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क्या है बजट? आइए आसान भाषा में समझते हैं इसके ख़ास पहलू
बजट अमूमन आम आदमी के लिए एक पेचीदा पहेली सा बनकर रह जाता है। उसमें वो अपने काम लायक दो-चार चीज़े समझता है और बाकी विशेषज्ञों के जिम्मे छोड़ देता है, जबकि सभी को इसे समग्रता में समझना ज़रूरी है।
अजय कुमार
03 Jul 2019
Budget

मोदी सरकार पार्ट-2 अपना पहला पूर्ण बजट 5 जुलाई को संसद में पेश करने जा रही है। इससे पहले पार्ट-1 में चुनाव सामने होने की वजह से वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए केवल अंतरिम बजट पेश किया गया था। यही संवैधानिक प्रावधान है। चुनावी वर्ष में हर सरकार को केवल अंतरिम बजट पेश करने का अधिकार होता है। हालांकि मोदी सरकार-पार्ट 1 ने अंतरिम बजट को भी लगभग पूर्ण बजट के अंदाज़ में पेश और प्रचारित किया था।  

बजट अमूमन आम आदमी के लिए एक पेचीदा पहेली सा बनकर रह जाता है। उसमें वो अपने काम लायक दो-चार चीज़े समझता हैऔर बाकी विशेषज्ञों के जिम्मे छोड़ देता है, जबकि बजट का हर पहलू देश के सभी लोगों पर गहरा प्रभाव डालता है। इसलिए इसे समग्रता में समझना ज़रूरी होता है।

अक्सर दुकानदार ग्राहक से पूछता है कि आपका बजट क्या है? तो इसका मतलब यह होता है की ग्राहक अपनी आर्थिक हैसियत बता दे ताकि दुकानदार को उसके हिसाब से सामान दिखाने और बेचने में आसानी रहे। लेकिन देश के बजट के साथ ऐसी स्थिति नहीं होती। चूँकि यह लाखों दुकानदारों और करोड़ों ग्राहकों के साथ एक साथ डील करता है, इसलिए थोड़ा जटिल होता है। थोड़ा विशिष्ट शैली में होता है। इसलिए इसकी भाषा समझने के लिए थोड़ी सी आधारभूत समझ ज़रूरी होती है।  
सामान्य तौर पर समझें तो किसी देश की आर्थिक हैसियत समझने के लिए तीन पहलू जरूरी हो सकते हैं।

पहला ये कि पिछले साल की आर्थिक हैसियत क्या थी? मतलब पिछले साल कितनी कमाई हुई और कितना खर्च किया गया?

दूसरा, ये कि किसी देश के लिए कमाई का जरिया क्या हो सकता है?

और तीसरा ये कि कमाई कहाँ खर्च की जायेगी? 

संविधान ने बजट के लिए इन्हीं तीन पहलुओं को शामिल किया है। इस तरह से बजट के जिस बैग को हम टीवी के सामने देखते हैं, उसमे तीन दस्तावेज शामिल होते हैं। पिछले साल की कमाई और खर्चें का ब्योरा देने वाला एनुअल फिनानासिअल स्टेटमेंट,मौजूदा साल में कमाई का जरिया दर्शाने वाला फाइनेंस बिल और तीसरा, मौजूदा साल में खर्चे की योजना दिखाने वाला अप्रोप्रिएसन बिल।  

इन तीनों को खंगालने पर हमारे सामने वह तस्वीर प्रस्तुत होती है जो यह बताए कि भारतीय राज्य के साथ कल्याणकारी राज्य की उपमा सही है या केवल एक अलंकार मात्र है। 

एनुअल फाइनेंसियल स्टेटमेंट

पहले बात करते हैं एनुअल फाइनेंसियल स्टेटमेंट की। जिस तरह से कमाई और खर्चे  को दिखाने के लिए आम तौर पर एकाउंट की प्रक्रिया का सहारा लिया जाता है, ठीक वैसे ही भारत सरकार भी एकाउंट की प्रक्रिया के सहारे पिछले साल की अपनी कमाई और खर्चे को दर्शाती है। जिसमें दो अकाउंट शामिल होते हैं– रेवेन्यू एकाउंट और कैपिटल एकाउंट। 
आम तौर पर रेवेन्यू का मतलब कमाई से लगाया जाता है। ठीक ऐसे ही राज्य के संदर्भ में भी टैक्स और नॉन टैक्स से होने वाली कमाई रेवेन्यू अर्थात राजस्व है।
टैक्स यानी कर, जिसका बिना किसी जानकरी के भुगतान हर कोई करता हैं जो किसी भी तरह के सामान और सुविधा का उपभोग कर रहा हो। इसके भी दो भाग हैं प्रत्यक्ष कर और परोक्ष कर।

