NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
किसका साथ, किसका विकास?
महेश कुमार
22 Sep 2015

मोदी सरकार को सत्ता में आये एक वर्ष से ऊपर हो गया है. लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर मोदी सरकार किसके साथ है और किसका विकास कर रही है.  जिन लोगो ने उनके नारों को ध्यान में रखते हुए उन्हें वोट दिया था उसमें से बड़ी संख्या निराश नज़र आने लगी है. क्योंकि न तो उन्हें सबका साथ नज़र आ रहा है और न ही सबका विकास. अभी भी एक बड़ी संख्या जोकि संघी राजनीति को पसंद नहीं करती है लेकिन मोदी के नारों पर अभी आस लगाए बैठी है कि अब शायद सबका साथ और सबका विकास होगा. वे मानते हैं कि अभी सत्ता में आये हुए ही कितने दिन हैं और यह कहकर वे कहीं न कहीं झूठे ही सही अपने निराश मन को बहलाने की नाकाम कोशिश करते नज़र आते हैं. यह विश्वास झूठा ही सही, जल्दी ही टूट जाएगा. हालांकि बहुमत जनता का विश्वास तो पहले ही टूट चुका है. दिल्ली के चुनावों में भाजपा शर्मनाक हार इस बात का पक्का सबूत है. अब बिहार की जनता मोदी के खूठे वायदों का हिसाब मांगने के लिए तैयार हो रही है. यद्दपि कॉर्पोरेट मीडिया अभी से ही भाजपा और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर दिखा रहा है लेकिन और कई चेनल या एजेंसियां अपने सर्वेक्षणों में भाजपा की बढ़त तक दिखा रहे हैं. लेकिन जब बिहार के चुनाव के नतीजे खुलेंगे तो दिल्ली जैसी हार तो नहीं लेकिन हाँ भाजपा को बड़ी हार का मुहं यहाँ भी देखना पड़ेगा.

                                                                                                                               

खैर अपने विकास के मुद्दे पर वापस आते हैं. दर-असल मोदी ने सत्ता में आते ही अपनी मंशा पूरी दुनिया के सामने ज़ाहिर कर दी थी कि उनकी सभी नीतियाँ देश और विदेश के कॉर्पोरेट को ध्यान में रखकर बनेगी. इन नीतियों में आम जनता का स्थान केवल नाम मात्र के लिए होगा और इसके लिए वे बैमानी नारों और योजनाओं की घोषणा करेंगे; जैसे जनधन योजना, स्वच्छ भारत, बीमा योजना, श्रमेव जयते, सबका साथ सबका विकास आदि. काफी चालाकी से इन नारों और योजनाओं के तहत मोदी ने आम जनता के जनमानस को मानसिक तौर पर उलझाने की कोशिश और अहसास कराने की पूरी कोशिश की, कि वे आम जनता के कल्याण के लिए संकल्पबद्ध हैं. लेकिन मोदी सरकार का एक-एक कदम जनता के खिलाफ पड़ता गया और गरीब और मेहनतकश जनता की तकलीफों में कमी होने की बजाय उसमें इजाफा होता चला गया.

मोदी जी के जितने भी विदेश दौरे होते हैं उनमे ज्यादातर में अदानी और अम्बानी उनके प्रतिनिधिमंडल में शामिल होते हैं. वे हमेशा अपने आस-पास कॉर्पोरेट की कम्पनी को पसंद करते हैं. क्योंकि मोदी जी का मानना है कि जब व्यापार बढेगा तभी तो रोज़गार बढेगा, खुशहाली बढ़ेगी, गरीबी दूर होगी इत्यादि-इत्यादि. रोज़गार बढाने के लिए पूँजी की जरूरत है. और यह पूँजी दो लोगों के हाथ में है एक तो देश और विदेश के पूंजीपतियों के हाथ में और दुसरे सरकार के हाथ में. मोदी जी सरकार की पूँजी और कॉर्पोरेट  की पूँजी में आपसी सहयोग कायम कर देश में व्यापार को बढ़ाना चाहती है जिससे कि सबका साथ सबका विकास संभव हो सके. तो नारे का असल अर्थ क्या है सबका साथ का मतलब – सभी पूंजीपतियों चाहे वह देशी हो या विदेशी का साथ और सबका विकास यानी पूंजीपतियों और सत्ताधारियों का विकास. इस पैरोडी पर अमरिका न जाने कितने समय से चल रहा है. इसलिए अमरिका में 0.1 प्रतिशत आबादी के पास उतनी ही पूँजी जो अमरिका की निचले स्तर पर जीवन व्यतीत कर रही 90 प्रतिशत आबादी के पास है. यानी मोदी सरकार देश की बड़ी संपत्ति को अंधे मुनाफे के नाम पर पूंजीपतियों की झोली में डालना चाहती है. यह विकास का रास्ता आम जनता के लिए नहीं है. यह घनघोर पूंजीवादी रास्ता है जो आम आदमी और गरीब बेबस को और ज्यादा अन्धकार की तरफ धकेलता जाएगा.

