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क्या ये एक चुनाव का मामला है? न...आप ग़लतफ़हमी में हैं
अब बात सिर्फ़ एक चुनाव की नहीं है, बात किसी एक पार्टी की हार-जीत की नहीं है, बात सिर्फ़ पिछले या अगले पांच साल की नहीं है, बात बहुत आगे निकल चुकी है। बात है लोकतंत्र की, कि वो बाक़ी रहेगा या नहीं, बात है देश की कि वो किस दिशा में जाएगा।
मुकुल सरल
16 May 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy : HuffPost India

समाज सिर्फ़ हिन्दू मुस्लिम में ही नहीं बंटा। परिवारों में बंटवारा हो गया है।

बात सिर्फ़ गांधी, अंबेडकर या विद्यासागर की मूर्ति की नहीं, हमारी प्रगतिशील चेतना की है।

बात सिर्फ़ बादलों में रडार के काम करने या न करने की नहीं, बल्कि हमारी वैज्ञानिक चेतना ख़त्म करने की है।

बात सिर्फ़ पुलवामा का बदला लेने या बालाकोट पर हमले की नहीं बल्कि हमारी सेना के राजनीतिकरण की है।

बात सिर्फ़ सीबीआई, सीवीसी, चुनाव आयोग की नहीं, बल्कि हमारी स्वायत्त संस्थाओं की है, जिन्हें नष्ट किया जा रहा है।

क्या ये सब एक चुनाव के लिए है? क्या ये सिर्फ़ एक चुनाव का मामला है?

नहीं, अगर कोई ऐसा सोचता है तो वो ग़लतफ़हमी का शिकार है। बात बहुत आगे बढ़ चुकी है।

अब बात सिर्फ़ एक चुनाव की नहीं है, बात किसी एक पार्टी की हार-जीत की नहीं है, बात सिर्फ़ पिछले या अगले पांच साल की नहीं है, बात है अगले 20, 30, 50 साल की, कि ये देश किस दिशा में जाएगा।

क्या हमें मनुवादी बनना है?

क्या हमें तालिबान बनना है?

क्या हमें पाकिस्तान बनना है?

आज तय होना चाहिए कि हमें संविधान चाहिए या मनुस्मृति

constitution vs manusmriti.jpg

“हम भारत के लोग,

भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी , धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा

उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए

दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा

इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”

ये है हमारे संविधान की प्रस्तावना (42वें संविधान संशोधन सहित)

और मनुस्मृति?

ऊंच-नीच पर आधारित वर्णव्यवस्था और पितृसत्ता मनुस्मृति के प्रमुख आधार हैं।

हमें तय करना होगा कि हमें लोकतंत्र चाहिए या फिर गुलामी, हमें धर्मनिरपेक्ष समाजवादी शासन चाहिए या उनका मनुवादी हिन्दू राष्ट्र

जिसमें पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक और स्त्रियों की कोई जगह नहीं होगी। उन्हें बराबरी का कोई अधिकार नहीं होगा। ये सब दोयम दर्जे के नागरिक होंगे।

ये यकायक नहीं है कि हरियाणा के झज्जर में एक भाई अपने चचेरे भाई को बीजेपी को वोट न देने की सज़ा बतौर गोली मार देता है।

ये सब उसी दौर को दोहरा रहा है जो गोयबल्स और हिटलर से शुरू होता है और गोलवलकर से लेकर नरेंद्र मोदी तक चला आता है। जहां सिर्फ़ झूठ और घृणा है। भाई-भाई का दुश्मन है, जहां बेटा, बाप की जासूसी कर रहा है।

जहां शासक के खिलाफ बोलना क्या, सोचना तक देशद्रोह है

क्या हुआ झज्जर में?  

आज हिन्दुत्ववादी राजनीति सर चढ़कर बोल रही है। अब तक ख़बरें थीं कि मोदी भक्त परिवारों में हावी हो रहे हैं। दूसरे पक्ष को नहीं सुना जा रहा है। भाई-भतीजों में ही बातचीत कम हो गई है। एक-दूसरे के घर आना जाना कम हो गया है। लेकिन अब तो बात गाली से गोली तक पहुंच गई है।

हरियाणा के झज्जर के सिलाना गांव में धर्मेंद्र नाम के एक युवक ने अपने चचेरे भाई राज सिंह उर्फ राजा पर गोलियां बरसा दीं। वह इस बात से नाराज़ था कि राजा ने बीजेपी छोड़कर किसी और पार्टी को वोट क्‍यों दिया। हरियाणा में छठे चरण में 12 मई को वोट डाले गए थे।

घायल राजा की ओर से पुलिस को दी गई शिकायत के अनुसार, “आज (13 मई) सुबह धर्मेंद्र स्‍कॉर्पियो जीत लेकर हमारे घर आया और मुझसे पूछा कि मैंने किसी वोट दिया है। जब मैंने बताया कि मैंने कांग्रेस को वोट किया है तो उसने बेहद नजदीक से तीन-चार गोलियां मेरे ऊपर चला दीं और भाग गया। हमले में मैं और मेरी मां घायल हो गए।”

घायल राजा को रोहतक स्थित पीजीआईएमएस में भर्ती कराया गया, जबकि उनकी मां को झज्‍जर के सिविल अस्‍पताल में इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई।

तो ‘भक्ति’ में बात अब हिन्दु मुसलमान से आगे, गाय के नाम पर मुसलमानों की लिंचिंग से आगे अपने भाई की हत्या या हत्या के प्रयास तक पहुंच गई है।

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(फोटो साभार : The Federal)

क्यों तोड़ी गई विद्यासागर की मूर्ति?

