NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कर्नाटक : 'कामदार' मोदी के निजीकरण के खिलाफ मज़दूर लामबंद
कर्नाटक में मज़दूर हड़ताल के लिए कमर कस रहे हैं ताकि 'कामदार' मोदी के निजीकरण के एजेंडा को करारा जवाब दिया जा सके। राज्य के वामपंथी दल और संबद्ध यूनियनें 6 जनवरी को सुबह 10:30 बजे टाउन हॉल के बाहर बेंगलुरु में एकत्रित होंगी।
योगेश एस.
04 Jan 2019
Translated by महेश कुमार
सांकेतिक तस्वीर

[#श्रमिकहड़ताल : 8-9 जनवरी को दस ट्रेड यूनियनों द्वारा किए गए आह्वान के तहत दो दिवसीय ऐतिहासिक अखिल भारतीय हड़ताल को सफल बनाने के लिए लाखों मज़दूर जुट रहे हैं। न्यूज़क्लिक आपके लिए देश के विभिन्न हिस्सों से औद्योगिक श्रमिकों के जीवन की झलक दिखा रहा है।]

10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और दर्जनों स्वतंत्र कर्मचारियों के महासंघों के आह्वान पर सभी औद्योगिक क्षेत्रों, सेवा क्षेत्र और सरकारी कर्मचारी 8-9 जनवरी, 2018 को दो दिवसीय हड़ताल पर जाएंगे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (BMS) को छोड़कर, हड़ताल का समर्थन सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों- सेंटर आफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू), ऑल इंडिया सेंट्रल कॉउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (ऐक्टू), इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिंद मजदूर सभा, ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस, ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन सेंटर, सेल्फ एम्प्लॉयड वुमेन्स एसोसिएशन, लेबर प्रोग्रेसिव फ्रंट और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस। विभिन्न किसानों और कृषि मजदूर संघों ने भी समर्थन दिया है।

ये भी पढ़े ;- 8-9 जनवरी की ऐतिहासिक हड़ताल के लिए उद्योग और ग्रामीण क्षेत्र तैयार 

1 मई, 2018 को कर्नाटक के चामराजनगर जिले के संतमाराल्ली में एक विशाल चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को "कामदार" (यानी मज़दूर) कहा था। ऐसा कहते हुए, उन्होंने खुद को राहुल गांधी से अलग कर लिया था, जो उनके अनुसार कुलीन और बुर्जुआ हैं। विडंबना यह है कि वर्तमान भाजपा सरकार के तहत श्रमिक वर्ग इस सरकार की नीतियों से सबसे अधिक प्रभावित हैं, यह दर्शाता है कि सरकार का हित निजीकरण के माध्यम से कल्याणकारी अर्थव्यवस्था से दूर जाने में निहित है। देश के उच्च औद्योगिक राज्यों में से एक, कर्नाटक ने इस सरकार के निजीकरण के एजेंडे को करीब से देखा है।

ये भी पढ़ें : #श्रमिकहड़ताल : दिल्ली की स्टील रोलिंग इकाइयों में औद्योगिक श्रमिकों का जीवन

उदाहरण के लिए, प्रतिभा और जयराम, जो गारमेंट्स एंड टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन (GATWU) के सदस्य हैं, ने न्यूज़क्लिक को श्रमिकों के संघर्ष और अपर्याप्त मजदूरी के बारे में बताया जो कर्नाटक राज्य के सबसे बड़े अनौपचारिक क्षेत्रों में से एक है; और उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों के साथ छेड़-छाड़ करने बारे में भी बात की। प्रतिभा ने केंद्र में भाजपा सरकार के उस रवैये की ओर इशारा किया था, जो कि "मजदूर विरोधी" है। उन्होंने कहा था, “केंद्र सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहला काम श्रम कानूनों से छेड़छाड़ का किया। हमें नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं और वह क्या है जो वे चाहते हैं। हम सभी उस विरोध से अवगत हैं जिस विरोध का सामना केंद्र सरकार को उस समय करना पड़ा जब उन्होंने भविष्य निधि निकासी मानदंडों में बदलाव करने के लिए एक अधिसूचना जारी की थी। नतीज़तन सरकार को अधिसूचना वापस लेनी पड़ी। यह सरकार शुरू से ही ऐसा करती आ रही है। हम चिंतित हो जाते हैं जब यह सरकार सुधारों के बारे में बात करती है। सुधारों के नाम पर, वे ऐसे कानूनों को बेअसर करती हैं जो श्रमिकों के हित में हैं। ”

इसे भी पढ़ें : मजदूर हड़ताल: तेलंगाना में 8 और 9 जनवरी के हड़ताल की जबरदस्त तैयारी

प्रतिभा और जयराम ने देश में श्रम कानूनों के कमजोर पड़ने के बारे में भी बताया। “कानून कहता है कि मजदूरी को हर तीन साल में न्यूनतम स्तर पर और अधिकतम स्तर पर हर पांच साल में बढ़ाना होगा। लेकिन पिछले 38 वर्षों में, हमने केवल चार वेतन में संशोधन देखे हैं जबकि कानून के अनुसार, आठ वेतन सम्बंधित संशोधन होने चाहिए थे। परिधान उद्योग में 10 लाख मतदाता काम करते हैं। यह केवल कपड़ा उद्योग नहीं है, बल्कि कपड़ा, छपाई, रंगाई, कताई उद्योग है जो एक ही नाव में हैं सवार है। हमें देखना होगा कि इस समय पाइपलाइन में क्या है। सच्चाई यह है कि कोई भी सरकार हमारे लिए कुछ भी अच्छा नहीं करती है।”

