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भारत
राजनीति
क्यों बीता साल भारतीय सेना के लिए अच्छा नहीं रहा ?
मुख्य बात है कि 2017 में भी भारतीय सेना में कोई वास्तविक बदलाव नहीं आया है.
लेफ्टिनेंट जनरल विवेक ओबेरॉय
26 Dec 2017
Translated by महेश कुमार
indian army
द सिटिज़न

2017 का वर्ष कुछ हद तक विवादास्पद नोट पर शुरु हुआ, क्योंकि जब जनरल बिपिन रावत ने भारतीय सेना की कमान संभाली थी, वे अपने दो वरिष्ठ कमांडरों के मुकाबले कनिष्ठ अधिकारी थे I कुछ अपवादों को छोड़ दें तो सरकार आम तौर पर वरिष्ठता के सीधे और संकीर्ण रास्ते को अपनाकर ही नियुक्ति करती है और इसलिए इस पर काफी चर्चा हुई I हालांकि सरकार ने इस डबल सुपरसेशन के लिए कई बहाने गिनाने की कोशिश की, लेकिन सोशल मीडिया सहित मीडिया में इसको लेकर काफी संदेह रहा I

15 जनवरी को सेना दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री ने कृपापूर्वक ट्वीट करते हुए कहा: "हम अपनी सेना के द्वारा किए गए सभी बलिदानों को गरीमापूर्वक याद करते हैंI वे अपने जीवन को खतरे में इसलिए डालते हैं ताकि 125 करोड़ भारतीय सुकून से रह सकें।" हालांकि, कुछ महीने बाद उनकी ही सरकार ने ओIआरIओIपीI की विसंगतियों को हटाने की मांग करने वाले दिग्गजों की शांतिपूर्ण सभा को जंतर मंतर से हटा दिया, तो सवाल उठता है कि क्या यह एक वास्तविक “शाबाशी” थी  या एक और 'जुमला' ?

वर्तमान सरकार रक्षा मंत्रियों की अदला-बदली में ज्यादा इच्छुक नज़र आती है! तीन सालों में चार रक्षामंत्री बनें, और एक मंत्री तो दो बार बनें, लेकिन वह केवल नाम मात्र के लिए बने थे, क्योंकि उनका पहला मंत्रालय वित्त मंत्रालय थाI मनोहर परिकर, 9 नवम्बर 2014 को पदभार ग्रहण करने के बाद लगभग दो साल के लिए कार्यालय में बने रहे और उसके बाद मुख्यमंत्री बनने के लिए अपने गृहराज्य गोवा वापस लौट गएI अरुण जेटली फिर छह महीने के लिए रक्षा मंत्री बने, और उठा-पठक में इस महत्वपूर्ण मंत्रालय का लगभग एक साल बर्बाद हो गया!

मनोहर परिकर, पार्टी में एक हलके नेता होने के बावजूद, मंत्रालय की कार्यप्रणाली को समझने की कोशिश करते और उनसे सीखने की कोशिश भी की और इसकी वजह से उन्होंने बहुत ही जरूरी आवश्यक बदलाव लाने की कोशिश भी की, लेकिन वे इसके लिए रक्षा मंत्रालय के नौकरशाहों से बेहतर समर्थन प्राप्त नहीं पा सकेI वे न तो ओ.आर.ओ.पी. (सामान पद, सामान वेतन) की लंबे समय से लंबित पड़ी माँगों को मानकर पूरी तरह से सेवानिवृत सेनाकर्मियों को संतुष्ट नहीं कर पाए और न ही सेवारत कार्मिकों की सशस्त्र बलों के बहुत आवश्यक आधुनिकीकरण की माँग पर ही कुछ कर पाए I वह भुगतान और भत्ते में विसंगतियों को भी हल नहीं कर पाए I वे कई समितियों की स्थापना के नौकरशाह के जाल में फँस गए, ऐसी समितियाँ जिनकी सिफारिशें ज्यादातर रक्षा मंत्रालयों की अलमारी में सड़ रही हैं I इसमें ओ.आर.ओ.पी. की विसंगतियों को दूर करने के लिए बनायी गयी रेड्डी कमेटी और पदोन्नति पर नीति तैयार करने वाली समीति शामिल हैI यहाँ तक कि उच्चस्तरीय शेखतकर समीति की सिफारिशों को केवल आंशिक रूप से ही स्वीकार किया गया, जबकि वास्तविक सिफारिशों को चुपचाप दबाए बैठे हैंI

