NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
क्या यूपी-बिहार में बाल कुपोषण को ख़त्म किया जा सकता है?
संबंधित योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन को बढ़ाकर पोषण संकट को सुधारने में मदद की जा सकती है। ख़ासकर दलित बहुल गांवों में जहां अधिकांश बच्चे कम वज़न के हैं और कुपोषित हैं।
रश्मि सहगल
23 Sep 2019
Can child stunting
Image Courtesy : The Hindu

पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कृषि क्षेत्र से होकर गुज़रते हुए एक गांव में पहुंची जहां कुपोषित और कमज़ोर बच्चों की बड़ी तादाद है।

गांव-गांव में जिन बच्चों को स्कूलों में होना चाहिए वे अपने रिश्तेदारों के साथ काम करते हुए पाए गए। ये छोटे-छोटे बच्चे पशुओं के लिए चारा काट रहे थे या खेत में काम कर रहे थे। उच्च जाति के लोगों के बच्चों की तुलना में दलित बहुल गांवों में रहने वाले बच्चे ग़रीबी से ज़्यादा ग्रस्त थे।

मिर्ज़ापुर ज़िले का टेढा गांव दलित बहुल गांव है जहां मिट्टी की दीवार वाली झोपड़ी है और इसके दरवाज़े टूटे-फूटे हैं। इस गांव में ज़्यादातर बुदर जाति के लोग हैं। यहां के पुरुष वर्ग मिर्ज़ापुर और भदोही के नज़दीकी क़स्बों में दैनिक मज़दूरों के रूप में काम करते हैं जहां उन्हें 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मज़दूरी मिलती है।

ये स्थिति तब और भयावह हो जाती है जब कोई बिहार में प्रवेश करता है जहां ग़रीबी से जूझ रहे माता-पिता को सात और आठ साल की उम्र के छोटे बच्चों को खेतों में काम करने के लिए मजबूर करना पड़ता है। इस स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने 26 जुलाई को संसद में स्वीकार किया कि बिहार के पांच साल के 48.3% बच्चे यानी राज्य में बच्चों की आधी आबादी ख़राब पोषण के कारण कमज़ोर है। इससे न सिर्फ बच्चों का शारीरिक विकास प्रभावित होता है बल्कि बौद्धिक विकास भी बुरी तरह प्रभावित होता है।

भारत की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य यूपी थोड़ा बेहतर है। ईरानी द्वारा उद्धृत नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफ़एचएस) के आंकड़ों से पता चलता है कि कमज़ोर बच्चों का प्रतिशत 46.3 है।

एनएफ़एचएस 4 डाटा के अनुसार भारत में पोषण संबंधी संकट है। ये आंकड़ा इस मूक आपातकाल (साइलेंट एमर्जेंसी) का ज़िल़ेवार विवरण देता है। इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के वैज्ञानिकों द्वारा लिखे गए हालिया ग्लोबल बर्डेन ऑफ़ डीसीज़ स्टडी के निष्कर्षों को ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2016 और ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2017 दोहराते हैं।

विवादास्पद तथ्य यह है कि धरातल पर स्थिति क्या है? यूपी और बिहार में ज़मीनी स्तर पर काम करने वाली सहयोग की सुनीता सिंह का मानना है, “पोषण संकट के आयामों को समझने के लिए हमें विशाल क्षेत्रों को देखने की ज़रूरत है। पिछले साल सितंबर में यूपी के कुशीनगर ज़िले में भुखमरी के कारण मुसहर समुदाय के आठ ग्रामीणों की मौत हो गई थी। मैंने उनके घरों का दौरा किया। हालांकि उनके पास मनरेगा (केंद्रीय ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना) जॉब कार्ड थे लेकिन उन्हें कोई काम नहीं दिया गया था। इस क्षेत्र में 30 किलोमीटर के दायरे में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है और कोई आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ता भी नहीं है। जब से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को आधार कार्ड से जोड़ा गया है तब से बेहद ग़रीब लोग राशन नहीं ले पा रहे हैं।"

सिंह कहती हैं, "इस साल फिर से इस ज़िले में भूख से मरने की काफ़ी ख़बरें आई हैं। सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली ख़बर यह है कि राज्य सरकार दो ज़िलों लखनऊ और बाराबंकी में एक पायलट परियोजना शुरू करने की योजना बना रही है जहां वे ग़रीबों को सूखा राशन देना बंद करने की सोच रही है और इसके बजाय सीधे महिलाओं के खातों में पैसा ट्रांसफ़र करेगी। इस तरह ग़रीबों को बुरे हाल में छोड़ने जा रही है।”

वे कहती हैं कि जब लोग ज़िंदा रहने के लिए जूझ रहे हैं तो वे अपने बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन की व्यवस्था करने की स्थिति में कैसे होंगे।

लखनऊ में सहयोग के मुख्य कार्यालय में काम करने वाली डॉ. वाई.के. संध्या भी आधार कार्ड के साथ पीडीएस को जोड़ने पर चिंता व्यक्त करती हैं। वे कहती हैं, "ग़रीबों को पहले से ही राशन हासिल करने में परेशानी हो रही है ऐसे में उन्हें पैसा देना उनके लिए और मुश्किल काम होने वाला है।"

संध्या कहती हैं कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएमएस) में कर्मचारियों की कमी को देखकर वे स्तब्ध रह गईं। वे कहती हैं, "हम उचित मेडिकल स्टाफ़ और ब्लड बैंकों के बिना बेहतर इलाज कैसे कर सकते हैं? इसके चलते अस्वस्थता और मृत्यु दर काफ़ी बढ़ जाती है। सीएमएस के लिए फ़ंडिंग को कम किया जा रहा है। खाद्य सुरक्षा प्रदान किए बिना हाशिए पर मौजूद लोगों के कुपोषण को हम कैसे दूर कर सकते हैं? मैं मानती हूं कि हमारे किसानों की स्थिति में सुधार के बिना कुपोषण की समस्या से निपटा नहीं जा सकता है।"

