NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
लेखक-कलाकारों की फ़ासीवाद-विरोधी सक्रियता के लिए भी याद रखा जाएगा ये चुनाव
इतने व्यापक और संगठित स्तर पर लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों व बुद्धिजीवियों का सार्वजनिक तौर पर अपनी वैचारिक और राजनीतिक पक्षधरता जताना व इसके लिए ख़तरा मोल लेना आज़ाद भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण—और दुर्लभ—घटना है।
अजय सिंह
19 May 2019
लेखक-कलाकार
Image Courtesy : Outlook Hindi

23 मई 2019 को, जिस दिन 17वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव के नतीज़े आयेंगे, पता चल जायेगा कि देश नरेंद्र मोदी को और आगे झेलने व विनाशग्रस्त होने के लिए तैयार है या नहीं। उस दिन यह भी पता चल जायेगा कि आइडिया के स्तर पर—अवधारणा के स्तर पर—भारत बचेगा या नहीं। देश की जनता आतंककारी हिंदुत्व फ़ासीवाद और सर्वग्रासी व दमनकारी ब्राह्मणवादी पितृसत्ता पर कुछ लगाम कसेगी कि नहीं, यह भी पता चलेगा।

यह आम चुनाव कई चीज़ों के लिए याद किया जायेगा। लेकिन एक ख़ास चीज़—बहुत ख़ास चीज़—के लिए इसे विशेष रूप से याद किया जायेगा। यह चीज़, जहां तक मेरी जानकारी है, आज़ाद भारत के इतिहास में शायद पहली बार हुई है। यह है, बहुत बड़े पैमाने पर देश के लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों व बुद्धिजीवियों का केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ खुल कर, और साहस के साथ, सामने आना व बोलना। यहां तक कि चुनाव में भाजपा व मोदी को हराने की अपील जनता के नाम जारी करना।

इतने व्यापक और संगठित स्तर पर लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों व बुद्धिजीवियों का सार्वजनिक तौर पर अपनी वैचारिक और राजनीतिक पक्षधरता जताना व इसके लिए ख़तरा मोल लेना आज़ाद भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण—और दुर्लभ—घटना है। इसका दायरा और परिधि 2015 के पुरस्कार वापसी अभियान से कहीं ज़्यादा बड़ी व व्यापक है। बल्कि यह कहा जाये कि पुरस्कार वापसी अभियान-जैसे ज़बर्दस्त लोकतांत्रिक सांस्कृतिक आंदोलन ने 2019 में साहित्य, कला व संस्कृति की दुनिया में हिंदुत्व फ़ासीवाद-विरोधी वैचारिक पक्षधरता और एकजुटता का इतना बड़ा शामियाना खड़ा किया।

इतनी बड़ी ताद़ाद में—क़रीब 2000 से ऊपर—लेखकों-कलाकारों-बुद्धिजीवियों का सामने आना और अपने नाम व अनुमोदन से आम चुनाव में जनता के पक्ष में और नफ़रत व हिंसा की ताक़तों के ख़िलाफ़ और लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता की हिफ़ाज़त के लिए सक्रिय हस्तक्षेप करना एक बड़ी ऐतिहासिक घटना है। लेखकों-कलाकारों-बुद्धिजीवियों ने जनता के नाम खुल कर अपील जारी की कि वह इस आम चुनाव में केंद्र की भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए वोट दें,ताकि  वे दोबारा सत्ता में न आ सकें।

लेखकों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने अपनी बात कहते समय किसी लाग-लपेट या किंतु-परंतु का सहारा नहीं लिया, न गोल-मोल हवाई बातें कीं। उन्होंने सीधे-सीधे मोदी, भाजपा व राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) का नाम लेकर—और उन पर निशाना साधते हुए—अपील जारी की। उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि भाजपा के संचालक व नियंत्रक संगठन आरएसएस की विभाजनकारी हिंदुत्ववादी विचारधारा को—जो पूरी तरह फ़ासीवादी विचारधारा है—शिकस्त देना ज़रूरी है, क्योंकि यह देश को बांटने और बर्बाद कर देने की मुहिम चला रही है।

सुखद आश्चर्य की बात यह है कि लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों व बुद्धिजीवियों की ओर से जारी ऐसी अपीलों को व्यापक समर्थन मिला और उनमें अपना नाम जुड़वाने की जैसे होड़ लग गयी। जबकि सीधे-सीधे वैचारिक-राजनीतिक स्टैंड लिया जा रहा था, फिर भी अपना नाम शामिल कराने में हिचक नहीं दिखायी दे रही थी।