2017 के दौरान, सोशल मीडिया रक्षात्मक मुद्दों पर अति सक्रिय था, सोशल मीडिया पर सैनिकों ने अपनी शिकायतों को प्रशारित भी किया, इसके बाद सेना प्रमुख ने सभी को निर्देशित करते हुए आदेश दिया कि जहाँ पीड़ित कर्मियों की शिकायतों को सुनने या दर्ज करने के लिए हर जगह एक शिकायत बॉक्स रखा जाएI इस कदम से काफी प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ मिलीं, क्योंकि सेना में हमेशा शिकायतों से निपटने की एक अत्यंत विस्तृत और निष्पक्ष प्रणाली रही हैI

घाटी में जैसे ही तेज़ सर्दियों का अंत होने वाला था उसी वक्त वहाँ हिंसा में वृद्धि हो गयीI राज्य सरकार स्पष्ट रूप से असहाय थी और श्रीनगर और अनंतनाग में आगामी चुनावों के लिए ज्यादा चिंतित थीI पुलिस और सी.ए.पी.एफ. की भी अपनी बाधाएँ थीं और वे इसके चलते मज़बूत कार्यवाही करने में विफल रहेI स्थानीय हिंसा को रोकने और विद्रोहियों को बेअसर करने के लिए उन (जनता) पर सेना को छोड़ दिया गया थाI

अप्रैल के मध्य में तथाकथित 'मानव ढाल' प्रकरण अगर महीनों नहीं तो कम से कम मीडिया में हफ्तों तक छाया रहा I यह वास्तव में एक कनिष्ठ सेना के अधिकारी द्वारा नया और उकसावेपूर्ण कार्य था जो लोगों को चुनाव ड्यूटी के दौरान अफसरों को बचाने के लिए पलभर की कार्यवाही थीI ताकि हिंसा के लिए वहाँ के आवाम को मारना न पड़े I इसे मीडिया में इस तरह से प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए था !

लगभग उसी समय, सेना के एक कश्मीरी जवान अधिकारी लेफ्टिनेंट उम्म्रर फैज पैरी का शोपियां जिले में उस वक्त उग्रवादियों ने अपहरण कर मार दिया था जब वह अपने गाँव विवाह में भाग लेने के लिए छुट्टी पर गए हुए थे I संचार माध्यम; राज्य सरकार; और मानव अधिकार समूह ने शायद ही इस क्रूर कृत्य का संज्ञान लिया हो; क्योंकि वे तो कश्मीर में एकतरफा हिंसा की वास्तविकता को ही साबित करने में लगे हुए थे!

जम्मू-कश्मीर में, सेना का ऑपरेशन सदभावना को शानदार सफलता मिलीI ऐसी स्थिति में जहां राज्य सरकार अच्छा प्रशासन प्रदान करने के लिए कुछ नहीं करती है, यह केवल सध्भावना जैसे ओपरेशन ही है जो लोगों में उम्मीद जगाती हैं और उन्हें सहायता प्रदान करती हैI लोगों के दिलों और दिमाग पर इसका असर स्पष्ट तब दिखता है जब सेना में भर्ती रैलियों के लिए हजारों कश्मीरी युवा भर्ती के लिए आते हैंI

तीनों सेनाओं के संयुक्त प्रयासों के बावजूद 2017 को भी एक बर्बाद साल कहा जाएगाI  किसी भी ठोस कारणों के बिना, वायु सेना भी अत्यधिक कठोर हो गई है; नौकरशाही आभासी संयुक्त मुख्यालय होने की अपनी वर्तमान भूमिका को छोड़ने के लिए अनिच्छुक है; और राजनीतिक नेतृत्व उब चूका है, क्योंकि इसके पास केवल चुनाव और वोट बैंक के बारे में सोचने के अलावा मन में कुछ नहीं है, नतीजतन सभी स्तरों पर सीIडीIएसI और संयुक्त संरचना एक प्रमुख कमजोरी बनी हुयी हैंI