नॉन टैक्स यानी कर के अलावा दूसरे जगहों से होने वाली राज्य की कमाई। जैसे कि सरकारी कंपनियों से होने वाली कमाई, रेल और बस के किरायों से होने वाली कमाई, देश के अंदर या बाहर दिए गए कर्जे पर मिले ब्याज से हुई कमाई।  

कमाई कहां से हो रही है और खर्च कहां किया जा रहा है? यह दर्शाने के लिए एकाउंट को दो भागों में बांटा जाता है।

Revenue reciept  और Revenue expenditure यानी राजस्व आय और खर्चा एकाउंट। राज्य द्वारा कर लगाकर मिली राशि, सरकार द्वारा जनता में सुविधाएं बांटकर (जैसे रेलवे ,पोस्ट आदि ) हासिल की गयी राशि, सरकार द्वारा देश के भीतर और विदेशों में निवेश पर मिला ब्याज रेवेन्यू एकाउंट के reciept में दर्ज होता है।

भारत सरकार के लिए गए लोन पर चुकाया जाने वाला ब्याज, राज्यों को कल्याकारी बनाने के लिए दी गयी सहयोग राशि ,सब्सिडी के तहत दी जाने वाली कल्याणकारी राशि, डिफेन्स में किये जाने वाले खर्चे, पेंशन के तौर पर दी जानी वाली राशि रेवेन्यू एकाउंट के expenditure वाले खाने में दर्ज़ होते हैं।

 कैपिटल एकाउंट मतलब मोटी कमाई और मोटे खर्चे का लेखा जोखा। इसे भी कैपिटल reciept और कैपिटल expenditure दो भागों में बांटा जाता है। देश के भीतर और विदेशों से लिए गये लोन, सरकारी कम्पनी को बेचकर हासिल की गयी राशि, दिए गये लोन को चुकाने पर मिली राशि कैपिटल अकाउंट का reciept होता है। 

देश के भीतर और विदेशों में दिया गया लोन, सरकारी कल-कारखाने लगाने में खर्च की गयी राशि, कोई पूंजीगत मतलब सालों साल चलने वाले सामान पर खर्च की गयी राशि कैपिटल अकाउंट के expenditure वाले खाने में शामिल किया जाता है।

ये है एनुअल फाइनेंसियल स्टेटमेंट की रूपरेखा जिसे पेश करते हुए नई वित्तीय मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी।

राजकोषीय घाटा

अब यहीं पर राजकोषीय घाटा भी समझ लेते हैं। सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिये कितनी उधारी की ज़रूरत होगी। कुल राजस्व का हिसाब-किताब लगाने में उधारी को शामिल नहीं किया जाता है। राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है।

पूंजीगत व्यय लंबे समय तक इस्तेमाल में आने वाली संपत्तियों जैसे-फैक्टरी, इमारतों के निर्माण और अन्य विकास कार्यों पर होता है। राजकोषीय घाटे की भरपाई आमतौर पर केंदीय बैंक (रिजर्व बैंक) से उधार लेकर की जाती है या इसके लिये छोटी और लंबी अवधि के बॉन्ड के जरिये पूंजी बाजार से फंड जुटाया जाता है।

