63 वर्षीय, सिंधी राम पवार, अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के लाल झंडे के साथ इस मार्च में चल रही है । वह शांत है लेकिन गुस्से में है।वह कहती हैं "हम पिछले साल सरकार के आश्वाशन के बाद चले गए थे लेकिन सरकार ने हमें धोखा दिया। इस साल, हम तब तक नहीं जाएँगे जब तक सरकार हमारे भूमि आवंटन के कागजात पर हस्ताक्षर नहीं करती है," सिंधी मालेगाँव तहसील, नासिक के अस्तेन गाँव से हैं, और यहाँ किसान लांग मार्च 2.0 में भाग लेने के लिए आई हैं। वह कहती हैं "हमारे पास खेतों में काम करने का कोई विकल्प नहीं है। मेरे दोनों बेटे सतारा, पुणे (पश्चिमी महाराष्ट्र) में गन्ना काटने वाले श्रमिक के रूप में काम करने जाते हैं। मैं, मेरे साथ हमारे गाँव की बूढ़ी महिलाओं के साथ, इस लॉन्ग मार्च में बहुत सारे लोग पहुँचे हैं।

नवसु देवजी थापद (68) जेवर तहसील, पालघर के झाप गांव से इस मार्च में आए हैं। वह पहली बार किसान लांग मार्च में शामिल हुए हैं। नवसु ने कहा कि "पिछले साल वो मार्च के समय ठीक नहीं थे। लेकिन इस साल, हम अपनी जमीन के लिए इस लड़ाई को जीतेंगे,"। जब हम उनसे बात कर रहे थे तो हम साफतौर पर उनकी उम्मीदें उनकी आँखों में भी देख रहे थे।
हालांकि, नवसु के नजदीकी तहसील मोखदा की एक और महिला, 62 वर्षीय- जानकी दिवा नंगारे, जिन्होंने पिछले साल मार्च में भाग लिया था, वह सरकार के रैवये से नाराज़ थीं। वह कुरजे गांव से है। उसने पूछा, "पिछले साल हम एक सप्ताह पैदल चले थे। इस सरकार ने हम से वादा किया था कि वे हमें हमारी जमीन के कागजात देंगे। लेकिन उन्होंने हमें धोखा दिया है। हम क्या करेंगे? हम अपनी जमीन से चावल कब खाएंगे?"
जब न्यूज़क्लिक ने नासिक से मुंबई किसान लॉन्ग मार्च में शमिल होने आए किसानों से बात कि तो ये कुछ प्रतिक्रियाएं हैं जो किसानों ने हमसे बताई ।जितने भी किसान इस मार्च में आये थे सभी ने सरकार को सबक सीखना का मन बनाया है| उनका कहना था कि , "इस बार, हम वन अधिकारियों द्वारा अपने जमीन के कागज़ पर हस्ताक्षर किए बिना इस विरोध को बंद नहीं करेंगे।"
यह प्रतिक्रिया स्वाभविक है क्योंकी इन किसानों की भूमि एकमात्र आजीविका विकल्प है और वह भी कागज पर उनका नहीं है। ये किसान दशकों से जमीन पर अलग-अलग फसलें उगाते रहे हैं, लेकिन ये जमीन पार्सल वन विभाग या स्थानीय मंदिर ट्रस्टों की है या गायों की (चरागाह) भूमि है। अपने नाम पर आवंटित भूमि को प्राप्त करने के लिए, इन किसानों ने पिछले साल 6 मार्च से 12 मार्च 2018 तक 180 किमी तक नंगे पैर यात्रा की थी जिसने, देश की अंतर-आत्मा को हिला दिया। अंत में सरकार को झुकाना पड़ा था लेकिन सरकार ने उन्हें एक बार फिर धोखा दिया |
"हर बुरी जिद का इलाज है एक अच्छी जिद। जिद करो और तो दुनिया बदलेगी।" यह कहावत इस मार्च के सन्दर्भ में बिल्कुल सटीक है। किसी भी गलत बात या विचार को मिटाने का सही तरीका है कि सही राह पकड़ने की जिद कर लो, कामयाबी निश्चित ही मिलेगी। ऐसा ही हुआ जब किसानों ने इस मार्च करने का ठाना तो सरकार ने सभी हथकंडे अपनाकर इस मार्च को रोकने का प्रयास किया लेकिन किसानो ने भी जिद्द ठानी थी कि वो सरकार के वादाखिलाफी को उजागर करने और सरकार के धोखे के खिलाफ मार्च करेंगे | अंत में सरकार को पीछे हटाना पड़ा और कल रात को किसान नासिक में एकत्र हुए और आज सुबह मुंबई के लिए मार्च किया |
लेकिन सरकार अभी उनके मार्च को रोकने का प्रयास करेगी , हमारे एक सतही ने बताया कि विल्लोली गाँव नासिक मुंबई हाईवे पर पुलिस ने किसानो को रोकने के लिए प्रशासन ने भारी पुलिस बल वाटर टेंकर के साथ ही सैकड़ो बैरिकेट के साथ तैयार है , लेकिन लागत नहीं किसानो को इसका कोई भय है | सरकार भी इन किसानों को रोक पाएगी ऐसा संभव नही दिख रहा है |
किसान जवानों को श्रद्धांजलि देते हैं।
स मार्च को रोकने के लिए सरकार पहले से ही अपने घुटनों पर दिख रही है। देवेन्द्र फडणवीस की सरकार ने किसानों के मार्च को रोकने के अपना पूरा प्रशासनिक ताम-झाम झोंक दिया। बुधवार को नासिक जाने के रास्ते में हज़ारों की संख्या में किसानो को रोककर, अजीत नवाले और अन्य अखिल भारतीय किसान सभा नेताओं को गिरफ्तार करने की कोशिश करने के बावजूद भी यह लॉन्ग मार्च 2.0 नासिक से मुंबई की ओर बढ़ रहा है. अखिल भारतीय किसान सभा के नेताओं का साफतौर पर कहना है , पिछली बार की तरह धोखा नहीं समाधान चाहिए।