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भारत
राजनीति
गिग वर्कर्स के क़ानूनी सशक्तिकरण का वक़्त आ गया है
गिग वर्कर ओला (OLA) या उबर (Uber) जैसी एग्रीगेटर फर्मों के लिए काम करने वाले टैक्सी ड्राइवर हैं। ज़ोमैटो (Zomato) या स्विगी (Swiggy) जैसी फूड होम डिलीवरी चेन के डिलीवरी वर्कर हैं।
बी. सिवरामन
18 Dec 2021
gig workers

फ्रांसीसी बुद्धिजीवी विक्टर ह्यूगो ने कहा है कि जिस विचार का समय आ गया हो, उसे कोई नहीं रोक सकता। गिग श्रमिकों के श्रम अधिकारों को कानूनी मान्यता के बारे में यह बिल्कुल सच है।अन्यथा नहीं हो सकता, जब पिछले दस वर्षों में भारत में रोजगार का सबसे बड़ा विस्तार गिग श्रमिकों के क्षेत्र में हुआ हो। कोई भी सभ्य देश अपने लाखों श्रमिकों को श्रम अधिकारों से एक न्यूनतम मापदंड के बिना काम नहीं करा सकता है। इससे भी बुरा तो यह है कि यदि उन्हें यूएस में कुल कार्यबल का एक तिहाई होने के बावजूद श्रमिक के दर्जे से वंचित कर दिया जाता है, तो यह असमर्थनीय होगा।

‘गिग वर्कर’ कौन हैं?

गिग वर्कर कौन हैं? उनके काम की प्रकृति क्या है? उन्हें श्रमिक होने के दर्जे, और यहां तक कि बुनियादी श्रम अधिकारों से भी क्यों वंचित किया जा रहा है? गिग वर्कर ओला (OLA) या उबर (Uber) जैसी एग्रीगेटर फर्मों के लिए काम करने वाले टैक्सी ड्राइवर हैं। वे ज़ोमैटो (Zomato) या स्विगी (Swiggy) जैसी फूड होम डिलीवरी चेन के डिलीवरी वर्कर हैं। वे कर्मचारी हैं, जो अमेज़ॅन (Amazon) या फ्लिपकार्ट (Flipkart) जैसे ई-कॉमर्स की बड़ी कम्पनियों के लिए ए-टू-जेड उपभोक्ता वस्तुओं का वितरण करते हैं। अमेज़ॅन जैसे प्लेटफॉर्म के लिए आईटी (IT) काम करने वाले तथाकथित फ्रीलांस कर्मचारी जिन्हें प्लेटफॉर्म वर्कर कहा जाता है, वे भी केवल एक प्रकार के गिग वर्कर ही हैं। बीमा एजेंटों से लेकर घरेलू सेवाएं प्रदान करने वाले श्रमिकों तक, और जीएसटी एकाउंटेंट से लेकर वेब डेवलपमेंट करने वालों तक- कई अन्य प्रकार के कर्मचारी भी हैं, जो  किसी कंपनी के माध्यम से काम करते हैं लेकिन औपचारिक रूप से कंपनी के लिए नहीं। वे डिजिटल ऐप के माध्यम से ऑनलाइन लगे रहते हैं।

अगले 3-4 वर्षों में भारत में उनकी संख्या मौजूदा 8 मिलियन (1 मिलियन=10,000,00) से बढ़कर लगभग 24 मिलियन होने का अनुमान है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (Boston Consulting Group) और डेल फाउंडेशन (Dell Foundation) के शोध में उम्मीद जताई गई है कि यह संख्या 8 से 10 वर्षों में बढ़कर 90 मिलियन हो जाएगी। गिग वर्कर्स पर आधारित गिग इकॉनमी के भी बड़े होने का अनुमान है। एसोचैम (ASSOCHAM) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 तक भारत का गिग सेक्टर 17% के सालाना चक्रवृद्धि विकास दर (CAGR) से बढ़कर 455 अरब (Billion) अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।

पेमेंट के लिए काम करते हैं पर कानूनी रूप से "कर्मचारी" का दर्जा नहीं 

वर्तमान में गिग वर्कर्स को वर्कर्स का दर्जा नहीं है। जो कंपनियां उन्हें काम में लगाती हैं, उनका दावा है कि ये स्वतंत्र फ्रीलांसर हैं, जो केवल एक काम को अंजाम देने के लिए काम कर रहे होते हैं, जैसे एक ग्राहक को एक उत्पाद पहुंचाना। उन्हें संदिग्ध रूप से "डिलीवरी एक्जीक्यूटिव" के रूप में महिमामंडित किया जाता है। उस जॉब-वर्क के अलावा कंपनियां इन कर्मचारियों के साथ कोई नियोक्ता-कर्मचारी संबंध या अनुबंध स्वीकार नहीं करती हैं।