भाजपा की सरकार बड़ी शानदार तरीके से फाइनेंस बिल के साथ खेलती है। संविधान में लिखा है कि बिना संसद की इज़ाज़त के भारत सरकार जनता से टैक्स वसूल नहीं कर सकती है। इसलिए टैक्स संरचना में किसी भी तरह के बदलाव के लिए संसद के सामने फाइनेंस बिल रखा जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर इनकम टैक्स स्लैब, सर्विस टैक्स आदि  में बदलाव करना है तो फाइनेंस बिल संसद के सामने रखा जाता है। चूँकि यह टैक्स से जुड़ा मसला है इसलिए राज्यसभा की असहमतियों को यहाँ कमजोर किया गया है। अर्थात लोकसभा में पास होने के बाद फाइनेंस बिल तो प्रस्तुत किया जाता है लेकिन 14 दिन बाद  सहमति और असहमति के इसे पास किया हुआ मान लिया जाता है। 

इसी प्रावधान का फायदा उठाकर फाइनेंस बिल में भाजपा की सरकार ने एलेक्ट्रोल बांड, इनकम टैक्स return पर आधार की अनिवार्यता जैसे कुछ प्रस्तावों को फाइनेंस बिल में शामिल कर लिया ताकि राज्यसभा के अडंगे से बचाया जा सके। भाजपा का रिकॉर्ड बताता है कि उसे ऐसी बाध्यताओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। भाजपा तब तक ऐसी खेल सकती है, जब तक राज्य सभा में भी भाजपा को बहुमत नहीं मिल जाता।  

एप्रोप्रिएसन बिल

एप्रोप्रिएसन बिल आने वाले साल की कमाई और खर्चे की योजना का सरकार द्वरा दिया गया प्रस्ताव है। इसलिए इस पर भी संसद की अनुमति की जरूरत होती है,जो अमूमन हासिल हो जाती है। क्योंकि सरकार उन्हीं की होती है, जो बहुमत में होते हैं।

 सरकार की तिजोरी तीन खातों  में बंटी होती है। कंसोलिडेटेड फण्ड, पब्लिक अकाउंट और contingency फण्ड। डायरेक्ट और इन डायरेक्ट टैक्स के रूप में आने वाली राशि, विदेशों से लिया गया कर्जा और देश के भीतर (राज्य ,निगम ) दिए गये कर्जों की उगाही से मिलने वाली राशि और ब्याज  को कंसोलिडेटेड फण्ड में शामिल किया जाता है।

हम आम तौर पर सरकार के बारे में जो सोचते हैं कि उसकी कमाई टैक्स कलेक्शन से होती है, वह विदेशों से उधार मांग सकती है, इसकी पूरी खबर रखने के लिए कंसोलिडेटेड फण्ड की तरफ नज़र फिराते रहना जरूरी है। इस कंसोलिडेटेड फण्ड से खर्चे की अनुमति हासिल करने के लिए सरकार संसद के पटल पर एप्रोप्रिएसन बिल रखती है। मतलब संसद की अनुमति के बाद इस फण्ड से खर्चा किया जाता है। 

पब्लिक अकाउंट, ये वाला खाना बहुत दिलचस्प है। पैसा आता रहता है और जाता रहता है .सरकार अपनी सरकारी कंपनियों  को बेचकर जो पैसा हासिल करती है, उस कमाई को इस खाने में शामिल किया जाता है। इस पैसे से सरकार बर्बाद हो रही सरकारी कम्पनी और बर्बाद हो रहे बैंकों को आबाद करने की कोशिश करती है। यही पैसा मनरेगा में मजदूरों का पेट भरने के काम आता है। पोस्टल फण्ड, प्रोविडेंट फण्ड, मनी आर्डर फण्ड आदि फण्ड भी इसी पब्लिक अकाउंट के खाने में शामिल किये जाते हैं। इस खाने की खूबी यह है कि इसे खर्च करने के लिए सरकार की अनुमति नहीं लेनी होती।

तीसरा खाना यानी की contingency फण्ड मतलब आपातकालीन समय में खर्च किये जाने के लिए रखा हुआ पैसा। इस पैसे के खर्च के लिए संसद की अनुमति नहीं लेनी पड़ती। राष्ट्रपति के अनुमति के बाद इस खाने से पैसा खर्च किया जा सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं की कोविंद जी हर समय चेक बुक लेकर चलते हैं और चेक काटते रहते हैं। यह काम राष्ट्रपति के सचिव के जिम्मे होता है। केवल इतने शब्दों के सहारे भारत के सलाना बजट को समझाना मुश्किल है लेकिन एक जागरूक परिचय जरूर हासिल किया जा सकता है।

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