मई में, पाकिस्तानी सेना की एक सीमावर्ती कार्रवाई टीम (बीIएIटीI) ने कृष्णा घाटी सेक्टर में एलIओIसीI को पार कर लिया था और दो सैनिकों के शवों को क्षतिग्रस्त भी कर दिया थाI इस क्रूरता के विर्रुध अंतरराष्ट्रीय समुदाय गंभीर आलोचना कीI चूंकि भारतीय सेना इस तरह की क्रूरता में शामिल नहीं होती है, इसलिए उसने वक्त में और विभिन्न क्षेत्रों में करारा जवाब दिया और इस तरह की कार्रवाई का बदला भी लियाI

चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ भारत के अनसुलझे क्षेत्रीय विवाद 2017 में भी निरंतर जारी रहे हैंI चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलIएIसीI) के साथ, चुम्बी घाटी के दक्षिणी सिरे के पास, डोका ला क्षेत्र में 72 दिनों तक गतिरोध बना रहाI भारतीय सेना ने इस स्थिति से आत्मविश्वास से निपटने की कोशिश की, और खासकर जब इसमें राजनीतिक-राजनयिक-सैन्य पहलु भी प्रमुख थे, और तीसरे देश के रूप में- भूटान भी इसमें शामिल थाI

जम्मू और कश्मीर में, लगभग दो दशकों से एक पारस्परिक रूप से सहमत संघर्ष विराम के तहत नियंत्रण रेखा (एलIसीI) में पाकिस्तान के सक्रिय बने रहने के चलते जेहादी विद्रोहियों और आतंकवादियों की घुसपैठ जारी हैI सेना की तैनाती उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी जारी हैI

इस प्रकार, कार्यवाहियों को कम करने के बजाय सेना एक ही समय में आतंकवादी विद्रोह के नियंत्रण और सीमा रक्षा दोनों में गहरे रूप से उलझी हुयी हैI हालांकि भारतीय सेना के सैनिक अच्छी तरह से प्रशिक्षित हैं; अच्छा नेतृत्व जानते हैं; और शारीरिक और मानसिक रूप से मज़बूत हैं, लेकिन यह दोहरी जिम्मेदारी वाले कार्य उनके स्वस्थ्य और नैतिक जीवन पर और मनोबल पर प्रतिकूल असर डाल रहे हैंI राजनीतिक नेतृत्व का इस स्थिति में कई अन्य तरीकों से बदलाव लाने की कोई योजना नहीं है, हालांकि सभी प्रकार की पुलिस बलों; प्रशासकों; और अधीनस्थ कर्मचारी; की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, और साथ ही उनके भुगतान और भत्ते भी, जबकि सेना में प्राचीन उपकरण, कम जमा राशि के साथ लगातार बढ़ते कार्यों के साथ काम किया जाता हैI

इसकी उच्च संख्यात्मक ताकत के बावजूद, भारतीय सेना एक खोखली सेना रही हैI नतीजतन, आधुनिक युद्धक्षेत्र पर विभिन्न प्रकार के सैन्य अभियानों को चलाने की इसकी क्षमता काफी कम हैI इस स्थिति के लिए तीन प्रमुख कारण हैंI सबसे पहला तो कमजोर रक्षा बजट का होना है जोकि हर साल घट रहा है और अब सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ 1I5 प्रतिशत हिसा रह गया हैI दूसरा हमारी खरीद प्रक्रिया काफी जटिल हैI नौ साल में आठ रक्षा खरीद योजना (डीपीपी) जारी किए जाने के बावजूद स्थिति में कोई ख़ास बदलाव नहीं हुआ हैI

तीसरा कारण यह है कि प्रधानमंत्री की 'मेक इन इंडिया' नीति चर्चाओं में काफी रही और है भी, मीडिया रिपोर्ट में; समितियों में; चुनाव 'भाषण”, आदि लेकिन इस  अनमोल नीति के लिए कोई छोटी कार्रवाई जमीन पर दिखाई नहीं दे रही हैI पीIएसIयूI सुस्त तरीके से पहले की तरह ही चलते हैं; देरी और लागत में वृद्धि के बावजूद डीIआरIडीIओI ने बहुत कम उत्पादन किया है जिससे उपयोगकर्ताओं बिलकुल भी संतुष्ट नहीं हैंI

