NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
झारखंड : चुनाव से पहले रघुवर सरकार पत्रकारों पर मेहरबान क्यों है?
झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले रघुवर दास की सरकार पत्रकारों के लिए कई घोषणाएं की हैं, जिनमें सरकार की तारीफ़ में आलेख लिखने के लिए पैसे देना, पत्रकारों को ज़िलों के दौरे कराना जैसी योजनाएँ शामिल हैं।
उमेश कुमार राय
20 Sep 2019
Raghubar Das
Image courtesy:Facebook

झारखंड विधानसभा चुनाव से ठीक पहले रघुवर दास की सरकार ने पत्रकारों के लिए योजनाओं की बौछार कर दी है।

ताज़ा घोषणा सूचना व जनसंपर्क विभाग की तरफ़ से जारी हुई है। सात सितंबर को विभाग ने अख़बारों में एक विज्ञापन जारी कर कहा था कि सरकार की विभिन्न योजनाओं से संबंधित आलेख लिखने और उन्हें प्रकाशित करवाने के लिए पत्रकारों को पैसे दिये जाएंगे।

विज्ञापन के मुताबिक़, विभाग के पास आए आवेदनों में 30 आवेदनों का चयन किया जाएगा और उनसे आलेख लिखवाया जाएगा। इसके एवज़ में सरकार हर पत्रकार को 15 हज़ार रुपए देगी, लेकिन ये रुपए तभी दिए जाएंगे, जब आलेख प्रकाशित हो जाएगा। इस विज्ञापन में ये शर्त भी है कि पत्रकारों को अपने दम पर अपने अख़बार अथवा किसी दूसरे अख़बार में ये आलेख प्रकाशित कराने होंगे।

बाद में सरकार इनमें से 25 पत्रकारों के आलेखों का चयन कर उन्हें किताब की शक्ल देगी और तब चयनित पत्रकारों को अतिरिक्त 5-5 हज़ार रुपए दिए जाएंगे। 

ये भी पढ़ें : क्या झारखंड सरकार पत्रकारों को 'रिश्वत' दे रही है? 

इस विज्ञापन को लेकर सरकार की किरकिरी हुई, तो शुक्रवार को इसमें संशोधन कर नया विज्ञापन दिया गया। नए विज्ञापन में सरकारी योजनाओं पर आलेख लिखने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है।

इससे पहले पिछले महीने ही सरकार ने पत्रकारों के लिए पेंशन योजना की शुरुआत की। इस योजना के अंतर्गत 20 वर्षों तक पत्रकारिता करने वाले उन पत्रकारों को हर महीने 7500 रुपए बतौर पेंशन दिया जाएगा, जिनकी उम्र 60 वर्ष हो गई हो। सूचना व जनसंपर्क विभाग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि इस स्कीम का फ़ायदा उन पत्रकारों को मिलेगा जो 1 जनवरी 2015 के बाद रिटायर हुए हैं। इस स्कीम में उन पत्रकारों को तरजीह मिलेगी, जो सरकार से मान्यता प्राप्त हैं। 

सूचना व जनसंपर्क विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक़ झारखंड में सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकारों की संख्या 267 है। 

पेंशन के अलावा पिछले महीने सरकार ने अटल स्मृति पत्रकार सम्मान की भी घोषणा की। इसके अंतर्गत पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए हर वर्ष एक पत्रकार को 1 लाख रुपए बतौर पुरस्कार मिलेंगे।

इतना ही नहीं, झारखंड सरकार का सूचना व जनसंपर्क विभाग अपने ख़र्च पर पत्रकारों को क़रीब एक दर्ज़न ज़िलों का दौरा करा रहा है। इस दौरे का उद्देश्य सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं की ‘सफलता’ से पत्रकारों को अवगत कराना है। बताया जाता है कि अब तक 4-5 ज़िलों का दौरा हो चुका है। 

प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के सदस्य रहे वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार विष्णु नागर इस पूरे मामले को चुनाव से जोड़ कर देखते हैं। उन्होंने कहा, “वहां चुनाव आ रहा है, इसलिए ये पूरी तरह चुनावी मामला है। अख़बारों पर दबाव के बावजूद सरकार को लग रहा है कि अख़बारों में उसके बारे में जो कुछ भी छप रहा है, वो चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त नहीं है। यही वजह है कि सरकार ये सब कर रही है।” विष्णु नागर ने कहा कि 15 हज़ार रुपए देकर रिपोर्ट छपवाने की कवायद से साफ़ है कि सरकार खुलेआम मीडिया को प्रभावित कर रही है। 

