NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध
5 जुलाई को विपक्ष के शांतिपूर्ण बंद के बावजूद हज़ारों लोग किये गये गिरफ्तारI
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
06 Jul 2018
Jharkhand Land Acquisition Bill 2017
Image Courtesy: The Wire

भूमि अधिग्रहण बिल में राज्य सरकार द्वारा किये गये संशोधन के विरोध में 5 जुलाई को विपक्ष ने झारखंड बंद का आह्वान दिया। इसमें विपक्षी पार्टीयों के साथ-साथ सामाजिक संगठन भी शामिल थे। विपक्ष ने इस बंद को सफल बनाने के लिए बंद से एक दिन पहले राज्यभर में मशाल जुलूस भी निकाला। प्रशासन ने इस बंद में शामिल हुए नेताओं समेत राज्यभर के 18,973 लोगों को गिरफ्तार किया। हालांकि, उन्हें शाम तक छोड़ दिया गया।

यह भी पढ़ें-  झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार

इस बिल में संशोधन को लेकर लोगों में कितना रोष है वह इसी से ज़ाहिर होता है कि पूरे राज्य के लोगों, सामाजिक संगठनों, गाँव व शहरी क्षेत्रों और व्यापारियों ने भाग लिया। साथ ही दूकानें, व्यापारिक प्रतिष्ठान समेत निजी स्कूल, कॉलेज इत्यादि भी बंद रहे।

झारखण्ड की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पिछले साल ‘‘भूमि अर्जन पुनर्वासन एवं पुनर्स्थापना में उचित प्रतिकार पारदर्शिता का अधिकार, झारखंड संशोधन विधेयक’’ पारित किया। इसका विरोध विपक्षी दल उसी समय से कर रहे हैं। इसके बावजूद राष्ट्रपति ने इस पर अपनी मुहर लगा दी। इसीलिए इस जन-विरोधी संशोधन के खिलाफ विपक्ष ने संयुक्त होकर सड़क पर उतरने का फैसला कियाI

दरअसल, भूमि अधिग्रहण के संबंध में देश में भूमि अधिग्रहण बिल-1894 कानून लागू था। यूपीए-II की सरकार के कार्यकाल के दौरान 2013 में इसमें संशोधन का प्रस्ताव दिया गया, जिसे भाजपा के नेत्तृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2015 में पास किया। यह पहली बार था जब इतना बड़ा संशोधन भूमि अधिग्रहण के कानून में किया गया।

भूमि अधिग्रहण बिल-1894 में भूमि के अधिग्रहण के लिए 80 प्रतिशत आबादी से अनुमति लेने की आवश्यकता थी। जिसे 2015 के संशोधन में भाजपा सरकार ने समाज के प्रतिनिधियों की अनुमति तक सीमित कर दिया।

पूराने बिल में यह प्रावधान भी था कि जिस मकसद से भूमि का सरकार ने अधिग्रहण किया है, अगर पाँच साल तक वह काम शुरू नहीं होता है तो जिसकी ज़मीन थी उसे ही वापस लौटा दी जाएगी।

इस बिल में भूमी अधिग्रहण के लिए सरकार को इसके सामाजिक प्रभाव के आँकलन करवाना भी ज़रूरी था।

यह भी पढ़ें-  गुजरात : किसानों ने किया बुलेट ट्रेन योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

झारखण्ड सरकार के प्रस्तावित संशोधित बिल में इन सभी प्रावधानों को हटा दिया गया हैI साथ ही यह प्रावधान जोड़ा गया है कि अगर यूनिवर्सिटी, कॉलेज, स्कूल, आंगनवाड़ी केंद्र, अस्पताल, पंचायत भवन, जलापूर्ति लाइन, रेल, सड़क, अफोर्डेबल हाउसिंग, जलमार्ग, विद्युतीकरण और सरकारी भवन निर्माण के लिए ज़मीन सामाजिक प्रभाव के आँकलन का अध्ययन किये बिना ली जा सकती है।

