NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
क्या काले धब्बों को मिटा पाएगा चुनाव आयोग?
आयोग पर शिथिलता के आरोप लगे, तो सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। आयोग ने अधिकार नहीं होने की बात कही, तो सुप्रीम कोर्ट को फटकारना पड़ा।
प्रेम कुमार
04 May 2019
सांकेतिक तस्वीर

2019 के आम चुनाव के नतीजे जो हों, मगर चुनाव आयोग ने कुछ काले धब्बे अपने नाम कर लिए हैं जिसे धोने के लिए लम्बे समय तक मेहनत किए जाने की जरूरत रहेगी। आयोग पर शिथिलता के आरोप लगे, तो सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। आयोग ने अधिकार नहीं होने की बात कही, तो सुप्रीम कोर्ट को फटकारना पड़ा। सत्ताधारी दल के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ शिकायतों पर कुंडली मारकर आयोग बैठ गया, तो सुप्रीम कोर्ट को 6 मई तक सुनवाई करने और शिकायतों का निपटारा करने का आदेश देना पड़ा।

चुनाव आयोग ने जब पहली बार चौंकाया

आश्चर्य तब हुआ था जब चुनाव आयोग ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष को न्यूनतम आय गारंटी योजना की ओलचना करने के मामले में पद के दुरुपयोग का दोषी ठहराया, मगर सज़ा नहीं दी। यह कहकर छोड़ दिया कि चुनाव आयोग नाराज़ है। यही आश्चर्य तब भी हुआ जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ को ‘मोदीजी की सेना’ बोलने का अपराधी मानने के बावजूद इसी अंदाज में बख्श दिया गया। चुनाव आयोग ने ऐसा क्यों किया, इसका पता तब चला जब आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह ऐसे मामलों में नोटिस जारी करने के अलावा क्या कर सकता है? जाहिर है सुप्रीम कोर्ट नाराज़ हुआ और पूछा कि क्या आप कहना चाहते हैं कि आप शक्तिहीन हैं?

नतीजा देखिए अगले ही दिन चार मामलों में चार नेताओं पर चुनाव आयोग ने एक्शन कर दिखलाया। योगी आदित्यनाथ, मायावती, आज़म खां और मेनका गांधी सब पर अलग-अलग मामलों में न सिर्फ दोष सिद्ध हुआ, बल्कि उन पर कार्रवाई भी हो गयी। हालांकि अब भी इस कार्रवाई का स्तर खानापूर्ति ही था। इसका मकसद निरपेक्ष होने के बजाय निरपेक्ष दिखना ही लगा। उदाहरण के लिए आज़म खां पर बिना उनका पक्ष सुने एक तरफा दोषी ठहरा देना और कार्रवाई करना प्राकृतिक न्याय नहीं था। एक और मतलब निकाला गया कि योगी आदित्यनाथ और मेनका गांधी पर कार्रवाई करनी थी, इसलिए मायावती और आज़म खां पर भी कर दी गयी।

चुनाव प्रचार पर रोक भी ‘ड्रामा’ बन गया

चुनाव आयोग ने आचार संहिता के उल्लंघन के दोषी नेताओं के चुनाव प्रचार पर 24, 48 या 72 घंटे पर प्रतिबंध तो लगा दिया, लेकिन ‘चुनाव प्रचार’ पर वास्तव में प्रतिबंध लगा या नहीं या कि इसका कोई तरीका ढूंढ़ निकाला गया, इस पर भी आयोग ने अपनी आंखें मूंद ली। योगी आदित्यनाथ का मंदिर जाना और दलित के घर भोजन करना और इन दोनों आयोजनों पर मीडिया का लाइव और ऑफ लाइन कवरेज वास्तव में आम दिनों से अधिक ‘चुनाव प्रचार’ था। जिन पर प्रतिबंध लगा, वे कानून को धत्ता बताते दिखे और जिस चुनाव आयोग ने प्रतिबंध लगाया वह ‘बेवकूफ़’ बना नज़र आया। आज़म खां ने जो बात कही, उसी बात को और भी अलग तरीके से उनके बेटे बोलते नज़र आए। उसकी अनदेखी भी आयोग की क्षमता पर एक सवाल बन गयी।

कांग्रेस नेता सुष्मिता देव सुप्रीम कोर्ट गयीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ़ शिकायतों को सुना नहीं जा रहा है। चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि दो मामलों में प्रधानमंत्री के बयानों की सुनवाई हुई है। दो में ही क्यों? चुनाव आयोग ने कहा कि 5वें चरण का चुनाव हो जाने दें उसके बाद हम इन मामलों को निपटाते हैं। 12 अप्रैल की शिकायत को आयोग 8 मई के बाद निपटाने की बात कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई तक इन शिकायतों को निपटाने का निर्देश दिया।