मूर्ति तोड़ने का सिलसिला गांधी-अंबेडकर से लेकर ईश्वरचंद्र विद्यासागर तक पहुंच गया है। याद कीजिए 21वीं सदी की शुरुआत। तालिबान अफगानिस्तान में काबिज़ होते ही 2001 में बामियान में बुद्ध की प्रतिमा मिसमार (विध्वंस) करते हैं। याद कीजिए 2018, भाजपाई त्रिपुरा की सत्ता में आते ही लेनिन की मूर्ति गिराते हैं और याद रखिए 2019 कि बंगाल की सत्ता में आने से पहले ही विद्यासागर की मूर्ति तोड़ दी जाती है। क्यों? इन मूर्तियों से किसी को क्या डर है? दरअसल ये महज़ मूर्तियां नहीं हमारी प्रगतिशील चेतना के प्रतीक हैं, हमारे जीवन मूल्य की पूंजी हैं। कौन हैं बुद्ध? बुद्ध जिनके दर्शन ने ब्राह्मणवादी धर्म को चुनौती दी। जिन्होंने शांति और बराबरी की राह दिखाई। जिन्होंने अवतारवाद की परिकल्पना को तार-तार कर दिया (हालांकि अब जब वे बुद्ध को नहीं समाप्त कर पाए तो अपने चिर-परिचत षड्यंत्र के तहत उन्हें ही विष्णु का अवतार बताने लगे हैं।)

lenin statue tripura.jpg

(त्रिपुरा में 2018 में बीजेपी की सरकार आते ही वहां स्थापित रूसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति गिरा दी गई।)

वे क्यों चिढ़ते हैं लेनिन से? लेनिन कौन हैं, एक साम्यवादी क्रांतिकारी। जिन्होंने मार्क्सवाद को अमलीजामा पहनाया। उसे किताब से निकालकर ज़मीन पर साकार किया। क्या है मार्क्सवाद? एक विचारधारा जो इस दुनिया से गैरबराबरी मिटाना चाहती है। जो उत्पादनों के साधनों पर सबका बराबर हक़ मानती है। जो पूंजी के एकछत्र राज्य को चुनौती देती है। जो सर्वहारा का शासन चाहती है।

इसलिए वे मार्क्स से चिढ़ते हैं, लेनिन से चिढ़ते हैं। चिढ़ते ही नहीं डरते हैं। क्योंकि पूंजीवाद से तमाम गठजोड़ के बाद भी वे इस विचार, इस सपने को मिटा नहीं पा रहे हैं। और अब तो उनके पूंजीवाद के विरोधाभास ही संकट के तौर पर खुलकर सामने आने लगे हैं। इसलिए वे हर बराबरी के विचार को मिटाना चाहते हैं। वो चाहे गांधी हों या अंबेडकर या विद्यासागर।

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(वे लेनिन या पेरियार से ही नहीं नफ़रत करते बल्कि उन्हें गांधी और अंबेडकर भी बर्दाश्त नहीं। 2018 में ही मेरठ के मवाना में तोड़ी की बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की मूर्ति।)

उन्होंने गांधी की हत्या की लेकिन वे आज भी दुनिया से उनके नाम पर अपने शासन की वैधता चाहते हैं। वे अंबेडकर के संविधान को नहीं मानते, उनकी मूर्तियां गिरा रहे हैं लेकिन क्या करें अंबेडकर के संविधान ने दबे-कुचले पीड़त हर किसी को उनके ख़िलाफ़ खड़े होने की हिम्मत दे दी, जिन्हें वे अपने पास बैठने की इजाज़त भी नहीं देते थे।

ईश्वरचंद्र विद्यासागर बंगाल पुनर्जागरण के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय के उत्ताराधिकारी। स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक। विधवा विवाह के पैरोकार। बाल विवाह के विरोधी। लेखक, शिक्षक एक महान विद्वान। उन्हें ऐसे हर विद्वान से चिढ़ है। डर है।

और इसी लिए उनकी मूर्तियां गिराते हैं और केवल मूर्तियां ही नहीं गिराते जीते-जागते इंसानों पर हमला करते हैं। लेखक, तर्कवादी एमएम कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे से लेकर पत्रकार गौरी लंकेश तक की हत्या करते हैं।

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वे हर स्वतंत्र विचार से डरते हैं। वे हर तर्क को मिटा देना चाहते हैं।

दलितों पर हमले बढ़े 

गुजरात में घोड़े पर बारात निकालने पर दलितों पर हमले किए जा रहे हैं। उनका सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है। बारात रोकने के लिए सड़क पर हवन-कीर्तन का सहारा लिया जा रहा है।