यही सवाल पूछे जाने पर, टेढा गांव की महिलाओं ने बेहतर रोज़गार व्यवस्था के निर्माण की मांग की। उन्होंने कहा कि वे पहले केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल से अपने गांव में उनके लिए एक सीएमएस बनाने के लिए संपर्क कर चुकी हैं लेकिन इससे कोई फ़ायदा नहीं हुआ है।

क्या वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित हुए हैं? इस सवाल के जवाब में कई ग्रामीणों ने कहा कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालयों का निर्माण किया गया था लेकिन इनमें से 80% का इस्तेमाल नहीं हुआ क्योंकि जिन परिवारों के पास पैसे नहीं रहे वे इसका निर्माण पूरा नहीं कर सके। दूसरे लोगों ने उज्जवला योजना के तहत गैस सिलेंडर और चूल्हा प्राप्त करने की बात स्वीकार की लेकिन कहा कि वे इन सिलेंडरों के फिर से रीफ़िल कराने की स्थिति में नहीं हैं।

टेढ़ा में एक प्राथमिक विद्यालय है जिसमें पांच शिक्षक हैं। इन शिक्षकों को कुल 45,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता है। लेकिन चूंकि बहुत कम जवाबदेही होती है इसलिए वे शायद ही कभी स्कूलों में दिखते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही की कमी है और न कि सिर्फ़ फ़ंडिंग की कमी जो पोषण संबंधी संकट के लिए ज़िम्मेदार है।

नेशनल फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के प्रमुख डॉ. जशोदर दासगुटा कहते हैं, “इन दोनों राज्यों में मिड-डे-मील और आईसीडीएस (एकीकृत बाल विकास योजना) को लेकर व्यवस्था सही नहीं है। ठेकेदार और आपूर्तिकर्ता खुले तौर पर कटौती करते हैं। नतीजा यह है कि अधिकारी काम नहीं कर रहे हैं।"

राज्य सरकार की मदद से कुपोषण से निपटने में काफ़ी फ़र्क़ पड़ता है। इसे ओडिशा और छत्तीसगढ़ में देखा जा सकता है जो ग्रामीण महिलाओं को केंद्र में रखते हुए सामुदायिक स्तर पर कुपोषण को नियंत्रित कर रही है। दासगुप्ता ने कहा, "उन्हें एक किचन गार्डन विकसित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है जिससे काफ़ी फ़र्क़ पड़ता है।"

एनएफ़एचएस 4 के अनुसार, ग्रामीण यूपी में 6 से 23 महीने की उम्र के केवल 5% बच्चों को पर्याप्त आहार मिलता है। वास्तव में 5 वर्ष से कम आयु के 18% बच्चे कमज़ोर हो जाते हैं और 41% कम वज़न वाले होते हैं। वयस्कों में भी पर्याप्त पोषण की कमी ज़ाहिर है। इनमें 28.1% महिलाएं और 29.1% पुरुष सामान्य बॉडी मास इंडेक्स से नीचे हैं।

राज्य और केंद्र सरकारों ने पोषण की समस्या को दूर करने के लिए कई उपाय किए हैं। इनमें स्टेट न्यूट्रिशन मिशन, आईसीडीएस और राष्ट्रीय पोषण मिशन के साथ स्वीकृत 9,000 करोड़ रुपये के तीन साल के बजट शामिल हैं। इसके बावजूद कुछ भी बेहतर नहीं हो रहा है।

इन योजनाओं के साथ क़रीब से जुड़े चिकित्सकों का दृष्टिकोण क्या है। बच्चों के विकास में रुकावट को दूर करने के उपाय के रूप में डॉ. सेनगुप्ता ने स्तनपान और पूरक आहार, कुपोषण का इलाज, माइक्रोन्यूट्रिंट सप्लीमेंटेशन, डीवर्मिंग और डायरिया कंट्रोल और गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं के समुचित पोषण जैसी आवश्यकताओं की एक सूची बनाई है।

बिहार में कार्यरत सीएआरई के डॉ. श्रीधर कांतिया ने ज़ोर देकर कहा कि यह सुनिश्चित करना होगा कि लोगों के भोजन में अधिक विविधता हो और उनकी स्वच्छता की स्थिति में सुधार हो।

इसके साथ ही ज़मीनी स्तर पर बेहतर पोषण सुनिश्चित करने के लिए केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं के लिए बजट बढ़ाने की मांग है। दुर्भाग्य से मौजूदा आवंटित धन का भी पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

लेखक दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

child malnutrition
Child Stunting
Malnutrition in UP-Bihar
ICDS
Mid-day Meals
PDS-Aadhar Link
NFHS 4

Related Stories

दुनिया की 42 फ़ीसदी आबादी पौष्टिक आहार खरीदने में असमर्थ

सिकुड़ते पोषाहार बजट के  त्रासद दुष्प्रभाव

लॉकडाउन ने कैसे छीना बच्चों के मुँह से पोषक आहार

दुनिया भर में खाद्यान्न ढांचे में आए बदलावों से ग़रीब और मध्यम आय वाले देशों में बढ़ रहा है मोटापे पर आधारित कुपोषण

जनसंवाद: बच्चों की देखरेख और सुरक्षा को राजनीतिक एजेंडे में शामिल करने की मांग

रामचरण मुंडा की मौत पर दो मिनट का मौन!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License