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किस किस को पसंद न किया मोदी जी के प्यार में!
जिन लोगों को न चाहते हुए भी मुझे लाइक करना पड़ रहा है उनमें से एक गोडसे भी हैं। नाथूराम गोडसे। मैं दायीं आंख से देखता हूँ तो मुझे बहुत सारे गोडसे भक्त दिखाई देते हैं।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
28 Jul 2019
सांकेतिक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : TV9 Bharatvarsh

जब से मेरी दाहिनी आंख का आपरेशन हुआ है और मुझे दाईं ओर से अधिक दिखने लगा है और जब से मैं मोदी जी को पसंद करने लगा हूँ तब से मोदी जी के साथ साथ बहुत सारे ऐसे लोगों को पसंद करना पड़ रहा है जिन्हें मैं पहले पसंद करने की कल्पना भी नहीं कर सकता था। उनमें से एक हैं भाजपा की सांसद प्रज्ञा ठाकुर। क्या गजब की सांसद हैं। जब चुनाव लड़ रही थीं तब भी मन की बात बोलने से पीछे नहीं हटतीं थीं। मोदी जी ने तो मन की बात बोलना प्रधानमंत्री बनने के बाद ही शुरू किया पर प्रज्ञा जी तो चुनाव से पहले से ही मन की बात बोलती आ रही हैं।

प्रज्ञा ठाकुर महान हैं। भोपाल के लोगों का सौभाग्य है कि उन्हें इतनी महान सांसद मिली है। उनकी खासियत यह है कि जिन कार्यों को उन्होंने नहीं किया होता है वे उनका भी श्रेय ले लेती हैं और जिन्हें उन्होंने किया होता है उन्हें नकारती हैं। वे बाबरी मस्जिद के विध्वंस का श्रेय लेने के लिए तैयार हैं पर जो विस्फोट वास्तव में किये, जिनके लिए सरकारें और कोर्ट उन्हें जिम्मेदार ठहराते रहे हैं, उनसे मना करती हैं। महान लोगों की यही निशानी होती है कि अपने द्वारा किये गए कार्यों का श्रेय स्वयं नहीं लेते हैं, दूसरों को दे देते हैं। साध्वी हैं इसलिए देशभक्तों को भी श्राप दे सकती हैं। इसीलिए आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ लड़ने वाले हेमंत करकरे को श्राप दे दिया। साध्वी जी गोडसे की भक्त हैं यह वे सार्वजनिक कर चुकी हैं। और किस देवी देवता या भगवान की भक्त हैं, भक्त हैं भी या नहीं, यह उन्होंने अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है।

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जिन लोगों को न चाहते हुए भी मुझे लाइक करना पड़ रहा है उनमें से एक गोडसे भी हैं। नाथूराम गोडसे। मैं दायीं आंख से देखता हूँ तो मुझे बहुत सारे गोडसे भक्त दिखाई देते हैं। उनमें से कुछ ऐसे हैं जो खुले आम गोडसे की प्रशंसा करते हैं और कुछ ऐसे हैं जो, प्रशासनिक पदों पर रहने के कारण खुले आम ऐसा नहीं कर सकते हैं। वे गोडसे की प्रशंसा करने वालों को दिमाग से तो माफ कर देते हैं पर दिल से नहीं। वे गोडसे भक्तों को न दल से निकालते हैं और न दिल या दिमाग से। अब गोडसे कितना सिद्धांतवादी था ये तो उसके प्रशंसक ही जानते होंगे पर गोडसे ने गांधी की हत्या इसलिए भी की थी कि गांधी अपने वायदा निभाने के सिद्धांत के अनुरूप पचपन करोड़ रुपये पाकिस्तान को देने पर अड़े थे। पर मैं तो गोडसे का ही फैन हूँ, गांधी का नहीं, क्योंकि साध्वी प्रज्ञा गोडसे की फैन हैं और मोदी जी उन्हें दिमाग से (दिल से नही) माफ कर चुके हैं। वैसे यह दिल से माफ करना क्या होता है, सोचने समझने के सारे काम तो दिमाग ही करता है।

गोडसे का फैन होने पर पूजा शगुन पांडेय का भी फैन होना जरूरी है। आप कहेंगे कि यह पूजा पांडेय कौन हैं। ये वही हैं जिन्होंने अलीगढ़ में तीस जनवरी को गांधी जी के पुतले पर नकली गोलियां चलाई थीं। गोडसे इन्हें इतना पसंद है कि जिस दिन गोडसे ने गांधी की हत्या की, उसी दिन को पूजा पांडेय ने दोहराने/मनाने की कोशिश की। जैसे हम दशहरा मनाते हैं वैसे ही पूजा पांडेय ने तीस जनवरी मनाई। अब प्रज्ञा को पसंद करें, गोडसे को पसंद करें, तो यह कैसे हो सकता है कि पूजा शगुन पांडेय को पसंद न करें। जब आप दायीं ओर देखते हैं, दक्षिणपंथी हो जाते हैं तो आपकी पसंद नापसंद आपकी नहीं रहती है, यह आरएसएस की या भाजपा की पसंद बन जाती है। आप चाहे दिल्ली में रहते हों या मुम्बई में या फिर  कहीं और, नागपुर की पसंद आपकी पसंद बन जाती है।

अब जिन्हें मैं हाल फिलहाल में पसंद करने लगा हूँ उनकी लिस्ट बहुत लम्बी है। मैं साक्षी महाराज को पसंद करने लगा हूँ, मेनका गांधी को भी पसंद करने लगा हूँ। वैसे अब मैं यह कह सकता हूँ कि गांधियों में सिर्फ मेनका ही ऐसी हैं जिन्हें आप पसंद कर सकते हैं। कैलाश विजयवर्गीय और उनके पुत्र आकाश को भी पसंद करने लगा हूँ। अब अमित शाह जी को भी पसंद करता हूँ। जब शाहबुद्दीन एनकाउंटर के बारे में पढा सुना था, जस्टिस लोया के बारे में पता चला था तब डर के कारण पसंद करता था पर अब तो दिल से पसंद करने लगा हूँ क्योंकि अब वे देश के गृहमंत्री हैं।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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