपीआई(एम) उपचुनाव की तैयारियों में लगी, भाजपा को विश्वास सीएम बदलने से नहीं होगा नुकसान
    31 May 2022
    हाई-प्रोफाइल बिप्लब कुमार देब को पद से अपदस्थ कर, भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व ने नए सीएम के तौर पर पूर्व-कांग्रेसी, प्रोफेसर और दंत चिकित्सक माणिक साहा को चुना है। 
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कर्नाटक पाठ्यपुस्तक संशोधन और कुवेम्पु के अपमान के विरोध में लेखकों का इस्तीफ़ा
    31 May 2022
    “राज्य की शिक्षा, संस्कृति तथा राजनीतिक परिदृ्श्य का दमन और हालिया असंवैधानिक हमलों ने हम लोगों को चिंता में डाल दिया है।"
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?
    31 May 2022
    न्यूज़चक्र के इस एपिसोड में आज वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं उमर खालिद के केस की। शुक्रवार को कोर्ट ने कहा कि उमर खालिद का भाषण अनुचित था, लेकिन यह यह आतंकवादी कृत्य नहीं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License