इस बिल में भूमी अधिग्रहण के लिए सरकार को सामाजिक प्रभाव यानी कि सोशल व इन्वायरमेंटल इंपैक्ट असेसमेंट के अनुपालन को भी प्रदेश की सरकार ने खत्म कर दिया।

यह भी पढ़ें-  महाराष्ट्र के पालघर के किसान बुलेट ट्रेन के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कर रहे हैं विरोध

झारखंड राज्य में कई क्षेत्र संविधान की पाँचवी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं। इन क्षेत्रों में ग्रामसभाओं की भूमिका अहम होती हैI प्रस्तावित बिल में भूमि अधिग्रहण के दौरान ग्रामसभाओं के अधिकार को भी हटा दिया गया है, जिससे जनता में असंतोष बढ़ना वाजिब है।

मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी, झारखंड के राज्य सचिव मंडल सदस्य प्रकाश विप्लव ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि शहर से लेकर गाँव तक के प्रत्येक व्यक्तियों में इस बिल के खिलाफ गुस्सा है। इस संशोधन के खिलाफ हुए आंदोलन में अभूतपूर्व सफलता मिली है। झारखंड बंद पूरी तरह सफल रहा है। सरकार को इस बात पर विचार करना चाहिए कि आखिर क्यों व्यापारियों से लेकर शहर वासियों ने भी बिल के विरोध में शामिल हो कर अपना विरोध दर्ज करवाया।

झारखण्ड
भूमि अधिग्रहण कानून
भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन
रघुबर दास
भाजपा
जन विरोधी नीतियाँ
आदिवासी अधिकार

Related Stories

मध्य प्रदेश: 22% आबादी वाले आदिवासी बार-बार विस्थापित होने को क्यों हैं मजबूर

झारखंड : अपने देस में ही परदेसी बन गईं झारखंडी भाषाएं

पलामू : प्रशासन के संरक्षण में पत्थर खनन जारी, आदिवासी मुश्किल में, बंजर हो रहे खेत

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

शोभापुर लिंचिंग: बच्चे पिता के इंतज़ार में हैं जो अब नहीं लौट सकते

नागाड़ी लिंचिंगः एक परिवार के 3 सदस्य मार दिए गए, मुख्य संदिग्ध फरार

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट: खूँटी बलात्कार में पत्थलगड़ी के नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है


बाकी खबरें

  • अजय कुमार
    महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां
    26 May 2022
    विश्व आर्थिक मंच पर पेश की गई ऑक्सफोर्ड इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दौर में फूड फ़ार्मा ऑयल और टेक्नोलॉजी कंपनियों ने जमकर कमाई की।
  • परमजीत सिंह जज
    ‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप
    26 May 2022
    पंजाब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंजाब की गिरती अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करना है, और भ्रष्टाचार की बड़ी मछलियों को पकड़ना अभी बाक़ी है, लेकिन पार्टी के ताज़ा क़दम ने सनसनी मचा दी है।
  • virus
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या मंकी पॉक्स का इलाज संभव है?
    25 May 2022
    अफ्रीका के बाद यूरोपीय देशों में इन दिनों मंकी पॉक्स का फैलना जारी है, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में मामले मिलने के बाद कई देशों की सरकार अलर्ट हो गई है। वहीं भारत की सरकार ने भी सख्ती बरतनी शुरु कर दी है…
  • भाषा
    आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद
    25 May 2022
    विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग अवधि की सजा सुनाईं। सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    "हसदेव अरण्य स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि आदिवासियों के अस्तित्व का सवाल"
    25 May 2022
    हसदेव अरण्य के आदिवासी अपने जंगल, जीवन, आजीविका और पहचान को बचाने के लिए एक दशक से कर रहे हैं सघंर्ष, दिल्ली में हुई प्रेस वार्ता।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License