हथियारों और उपकरणों की कमी सेना में अक्सर की बढ़ती रहती हैI व्यापक शब्दों में कहें तो, उसके हथियारों या उपकरण काफी ही खराब स्थिती में होते हैंI उदाहरण के लिए, सबसे बड़ी सेना, पैदल सेना, जो विद्रोहियों के विद्रोह के साथ-साथ लड़ाइयों और युद्धों की लड़ाई में भी शामिल रहती है, उसमें आधुनिक हथियार और उपकरण नहीं हैंI सभी शस्त्र और सैन्य-दल इसी स्थिति में हैंI सभी प्रकार के गोला-बारूद के भंडार भी काफी कम हैंI

उपर्युक्त के बावजूद, दोनों मोर्चों पर युद्ध की बात और यहां तक कि ढाई मोर्चों के बारे में बहुत वरिष्ठ लोगो टिपण्णी करते हैं, जिन्हें इसकी बेहतर जानकारी हैI

नए रक्षा मंत्री के शपथ लेने के कुछ दिनों के भीतर ही (वर्तमान सरकार का तीन वर्षों में यह चौथा रक्षा मंत्री था!) एक सबसे अजीब आदेश पारित किया गयाI इस आदेश में सेना को आदेश दिया गया कि वह पर्यटकों द्वारा छोड़े गए कचरे को साफ करेI हालांकि, सेना के बड़े अफसरान ने बलि बके बकरे के रूप में अभिनय करते हुए, विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकार कर लिया, जबकि  दिग्गजों और सोशल मीडिया के बीच इसका भारी विरोध हुआI उन्होंने सही कहा था कि किसी भी समय में अपने कर्तव्यों के विपरीतसेना सेना को कचरा संग्रहण जैसे काम के लिए तैनात नहीं किया जाना चाहिएI सवाल उठता है कि स्थानीय नागरिक, सरकारी संस्थानों के अधिकारी कैसे अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभा पा रहे हैं?

एक महीने या बाद में, रक्षा मंत्री ने फिर से सेना को एक गैर-सैन्य कार्य सौंप दिया, इसमें उन्हें मुंबई में स्थानीय रेल लाइनों के आर-पार पैदल पुल बनाने के लिए कहा गया, जबकि  रेलवे के पास विस्तृत और बेहतर विशेषज्ञता उपलब्ध है और यह उनका काम हैI यह एक राजनीतिक कदम था, जो रेलवे और महाराष्ट्र में भाजपा की अगुआई वाली सरकार दोनों को संकट से बाहर निकलने में कामयाब रही, जिसमें पैदल यात्री पुल पर चढ़ते वक्त एक बड़ी दुर्घटना का शिकार हो गए थेI यह एक रहस्य ही है कि सेना ने इसे कबूल क्यों किया!

झंडा रैंक के अधिकारियों के लिए वर्तमान में प्रचलित चयन प्रणाली पर एक अनिर्णायक बहस छिड़ी हुई हैI यद्यपि सेना में पदोन्नति के लिए चयन प्रणाली उतना ही उचित और व्यापक है जितनी संभव है, फिर भी जब पदोन्नति एक विशिष्ट बैच के लिए होती है और उसके रिक्त पदों पर पदोन्नति होती है तो बाहरी कारणों के चलते / उन्हें बदल दिया जाता हैI अब विसंगतियों को दूर के लिए एक कदम उठाया है, लेकिन एक औपचारिक निर्णय अभी तक लिया जाना बाकी हैI

चूँकि वर्ष ख़त्म हो रहा है, इसलिए दो महत्वपूर्ण घोषणाएं की गईं, लेकिन मीडिया ने केवल एक ही की सूचना दीI लगभग 1I5 लाख जेIसीIओI (जॉइंट कमांड ऑफिसर्स) और जवानों के रैंक संरचनाओं की योजनाबद्ध उन्नयन अगले पांच वर्षों में अच्छी तरह प्राप्त हुआI मूलतः, यह एक कैडर समीक्षा है, जिसे1984 में आखिरी बार किया गया थाI  व्यक्तियों को लाभान्वित करते समय, इसमें कुछ नकारात्मक अर्थ भी हैंI कैडर की समीक्षा केवल तब ही सफल होती है जब सेना के भीतर और बाहर अतिरिक्त स्लॉट बनाए जाते हैं, अन्यथा अलग-अलग समय पर अलग-अलग रैंकों में कमांड और नियंत्रण की समस्याएं हो सकती हैंI