15 हज़ार रुपए देकर रिपोर्ट छपवाने के विज्ञापन पर प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया (पीसीआई) के पूर्व सदस्य व पीसीआई के लिए पेड न्यूज़ को लेकर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने वाले वरिष्ठ पत्रकार परंजोय गुहा ठाकुरता आश्चर्य करते हुए कहते हैं, “क्या ये पेड न्यूज़ का एक नया तरीक़ा है? विज्ञापन और पत्रकार स्वाधीन होकर जो रिपोर्ट तैयार करेगा, उनमें फ़र्क़ होता है।” 

उन्होंने आगे कहा, “पत्रकार को पैसे देकर ख़बर छपवाना आश्चर्यजनक है। पत्रकार का काम होता है कि वह ख़ुद फ़ील्ड में जाए और देखे कि सरकार वहां क्या काम कर रही है। सारे पक्षों से तथ्य लेकर वह सरकार के ख़िलाफ़ या उसके पक्ष में ख़बर लिखे।” 

सूचना व जनसंपर्क विभाग के विज्ञापन को लेकर झारखंड के कुछ स्थानीय पत्रकारों का इस पर कहना है कि पहले की सरकारें भी इस तरह की फ़ेलोशिप लाती रही हैं, इसलिए ये कोई नई बात नहीं है। 

लेकिन, पहले लाई गई फ़ेलोशिप और इस फ़ेलोशिप में बुनियादी फ़र्क़ है। पहले की फ़ेलोशिप में सरकार मुद्दा तय कर देती थी और उसी मुद्दे पर आलेख लिखवाए जाते थे, लेकिन इस फ़ेलोशिप में मुद्दा पहले से तय नहीं है।

इसके अलावा सामान्य फ़ेलोशिप की शर्तों और इस विज्ञापन की शर्तों को देखें, तो भी ये स्पष्ट तौर पर ज़ाहिर हो रहा है कि सरकार अपने हित में ख़बरें प्रकाशित करवाना चाहती है, ताकि चुनाव के वक़्त उन ख़बरों को उपलब्धि के रूप में जनता के बीच पेश कर सके। सामान्य फ़ेलोशिप में एक अनिवार्य शर्त होती है कि एक स्टोरी को छपवाते वक़्त नीचे ये लिखना होगा कि स्टोरी किस फ़ेलोशिप के तहत लिखी गई है। लेकिन, झारखंड सरकार के विज्ञापन में ऐसी कोई शर्त नहीं है। यानी अगर किसी अख़बार में सरकार की किसी योजना की सकारात्मक ख़बर छपेगी, तो पाठक ये नहीं समझ पाएगा कि पत्रकार ने ख़ुद फ़ील्ड में जाकर और हर एंगल से जांच-परख कर ख़बर लिखी है या फिर ख़बर लिखने के लिए सरकार ने पैसा दिया है।

दिलचस्प ये भी है कि सरकारी ख़र्च पर ज़िलों का दौरा कर लौटने वाले पत्रकार सरकारी योजनाओं की सफलता की ख़बरें लिखते हुए ये ज़िक्र करना भी मुनासिब नहीं समझते कि उन्हें सरकार लेकर गई थी। इससे सामान्य पाठक तो यही समझता होगा कि जो ख़बर वो पढ़ रहा है, उसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी। 

झारखंड से निकलने वाले अख़बारों की ख़बरों का विश्लेषण करें, तो पाते हैं कि ज़्यादातर अख़बार सरकार की आलोचना करने वाली ख़बरों से बचते हैं। इसकी एक बड़ी वजह ये है कि झारखंड सरकार अख़बारों को ढेरों विज्ञापन देती है। सूचना के अधिकार के तहत मिले आंकड़ों के मुताबिक़ वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2018 (12 दिसंबर)  तक झारखंड सरकार ने विज्ञापन पर क़रीब 323 करोड़ रुपए ख़र्च किए थे।

आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014-2015 में विज्ञापन के लिए 40 करोड़ आवंटित हुए थे। वर्ष 2014 के दिसंबर में झारखंड में रघुवर दास की सरकार बनी थी। इसके बाद के वर्षों में विज्ञापन बजट में साल-दर-साल इज़ाफ़ा हुआ। आरटीआई से मिले आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015-2016 में विज्ञापन का बजट बढ़ा कर 55 करोड़ कर दिया गया था। वहीं, वर्ष 2016-2017 में इसे बढ़ा कर 70 करोड़ और वर्ष 2018-2019 में 80 करोड़ कर दिया गया था।