बालाकोट-पुलवामा के नाम पर वोट की अपील पर भी बरी हो गये मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो बयानों पर जिन शिकायतों को चुनाव आयोग ने निपटाया, वह भी सुप्रीम कोर्ट में अपनी लाज रखने के मकसद से की गयी कार्रवाई अधिक लगी। दोनों मामलों में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी गयी। नरेंद्र मोदी के उस बयान पर गौर करें जो उन्होंने  9 अप्रैल को लातूर  में दिया था और जिस पर आयोग ने उन्हें क्लीन चिट दी- 

"मैं जरा कहना चाहता हूं, मेरे फर्स्ट टाइम वोटरों को। क्या आपका पहला वोट पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक करने वाले वीर जवानों के नाम समर्पित हो सकता है? मैं मेरे फर्स्ट टाइम वोटर से कहना चाहता हूं कि पुलवामा में जो वीर शहीद हुए हैं, उन वीर शहीदों के नाम आपका वोट समर्पित हो सकता है क्या? ’’

इस बयान पर क्लीन चिट देते हुए आयोग बंटा हुआ नज़र आया। 2-1 से फैसला हुआ और मोदी के खिलाफ शिकायत खारिज हो गई। बचाव का तर्क ये था कि इस अपील में नरेंद्र मोदी ने अपने लिए या अपनी पार्टी के लिए वोट नहीं मांगा। मतलब ये कि फर्स्ट टाइम वोटर वोट दें तो बालाकोट एयर स्ट्राइक और पुलवामा को याद रखें- यह बात वोटरों को जागरूक करने के लिए कही गयी? सेना के नाम पर एक राजनीतिक दल वोट न मांगे, लेकिन उसी नाम पर देश की जनता विभिन्न राजनीतिक दलों को वोट करने निकले? यह कौन सा पैमाना चुनाव आयोग स्थापित करने जा रहा है? क्या यह बात मानी जा सकती है कि नरेंद्र मोदी का उपरोक्त बयान अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगने जैसा नहीं था, खासकर तब जबकि यह एक चुनाव रैली में दिया गया बयान है? जाहिर है यह फैसला पक्षपात के आरोपों से बरी नहीं हो सकता।

चुनावी व्यस्तता से बाहर क्यों है शिकायतें

सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग का यह तर्क भी अजीबोगरीब दिखा कि चुनावी व्यस्तता है इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ शिकायतों का निपटारा नहीं किया जा सका है। क्या विपक्षी दलों के नेताओँ के खिलाफ शिकायतों को सुनने का वक्त है चुनाव आयोग के पास? शिकायतों को सुनना क्या चुनावी व्यस्तता का हिस्सा नहीं होना चाहिए?

अगर चुनाव आयोग के पास संसाधन की कमी है तो क्यों नहीं आयोग अपने कार्यों का विकेन्द्रीकरण करता है? क्यों नहीं शिकायतों को सुनने का पहला अधिकार जिला निर्वाचन पदाधिकारी को ही सौंप दिया जाता है? वास्तव में यह प्रशासनिक समस्या नहीं है जो चुनाव आयोग बताना चाह रहा है। यह इच्छाशक्ति का सवाल है। यह चुनाव आयोग के राजनीतिक हस्तक्षेप और प्रभाव में आने का भी मामला है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अमित शाह को भी उनके बयान के लिए बरी कर दिया गया है। प्रियंका गांधी ने कहा है कि चुनाव आयोग को अधिक जिम्मेदारी से काम करना चाहिए, तो राहुल गांधी ने कहा है कि चुनाव आयोग पक्षपात कर रहा है।

एक बात साफ है कि चुनाव आयोग एक जैसा पैमाना लेकर सामने नहीं है, अपने अधिकारों को लेकर वह भ्रम में है, मोदी-शाह पर कार्रवाई को लेकर उसके तर्क चुनौतीविहीन नहीं हैं और विपक्ष पर जो कार्रवाई हुई है या फिर कार्रवाई के बाद भी जिस तरीके से ‘दंड का तोड़’ निकाल लिया गया है उससे आयोग गम्भीर सवालों में घिर चुका है। जो काले धब्बे चुनाव आयोग पर लगे हैं उन्हें धोना आसान नहीं होगा। इसे धोने के लिए भी उसी इच्छा शक्ति और तटस्थता की जरूरत होगी जो फिलहाल चुनाव आयोग में गायब नज़र आती है।

2019 आम चुनाव
General elections2019
2019 Lok Sabha elections
election commission of India
Narendra modi
Amit Shah
MODEL CODE OF CONDUCT
different standrad of code of conduct

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..

ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रीय पार्टी के दर्ज़े के पास पहुँची आप पार्टी से लेकर मोदी की ‘भगवा टोपी’ तक

कश्मीर फाइल्स: आपके आंसू सेलेक्टिव हैं संघी महाराज, कभी बहते हैं, और अक्सर नहीं बहते

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस से लेकर पंजाब के नए राजनीतिक युग तक


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License