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लाखों मज़दूरों की नौकरी संकट में, भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में गंभीर संकट का दौर जारी
निसान के बाद आज गुरुवार को दो और बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी बजाज और मारुति सुज़ुकी ने कहा कि उनकी बिक्री मेंभारी गिरावट आई है। जहाँ बजाज ऑटो की बिक्री जुलाई में पांच प्रतिशत गिरकर 3,81,530 वाहन हुई,वही दूसरी तरफ़ मारुति सुज़ुकी की बिक्री में जुलाई महीने में 33 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
01 Aug 2019
भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में  गंभीर संकट का दौर जारी 

पिछले साल सितंबर से मांग की कमी  और अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के कारण भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग संकट का सामना कर रहा है। 

निसान के बाद आज गुरुवार को दो और बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी बजाज और मारुति सुज़ुकी ने कहा कि उनकी बिक्री मेंभारी गिरावट आई है। जहाँ बजाज ऑटो की बिक्री जुलाई में पांच प्रतिशत गिरकर 3,81,530 वाहन हुई,वही दूसरी तरफ़ मारुति सुज़ुकी की बिक्री में जुलाई महीने में 33 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है। दोनों कंनपियों ने यह जानकरी गुरुवार को एक बयान जारी कर के दी है।

इस बयान में कहा गया है कि बजाज ऑटो की कुल बिक्री पिछले साल जुलाई में 4,00,343 थी।
बजाज कंपनी ने कहा कि इस दौरान उसकी घरेलू बिक्री पिछले साल के 2,37,511 वाहनों की तुलना में 13 प्रतिशत गिरकर 2,05,470 वाहनों पर आ गयी।

आलोच्य माह के दौरान कंपनी के मोटरसाइकिलों की बिक्री 3,32,680 इकाइयों से तीन प्रतिशत गिरकर 3,22,210 इकाइयों पर आ गयी।

कंपनी ने कहा कि वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री भी 67,663 इकाइयों से 12 प्रतिशत गिरकर 59,320 इकाइयों पर आ गयी।

इस दौरान निर्यात पिछले साल के 1,62,832 वाहनों की तुलना में आठ प्रतिशत बढ़कर 1,76,060 इकाइयों पर पहुंच गया।

वहीं यात्री कार बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुज़ुकी इंडिया की बिक्री जुलाई महीने में 33.50 प्रतिशत गिरकर 1,09,264 इकाइयों पर आ गयी। कंपनी ने बयान में कहा कि उसने पिछले साल जुलाई में 1,64,369 इकाइयों की बिक्री की थी।

आलोच्य महीने के दौरान कंपनी की घरेलू बिक्री पिछले साल के 1,54,150 वाहनों की तुलना में 36.30 प्रतिशत गिरकर 98,210 इकाइयों पर आ गयी।

इस दौरान आल्टो और वैगनआर समेत मिनी कारों की बिक्री पिछले साल के 37,710 इकाइयों की तुलना में 69.30 प्रतिशत गिरकर 11,577 इकाइयों पर आ गयी।
स्विफ्ट, सेलेरियो, इग्निस, बलेनो और डिज़ायर समेत कॉम्पैक्ट श्रेणी के वाहनों की बिक्री भी पिछले साल की 74,373 इकाइयों से 22.70 प्रतिशत गिरकर 57,512 इकाइयों पर आ गयी।

मध्यम आकार के सेडान वाहन सियाज़ की बिक्री पिछले साल के 48 इकाइयों की तुलना में बढ़कर 2,397 इकाइयों पर पहुंच गयी।
विटारा ब्रेज़ा, एस क्रॉस और एर्टिगा समेत यूटिलिटी वाहनों की बिक्री भी 38.10 प्रतिशत गिरकर 15,178 इकाइयों पर आ गयी।
इस दौरान कंपनी का निर्यात पिछले साल के 10,219 वाहनों से 9.40 प्रतिशत गिरकर 9,258 वाहनों पर आ गया |

भारतीय ऑटो उद्योग के हित का प्रतिनिधित्व करने वाली एक शीर्ष संस्था, ऑटोमोबाइल कंपोनेंट मैन्युफ़ेक्चर्स एसोसिएशन (ACMA), ने 24 जुलाई को ही कहा था कि ऑटोमोबाइल उद्योग में मंदी जारी है, इसमें तत्काल  सरकारी हस्तक्षेप की मांग करते हुए बताया कि लगभग 10 लाख नौकरियां जा सकती हैं। मांग को बढ़ाने के लिए माल और सेवा कर(GST) में कमी करने का भी अनुरोध किया गया था।

एसीएमए, जो ऑटो कंपोनेंट उद्योग का प्रतिनिधित्व करता है, और जो अकेले लगभग 50 लाख लोगों को रोज़गार देता है, उसने पूरे ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए एक समान जीएसटी 18% की मांग की है ताकि उद्दोग को  पुनर्जीवित किया जा सके जो अब बिक्री में 10 महीने से लगातर गिर रही है।

एसीएमए के अध्यक्ष राम वेंकटरमणि ने स्थिति को "अभूतपूर्व" बताते हुए कहा था कि पिछले कई महीनों से सभी खंडों में वाहनों की बिक्री में गिरावट जारी है, जिससे मज़दूर और वर्किंग यूनिट भी प्रभावित हो रहे हैं।

उन्होंने कहा, "अगर यही प्रवृत्ति जारी रहती है, तो कंपनियाँ छंटनी करने को मजबूर हो जाएंगी और अनुमानित 10 लाख लोगों का रोज़गार जा सकता है।”

इंडियन रोड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फ़ेडरेशन (AIRTWF), जो भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (CITU) से संबद्ध है, इसके महासचिव केके दिवाकरण ने कहा, "अगर संकट जारी रहता है, उद्योग में सीधे तौर पर काम करने वाले लोगों के साथ-साथ ऑटोमोबाइल उद्योग से संबंधित सेवा क्षेत्र के श्रमिकों में छोटे पैमाने पर डीलर, वर्कशॉप मालिक, मैकेनिक आदि शामिल हैं सभी पर इसका नकरत्मक प्रभाव पड़ेगा।”

जबकि निसान की 1,700 श्रमिकों की योजना के साथ छंटनी शुरू की जा चुकी है। हालांकि निसान का कहना है कि यह उनकी वैश्विक प्रकिया का हिस्सा है, लेकिन भारत में लगभग 13.5% लोग निकाल चुके हैं। हालांकि, पिछले सितंबर में निसान मोटर इंडिया उद्योग संकट के कारण लागत में कटौती के हिस्से के रूप में कर्मचारी स्वैच्छिक रूप से अलग करने की योजना लाया था।

दिवाकरन ने कहा, "इस मंदी का ही असर है कि मारुति ने काम के दिनों की संख्या में कटौती की है। सप्ताह में सात दिन काम करने के बजाय, कंपनी इस संकट के कारण सप्ताह में पाँच या छह दिन काम करती है।"

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