स्वतंत्र पत्रकार व ऑल इंडिया पीपल्स फ़ोरम से जुड़े अनिल अंशुमन कहते हैं, "अभी अख़बार सरकार के नियंत्रण में चल रहे हैं। प्रिंट मीडिया के मेरे साथी बताते हैं कि 60-70 प्रतिशत विज्ञापन सरकार से मिलते हैं, इसलिए सरकार की आलोचना करने वाली ख़बरों को जगह नहीं मिलती है। कई बार तो सरकार की आंखों की किरकिरी बनने से बचने के लिए अख़बारों का प्रबंधन ख़बरों की तासीर ही बदल देता है। इससे आम पाठकों में नाराज़गी है। इस नाराज़गी को लोगों ने कई दफ़ा अख़बार जला कर ज़ाहिर किया है।"

हाल की कुछ घटनाओं को लेकर अख़बारों के रवैये से भी पता चलता है कि अख़बार ऐसी ख़बरों से बचने की कोशिश करते हैं, जिससे सरकार की किरकिरी होती है। दो साल पहले सिमडेगा में भूख से 11 साल की बच्ची संतोषी की मौत ऐसा ही एक मामला है। ये घटना जब हुई थी तो सिमडेगा से निकलने वाले इक्का-दुक्का अख़बारों में छपी थी, मगर रांची से छपने वाले अख़बारों ने वो ख़बर नहीं ली थी। बाद में राइट टू फ़ूड कैम्पेन के अधिकारियों ने वहां जाकर मामले की पड़ताल की और एक रिपोर्ट बना कर अख़बारों को दी, लेकिन अख़बारों ने रिपोर्ट नहीं छापी। राइट टू फ़ूड कैम्पेन के धीरज कुमार कहते हैं, "रांची के ज़्यादातर अख़बारों के रिपोर्टरों ने बताया कि दुर्गा पूजा को लेकर अख़बारों में विज्ञापन का दबाव है, जिस कारण वे ये ख़बर नहीं ले पा रहे हैं। लेकिन, दिल्ली की एक न्यूज़ वेबसाइट में जब ये रिपोर्ट आई, तो ख़ूब चर्चा हुई। इसके बाद रांची के अख़बारों ने भी ये ख़बर प्रमुखता से छापी।"

तबरेज़ अंसारी की लिंचिंग की घटना भी अख़बार की सुर्खी तब बनी, जब वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गया।

मीडिया पर रघुवर सरकार की मेहरबानी से विपक्षी पार्टियों में नाराज़गी है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रिय भट्टाचार्य ने कहा, “अगर पत्रकारों को सरकार इस तरह घूस देने लगेगी, तो जनतंत्र कहां पहुंचेगा? प्रेस काउंसिल को इस पर संज्ञान लेना चाहिए।”

वह कहते हैं, “झारखंड में पत्रकारिता पर अघोषित इमरजेंसी लगी हुई है। हर न्यूज रूम में सरकार के लोग बैठे हैं। जो भी पत्रकार जनहित के मुद्दे उठाना चाहता है, सरकार से सवाल करना चाहता है, उस पर दबाव बनाया जाता है।” 

मीडिया पर अंकुश और उसे प्रभावित करने के सवालों को भाजपा ने सिरे से ख़ारिज करते हुए कहा कि पूर्व की सरकारों ने पत्रकारों के बारे में कभी नहीं सोचा। भाजपा के प्रवक्ता प्रवीण प्रभाकर ने कहा, “निचले स्तर के पत्रकार मेहनत करते हैं। समाज के लिए काम करते हैं, लेकिन वे उपेक्षित रहते हैं। न तो संस्थान उनके बारे में सोचता है और न ही सरकार। पहली बार मुख्यमंत्रीजी ने उनके बारे में सोचा है। उनके लिए पेंशन, बीमा आदि शुरू किया।” 

अख़बारों पर दबाव के सवाल पर उन्होंने कहा कि जो मुख्यमंत्री होगा, उसे तो अख़बारों में लीड मिलेगा ही, लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार के ख़िलाफ़ ख़बरें नहीं छप रही हैं।

raghuvar govt
Jharkhand government
Jharkhand Assembly Elections
journalist
Media and Politics
media and government
BJP
Raghubar Das

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License