एक उदाहरण से इस बात को समझने में मदद मिलेगी। लखनऊ में कहानीकार व ऐक्टिविस्ट किरण सिंह की पहल से जनता के नाम लेखकों, कलाकारों,संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की एक अपील जारी हुई कि इस चुनाव में मोदी व भाजपा को हराना है। अपील में शुरू में 25-30 लेखकों-बुद्धिजीवियों के नाम थे। वह अपील बहुत लोकप्रिय हुई, और उसके समर्थन में नामों के जुड़ने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह मुश्किल से एक हफ़्ते के अंदर 650 की संख्या पार कर गया। गौर करने की बात है कि लखनऊ से जारी इस अपील को हिंदी-उर्दू पट्टी के लेखकों व बुद्धिजीवियों के अलावा कई गैर हिंदी लेखकों व बुद्धिजीवियों का समर्थन और अनुमोदन मिला। इनमें कांचा इलैया शेफ़र्ड, गीता हरिहरन, के. सच्चिदानंदन, अरुंधति राय, गौतम नवलखा, आनंद पटवर्धन, राम पुनियानी आदि शामिल हैं।

यह आम  चुनाव इसलिए भी याद रखा जायेगा कि वाम-प्रगतिशील-उदार-लोकतांत्रिक-सेकुलर लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों व बुद्धिजीवियों ने खुलकर अपनी पक्षधरता व्यक्त की और ऐलानिया कहा कि हमें हिंदुत्व फ़ासीवाद व ब्राह्मणवादी पितृसत्ता हरगिज मंज़ूर नहीं।

(लेखक वरिष्ठ कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

इसे भी पढ़ें : 100 से ज़्यादा फिल्मकारों की भाजपा को वोट न देने की अपील

फिल्मकारों के बाद लेखकों की अपील : नफ़रत की राजनीति के ख़िलाफ़ वोट करें

General elections2019
2019 आम चुनाव
2019 Lok Sabha elections
writer
artist
filmmaker
scholar
people's poet

Related Stories

जयंती विशेष : हमारी सच्चाइयों से हमें रूबरू कराते प्रेमचंद

आम चुनावों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के बारे में विचार की जरूरत

झारखंड : ‘अदृश्य’ चुनावी लहर कर न सकी आदिवासी मुद्दों को बेअसर!

विपक्ष की 100 ग़लतियों से आगे 101वीं बात

आपको मालूम है, मतगणना के वक़्त एग्ज़ाम रूम में बैठा युवा क्या सोच रहा था?

लोकसभा चुनाव के स्तर में इतनी गिरावट का जिम्मेदार कौन?

वाह, मोदी जी वाह...! भक्ति की भक्ति, राजनीति की राजनीति

क्या ये एक चुनाव का मामला है? न...आप ग़लतफ़हमी में हैं

मायावती ने मोदी लहर को दबा दिया

बीजेपी को भारी पड़ेंगी ये 5 गलतियां?


बाकी खबरें

  • अजय कुमार
    महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां
    26 May 2022
    विश्व आर्थिक मंच पर पेश की गई ऑक्सफोर्ड इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दौर में फूड फ़ार्मा ऑयल और टेक्नोलॉजी कंपनियों ने जमकर कमाई की।
  • परमजीत सिंह जज
    ‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप
    26 May 2022
    पंजाब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंजाब की गिरती अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करना है, और भ्रष्टाचार की बड़ी मछलियों को पकड़ना अभी बाक़ी है, लेकिन पार्टी के ताज़ा क़दम ने सनसनी मचा दी है।
  • virus
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या मंकी पॉक्स का इलाज संभव है?
    25 May 2022
    अफ्रीका के बाद यूरोपीय देशों में इन दिनों मंकी पॉक्स का फैलना जारी है, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में मामले मिलने के बाद कई देशों की सरकार अलर्ट हो गई है। वहीं भारत की सरकार ने भी सख्ती बरतनी शुरु कर दी है…
  • भाषा
    आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद
    25 May 2022
    विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग अवधि की सजा सुनाईं। सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    "हसदेव अरण्य स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि आदिवासियों के अस्तित्व का सवाल"
    25 May 2022
    हसदेव अरण्य के आदिवासी अपने जंगल, जीवन, आजीविका और पहचान को बचाने के लिए एक दशक से कर रहे हैं सघंर्ष, दिल्ली में हुई प्रेस वार्ता।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License