NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
जनहित की हांडी में पकती सियासत
व्यक्ति या दल बदलने के बजाय नीतियां बदलना आवश्यक है, ताकि जनहित में होने वाले काम सचमुच जनहित के लिए हों, राजनीतिक लाभ के लिए नहीं।
पी. के. खुराना
15 Jan 2018
gujrat elections

गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद संसद का संक्षिप्त सत्र चला और समाप्त हो गया। गुजरात विधानसभा चुनावों के समय हमने अमित शाह और नरेंद्र मोदी का नया रूप देखा। वहां किसानों में गुस्सा था, बेरोजगारी को लेकर नौजवानों में गुस्सा था, आरक्षण के मुद्दे पर पटेल समाज तथा अन्य पिछड़ी जातियों के लोग नाराज थे। नोटबंदी और जीएसटी के कारण व्यापारी वर्ग नाराज था। जीएसटी का सर्वाधिक विरोध सूरत में हुआ। सारे विरोध के बावजूद भाजपा अपनी सत्ता कायम रखने में सफल रही और विजय रूपाणी मुख्यमंत्री के रूप में कायम हैं।

जनता के सामने अब नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह गाल फुला-फुला कर कह रहे हैं कि यदि सचमुच गुजरात की जनता हमसे नाराज होती तो हम सत्ता में वापस कैसे आते। हालांकि वे यह नहीं बताते कि गुजरात में उनकी सीटें पहले से भी कम हो गई हैं, उनके कई मंत्री चुनाव हार गए हैं, जिग्नेश मेवाणी चुनाव जीत गए हैं और किसानों का गुस्सा इस रूप में फूटा है कि गुजरात के ग्रामीण इलाकों से भाजपा को समर्थन नहीं मिला है। वहां उसे धूल चाटनी पड़ी है। यही नहीं, बहुत सी सीटों पर भाजपा बहुत मामूली अंतर से जीती है और यदि प्रदेश में कांग्रेस का संगठन होता और राज्य स्तर पर कांग्रेस के पास कोई बड़ा और विश्वसनीय नाम होता, तो शायद तस्वीर कुछ और होती। यह तो सच है कि जीतने वाला ही सिकंदर कहलाता है और मोदी तथा शाह ने अपनी रणनीति से यह सफलता तो पा ही ली है कि गुजरात की जनता के समर्थन से वे गुजरात में सत्ता में बने हुए हैं।

गुजरात चुनावों के दौरान मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह पर पाकिस्तान से साठगांठ का आरोप लगाया और इस आरोप को खूब भुनाया। संसद के शीतकालीन सत्र के समय कांग्रेस का रुख यह था कि मोदी के इस झूठे आरोप के लिए मोदी को डा. मनमोहन सिंह से माफी मांगनी चाहिए वरना संसद नहीं चलने देंगे। इसके जवाब में मोदी ने यह चाल चली कि लोकसभा में तीन तलाक का बिल पेश करवा दिया, ताकि वह मुस्लिम महिलाओं में यह संदेश दे सकें कि कांग्रेस इस प्रगतिशील कानून की राह में रोड़ा बन रही है। डा. सिंह से माफी न मांगने का मोदी का यह बड़ा हथियार था, जो लोकसभा में कामयाब हो गया, लेकिन राज्यसभा में जहां भाजपा का बहुमत नहीं है, वहां बिल पास नहीं हो सका। राज्यसभा में कांग्रेस यह कहती रही कि वह इस बिल के खिलाफ नहीं है, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों में संशोधन चाहती है, लेकिन सिलेक्ट कमेटी में बिल भेजकर मुद्दा सुलझाने का प्रयास करने के बजाय भाजपा जानबूझ कर अड़ी रही, क्योंकि उसका उद्देश्य बिल पास करवाने से ज्यादा राजनीतिक लाभ लेना था। दरअसल मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग, खासकर पुरुष वर्ग इस बिल के खिलाफ था। बहुत से मुस्लिम महिला संगठनों ने भी इस बिल के कई प्रावधानों का विरोध किया था। यदि यह बिल इसी रूप में पास हो जाता तो सरकार को मुस्लिम वर्ग के सक्रिय विरोध का सामना करना पड़ता और यदि बिल में संशोधन मंजूर हो जाते तो मोदी की हेठी होती। अपने अहं के चक्कर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बिल पास न होने देना ज्यादा माकूल समझा।

मोदी की समस्या यह है कि वे मानते हैं कि देश हित को सिर्फ वही जानते हैं और जनहित की नीतियों में सिर्फ उनका रुख ही सही रुख है। अपने अहंकार में वे किसी दूसरे का रुख जानने-समझने को तैयार ही नहीं हैं। गुजरात चुनावों में जब उन्हें और अमित शाह दोनों को यह स्पष्ट नजर आ गया कि वहां भाजपा हार भी सकती है, तो उन्होंने जीएसटी के नियमों में फटाफट ढील देनी शुरू की, व्यापारियों को विश्वास में लेने की कोशिश की और युवाओं को यह समझाने का प्रयास किया कि बेरोजगारी दूर करने के लिए वे शीघ्र ही समुचित कदम उठाएंगे। स्थिति ऐसी थी कि गुजरात में कांग्रेस के पास जमीनी स्तर पर न तो मजबूत संगठन था और न ही कोई स्थानीय नेता जिसे वह मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर पाती। भाजपा को इसी का लाभ मिला और वह सत्ता में बनी रहने में कामयाब रही।

जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, वहां के स्थानीय भाजपा नेताओं को केंद्रीय नेता बार-बार संदेश दे रहे हैं कि गुजरात से सबक लो, हार भी सकते हो, चुनाव के नजदीक आने का इंतजार मत करो, अभी से प्रचार में जुट जाओ इत्यादि। इसी से समझा जा सकता है कि भाजपा अंदर से किस कदर डरी हुई है।

हमें कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों की ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। एक, संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में सिर्फ 41 घंटों में नौ बिल पास कर दिए गए और लोकसभा में बासठ घंटों से भी कम समय में बारह बिल पास हो गए। यानी राज्यसभा में हर बिल पर औसतन लगभग साढ़े चार घंटे ही चर्चा हुई और लोकसभा में हर बिल पर औसतन लगभग पांच घंटे चर्चा हुई। इतने कम समय में किसी बिल के प्रावधानों पर समग्र चर्चा संभव ही नहीं है और यह परंपरा जनहित के पक्ष में नहीं है।

दो, जीएसटी लागू होने के समय सूरत के व्यापारियों ने मोदी सरकार से मान-मनुव्वल करके इसके नियमों में संशोधन की बहुत कोशिशें कीं, लेकिन मोदी अपने अहंकार से छुटकारा पाते तो उनकी बात सुनते। इन व्यापारियों की सुनवाई तब हुई, जब वहां चुनाव हुए और वह भी इसलिए क्योंकि व्यापारी वर्ग एकजुट था और वह मोदी के विरोध में मत देने का मन बनाए हुए था, वरना अब भी जीएसटी के नियमों में कोई सार्थक बदलाव न हुआ होता।

तीन, इस समय मीडिया में यह खबरें छाई हुई हैं कि फरवरी में शुरू होने वाले बजट सत्र में भाजपा बेरोजगार युवकों को रोजगार देने के लिए किसी मास्टरस्ट्रोक की तैयारी में है। बेरोजगारी दूर हो, यह तो अच्छी बात है लेकिन बेरोजगारी दूर करने का प्रयास सिर्फ इसलिए किया जाए कि यह सत्र मोदी सरकार के वर्तमान शासनकाल का अंतिम बजट सत्र होगा और मोदी के पास स्वयं को जनहितकारी सिद्ध करने का यह आखिरी मौका है, तो यह जनहितकारी होने के बावजूद ओछी राजनीति है।

चार, बेरोजगारी के बारे में एक और महत्त्वपूर्ण नुक्ता यह है कि सरकारी नौकरियां बेरोजगारी दूर करने का सबसे घटिया साधन हैं और अंततः यह जनता पर बोझ है। यदि आवश्यकता न होने पर भी सरकारी पदों की संख्या बढ़ा दी जाए और नए लोग भर्ती कर लिए जाएं, तो नए लोगों का वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाएं अंततः जनता की जेब का बोझ ही बढ़ाएंगी। इसके बजाय सरकार को ऐसे नियम बनाने चाहिएं कि ज्यादा से ज्यादा नौजवान या तो उद्यमी बन सकें या अन्य निजी कंपनियों के लिए व्यवसाय चलाना आसान और लाभप्रद हो, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दे सकें।

राजनीति की यह बीमारी किसी एक सरकार पर लगा कलंक नहीं है, बल्कि भाजपा की पूर्ववर्ती सरकारें भी इस दोष की भागी हैं। इसलिए व्यक्ति या दल बदलने के बजाय नीतियां बदलना आवश्यक है, ताकि जनहित में होने वाले काम सचमुच जनहित के लिए हों, राजनीतिक लाभ के लिए नहीं।         v

-.-.-.-

पी. के. खुराना :: एक परिचय

पी. के. खुराना दो दशक तक इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और दिव्य हिमाचल आदि विभिन्न मीडिया घरानों में वरिष्ठ पदों पर रहे। वे मीडिया उद्योग पर हिंदी की प्रतिष्ठित वेबसाइट 'समाचार4मीडिया' के प्रथम संपादक थे।

सन् 1999 में उन्होंने नौकरी छोड़ कर अपनी जनसंपर्क कंपनी "क्विकरिलेशन्स प्राइवेट लिमिटेड" की नींव रखी, उनकी दूसरी कंपनी "दि सोशल स्टोरीज़ प्राइवेट लिमिटेड" सोशल मीडिया के क्षेत्र में है तथा उनकी एक अन्य कंपनी "विन्नोवेशन्स" देश भर में विभिन्न राजनीतिज्ञों एवं राजनीतिक दलों के लिए कांस्टीचुएंसी मैनेजमेंट एवं जनसंपर्क का कार्य करती है। एक नामचीन जनसंपर्क सलाहकार, राजनीतिक रणनीतिकार एवं मोटिवेशनल स्पीकर होने के साथ-साथ वे एक नियमित स्तंभकार भी हैं और लगभग हर विषय पर कलम चलाते हैं।             

Alternative journalism, Public Welfare, Unemployment, Pramod Krishna Khurana, Modi, PK Khurana, Gujarat Elections, Winter Session, Budget, Amit Shah, वैकल्पिक पत्रकारिता, प्रमोद कृष्ण खुराना, विन्नोवेशन्स, पी. के. खुराना, गुजरात चुनाव, बेरोजगारी, राजनीति, पीके खुराना, जनहित, नरेंद्र मोदी, अमित शाह

pkk@lifekingsize.com

 

Modi
gujrat election 2017
Amit Shah
Assembly elections 2018
government policies
unemployment

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

मोदी का ‘सिख प्रेम’, मुसलमानों के ख़िलाफ़ सिखों को उपयोग करने का पुराना एजेंडा है!

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

ज्ञानव्यापी- क़ुतुब में उलझा भारत कब राह पर आएगा ?

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License