उत्तराखंड के टिहरी में सवर्णों के सामने कुर्सी पर बैठकर खाना खाने पर दलित जितेंद्र की पीट-पीटकर हत्या कर दी जाती है।

और राजस्थान के अलवर में एक दलित दंपति को हद से ज़्यादा उत्पीड़ित किया जाता है। पति-पत्नी की बर्बर पिटाई की जाती है और पति के सामने ही पत्नी से कई घंटे बलात्कार किया जाता है और उसका वीडियो बनाया जाता है। उसके बाद धमकी दी जाती है, ब्लैकमेल किया जाता है और फिर वीडियो वायरल कर दिया जाता है। देखिए खुद अपराधी किस कदर बेख़ौफ़ है। उसे ये हिम्मत कहां से मिल रही है। इसी ब्राह्मणवादी वर्चस्ववादी व्यवस्था से। जिसमें ‘शूद्र’ पर अत्याचार, अत्याचार ही नहीं माना जाता है।

ये आज की हक़ीक़त है और कुछ लोग ‘मासूमियत’ से पूछते हैं अब कहां गैरबराबरी रह गई है समाज में? अब कहां छुआछूत है? उन्हें न ये घटनाएं दिखती हैं न दिखता है कि उन्हीं के बीच एक पूरा समाज गटर में जीने और गटर में ही मरने को अभिशप्त है।

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(फोटो साभार : बीबीसी) 

कौन छुप गया बादलों में?

हमारे लड़ाकू विमान भले ही बादलों में न छिपे हों, लेकिन अब हमें मुंह छिपाने के लिए बादलों की भी ओट नहीं मिल पा रही। हमारे प्रधानमंत्री जी के बेतुके बयान से जो जग हंसाई हो रही है उसकी कैसे भरपाई होगी। खुद को सर्वशक्तिमान और सबसे बुद्धिमान समझने वाले प्रधानमंत्री, प्रधानसेवक, चौकीदार जी की बातों या झूठ का कोई ओर-छोर ही नहीं है। वे सेना को ज्ञान देते हैं कि बादलों की वजह से पाकिस्तान के रडार हमारे विमानों को नहीं देख पाएंगे जाओ हमला करो। अरे ये तो जान लेते कि मिलट्री रडार कैसे काम करता है।

क्या किया जाए। जब हम ही उनकी बेतुकी, बेकार की बातों पर तालियां बजाते हैं। वे कहते हैं कि दुनिया में सबसे पहले प्लास्टिक सर्जरी का कोई उदाहरण है तो वो है गणेश जी।

2014 में एक निजी अस्पताल का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि, 'विश्व को प्लास्टिक सर्जरी का कौशल भारत की देन है। दुनिया में सबसे पहले गणेश जी की प्लास्टिक सर्जरी हुई थी, जब उनके सिर की जगह हाथी का सिर लगा दिया गया था।'

इसी तरह उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज कुछ नहीं होता बढती उम्र के कारण ठंड लगती है।

वे तक्षशिला को बिहार में पहुंचा देते हैं और सिकंदर को बिहार से पराजित कराके लौटा देते हैं। वे यहीं नहीं रुकते। उनके पास दुनिया में डिजीटल कैमरा आने से पहले डिजीटल कैमरा होता है और भारत में इंटरनेट आने से पहले ईमेल। और वे उसके जरिये फाइल भी अटैच कर दिल्ली भेज देते हैं।

उनके कई मंत्री और मुख्यमंत्री (बिप्लब देब) भी इस तरह के बेबुनियाद, बेसिर-पैर के बयान देने में उनसे होड़ करते नज़र आते हैं।

अब तो इन बातों पर हंसी भी नहीं आती।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 ए (एच) ‘साइंटिफिक चेतना' के विकास और जरूरत को नागरिकों के बुनियादी कर्तव्य के रूप में रेखांकित करता है। मगर अफ़सोस...

लेकिन इस अफ़सोस से कुछ नहीं होगा। वे हमारे समाज को तर्क और विचारविहीन बनाकर एक भीड़ तैयार कर रहे हैं जो उनके इशारे पर सरेराह किसी को भी लिंच कर सकती है। वे उग्र राष्ट्रवाद के नाम पर सेना का राजनीतिकरण कर रहे हैं। ताकि उसकी सहायता से वे बरसों बरस अपनी सत्ता कायम रख सकें और अपने सपनों का मनुवादी राष्ट्र बना सकें।

इसलिए ख़तरा बड़ा है और इस चुनाव में ये विचारधारा परास्त नहीं हुई तो ये ख़तरा अपने सबसे नग्न और क्रूर रूप में हमारे सामने होगा। हालांकि केवल सत्ता शासन बदलने से काम नहीं चलेगा क्योंकि ये विचारधारा नीचे तक घर कर गई है और बार-बार पलटवार करेगी, इसलिए उसे हराने के लिए ये चुनाव तो पहला कदम समझिए। फिर भी, फ़ौरी ज़रूरत तो यही है ताकि सांस ली जा सके, ज़िंदा रहा जा सके अगली लड़ाई के लिए...।    

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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