दूसरे निर्णय में सेना प्रमुख ने 2018 को ' विकलांगता के विरुद्ध युद्ध का साल' के रूप में  घोषणा कीI इसका  प्रस्ताव इस लेखक ने मई में पुणे में एक युद्ध विकलांग कार्मिक रैली के दौरान किया जिसमें युद्ध घायल फाउंडेशन के अध्यक्ष के रूप में अपनी क्षमता में, सेना, नौसेना और वायु सेना के सभी युद्ध विकलांग कर्मियों के लिए कार्य करने वाली एनजीओ का भी प्रस्ताव रखा थाI शायद मीडिया औपचारिक घोषणा की प्रतीक्षा कर रही है!

प्रारंभ में रैंकों में महिलाओं की शुरूआत, खासकर सैन्य मिलिट्री पुलिस (सीIएमIपीI) में शामिल करने की बहुत आलोचना हुयी,  इसे सही तौर पर एक राजनीतिक फैंसले के रूप देखा गया था क्योंकि उस देश में यह फैंसला लिया गया जहाँ जहाँ इसकी जरूरत नहीं थी क्योंकि लाखों पुरुष इसमें भर्ती होने के लिए लाइन लगाए खड़े हैंIयह कदम बिना किसी ख़ास फायदे के प्रबंधन समस्याओं में इजाफे की संभावनाओं को ही अन्धायेगाI

चंडीगढ़ में आयोजित होने वाले राष्ट्र के पहले सैन्य साहित्य महोत्सव (एमIआईIएलIफेस्ट) के बारे में मीडिया के कुछ हिस्सों में व्यापक रूप से रिपोर्ट किया गया हैI यह पंजाब राज्य और मुख्यालय की पश्चिमी कमान के बीच एक संयुक्त उपक्रम हैI पंजाब के राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों पूरी तरह से अपनी इस योजना और उसके निष्पादन में शामिल थेI चंडीगढ़ और आसपास के शहरों के लोगों की ख़ुशी लिए सेना ने अपनी टीमों का ख़ास  प्रदर्शन करने वाली कई टीमों को बुलाया और अपने कारनामें दिखाएI सशस्त्र बलों द्वारा लड़े युद्धों को उजागर करने के अलावा; सबक सीखना; व्यक्तिगत उपलब्धियां; पंजाब के सैन्य इतिहास और इसी तरह के कारनामों से; लिटफेस्ट ने साबित कर दिया कि 'सैन्य' और 'साहित्य' आपस में अंतर्विरोधी नहीं है!

मुख्य बात यह है कि 2017 में सेना में कोई वास्तविक बदलाव नहीं हुआ हैI हालांकि, सेना के अपने कामों एवं प्रयासों के कारण, न की सरकार के कारण, सेना की देश में बेहतर प्रशंसा हैI आंतरिक कार्यों पर सेना के कामकाज को कम करने की एक निश्चित आवश्यकता है, जिससे कि उन्हें अपने प्राथमिक कार्य के लिए प्रशिक्षित करने के लिए पर्याप्त समय मिले और उन्हें जीवन की बेहतर गुणवत्ता भी मिल सकेI

जैसे-जैसे भारत क्षेत्र और दुनिया में एक अधिक प्रतिष्ठित आर्थिक और तकनीकी रूप की दृष्टि से आगे बढ़ता है, उसे एक सैन्य शक्ति के तौर पर पाना  निर्माण करना होगाI राजनैतिक नेतृत्व को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए, वर्ना ऐसा न हो कि देश को जब 'धक्का लगे' तो देश उसे संभालने की स्थिति में ही न होI

 (लेफ्टिनेंट जनरल विजय ओबेरॉय, पूर्व सेना के उपाध्यक्ष हैं)

ये ड सिटिज़न में छपे एक लेख का अनुवाद है 

Courtesy: द सिटिज़न
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