NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
किसान और महिला संगठनों की नज़रों में बजट 2018 किसान और महिला विरोधी
"बजट किसानों, खेतिहर मजदूरों और गरीबों की माँगों को पूरा करने में विफल रहा।"
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
02 Feb 2018
Translated by महेश कुमार
जेटली
Newsclick Image by Sumit Kumar

अखिल भारतीय किसान सभा और अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि मोदी की अगवायी वाली एनडीए सरकार के अंतिम पूर्ण बजट में गंभीर खामियाँ हैं। उन्होंने बजट को जन-विरोधी और मज़दूर वर्ग विरोधी बताया है और बताया कि सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए बजट कैसे तेज़ी से निजी क्षेत्र के निवेश पर निर्भर है।

अखिल भारतीय किसान सभा ने कहा कि सरकार यह दावा करते हुए किसानों को लुभाने की कोशिश कर रही है कि उसने रबी सीजन के लिए किसानों के राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशों के मुताबिक पहले से ही एमएसपी बढ़ा दी है। उन सिफारिशों के अनुसार, एमएसपी उत्पादन की लागत से कम से कम 50 प्रतिशत ऊपर होनी चाहिए। हालांकि, इन सिफारिशों को पूरा करने के लिए 2018-19 रबी सीजन के लिए घोषित एमएसपी पर्याप्त नहीं हैं। विज्ञप्ति के मुताबिक, "यह तथ्यों का एक झूठा पुलिंदा है"

table

अखिल भारतीय किसान सभा ने यह भी बताया कि उत्पादन लागतों की गणना भी व्यापक रूप से विवादित है, क्योंकि किसानों के संगठनों और कृषि लागत पर बने आयोग ने सरकार की लागत पर गणना के नुस्खे नकार दिया है। इन समर्थन मूल्यों के लाभ को किसानों तक पहुँचाने  के लिए कोई उचित खरीद व्यवस्था भी नहीं है।

अखिल भारतीय किसान सभा ने एक और बात कही उसके मुताबिक़ किसानों को बड़े कर्ज से मुक्त करने के लिए कोई पहल की घोषणा नहीं की गई है, क्योंकि वे इस क़र्ज़ में वर्षों से किसान विरोधी किसान नीतियों की वजह से फँसे है। हालांकि सरकार का दावा है कि कृषि ऋण में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि बजट कई महत्वपूर्ण कारकों को ध्यान में लेने में विफल रहता है, जैसे उत्पादन की बढ़ती लागत आदि। बजट कृषि ऋण के वितरण में असमानताओं को संबोधित करने के भी नाकामयाब रहा है।

अभी भी, केवल 41 प्रतिशत क़र्ज़/क्रेडिट छोटे और सीमांत किसानों को दिया जाता है, जिन्हें वित्तीय सहायता की जरुरत पड़ती है। 14 प्रतिशत क़र्ज़ कॉर्पोरेट्स और संस्थानों को 1 करोड़ रुपये से अधिक ऋण दिया जाता हैं।

अखिल भारतीय किसान सभा आगे मनरेगा के मसले गंभीर स्थिति पर प्रकाश डालता है। देश की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी अधिनियम में कोई वृद्धि नहीं हुई है। यह आश्चर्यजनक है कि 56 प्रतिशत से अधिक मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है और 15 प्रतिशत मजदूरी चाहने वाले पिछले साल बेरोजगार रहेए हैं। मनरेगा ने कार्य दिवसों के लिए लगातार बजट में कटौती और गिरावट देखी है। "कृषि के लिए बजट प्रस्तावों का उद्देश्य कॉर्पोरेट कृषि व्यवसायों की सहायता करना है और किसानों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए कोई भी दृष्टि नहीं है। किसानों, कृषि मजदूरों और गरीबों की मांगों को पूरा करने में बजट विफल रहता है। "

अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ने बताया कि ऐसे गरीब विरोधी बजट परिवारों को और महिलाओं को किस प्रकार प्रभावित करते हैं, जिन्हें बेरोजगारी के बढ़ते संकट का बोझ उठाना पड़ता है जो कि गतिरोध और जीएसटी के मद्देनजर आया है।

'कृषि और ग्रामीण क्षेत्र' और 'महिला रोजगार और स्वास्थ्य' की सरकारी घोषणाओं के बावजूद इस बजट की कुछ प्रमुख प्राथमिकता होने के कारण जेंडर बजट का आकार कम हो गया है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के बजट में कुल व्यय का 0.95 प्रतिशत के साथ मात्र 1 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की रिलीज के मुताबिक, "यह कुछ भी नहीं है, बल्कि देश की गरीब महिलाओं और श्रमिकों और किसानों का अपमान है।"

बजट भाषण ने महिलाओं किसानों पर जोर दिया है, लेकिन महिला किसानों के लिए जेंडर आवंटन विशिष्ट रूप बेहद कम है। यहां तक कि ग्रामीण हाट जैसी पहल की घोषणाएं के मद्देनज़र, जो कि किसानों को अपने उत्पाद को सीधे खरीदार को बेचने की सहूलियत की बात करती है, उनके कार्यान्वयन के लिए आवंटित छोटी मात्रा को देखते हुए यह सब खोखला लगता है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के बजट में केवल 1400 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है।

