NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती : ज़रूरत के विपरीत किया गया फ़ैसला!
राजकोषीय घाटे के ज़रिये बड़े पूंजीपतियों को टैक्स में दी जा रही भारी रियायतें, आय और दौलत के वितरण की स्थिति को तो ख़राब करेंगी ही साथ ही आर्थिक मंदी को भी बढ़ाएँगी।
प्रभात पटनायक
28 Sep 2019
Translated by महेश कुमार
corporate tax rate

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार द्वारा कॉर्पोरेट टैक्स की दर में की गयी कटौती, और सार्वजनिक खज़ाने से कॉर्पोरेट क्षेत्र को 1 लाख 45 हज़ार करोड़ रूपये के तोहफ़े को आम तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था में आई मंदी पर क़ाबू पाने के लिए अपर्याप्त बताया जा रहा है। यह न सिर्फ़ असलियत पर पर्दा डालने जैसी बात है; बल्कि वास्तव में यह ग़लत भी है।

इस बढ़ती मंदी पर पार पाने के लिए जो आवश्यक रूप से किया जाना था सभी उपाय उसके विपरीत किए जा रहे हैं। यह कामकाजी लोगों पर आर्थिक बोझ तो बढ़ाएगा साथ ही मंदी को भी बढ़ाएगा और देश में आय और दौलत के वितरण को डांवाडोल कर देगा। तथ्य यह है कि सरकार संकट का मुक़ाबला करने के नाम पर जब इस तरह के उपायों को अपना सकती है, तो यह मान लेना चाहिए कि यह आर्थिक मामलों में उसकी अज्ञानता का उतना ही बड़ा संकेत है जितना कि कामकाजी लोगों पर इसका बोझ डालना और एकाधिकार पूंजीवाद को समृद्ध करने के लिए अपने वर्गीय पूर्वाग्रह के आधार पर काम करना।

अब यह काफ़ी स्पष्ट है कि संकट का कारण मुख्य रूप से कुल मांग का गिरना है। सरकार द्वारा राजकोषीय उपाय के ज़रिये हस्तक्षेप कर कुल मांग की कमी को दूर करने को अपने रूप में आ जाना चाहिए - यदि राजकोषीय घाटा बढ़ना नहीं है वह भी आबादी के उन वर्गों पर टैक्स लगा कर जो उपभोग के लिए अपनी आय का एक छोटा हिस्सा ख़र्च करते हैं, और सरकार या राज्य टैक्स के पैसे का उपयोग या तो सीधे अपने ख़र्च के लिए, या फिर उन वर्गों को स्थानांतरित करती है जो अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा अपने लिए उपयोग पर करते हैं।

अब, यह एक जाना माना तथ्य है कि कंपनियां प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से (लाभांश पे-आउट के माध्यम से), अपनी आय का एक छोटा हिस्सा कामकाजी लोगों की तुलना में खपत पर ख़र्च करती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कंपनियां उस मुनाफ़े को बांटती नहीं हैं जो उपभोग पर ख़र्च नहीं होता; इसके अलावा,  भुगतान किए गए लाभांश का उपभोग करने की प्रवृत्ति, वेतन आय के मुक़ाबले काफ़ी कम है। इसलिए, कुल मांग में आई कमी को दूर करने एक ही तरीक़ा है कि कंपनियों पर टैक्स में वृद्धि की जाए और उस टैक्स से आय का उपयोग या तो राज्य के ख़र्च को बढ़ाने के लिए किया जाए, या कामकाजी लोगों को बजटीय हस्तांतरण प्रदान करके किया जाना चाहिए।

राजकोषीय घाटा न बढ़े इसलिए संतुलन बिठाने के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र को टैक्स में रियायतें देना, राज्य के ख़र्च में कमी लाना, या राज्य द्वारा काम करने वाले लोगों को स्थानांतरण करना, या फिर कामकाजी लोगों पर अधिक करों को बढ़ाना, ये सब उपाय उस सब के विपरीत हैं जिसे किये जाने की आवश्यकता है; इसलिए यह बाज़ार में कुल मांग को अधिक कम करेगा और संकट को बढ़ाएगा।

इस बात पर निश्चित होना कि अगर राजकोषीय घाटे से वित्तपोषित कॉर्पोरेट क्षेत्र को दी जा रही टैक्स रियायतों के बाद इस तरह के संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि बड़े पूंजीपतियों को जो दिया जा रहा है उसके समकक्ष संसाधन पैदा करने के लिए किसी पर टैक्स नहीं लगाया जाएगा। लेकिन ऐसे मामले में कम से कम पांच मुद्दों पर ध्यान देने की ज़रूरत है, जहां राजकोषीय घाटे के माध्यम से टैक्स रियायतों का वित्तपोषण किया जा रहा है।