गारमेंट्स और टेक्सटाइल श्रमिकों की तरह, राज्य में परिवहन, सार्वजनिक शिक्षा, पंचायत, किसान, स्वास्थ्य मज़दूर जैसे अन्य क्षेत्रों के मज़दूर सभी सरकार की मज़दूर-विरोधी कानूनों और नीतियों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) स्टाफ और वर्कर्स फेडरेशन ने 9 अगस्त, 2018 से केंद्र की "कॉर्पोरेट अनुकूल श्रम नीतियों" का विरोध करते हुए 40 दिनों का लंबा विरोध प्रदर्शन किया था। इसी तरह राज्य में आंगनवाड़ी मज़दूरों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए हैं। एकीकृत बाल विकास सेवा योजना (ICD) के लिए सरकार ने आवंटन में काफी कमी कर दी है।

जैसा कि सुबोध वर्मा ने न्यूज़क्लिक के लिए लिखा है कि सरकार द्वारा संचालित सार्वजनिक उद्यमों के लगभग 2.4 लाख मज़दूरों ने अपनी नौकरी खो दी है जबसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2014 में सत्ता संभाली है। यह कार्यबल का 25 प्रतिशत का बड़ा हिस्सा है। इसके साथ ही, अस्थायी और संविदा (ठेकेदारी के तहत) कर्मियों की संख्या बढ़कर 3.8 लाख हो गई है। ऐसे कर्मचारियों का अनुपात 2014 के 36 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 53 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह आंकड़ा सार्वजनिक उद्यम विभाग की वार्षिक सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण (पीईएस) श्रृंखला से निकाला गया है। इस दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति में रिकॉर्ड-तोड़ विनिवेश देखा गया है- दो लाख करोड़ रुपये से अधिक बैठता है जो एक समय बार भारत के गौरव, भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ और आत्मनिर्भरता की मिसाल रही है उसे तबाह किया जा रहा है। यह एक प्रमुख कारण है कि 8-9 जनवरी 2018 को सार्वजनिक क्षेत्र के मज़दूर दो दिवसीय हड़ताल पर जा रहे हैं।

ये  भी पढ़ें : निर्माण मज़दूर : शोषण-उत्पीड़न की अंतहीन कहानी

कर्नाटक में सभी वामपंथी दल और संबद्ध यूनियनें 6 जनवरी, 2018 को सुबह 10:30 बजे बेंगलुरु में टाउन हॉल के बाहर एकत्रित होंगे। न्यूज़क्लिक आपको विस्तार से कर्नाटक के विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्रों के श्रमिकों के जीवन और उनकी कहानियों की जानकारी देगा।

 इसे भी पढ़ें : सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन को लेकर किये जा रहे दावों की सच्चाई?

Workers Strike
#WorkersStrikeBack
workers protest
karnataka
general strike
8-9 january strike

Related Stories

कर्नाटक पाठ्यपुस्तक संशोधन और कुवेम्पु के अपमान के विरोध में लेखकों का इस्तीफ़ा

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

अलविदा शहीद ए आज़म भगतसिंह! स्वागत डॉ हेडगेवार !

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

लुधियाना: PRTC के संविदा कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू

कर्नाटक: स्कूली किताबों में जोड़ा गया हेडगेवार का भाषण, भाजपा पर लगा शिक्षा के भगवाकरण का आरोप

नफ़रती Tool-Kit : ज्ञानवापी विवाद से लेकर कर्नाटक में बजरंगी हथियार ट्रेनिंग तक

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

कर्नाटक में बदनाम हुई भाजपा की बोम्मई सरकार, क्या दक्षिण भारत होगा- “भाजपा मुक्त”

आज़म खान-शिवपाल का साथ छोड़ना! क्या उबर पाएंगे अखिलेश यादव?


बाकी खबरें

  • protest
    न्यूज़क्लिक टीम
    दक्षिणी गुजरात में सिंचाई परियोजना के लिए आदिवासियों का विस्थापन
    22 May 2022
    गुजरात के दक्षिणी हिस्से वलसाड, नवसारी, डांग जिलों में बहुत से लोग विस्थापन के भय में जी रहे हैं। विवादास्पद पार-तापी-नर्मदा नदी लिंक परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। लेकिन इसे पूरी तरह से…
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: 2047 की बात है
    22 May 2022
    अब सुनते हैं कि जीएसटी काउंसिल ने सरकार जी के बढ़ते हुए खर्चों को देखते हुए सांस लेने पर भी जीएसटी लगाने का सुझाव दिया है।
  • विजय विनीत
    बनारस में ये हैं इंसानियत की भाषा सिखाने वाले मज़हबी मरकज़
    22 May 2022
    बनारस का संकटमोचन मंदिर ऐसा धार्मिक स्थल है जो गंगा-जमुनी तहज़ीब को जिंदा रखने के लिए हमेशा नई गाथा लिखता रहा है। सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल पेश करने वाले इस मंदिर में हर साल गीत-संगीत की…
  • संजय रॉय
    महंगाई की मार मजदूरी कर पेट भरने वालों पर सबसे ज्यादा 
    22 May 2022
    पेट्रोलियम उत्पादों पर हर प्रकार के केंद्रीय उपकरों को हटा देने और सरकार के इस कथन को खारिज करने यही सबसे उचित समय है कि अमीरों की तुलना में गरीबों को उच्चतर कीमतों से कम नुकसान होता है।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 
    21 May 2022
    अठारह घंटे से बढ़ाकर अब से दिन में बीस-बीस घंटा लगाएंगेे, तब कहीं जाकर 2025 में मोदी जी नये इंडिया का उद्ïघाटन कर पाएंगे। तब तक महंगाई, बेकारी वगैरह का शोर मचाकर, जो इस साधना में बाधा डालते पाए…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License