अक्सर, इन गिग वर्कर्स को यह नहीं पता होता है कि उनके नियोक्ता कौन हैं और वे किसके लिए काम कर रहे हैं। ऐप द्वारा निर्दिष्ट भुगतान के लिए उन्हें ऐप के माध्यम से नौकरी मिलती है, और काम के निर्देश भी ऐप द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। काम हो जाता है और कार्यकर्ता को उसके बैंक खाते में भुगतान मिलता है, और वहीं संबंध समाप्त हो जाता है । "नियोक्ता" या जिस व्यक्ति के लिए काम किया जा रहा है, उसे कभी भी कार्यकर्ता का चेहरा देखने को नहीं मिलता। अक्सर, ग्राहक और कर्मचारी के बीच कोई नियोक्ता नहीं होता और केवल डिजिटल प्लेटफॉर्म, जो ऐप्स को समन्वयित करता है, "नियोक्ता" होता है।

न सामाजिक सुरक्षा न कानूनी अधिकार

कंपनियां इन श्रमिकों के लिए बीमा या पेंशन या स्वास्थ्य कवर जैसी कोई सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं करते। वे उन्हें निश्चित वेतन, बोनस और भत्ते आदि जैसे अन्य वैधानिक लाभ भी नहीं देते। एक निष्पादित कार्य के लिए केवल भुगतान मिलता है । वास्तव में, उनके पारिश्रमिक को वेतन नहीं कहा जाता। यह सिर्फ एकमुश्त भुगतान है। चूंकि यह 'मजदूरी' नहीं है, इसलिए न्यूनतम मजदूरी या निर्वाह मजदूरी का कोई मानदंड नहीं होता।

चूंकि वे न तो पूर्णकालिक कर्मचारी हैं और न ही नियमित अंशकालिक श्रमिक, यह दावा किया जाता है कि वे बिना काम के निर्धारित घंटों के, शासित होते हैं। यह लचीला (flexible) काम माना जाता है लेकिन अक्सर वे दिन में 12-14 घंटे या उससे भी अधिक समय तक काम करते हैं। चूंकि ये गिग कर्मचारी ‘ऑन-डिमांड’ कर्मचारी हैं, जो नियमित रोजगार में नहीं हैं, इसलिए उनके मामले में छुट्टियों या लीव का सवाल ही नहीं उठता। हालाँकि, यह सच है कि उनकी विशाल संख्या उन्हें श्रम शक्ति देती है और उनके अधिकारों को हमेशा के लिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय में याचिका

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्टर्स (Indian Federation of App-based Transporters) गिग वर्कर्स का एक पंजीकृत यूनियन और ओला (OLA) और उबर (Uber) टैक्सी सेवाओं के दो स्वतंत्र कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर करने के लिए एक साथ आए। इस जनहित याचिका को तैयार करने और दाखिल करने का बीड़ा प्रख्यात वकील इंदिरा जयसिंह ने उठाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस जनहित याचिका को स्वीकार कर लिया और केंद्र, ओला, उबर, स्विगी और ज़ोमैटो को नोटिस जारी कर "असंगठित श्रमिकों" के रूप में माने जाने की इस मांग पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी है।

याचिका में कहा गया है कि वर्तमान में, गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने वाले किसी भी कानून के तहत कवर नहीं किया जाता, क्योंकि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा निर्धारित सम्मानजनक कार्य परिस्थितियों में काम करने और आजीविका का अधिकार ही नहीं है। गिग श्रमिकों की त्रासदी यह है कि वे न तो संगठित क्षेत्र के श्रमिकों जैसे ईएसआई और पीएफ अधिनियमों आदि को नियंत्रित करने वाले कानूनों के अंतर्गत आते हैं, और न ही वे असंगठित श्रमिक अधिनियम 2008 के अंतर्गत आते हैं, जिसके तहत अनौपचारिक श्रमिकों को पंजीकृत किया जा रहा है। चूंकि गिग वर्कर इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते, इसलिए उन्हें ई-श्रम पोर्टल के माध्यम से चल रही अनौपचारिक श्रमिक पंजीकरण प्रक्रिया के तहत पंजीकृत नहीं किया जा रहा है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई है कि शीर्ष अदालत को उन्हें "असंगठित श्रमिकों" के रूप में मान्यता देनी चाहिए और केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देना चाहिए कि वे पंजीकृत हों और असंगठित श्रमिकों की श्रेणी के बतौर उनके लिए विशेष रूप से योजनाएं तैयार की जाती हैं।

ये गिग कार्यकर्ता पहले से ही अनिश्चित कार्यकर्ता थे और महामारी ने उनकी स्थिति को और भी खराब कर दिया है। चूंकि ऑनलाइन खरीदारी कई आवश्यक वस्तुओं को खरीदने का एकमात्र साधन बन गई, गिग श्रमिकों की संख्या में काफी विस्तार हुआ। पर उनकी सेवा स्थिति बिगड़ गई। कोविड-19 के कारण कई लोगों की मौतें हुईं। याचिका इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-आधारित ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (IFAT) की एक रिपोर्ट को संदर्भित करती है, जिसमें दिखाया गया है कि ऐप-आधारित परिवहन श्रमिकों को महामारी के दौरान आय के 80% तक का नुक्सान हुआ है।