सबसे पहला मुद्दा, अगर टैक्स रियायतों को आंशिक रूप से राजकोषीय घाटे द्वारा, राज्य के ख़र्च में कमी करके,  कामकाजी लोगों के लिए बजटीय प्रावधान में कमी कर या फिर कामकाजी लोगों पर करों को थोप कर वित्तपोषित किया जाता है, तो ये सब उपाय भी कुल मांग में कमी का कारण बन सकते हैं अगर राजकोषीय घाटे द्वारा किए गए वित्तपोषण का हिस्सा काफ़ी छोटा है।

दूसरा मुद्दा, भले ही टैक्स रियायत की पूरी राशि का भुगतान राजकोषीय घाटे से किया जा रहा हो, ताकि कुल मांग में कोई कमी न आए, और अगर उतनी ही राशि बड़े पूँजीपतियों के बजाए मेहनतकश लोगों को उपलब्ध करवाई जाती है या सीधे राज्य द्वारा ख़र्च की जाती है, तो वह कुल माँग में बड़ी वृद्धि का कारण बन सकती है। दूसरे शब्दों में, यदि बड़े पूंजीपतियों को सरकारी खज़ाने से 1 लाख 45 हज़ार करोड़ रुपये दिए जाते हैं, तो यह कुल मांग को बढ़ाने का सबसे कम प्रभावी तरीक़ा है फिर आप वितरण संबंधी बात तो छोड़ ही दें।

तीसरा मुद्दा, न केवल बड़े पूंजीपतियों को उनके उपयोग के लिए पैसा सौंपना मांग को बढ़ाने के अन्य तरीक़ों के मुक़ाबले कम प्रभावी होग, बल्कि यह शायद ही कुल मांग को बढ़ा पाएगा। इसका कारण यह है कि मुनाफ़े से उपभोग करने की प्रवृत्ति केवल मज़दूरी की लागत से कम ही नहीं है, बल्कि यह उस दिए गए निश्चित समय की अवधि के भीतर शून्य के क़रीब है। यह सच है कि कुछ समय के बाद, निगमों को टैक्स के बाद बड़े मुनाफ़े होने के तथ्य की वजह से उन्हें बड़े लाभांश दिए जा सकते हैं, जो बड़े पूंजीपतियों द्वारा बड़ी खपत को प्रोत्साहित कर सकते हैं; लेकिन तब तक संकट काफ़ी बढ़ जाएगा और क़ाबू से बाहर हो जाएगा। दूसरे शब्दों में कहे तो, कॉर्पोरेटों को टैक्स में रियायतें निश्चित समय अवधि के भीतर कुल मांग पर शून्य के बराबर प्रभाव डालती हैं, और जो सबसे ज़्यादा मायने रखता है कि यह वह समय है जब हम संकट विरोधी उपायों पर चर्चा कर रहे हैं।

चौथा मुद्दा, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि कुल मांग पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, अर्थात जब इसका कुल मांग पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता है, तो बड़े पूंजीपतियों को टैक्स में दी जा रही रियायतों को वित्तीय घाटे से पूरा करने से समाज में आय और दौलत के वितरण की स्थिति पूरी तरह ख़राब हो जाएगी। राजकोषीय घाटे का मतलब है सरकार द्वारा उधार लेना; यानी जो सरकार को उधार दे रहा है वह महकमा या एजेंसी अमीर है; वास्तविक रूप से यह मानते हुए कि राजकोषीय घाटे को विदेशी उधार के रूप में नहीं वित्तपोषित किया जा रहा है, यह वह है, जिसकी संपत्ति बढ़ रही है, और वह घरेलू पूंजीपति होना चाहिए। इसलिए, राजकोषीय घाटा दौलत की असमानता को तब बढ़ा देता है जब पूंजीपति सरकार के ख़िलाफ़ उसी समान दौलत का दावा ठोकते हैं।

और, अंत में, राजकोषीय घाटे में वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था में वित्त की आमद कम होने की संभावना पैदा हो जाती है। यह इसलिए क्योंकि सरकार किसी भी पूंजी या व्यापार पर नियंत्रण की कोशिश नहीं करती है और इसलिए चालू खाते के घाटे को पूरा करना और अधिक कठिन हो जाता है। यह भी सच है, कि विदेशी वित्त पूंजी के लिए भी कॉर्पोरेट टैक्स की दर में कमी के साथ कुछ रियायतों की घोषणा की गई है; लेकिन यह केवल इस बात की ही तसदीक़ करता है कि बजट में घोषित सरचार्ज जो विदेशी पोर्टफ़ोलियो निवेशकों द्वारा प्रतिभूतियों की बिक्री पर पूंजीगत लाभ के रूप में मिलना था वह अब उन पर लागू नहीं होगा।