हालांकि वित्त मंत्री इस बजट के माध्यम से फिर से रोजगार बढ़ाने का दावा कर रहे हैं, जबकि कौशल विकास और आजीविका के बजट में कमी आई है। मध्यम और लघु स्केल एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) के लिए आबंटन कम है, केवल उद्यमों के लिए दिया जा रहा टैक्स छूट जो कि रुपये के रूप में टर्नओवर 100 करोड़ है। "यह प्रभावी रूप से छोटे पैमाने के 90 प्रतिशत उद्यमों को बाहर कर देता है जहां महिला कार्यबल का एक बड़ा काम करता हैं।"

पिछले कुछ महीनों में आशा कर्मचारियों सहित योजना कर्मचारियों द्वारा उनके वेतन में वृद्धि के लिए भारी आंदोलन हुआ, लेकिन उन मांगों गौर नहीं किया गया और मिड डे मील स्कीम के लिए 500 करोड़ रुपये और आईसीडीएस के लिए 1090 करोड़ रुपये के साथ केवल मामूली वृद्धि देखी गई।

महिलाओं की शिक्षा को देखते हुए, लड़कियों को शिक्षित करने के लिए योजनाओं का बजट 64 करोड़ रुपए कम हो गया है। महिलाओं की सुरक्षा को भी निर्भया निधि के साथ संबोधित नहीं किया गया है, जो 500 करोड़ रुपये के साथ स्थिर है।

अखिल भारतीय किसान सभा और अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति दोनों ने इस बजट के विरोध में देश भर में किसानों और महिलाओं का आह्वान किया ताकि यह बताया जा सके की इस बजट से आम आदमी में कितना असंतोष है।

बजट 2018
किसान
महिला
अरुण जेटली

Related Stories

किसान आंदोलन के नौ महीने: भाजपा के दुष्प्रचार पर भारी पड़े नौजवान लड़के-लड़कियां

आंदोलन कर रहे पंजाब के किसानों की बड़ी जीत, 50 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ी गन्ने की कीमत

योगी की गाय-नीति : कैसे होगा उत्थान; किसान मजबूर, अफसर परेशान

शनि शिंगणापुर और हाजी अली के बाद महिलाओं ने सबरीमाला की लड़ाई भी जीती

पीएमएफबीवाई- बीमा कंपनियाँ को बेतहाशा मुनाफा और किसान बेहाल

महाराष्ट्र के कारोबारी ने किसानों के नाम पर लिया 5,400 करोड़ रूपये का लोन

किसानी की हालत सुधारनें में फेल हैं सरकारी नीतियाँ

मोदी सरकार किसानों को धोखा दे रही है- विजू कृष्णन, AIKS

जीएसटी ने छोटे व्यवसाय को बर्बाद कर दिया

ऋतू बंधु योजना के तहत तेलंगाना के पट्टेदार किसानों ने की निवेश सहायता की माँग


बाकी खबरें

  • aaj ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    धर्म के नाम पर काशी-मथुरा का शुद्ध सियासी-प्रपंच और कानून का कोण
    19 May 2022
    ज्ञानवापी विवाद के बाद मथुरा को भी गरमाने की कोशिश शुरू हो गयी है. क्या यह धर्म भावना है? क्या यह धार्मिक मांग है या शुद्ध राजनीतिक अभियान है? सन् 1991 के धर्मस्थल विशेष प्रोविजन कानून के रहते क्या…
  • hemant soren
    अनिल अंशुमन
    झारखंड: भाजपा काल में हुए भवन निर्माण घोटालों की ‘न्यायिक जांच’ कराएगी हेमंत सोरेन सरकार
    18 May 2022
    एक ओर, राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन सरकार के कई अहम फैसलों पर मुहर नहीं लगाई गई है, वहीं दूसरी ओर, हेमंत सोरेन सरकार ने पिछली भाजपा सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार-घोटाला मामलों की न्यायिक जांच के आदेश…
  • सोनिया यादव
    असम में बाढ़ का कहर जारी, नियति बनती आपदा की क्या है वजह?
    18 May 2022
    असम में हर साल बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है। प्रशासन बाढ़ की रोकथाम के लिए मौजूद सरकारी योजनाओं को समय पर लागू तक नहीं कर पाता, जिससे आम जन को ख़ासी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है।
  • mundka
    न्यूज़क्लिक टीम
    मुंडका अग्निकांड : क्या मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं?
    18 May 2022
    मुंडका, अनाज मंडी, करोल बाग़ और दिल्ली के तमाम इलाकों में बनी ग़ैरकानूनी फ़ैक्टरियों में काम कर रहे मज़दूर एक दिन अचानक लगी आग का शिकार हो जाते हैं और उनकी जान चली जाती है। न्यूज़क्लिक के इस वीडियो में…
  • inflation
    न्यूज़क्लिक टीम
    जब 'ज्ञानवापी' पर हो चर्चा, तब महंगाई की किसको परवाह?
    18 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार शर्मा सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार के पास महंगाई रोकने का कोई ज़रिया नहीं है जो देश को धार्मिक बटवारे की तरफ धकेला जा रहा है?
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License