गिग वर्कर्स के मामले में कुछ पेचीदा कानूनी मुद्दे शामिल हैं। उन्हें संसद द्वारा पारित सामाजिक सुरक्षा संहिता के तहत लाभार्थियों की सूची में शामिल किया गया है, जिसे अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है। करीब से जांच करने पर, यह पाया जाता है कि हालांकि गिग वर्कर्स के लिए कुछ मामूली सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की पेशकश की गई है, लेकिन कोड उन्हें या प्लेटफॉर्म वर्कर्स को वर्कर के रूप में परिभाषित नहीं करता। इसके अलावा, भारतीय कानून प्रणाली के तहत एक कानून के तहत लाभार्थी स्वतः ही अन्य कानूनों के लाभार्थी नहीं होते। ऐसा लगता है कि टैक्सी एग्रीगेटर्स और ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियों ने सरकार के साथ सफलतापूर्वक लॉबी की है और कुछ सांकेतिक सामाजिक सुरक्षा उपायों से सहमत होकर उन्होंने सरकार को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने से रोक दिया है कि कौन कर्मचारी है और कौन गिग वर्कर।

ईयू गिग वर्कर्स को कर्मचारी मानेगा

संयोग से, यूरोपीय आयोग दिसंबर 2021 के पहले सप्ताह में अनुबंधित पार्टियों के बीच नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों को पहचान कर गिग श्रमिकों को कर्मचारियों के रूप में घोषित करने के लिए नियमों के एक मसौदे के साथ आया था। एक बार अगर ये मसौदा नियम पारित हो जाते हैं, तो यूरोप में 4.1 मिलियन गिग श्रमिकों को वेतनभोगी श्रमिकों के रूप में दर्जा मिल जाएगा। संयोग से, अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में, प्रस्ताव 22, जिसमें गिग श्रमिकों को 'स्वतंत्र ठेकेदारों' के रूप में माना जाता था, नवंबर 2020 में राज्य विधानसभा में पारित किया गया था। एक न्यायाधीश ने अगस्त 2021 में इस कानून को खारिज कर दिया है।

यूके ऊबर निर्णय 

एक और महत्वपूर्ण घटना यह है कि यूके के सुप्रीम कोर्ट ने इस साल फरवरी में फैसला सुनाया कि ऊबर ड्राइवरों की तरह गिग कर्मचारी भी सामान्य श्रमिकों के समान न्यूनतम वेतन, पेंशन और वैतनिक छुट्टियों के हकदार हैं, जिससे उनको भी श्रमिकों के रूप में स्वीकार किया जा सकेगा। उल्लेखनीय बात यह थी कि यह बेंच के सभी सात न्यायाधीशों का सर्वसम्मति से निर्णय था। यह नियोक्ताओं और सरकारों के लिए एक स्पष्ट संकेत था कि इस मुद्दे पर कानूनी राय आकार ले रही है। वैश्विक श्रम न्यायशास्त्र स्पष्ट रूप से गिग श्रमिकों को वेतन-श्रमिक के रूप में मान्यता देने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत लंबे समय तक खुद को इस दायरे से बाहर नहीं रख सकता। 

गिग वर्कर्स की निगरानी 

गिग वर्कर्स के बारे में मिथकों में से एक यह है कि वे स्वतंत्र कर्मचारी हैं जो स्वयं तय करते हैं कि वे कैसे काम करेंगे। लेकिन वास्तव में, सभी एग्रीगेटर और ई-कॉमर्स फर्मों में, उनका काम एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिथम (A.I. algorithm) द्वारा नियंत्रित होता है, जो यह तय करता है कि कर्मचारी कितनी यात्राएं करेगा, उसका पारिश्रमिक क्या होगा और प्रत्येक यात्रा के लिए श्रमिकों द्वारा लिया गया समय कितना होगा, आदि। तथाकथित मुक्त कर्मचारी बॉट द्वारा नियंत्रित होते हैं, जो यह निर्धारित करते हैं कि कर्मचारी कितने घंटे काम करेगा, आदि, और इनके आधार पर प्रत्येक वर्कर को रेटिंग आवंटित होंगे। इन रेटिंग्स के आधार पर श्रमिकों को पुरस्कृत या दंडित किया जाता है। कर्मचारी इन एल्गोरिदम्स के आभासी दास बनकर रह जाते हैं। अब गिग वर्कर्स के संगठन मांग कर रहे हैं कि कंपनियां इन एल्गोरिदम्स को वर्कर्स के साथ शेयर करें ताकि उन्हें पता चल सके कि उनका खुद का किस तरह का पर्सनल डेटा एकत्र और स्टोर किया जा रहा है और उनकी डाटा सुरक्षा (Data security) कितनी दुरुस्त है। वैश्विक श्रम आंदोलन भी स्पष्ट रूप से गिग श्रमिकों के श्रमिक के रूप में लेबरअधिकारों पर जोर देने की ओर बढ़ रहा है। भारत इस बाबत पिछड़ जाने का जोखिम नहीं उठा सकता।

लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं

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