दूसरे शब्दों में कहें तो उनके लिए बजट पूर्व की स्थिति को बहाल कर दिया गया है; और इस क़दम से बड़े राजकोषीय घाटे को दूर करने के लिए आमदनी कम हो जाएगी। यह स्थिति बदले में, सरकार को राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने के लिए मजबूर करेगी, जिसका अर्थ है कि कॉर्पोरेट टैक्स में रियायतों का प्रभाव कुल या सकल मांग के स्तर को कम करेगा और संकट को और भी बदतर बना देगा, जैसा कि ऊपर तर्क दिया गया है।

अब तक हम उपभोग के ज़रिये कुल मांग को बढ़ाने की बात कर रहे थे; इसके लिए यह तर्क दिया जाता है कि टैक्स में दी जा रही रियायतें बड़े निवेश को प्रोत्साहित करेंगी और कुल मांग को बढ़ा देंगी। लेकिन यह तर्क पूरी तरह से ग़लत है। निवेश हमेशा लाभ की अपेक्षित दर पर निर्भर करता है जिसे कि पूंजी स्टॉक के अलावा हासिल किया जाता है, और यह मांग की अपेक्षित वृद्धि पर निर्भर करता है, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मौजूदा पूंजी स्टॉक पर लाभ की वास्तविक दर क्या है।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि ऑटोमोबाइल की मांग मे ठहराव के बने रहने की उम्मीद है। चूंकि मौजूदा क्षमता पहले से ही इस मांग को पूरा कर रही है, इसलिए फ़र्म अपने कैपिटल स्टॉक इसमें नहीं जोड़ेंगी, ऐसा करने से उन्हें कैपिटल स्टॉक पर कोई लाभ दर हासिल नहीं होगा। अब, चाहे मौजूदा पूंजीगत स्टॉक पर लाभ की वास्तविक दर 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत या 50 प्रतिशत है, इस स्थिति से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता; क्योंकि अतिरिक्त पूंजीगत स्टॉक के निवेश पर लाभ की अपेक्षित दर अभी भी शून्य ही रहेगी क्योंकि बाज़ार में मांग नहीं है। इसलिए, मौजुदा कॉर्पोरेट टैक्स  रियायतें जो मौजूदा पूंजी स्टॉक पर लाभ की वास्तविक दर को बढ़ाती हैं, उसका निवेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

इससे भी बड़ी बात यह है कि जिस हद तक इस तरह की टैक्स रियायतों को सरकारी ख़र्चों को कम करके या कामकाजी लोगों की कम आय के ज़रिये वित्तपोषित किया जा रहा है, इससे कुल मांग में शुद्ध कमी आएगी, निवेश भी गिर जाएगा क्योंकि अधिक टैक्स रियायतें टैक्स के बाद मौजूदा पूंजी स्टॉक पर लाभ को बढ़ाती हैं।

अगर ये टैक्स रियायतें लघु पैमाने के उद्योग को दी जाती हैं, जो मांग की कमी के मुक़ाबले अक्सर वित्त की कमी से जुझता रहता है, तो वे बड़े निवेश का कारण बन सकता है; लेकिन ये रियायतें कॉर्पोरेट क्षेत्र को दी जाती हैं, जो आमतौर पर वित्त की कमी से तो जुझ रहे होते हैं साथ ही मांग की कमी से भी जुझते रहते हैं, बाक़ी बची हुई चीजें, निवेश पर शून्य प्रभाव डालती हैं; और जब हम इस तरह की कर रियायतों की वजह से भारी आर्थिक परिणामों की तरफ़ देखते हैं तो पाते हैं कि इसके कारण कुल मांग में कमी आ रही है, और इसका शुद्ध प्रभाव निवेश को कम करेगा।

इसलिए, नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा "प्रोत्साहन" के लिए किए गए उपायों का प्रभाव उत्पादन और रोज़गार पर हानिकारक होगा और अर्थव्यवस्था में आय और दौलत के वितरण को बिगाड़ देगा। ऐसी सरकार के ज़रिये इस तरह के उपाय, हालांकि, ज़्यादा आश्चर्यचकित करने वाले नहीं हैं, जिसका अर्थशास्त्र का ज्ञान लौकि रूप से काफ़ी तुच्छ है।

Corporate Tax Rate
corporate tax
BJP
Nirmala Sitharaman
Narendra modi
income inequality

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License