वैसे भी अब लोग विकास के बारे में नहीं सोच रहें हैं. भाजपा की नकेल अपने हाथ में रखने वाली संघ ने अब जनता के सामने बड़े मुद्दे खड़े कर दिए हैं. जैसे खाने में क्या खाना है? किस त्यौहार पर क्या खाना है? कपडे कैसे पहनने हैं? कौनसे धार्मिक त्यौहार पर कैसे आचरण करना है? लोगों के पास बहुत कुछ है अब सोचने के लिए. अब उसके इन बातों के लिए वक्त नहीं है मोदी ने चुनाव जितने के लिए कौन कौन से नारे दिए थे. वे सब बीती बातें हैं. अब तो उसे इतिहास कौनसा पढना है, महिलाओं को कौनसी मर्यादों में रहना है, लव जिहाद, घर वापसी, कम से कम चार बच्चे पैदा अकरने की तैयारी करनी है. यह सब सोचना है. हाँ अगर कोई मोदी के नारों पर सवाल खड़ा करे, कोई अंधविश्वास के खिलाफ बोले, अगर ईश्वर के आस्तित्व को स्वीकार न करना चाहे, कोई सब धर्मों के समुदायों में सद्भाव की बात करें तो उससे निबटने के बारे में सोचना है. उनकी आवाज़ को कैसे ठंडा किया जाए उसके बारे में सोचना है. आप सोचो और सोचते रहो कि पंसारे, दाभोलकर और कलबुर्गी क्यों मार दिया गया. क्योंकि अब तो यही सब होना है. जिनका साथ होना ठाट उनका साथ मिल गया और जिनका विकास होना था उनका विकास हो गया.

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।

कलबुर्गी
पानसरे
दाभोलकर
अच्छे दिन
सबका साथ सबका विकास
नरेन्द्र मोदी
भाजपा
बिहार चुनाव
लव जिहाद
घर वापसी

Related Stories

कार्टून क्लिक : नए आम बजट से पहले आम आदमी का बजट ख़राब!

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों 10 सितम्बर को भारत बंद

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार

यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप

मोदी के एक आदर्श गाँव की कहानी


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्ट: चंदौली पुलिस की बर्बरता की शिकार निशा यादव की मौत का हिसाब मांग रहे जनवादी संगठन
    30 May 2022
    "हमें तो पुलिस के किसी भी जांच पर भरोसा नहीं है। जब पुलिस वाले ही क़ातिल हैं तो पुलिसिया न्याय पर हम कैसे यकीन कर लें? सीबीआई जांच होती तो बेटी के क़ातिल जेल में होते। हमें डरे हुए हैं। "
  • एम.ओबैद
    मिड डे मिल रसोईया सिर्फ़ 1650 रुपये महीने में काम करने को मजबूर! 
    30 May 2022
    "हम लोगों को स्कूल में जितना काम करना पड़ता है। उस हिसाब से वेतन नहीं मिलता है। इतने पैसे में परिवार नहीं चलता है।"
  • अरुण कुमार
    गतिरोध से जूझ रही अर्थव्यवस्था: आपूर्ति में सुधार और मांग को बनाये रखने की ज़रूरत
    30 May 2022
    इस समय अर्थव्यवस्था गतिरोध का सामना कर रही है। सरकार की ओर से उठाये जाने वाले जिन क़दमों का ऐलान किया गया है, वह बस एक शुरुआत है।
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    जौनपुर: कालेज प्रबंधक पर प्रोफ़ेसर को जूते से पीटने का आरोप, लीपापोती में जुटी पुलिस
    30 May 2022
    स्टूडेंट्स से प्रयोगात्मक परीक्षा में अवैध वसूली करने का कोई आदेश नहीं है। यह सुनते ही वह बिफर पड़े। नाराज होकर प्रबंधक ने पहले गाली-गलौच किया और बाद में जूते निकालकर मेरी पिटाई शुरू कर दी। उन्होंने…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत
    30 May 2022
    देश में एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 0.04 फ़ीसदी यानी 17 हज़ार 698 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License